ग्राउंड रिपोर्ट : अडाणी पर मैंग्रोव के जंगल नष्ट करने के अपराध में लगा था 200 करोड़ का जुर्माना, लेकिन मोदी सरकार नहीं वसूल सकी एक भी पैसा

Update: 2019-11-08 08:36 GMT

2013 में पर्यावरण मंत्रालय ने लगाया था 200 करोड़ का जुर्माना, लेकिन मोदी सरकार अब तक एक पैसा भी नहीं वसूल सकी अडानी ग्रुप से, अडाणी के कारण गुजरात के मुंद्रा विस्तार के किसानों पशुपालकों और माछीमारों की आजीविका खतरे में

कच्छ से दत्तेश भावसार की ग्राउंड रिपोर्ट

भारत में मैंग्रोव के जंगल अब कुछ ही क्षेत्रों में बचे हैं। मैंग्रोव तटीय विस्तारों के लिए तूफान से बचने का एक बड़ा कवच है, किंतु मोदी सरकार की उदासीनता के कारण आज कच्छ के मुंद्रा विस्तार में भारत का दूसरा सबसे बड़ा मैंग्रोव का जंगल नष्ट होने की कगार पर आ चुका है।

मैंग्रोव तूफान से तटीय विस्तार को बचाने के लिए बहुत उपयोगी वनस्पति है तथा मैंग्रोव प्रदूषण कम करने में भी बहुत योगदान देता है। इस वजह से मानव सृष्टि के लिए मैंग्रोव एक आशीर्वाद सामान वनस्पति है। कच्छ के विस्तार में 1998 में आए तूफान में मुंद्रा विस्तार को मैंग्रोव ने बचा लिया था, जबकि कांडला विस्तार में मैंग्रोव न होने के कारण वहां पर बहुत ही जान—माल का नुकसान हुआ था। मुंद्रा विस्तार में कांडला के मुकाबले मामूली नुकसान हुआ था।

सी ही कई वजहों के कारण अडाणी समूह ने जब मैंग्रोव को नष्ट करना चालू किया तब स्थानीय समुदायों के लोगों ने खेती विकास सेवा ट्रस्ट के माध्यम से गुजरात हाईकोर्ट में सरकार के खिलाफ जनहित याचिका दायर की। उस याचिका की पहली ही सुनवाई में सितंबर 2013 में अडाणी के कामों पर स्टे लगा दिया गया।

खेती विकास सेवा ट्रस्ट के नारायण गढ़वी कहते हैं, 'जनहित याचिका 2011 में गुजरात हाईकोर्ट में फाइल की गई थी। उसके बाद हाईकोर्ट के आदेशों का उल्लंघन करते हुए अडाणी समुदाय ने कई नियमों का उल्लंघन किया, तब याचिकाकर्ताओं ने 9124 नंबर की याचिका फाइल करके हाईकोर्ट को दखल देने के लिए प्रार्थना की थी।'

नारायण गढ़वी आगे बताते हैं, तब हाईकोर्ट ने जिला कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक, खेती विकास सेवा ट्रस्ट, गुजरात कोस्टल जॉन के एक सदस्य और अडाणी के एक सदस्य को मिलाकर पांच सदस्य कमेटी बनाई थी और उस कमेटी को सारे विस्तार का संज्ञान लेकर रिपोर्ट तैयार करनी थी, मगर उस कमेटी में स्थानीय लोगों को बहुत धमकाया और अडाणी के खिलाफ ना बोलने की हिदायत दी। बाद में कमेटी ने निष्कर्ष दिया कि अडाणी को बहुत नुकसान हुआ है। उसके बाद केंद्र सरकार में कई फरियादें करने के बाद और एक कमेटी बनी, जो कि सीएसई की प्रमुख सुनीता नारायण कमेटी के नाम से जानी गई।

Full View है कि 2013 में पर्यावरण मंत्रालय ने मैंग्रोव के जंगल को नष्ट करने के आरोप में अडाणी ग्रुप पर 200 करोड़ का जुर्माना लगाया था, लेकिन मोदी सरकार अब तक एक पैसा भी नहीं वसूल सकी है। इतना ही नहीं अडाणी के कारण गुजरात के मुंद्रा विस्तार के किसानों पशुपालकों और माछीमारों की आजीविका खतरे में जरूर पड़ गयी है।

रेंद्र मोदी सरकार के बहुत ही करीबी संबंध होने के कारण अडाणी ग्रुप के खिलाफ कोई भी कार्यवाही नहीं हो रही, जिसका खामियाजा मुंद्रा के आसपास रहते किसानों पशुपालकों और माछीमारों को भुगतना पड़ रहा है। इस केस के संदर्भ में 958 फोटोग्राफ्स और 3 घंटे की सीडी न्यायालय में प्रस्तुत की गई है और यह केस अभी चालू है, बावजूद इसके अडाणी को 2500 हेक्टेयर जमीन नियमों को ताक पर रखकर दे दी गई, जिसमें मुंद्रा के आसपास के 18 गांव की गोचर जमीन भी शामिल है। इससे यह साबित होता है कि पूरे भारतवर्ष में सरकार के नजदीकी लोग के लिए कोई भी नियम लागू नहीं होता, सारे नियम सामान्य लोगों के लिए ही बने हैं।

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