फैक्टरी फूंककर मजदूरों को फंसाने की साजिश रच रहे डेल्टा प्रबंधक

Update: 2018-09-21 03:46 GMT

गैरकानूनी ढंग से गुपचुप कारखाना बंद करने की फिराक में है फैक्टरी मालिकान, आंदोलनरत मजदूरों को खदेड़ने के लिए कारखाने की बिजली-पानी किया बंद, महिला मजदूरों को दी जा रही बलात्कार की धमकी...

ग्राउंड जीरो से सलीम मलिक की रिपोर्ट

रामनगर, जनज्वार। नैनीताल-यूएसनगर की सीमा हल्दुआ स्थित सीएफएल बनाने वाला डेल्टा कारखाना इन दिनों मजदूर आंदोलन के चलते सुर्खियों में बना हुआ है। गुजरे दो माह से इस कारखाने में लगातार आंदोलनात्मक गतिविधियां विभिन्न रुप में चल रही हैं।

उत्तराखण्ड राज्य स्थापना के बाद से स्थापित ‘डेल्टा इलैक्ट्रानिक्स’ नाम की इस फैक्टरी के अतीत पर चर्चा की जाये तो कहना गलत न होगा कि बीते डेढ़ दशक ने कारखाने के मालिक ने मजदूरों की मेहनत के बल पर इस कारखाने से अकूत दौलत कमाई है, जिसके चलते इस कारखाने के गर्भ से इसी क्षेत्र की कई अन्य कम्पनियां डेल्टा स्वामी ने अलग-अलग नामो से खड़ी करने में सफलता प्राप्त की है।

‘स्मार्ट’, ‘काम्पेक्ट’ आदि नई कम्पनियों के साथ-साथ कारखाना स्वामी ने कालाढूंगी के नया गांव व रुद्रपुर में भी इसी मातृसंस्था ‘डेल्टा इलैक्ट्रानिक्स’ के बूते अपना साम्राज्य खड़ा किया हुआ है।

लेकिन कुछ तो नये राज्य द्वारा उद्योगो को टैक्स में दी जाने वाली छूट समाप्त होने व कुछ नोटबंदी के चलते मंदी की मार झेल रहा यह कारखाना मालिक के लिये अब दूधारु गाय नहीं रहा। घाटे का सौदा करे तो उसे पूंजीपति ही भला कोई क्यो कहे? सो, मालिक की मंशा अब इस कारखाने को चलाने की नहीं है, जो कि कोई बड़ी बात नहीं है, लेकिन मालिक इस कारखाने को गैरकानूनी ढंग से गुपचुप ढंग से बंद करने की फिराक है, जिसको लेकर इन कारखानों में काम करने वाले मजदूर कारखाना बंदी के खिलाफ आंदोलन पर उतर आये हैं।

वित्तीय वर्ष की समाप्ति के बाद से ही अप्रेल माह में ‘डेल्टा’ को बंद करने की खबंरे प्रबंधन की ओर से छन-छनकर बाहर आ रहीं थी। लेकिन करीब पांच से सात हजार लोगों के लिये रोजगार का सबब बना इतना बड़ा उद्योग बंद हो सकता है, इस पर कोई भरोसा करने को तैयार नहीं था।

संबंधित खबर : 5 हजार लोगों को रोजगार ​देने वाला उत्तराखंड का डेल्टा कारखाना बंदी के कगार पर

बहरहाल अगस्त माह का पहला दिन इस बात का गवाह बना, जब सार्वजनिक तौर पर इस कारखाने को बंद करने का ऐलान करते हुये कुछ मजदूरों का वेतन दिया गया, जबकि बचे हुये मजदूरों को वेतन दिये जाने का दिन दो दिन बाद का निर्धारित किया गया।

तीन अगस्त को अपना वेतन लेने पहुंचे मजदूरों को बरगलाते हुए प्रबंधन ने उनसे सादे कागज पर हस्ताक्षर करवाते हुये उनका हिसाब करना शुरु कर दिया। नियम-कानून से अनभिज्ञ श्रमिक खुशी-खुशी वेतन मिलने पर इन कागजो पर हस्ताक्षर करते चले गये। लेकिन कुछ मजदूरों के हस्ताक्षर न करने से बात बिगड़ गई। मजदूरों व प्रबंधन के बीच हुये इस विवाद के बाद नगर के कई संगठनों ने मजदूरों के पक्ष में आवाज उठानी शुरू कर दी।

श्रमिक हितों के लिये काम करने वाले ‘इंकलाबी मजदूर केन्द्र’ ने तो बाकायदा इस आंदोलन की कमान अपने हाथ में ही ले ली। जिसके बाद डेल्टा कारखाने के हजारों मजदूर इंकलाबी मजदूर केन्द्र के नेतृत्व में रामनगर के मुख्य प्रशासनिक भवन के परिसर में धरने पर बैठ गये।

हजारों मजदूरों के कानफोड़ू नारेबाजी आंदोलन ने प्रशासनिक भवन के अधिकारियों को दो ही दिन में इतना परेशान कर दिया कि उन्होंने इन मजदूरों को यहां से हटाकर अपना पिण्ड छुड़ाने की गरज से कारखाना प्रबंधक पर दवाब बनाना शुरू किया, जिसके नतीजे में श्रम विभाग के अधिकारियों की मौजूदगी में कारखाना प्रबंधक व श्रमिक हल्द्वानी में त्रिपक्षीय वार्ता के लिये एक टेबल पर आये।

Full View वार्ता में प्रबंधन ने सभी श्रमिकों को वेतन दिये जाने, हड़ताली अवधि का भी वेतन दिये जाने की मांग मानते हुए श्रम विभाग में ले-आफ की घोषणा कर दी, जिसके बाद ‘ले-आफ’ की अवधि में भी मजदूर कारखाना गेट पर पहुंचकर हाजिरी बजाने लगे।

45 दिन का ले-आफ समाप्त होने के बाद श्रमिकों को एक माह का आधा वेतन तो मिला, लेकिन हड़ताली अवधि का वेतन प्रबंधन ने फिर रोक लिया। इसके साथ ही प्रबंधन ने अपना असली चेहरा दिखाते हुये कारखाना गेट पर कारखाना बंदी का नोटिस भी चस्पां करते हुये कारखाने का गेट मजदूरों के लिये बंद कर दिया। प्रबंधन द्वारा की गई यह कार्यवाही श्रमिकों को उकसाने के लिये पर्याप्त थी, जिसका असर भी हुआ।

मजदूरों ने गेट फांदकर कारखाने में घुसने का प्रयास किया तो प्रबंधन के इसी काम के लिये रखे गये ‘बाउंसरों’ ने फैक्टरी के सुरक्षाकर्मियों के साथ मिलकर श्रमिको की जमकर पिटाई की। इस पिटाई में अवधेश नाम का श्रमिक इतना घायल हुआ कि उसे दाखिल अस्पताल करना पड़ा। इस पूरे घटनाक्रम के दौरान पुलिस भी मौजूद थी, लेकिन उत्तराखण्ड की पुलिस में गांधीवाद इतना कूट-कूटकर भरा था कि इस हिंसा की कार्यवाही में हस्तक्षेप करने का पाप उसने नहीं करा।

बाद में मौके पर पहुंची तहसीलदार प्रियंका रानी भी मजदूरों को कोई राहत नहीं दिला पाई, सिवाय इसके कि उनके सामने बाउंसरों की हिम्मत श्रमिकों को पिटने की नहीं हुई। जल्द ही श्रम विभाग व प्रबंधन से वार्ता कराने का आश्वासन देते हुए तहसीलदार साहिबा ने भी अपने कार्यालय की राह पकड़ ली।

लुटे-पिटे श्रमिकों के सामने फैक्टरी में ही बैठकर अपना आंदोलन करने के अलावा कोई रास्ता नहीं था। लिहाजा फैक्टरी में ही तमाम महिला-पुरुष श्रमिकों ने अपना आंदोलन शुरू कर दिया। आंदोलन में शामिल मजदूरों की तादात देखते हुये प्रबंधन की अब सीधे तौर पर मजदूरों से टकराने की स्थिति बची नही थी, वैसे भी आंदोलन कर रहे श्रमिकों में अधिकांश महिला श्रमिक ही थीं, जिन पर दिन-दहाड़े हाथ डालने की नंगई तो प्रशासन भी किसी हाल नहीं होने देता।

जिसके चलते कोने-कमरे में छिपे प्रबंधन के लोग मजदूरों का आंदोलन तोड़ने की साजिशें रचने लगे। मजदूरों के इस आंदोलन को तोड़ने के लिये प्रबंधन ने ‘सूचनाएं’ मजदूरों तक पहुंचाने का रास्ता अपनाते हुए खबर फैलानी शुरू कर दी कि कुछ लोग फैक्टरी में आग लगाने का कुचक्र रच रहे हैं। साफ था कि आंदोलन को तोड़ने के लिये प्रबंधन के लोग ही कारखाने के किसी हिस्से में आग लगाकर इसका इल्जाम मजदूरों के मत्थे मढ़ने की तैयारी कर रहे थे।

एक और पैंतरा प्रबंधन की ओर से यह भी फेंका गया कि रात में महिला श्रमिक आंदोलन कर रही हैं, जो उनकी सुरक्षा के लिये खतरा बन सकता है। जाहिर तौर पर यह दूसरी उन महिला श्रमिकों के लिये थी, जो रात में भी अपने आंदोलनरत साथियों के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर खड़ी थी।

कारखाने में अनशन पर बैठे मजदूरों का आंदोलन तोड़ने के लिये अराजक तत्वों द्वारा फैक्टरी फूंककर उसका इल्जाम मजदूरों के मत्थे मढ़ने की धमकी दी। इसके खिलाफ इंकलाबी मजदूर केन्द्र के प्रतिनिधियों ने एसडीएम से मुलाकात कर गुंडा तत्वों पर कार्यवाही करने के साथ ही गैरकानूनी ढंग से बंद की गई फैक्टरी को खुलवाने की मांग करते की। श्रमिक प्रतिनिधियों ने आरोप लगाया कि डेल्टा कारखाने के अंदर चल रहे आंदोलन के चलते प्रबंधन से जुड़े कुछ लोग फैक्टरी में आग लगाकर इसका इल्जाम मजदूरों पर थोपने की साजिश कर रहे हैं।

प्रबंधन से जुड़े लोगों के इशारे पर कारखाना परिसर में कारखाने के बाउंसर खुलेआम घूम रहे हैं। इसके साथ ही महिला श्रमिकों के साथ बदतमीजी की चेतावनी दी जा रही है। श्रमिकों का कहना है कि ले-आफ की अवधि समाप्त होने के बाद प्रबंधन ने गैरकानूनी ढंग से कारखाने के प्रवेशद्वार पर कम्पनी को बंद करने का नोटिस चस्पां किया है।

प्रशासन को औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 की धारा 6 डब्ल्यू के तहत कानूनी कार्यवाही करनी चाहिये। श्रमिकों ने एसडीएम से फैक्टरी में आंदोलन के मददेनजर व्यापक सुरक्षा व्यवस्था करने के साथ ही गैरकानूनी ढंग से फैक्टरी को बंद करने का प्रयास कर रहे प्रबंधन पर कार्यवाही की मांग की है। हालांकि प्रशासन को पूरे घटनाक्रम का पता है, लेकिन इसके बाद भी प्रशासन इस पूरे मामले को हल्के में लेने का जोखिम पता नहीं क्यो उठाने को मजबूर है।

फैक्टरी में श्रमिकों का अनशन जारी

कारखाना बंद किये जाने के विरोध में श्रमिको का आंदोलन आज गुरुवार को तीसरे दिन भी कारखाना परिसर में ही जारी रहा। तीसरे दिन उक्रांद नेताआें ने डेल्टा कारखाना पहुंचकर श्रमिकों के आंदोलन का समर्थन करते हुये सरकार से मांग की कि वह इस मामले में तुरन्त हस्तक्षेप कर कारखाना खुलवाये। इस दौरान आयोजित सभा में श्रमिक नेताओं ने आरोप लगाया कि डेल्टा प्रबंधन जबरन गैरकानूनी तौर पर कारखाना बंद करने की साजिश रच रहा है।

श्रमिकों के आंदोलन के चलते घबराये प्रबंधन के लोग अब मारपीट करने की धमकी देने के साथ-साथ ही महिला श्रमिकों की आबरू पर हाथ डालने की धमकी दे रहे हैं, जिसका मुंहतोड़ जवाब दिया जायेगा। श्रमिक नेताआें ने आरोप लगाया कि बीते पन्द्रह सालो में डेल्टा स्वामी इस छोटी कम्पनी की बदौलत ही कई अन्य कम्पनियों का मालिक बन गया है। मजदूरों ने अपना खून-पसीना एक करके कम्पनी को इस हालत में पहुंचाया है, इसे किसी भी कीमत पर बंद नहीं होने दिया जायेगा।

मजदूरों ने आरोप लगाया कि उनके शान्तिपूर्ण आंदोलन के बाद भी प्रबंधक श्रमिकों से कोई बात करने को तैयार नहीं है। यदि जल्द ही उनकी समस्याओं का निदान नहीं हुआ तो मजदूरों का यह आंदोलन फैक्टरी परिसर से निकलकर हल्द्वानी उपश्रमायुक्त व आयुक्त कुमाउं मण्डल कार्यालय तक पहुंच सकता है। मजदूरों ने चल रहे अनशन को आमरण अनशन में भी बदलने की चेतावनी दी है। अनशन पर बैठने वालों में सीमा, ममता, तनिशा, पार्वती, कृष्णा देवी, विकास, दीपक, प्रेमकिशोर, सोनू, रोहताश आदि शामिल हैं।

महिला श्रमिकों की सुरक्षा से मुंह फेरा प्रशासन ने

बीते तीन दिन से जहां एक ओर मजदूरो का दिन-रात आंदोलन चल रहा है, वहीं आंदोलन में शामिल महिला श्रमिकों की सुरक्षा जैसे संवेदनशील मुददे पर प्रशासन की बेरुखी साफ नजर आ रही है। बताया जा रहा है कि बीती रात आंदोलन कर रहे श्रमिकों के आंदोलन में अफरा-तफरी फैलाने के उद्देश्य से प्रबंधन के लोगों ने कारखाने की बिजली बंद करके पूरे परिसर में अंधेरा कर दिया। हालांकि श्रमिकों की जागरुकता के चलते किसी प्रकार की कोई अफरा-तफरी तो नहीं हुई, लेकिन यदि कारखाना परिसर में आंदोलन कर रहे श्रमिकों के बीच किसी प्रकार की अफरा-तफरी होने पर आंदोलन में शिरकत कर रहीं सैंकड़ो महिला श्रमिकों की सुरक्षा खतरे में पड़ने से इंकार नहीं किया जा सकता है।

बिजली-पानी काटकर मजदूरों को पस्त करने की साजिश

गुरुवार को डेल्टा कारखाने में आंदोलन कर रहे श्रमिकों को पस्त करने के लिये कारखाना प्रबंधन ने कारखाने की बिजली व पेयजल की व्यवस्था को भंग करवा दिया है। इंकलाबी मजदूर केन्द्र के पंकज कुमार ने बताया कि दिन में ही उनके नेतृत्व में श्रमिकों ने एसडीएम परितोष वर्मा से मिलकर प्रबंधन की शिकायत की थी, लेकिन इसके बाद भी कारखाना प्रबंधन ने शाम को मजदूरों का आंदोलन तोड़ने की गरज से कारखाने की बिजली व पेयजल व्यवस्था भंग करवा दी है।

राजनीतिक लोगों ने काटी कन्नी

एक ओर जहां पांच से छह हजार लोगों को रोजगार मुहैया कराने वाले डेल्टा व उसकी सहायक फैक्टरियों को बंद करने से बचाने के लिये हजारो श्रमिक आंदोलनरत हैं, वहीं दूसरी ओर इतने व्यापक पैमाने पर बेरोजगारी फैलाने वाली इस घटना पर क्षेत्र के राजनीतिक लोग आश्चर्यजनक चुप्पी साधे हुये हैं। अलबत्ता सोशल मीडिया पर चल रही चर्चाओं में विपक्षी राजनीतिक दलों के लोग मजदूरों के आंदोलन का समर्थन कर रहें हैं, लेकिन धरातल पर उनकी कार्यवाही शून्य ही है।

दूसरी ओर छोटी-छोटी बातो पर पोस्ट करने वाले व राज्य में सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता व नेता तो डेल्टा की ओर नजर उठाकर देखना भी मुनासिब नहीं समझ रहें हैं। कारखाना बंद होने की स्थिति में जिस बड़े पैमाने पर बेरोजगारी फैलने का अंदेशा है, यदि ऐसे में तत्काल इस मामले में राजनीतिक हस्तक्षेप कर कारखाना बंदी को नहीं टाला गया तो आने वाले समय में यह आंदोलन क्षेत्र में बड़ी समस्या बन सकता है।

Tags:    

Similar News