घर से निकाले जाने से ज्यादा भयंकर था रेप की उस भयानक रात से निकलना

Update: 2018-07-21 10:06 GMT

जो महेश दुहाइयां देता था कि उसे मेरे शरीर से नहीं आत्मा-दिल से प्यार है, उसने गैंगरेप के बाद जब मुझे उसकी सबसे ज्यादा जरूरत थी खूब पीटा। मुझे लहूलुहान हालत में घर से निकाल दिया गया, वो भी तब जब मैं पेट से भी थी और इस घटना में मेरा गर्भ भी गिर गया था....

हाउस वाइफ कॉलम में इस बार कानपुर मूल की मुंबई में रह रहीं निहारिका साझा कर रही हैं अपनी जिंदगी की कड़वी हकीकत

मैं आजकल महिलाओं के लिए काम करने वाले एक एनजीओ से जुड़ी हूं। इससे जुड़ने का कारण ही था कि जीने का एक मकसद मिल जाए। मूल रूप से कानपुर की हूं, मगर अब मुंबई में रहती हूं। भरा—पूरा परिवार होने के बाद भी मैं इसलिए अकेली हूं कि शादी के 2 साल बाद मेरे साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था, जिसकी सजा मैं आज भी भुगत रही हूं।

उत्तर प्रदेश के कानपुर के एक गांव की रहने वाली हूं मैं। हर लड़की की तरह मेरे भी अरमान थे कि मुझे अपने सपनों का शहजादा मिलेगा, जो परियों के देश में ले जाएगा। बारहवीं के बाद कॉलेज की पढ़ाई के लिए पिता ने शहर इसलिए भेज दिया कि ग्रेजुएशन कर लूंगी तो शादी में आसानी होगी, क्योंकि हर किसी का ख्वाब पढ़ी—लिखी पत्नी और बहू का रहता है।

आज मेरी उम्र 46 साल हो चुकी है। बीए फाइनल के वक्त कॉलेज के ही एक लड़के से प्रेम कर बैठी, प्रेम क्या कर बैठी वही बुरी तरह पीछे पड़ा। मैं अपनी बुआ के पास रहती थी शहर में, बुआ की कोई लड़की नहीं थी तो उन्हें घर के कामों में सहायता भी मिल जाती थी और मेरी पढ़ाई भी हो रही थी। हालांकि यही पढ़ाई मेरे जीवन में काम आई, जिसकी बदौलत अपने पैरों पर खड़ी हूं।

यह तकरीबन 25 साल पहले की बात होगी, जबकि मैं बीए फाइनल में थी। महेश कॉलेज में ही मुझसे 2 साल सीनियर थे और एमए इंग्लिश के छात्र थे। छात्र राजनीति से भी जुड़े थे वो। हालांकि लड़कियां उनकी तरफ आकर्षित होती थी, पर वो किसी न किसी बहाने से मुझसे मिलने के बहाने तलाशते। लड़कियों पर होने वाले घरेलू या फिर किसी भी तरह के शोषण की भाषणों में इतनी धज्जियां उड़ाते कि हर कोई लड़की उनके जैसा जीवनसाथी पाना चाहे, जो लड़कियों की इतनी इज्जत करता हो। उनका घर बुआ के घर से तकरीबन आधे किलोमीटर की दूरी पर होगा, मगर वह हर रोज शाम के वक्त मेरे इलाके में अपने मित्र के घर आते, जोकि बुआ के घर से सटा हुआ था।

बुआ से भी प्यार से बात करते। यह कह लो कि उन्होंने बुआ के घर में हर किसी को इम्प्रेस करके रखा हुआ था। बातों—बातों में ही बुआ को बताया कि मैं भी निहारिका के कॉलेज में ही पढ़ता हूं, सीनियर हूं उससे। मैं भी महेश की बातों—व्यवहार से उनकी तरफ आकर्षित हो रही थी। मुझे लगता शायद यही मेरे सपनों के राजकुमार हैं।

धीरे—धीरे हमारा प्रेम वक्त के साथ कब परवान चढ़ने लगा, पता ही नहीं चला। इसी बीच मेरा ग्रेजुएशन खत्म हो चुका था, अब बुआ के घर रुकने का कोई बहाना भी नहीं था। मैं गांव वापस मां—पापा के पास चली गई। महेश ने अपने घर वालों को मेरे घर शादी का रिश्ता लेकर भेजा। थोड़ा ना—नुकुर और बुआ के यह कहने पर कि लड़का बहुत भला है और सजातीय होने के कारण पिता ने रिश्ते को सहमति दे दी। मुझे दोबारा बुआ ने अपने पास बुला लिया। अब महेश और मैं अक्सर मिल लेते थे।

इसी बीच बुआ के घर के पास एक लड़की का कुछ विकृत मानसिकता के लड़कों ने सामूहिक बलात्कार कर दिया। वह लड़की मेरे कॉलेज में ही पढ़ती थी। तब आज की तरह बलात्कार की घटनाएं रोज अखबारों की सुर्खियां नहीं हुआ करती थीं। इस कांड ने सबके अंदर डर पैदा करके रख दिया था। लड़कियां तो शाम पांच बजे के बाद घर से निकलना ही बंद हो गईं। बलात्कारियों को उस मामले में कोई सजा नहीं हुई, मगर लड़की ने शर्मिंदगी में जरूर सुसाइड कर लिया। वह मात्र एक घटना बनकर रह गई, और लड़की के घर वाले ऐसे सिर झुकाकर चलते जैसे उन्होंने कोई बहुत बड़ा गुनाह किया हो।

उस घटना के 2—3 दिन बाद महेश से मिली थी मैं। बलत्कृत लड़की की मौत से बहुत दुखी और सदमे में थी मैं। मैंने महेश से पूछा अगर कभी मेरे साथ इस तरह की कोई घटना हुई तो क्या तुम मेरा साथ दोगे, महेश ने मेरे मुंह पर हाथ रख दिया। कहा ऐसा अशुभ नहीं बोलते। तब उन्होंने जो कहा उससे मेरे मन में उनके प्रति और भी ज्यादा इज्जत बढ़ गई।

महेश ने कहा, 'मैं तुम्हें दिल से चाहता हूं, मैं तुम्हें हर हाल में स्वीकारूंगा, भगवान न करे तुम्हारे साथ ऐसा कुछ हो। मगर कुछ ऐसा हुआ भी तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा इससे, मैं तुम्हारे लिए पूरी दुनिया से लड़ जाउंगा। किसी लड़की के साथ हुई बलात्कार की घटना में लड़की को दोषी कैसे कहा जा सकता है, दोषी तो वो लोग हैं जो दुष्कर्म करते हैं। और फिर किसी के शरीर में कोई घाव हो जाने पर उसे छोड़ नहीं देता ना, ऐसा ही जख्म बलात्कार भी है। इसमें इज्जत जाने जैसी कोई बात नहीं होती। प्लीज ऐसी अशुभ बातें मत बोलो।'

महेश की इन बातों ने तब कितना सुकून दिया, बता नहीं सकती। मगर मुझे क्या पता था कि मैंने तब जो कहा था वह मेरे जीवन की कड़वी हकीकत बन जाएगा।

खैर, कुछ महीनों बाद मेरी और महेश की शादी हो गई। थोड़ी बहुत परेशानियों—खुशियों के साथ एक आम परिवार था मेरा। अब तक महेश की सरकारी नौकरी लग गई थी। सबकुछ ठीकठाक ही चल रहा था कि इसी बीच मेरा देवर नरेंद्र जो कि कोलकाता में रहकर नौकरी कर रहा था, वापस घर लौट आया। वहीं उसने अपनी दुकान खोल ली थी।

उसका लौटने के साथ ही शुरू हो गई थी मेरे दुर्दिनों की कहानी। मैंने उसे हमेशा अपने भाई की तरह देखा—माना, उसी तरह व्यवहार किया, मगर मुझे नहीं पता था कि उसकी नीयत कितनी खराब है। वो बार—बार जाने—अनजाने मुझे छूने की कोशिश करता, शुरुआत में तो मैंने ध्यान नहीं दिया, मगर एक बार जब मैं किचन में खाना बना रही थी और उसने पीछे से मुझे दबोच लिया तो मेरा ध्यान इस तरफ गया। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मेरे साथ क्या हुआ, मैं रोते—रोते अपने कमरे में चली गई। मैंने महेश को यह बात बताई तो उन्होंने जो कहा, उससे उनकी जो छवि मेरे ​दिल​—दिमाग में थी, वो काफूर हो गई।

महेश ने कहा, 'क्या बकवास कर रही हो, अरे छोटा देवर है वो तुम्हारा तुम्हें छुआ ही तो है। देवर—भाभी के बीच तो इतना हंसी—मजाक चलता ही है। तुम बेवजह बात को तूल दे रही हो। खबरदार जो इस बात का जिक्र किसी से किया। मैं एकदम टूट गई थी महेश की बातों से, कि ये वही महेश है जो कि कॉलेज में छात्र राजनीति करते हुए लड़कियों की इज्जत की कितनी दुहाइयां दिया करता था। अब तो मेरे देवर की हिम्मत आए दिन और ज्यादा बढ़ने लगी थी। मेरा दम घुट रहा था।

एक दिन जब महेश किसी काम से शहर से बाहर गए थे तो वो रात को मेरे कमरे में घुस आया और उसने मेरे साथ जबर्दस्ती करने की कोशिश की। पहली बार तब मैंने उसका खुलकर विरोध किया और पास पड़े डंडे से उसके सिर पर वार कर दिया, जिसमें उसका सिर फट गया। अब यह खबर पूरे घर में पता चली तो उसने मुझे ही दोषी ठहरा दिया कि मैंने ही उसे अपने कमरे में बुलाया था। सभी मुझे दोष देने लगे तो उसने महानता का आवरण ओढ़ते हुए ढोंग किया कि मैं भाभी को अपनी मां समान समझता हूं, इन्होंने ही मुझसे जबर्दस्ती की। पर मुझे अपने घर की इज्जत का ख्याल है इसलिए इसका जिक्र किसी से नहीं करूंगा।

उस दिन के बाद मैं पूरे घर वालों की नजर में खटकने लगी थी। अब महेश का व्यवहार मेरे प्रति बहुत हद तक बदलने लगा था। इस बीच देवर ने मेरे साथ छेड़खानी नहीं की तो मुझे लगा शायद वह सुधर गया होगा, मैंने बुआ तक को इस डर से नहीं बताया कि इससे ससुरालियों की बदनामी होगी। मगर मुझे क्या पता था कि देवर कोई बड़ी प्लानिंग कर रहा है।

मुझे आज भी अच्छी तरह याद है वह शिवरात्रि का दिन था, मेरी तबीयत थोड़ी खराब थी तो मैं मंदिर नहीं गई, बाकी सभी लोग बाजार और मंदिर गए हुए थे। उसी शाम किसी के घर पूजा भी आयोजित थी तो सभी लोग वहां चले गए और रात को तकरीबन 12 बजे घर लौटे।

मैं कमरे में आराम कर रही थी कि मेरा देवर 4—5 लड़कों के साथ आया और उन लोगों ने मेरे साथ जो किया उसे सोचकर आज भी मेरी रूह कांप उठती है। नशे में चूर उन लोगों ने मेरे हाथ—पैर बांध, मुंह में कपड़ा ठूंस मेरा शरीर ही नहीं रौंदा, आत्मा तक को लहूलुहान कर दिया।

सास—ननद और पति घर आए तो उन्हें घटना के बारे में बताया। मुझसे चला—फिरा नहीं जा रहा था, मुझे डॉक्टर की जरूरत थी, मगर उन लोगों ने बजाय देवर को कुछ कहने या कोई एक्शन लेने के मुझे ही दोषी ठहराना शुरू कर दिया। जो महेश दुहाइयां देता था कि उसे मेरे शरीर से नहीं आत्मा—दिल से प्यार है, उसने मुझे उस हालत में भी खूब पीटा। मुझे लहूलुहान हालत में घर से निकाल दिया गया वो भी तब जब मैं पेट से भी थी और इस घटना में मेरा गर्भ भी गिर गया।

इसके बाद मन में कई बार आया कि आत्महत्या कर लूं, बुआ के घर आई। पूरी बात बताई तो उन लोगों ने भी बदनामी का डर दिखा मुंह बंद रखने की सलाह दी। कुछ समझ में नहीं आ रहा था। मां—पिता के पास लौटी तो उन्होंने भी साथ नहीं दिया। ससुराल वालों से बात कर वह मुझे दोबारा उसी नरक में भेजना चाहते थे। पागलों जैसी हालत हो गई। उसी हालत में एक दिन निकल पड़ी घर से आत्महत्या के लिए।

सड़क पर बस के आगे आकर मर जाने के लिए जैसे ही आई कि एक भली महिला ने बचा लिया। ये किसी को फिल्मी लग सकता है, मगर मैंने इसे जिया है। वह महिला जो कि एक सामाजिक संगठन से जुड़ी थीं, मुझे अपने घर ले गईं। मुझे रेप के ट्रॉमा से निकालने में उन्होंने जीजान लगा दी। अब जबकि मेरे लिए सारे रिश्ते खत्म हो चुके हैं, वही मेरी सबकुछ हैं, सही मायनों में मेरी मां हैं वो, जिन्होंने मुझे नई जिंदगी दी।

उन्होंने मुझे सिखाया—समझाया बलात्कार सहने वाली लड़कियों को नहीं शर्म बलात्कारियों को आनी चाहिए, किसी अंग पर चोट लग जाने से जैसे दर्द होता है वैसा ही बलात्कार भी है। उसके बारे में सोचना छोड़ो और आगे बढ़ो। बलात्कार की शिकार लड़कियों को नई जिंदगी दो, ताकि वो मुख्यधारा में लौट जीने का साहस कर सकें।

आज अपने जीवन की त्रासदी को याद कर उसी मनोदशा से जूझती लड़कियों को बाहर निकालने की कोशिश करती हूं, ताकि दरिंदों के किए की सजा बलत्कृत लड़की को अपनी जान गंवाकर न चुकानी पड़े। मैंने तो तब कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की, मगर आज कोशिश करती हूं कि ऐसे दरिंदों के खिलाफ शिकायत दर्ज हो।

(निहारिका फिलहाल मुंबई में रहती हैं। उनके अनुरोध पर यहां उनका नाम बदला गया है। कभी गैंगरेप का शिकार हुईं निहारिका की एक ही कोशिश रहती है कि बलात्कार की शिकार लड़कियों—​महिलाओं को हिम्मत और जीने का साहस दें। कोई भी महिला अपने जीवन के किसी भी तरह के अनुभवों पर लिखने की इच्छुक हैं तो हमें editorjanjwar@gmail.com पर मेल करें। जो महिलाएं टाइप नहीं कर सकतीं वह हमें हाथ से लिखकर और फिर फोटो खींचकर मेल कर सकती हैं।)

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