हरियाणा में छोरियां इबै भी छोरां तै घाट सै

Update: 2018-09-09 11:52 GMT

एक मोलकी बहू कहती है हरियाणा में महिलाओं की कद्र नहीं होती। जिस स्त्री ने लड़का पैदा नहीं किया उसकी तो बिल्कुल भी नहीं। बंगाल में तो अब दो बच्चों के बाद कोई तीसरा बच्चा पैदा नहीं करता, फिर चाहे वह लड़का हो या लड़की लेकिन हरियाणा में तो लड़के की चाह पर बच्चे पैदा करते जाओ...

हरियाणा के मोलकी बहुओं के गांवों से लौटकर युवा साहित्यकार विपिन चौधरी की रिपोर्ट

हरियाणा के जींद जिले का बीबीपुर गाँव स्त्री सशक्तिकरण की मिसाल बना हुआ है और इस गाँव के अखबारी सुर्ख़ियों में बने के पीछे का कारण यही है। मगर इसी गाँव की मोलकियों के पास कहने को दूसरी ही कहानियाँ हैं जिनके कथ्य में समाहित सच की आंच में हम स्त्री-जीवन की विडंबनाओं के अनगिनत पृष्ठों की थाह पा सकते पाते हैं। हमारे समाज में जहाँ जन्म से ही लड़के-लड़की के बीच भेदभाव की शुरुआत हो जाती है और मरते दम तक यही स्थिति रहती है।

बीबीपुर गाँव में 5800 के करीब जनसंख्या है, गाँव की पंचायत में चार महिला पंच हैं। जहाँ जिले का लिंगानुपात 873 हैं। वहीं बीबीपुर गांव में वर्ष 2015 का लिंगानुपात 1043 है। यह गांव प्रदेश के साथ-साथ उन दूसरे प्रदेशों को भी आईना दिखाने का काम कर रहा है, जहां लिंगानुपात की स्थिति काफी खराब है।

इसी गाँव में कन्या भूण हत्या के खिलाफ महिलाओं ने वर्ष 2012 में व्यापक मुहिम की शुरुआत की थी। उसी तरह यहाँ पर कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए पहली महिला ग्रामसभा और महा खाप पंचायत आयोजित हुयी थी, जिसमें पहली बार महिलाओं ने भागीदारी कर अपनी आवाज़ बुलंद की और उसी वर्ष यानी 2012 में 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' अभियान की शुरुआत भी बीबीपुर से हुई।

वर्ष 2012 से ही 15 अगस्त व 26 जनवरी को बेटियों से झंडा फहराने की शुरूआत हुई। बेटियों के प्रति ध्यान आकर्षित करवाने के लिए 9 जून 2015 को बीबीपुर गांव से ‘सेल्फी विद डॉटर’ अभियान की शुरूआत की। इस गांव के सरपंच ने गांव के 30 घरों के मेन गेट पर बेटियों के नामकरण की प्लेट लगाकर समाज में लड़कियों के महत्व को रेखांकित किया जिसकी शुरुआत उन्होंने सबसे पहले अपने घर की नेम प्लेट बदल, अपनी बेटी की नेम प्लेट लगाकर की।

बेटियों को लेकर सामाजिक जागरूकता के इतने सुखद घटनाक्रमों की सूचनाओं की जानकारी पाकर आपको जरूर ऐसा लग रहा होगा कि इस गाँव में स्त्रियों की स्थिति, देश-दुनिया की दूसरी स्त्रियों से कहीं बेहतर होंगी, मगर इसका एक दूसरा रूप भी है।

लड़कियों के प्रति सामाजिक जागरुकता के इस आलम के बावजूद बीबीपुर गाँव में मोलकी के रूप में ब्याह कर आयी दूसरे प्रदेश की बहुएं मानती हैं कि उनके आसपास की महिलाओं और खुद उनकी स्थिति अच्छी नहीं हैं, सामाजिक रूप में उनकी इज्जत नहीं है, अपने जीवन में उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ता है जिसमें प्रतिदिन का श्रम भी शामिल है, जो उम्रभर उनके साथ कदम-ताल करता रहता है।

बीबीपुर की मोलकी, सीमा विश्वास की उम्र 22 साल है, वह सिलीगुड़ी (दार्जिलिंग) बंगाल से हरियाणा ब्याह कर आई है। उसके पति कर्मबीर जिसकी उम्र 23 वर्ष है, शहर में वेल्डिंग का काम करता है। सीमा के पास दो बेटियां और एक बेटा है। अपनी छोटी-छोटी बेटियों को लेकर वह अभी से चिंतित रहने लगी है।

उसका कहना है, हरियाणा में महिलाओं की खासकर बहुओं की इज़्ज़त कम होती है। बेटी को भी कई परेशानियाँ झेलने पड़ती हैं, इसी कारण उसे चिंता है कि आगे चलकर अगर वह अपनी बेटियों को दहेज़ या हर बार कपड़े-लत्ते आदि की व्यवस्था ठीक से नहीं कर पायी तो उसकी बेटी के ससुराल वाले उसे ताने देकर ही मार डालेंगे।

सीमा आगे कहती हैं, वैसे भी गरीब परिवारों की बेटियों की शादी में दिक्कत आती ही है। इसी गाँव बीबीपुर की एक दूसरी मोलकी किरण कहती है, हमारे बंगाल में लड़कियों को जितनी आज़ादी है उतनी हरियाणा में नहीं है। यहां तो शादी के बाद ससुराल में आने के बाद बहू एक तरह से कैदखाने में आ जाती है, सारा दिन उसे खूब काम करना पड़ता है। ससुराल में बहू अपनी मर्ज़ी से कुछ नहीं कर सकती।

यहाँ तक की अपनी पसंद के कपडे भी पहन नहीं सकती और उस पर बहू से यह आशा की जाती है कि वह लड़के को ही जन्म दे, जैसे लड़के को जन्म देना उसके हाथ में है। उड़ीसा से ब्याह कर आयी बद्रिका कहती हैं, 'वैसे तो हरियाणा हर लिहाज़ से उड़ीसा से बेहतर है. लेकिन यहाँ पर औरतों को वैसा इज्ज़त-सम्मान नहीं मिलता जो हमारे उड़ीसा में मिलता है।

मोलकी आभा को बंगाल से रोशन की बहू बना कर बीबीपुर गाँव में लाया गया है, वह कहती है, 'हरियाणा उसे ज्यादा अच्छा नहीं लगा। पहली वजह तो यह है कि हरियाणा, बंगाल से बहुत दूर है इसी कारण वह कई सालों बाद अपने घर जा पाती है, दूसरा यहाँ पर महिलाओं की कद्र नहीं होती और जिस स्त्री ने लड़का पैदा नहीं किया उसकी तो ज़रा भी कद्र नहीं। बंगाल में तो अब दो बच्चों के बाद कोई तीसरा बच्चा पैदा नहीं करता, फिर चाहे वह लड़का हो या लड़की लेकिन हरियाणा में तो लड़के की चाह पर लड़कियां पैदा करते जाओ।'

हरियाणा की ये अल्पशिक्षित मोलकियां ही हरियाणा में गहरे में जड़ें जमा चुकी रुढ़िवादी पितृसत्ता की सच्चाइयों के प्रति इशारा नहीं करतीं, बल्कि सदियों से प्रचलित हरियाणवी लोकगीतों में भी लड़कियों की अनदेखी कर लड़कों को तवज्जो देने की प्रवृति की बानगी मिलती हैं।

लोकगीतों में बेटी होने की पीड़ा को इस गीत में एक पुत्री अपने जन्म की स्थिति को दर्शा रही है—

'मेरे जन्म पर बजे ठीकरे

भाई के पर थाली

बूढा को रोवै बुढिया भी

रोवै हाली-पाली...'

हरियाणा में स्त्री-पुरुष की संख्या में असमान असंतुलन सरकार के लाख प्रयासों के बाद भी संभलने का नाम नहीं ले रहा। इसके पीछे समाज में बेटियों को बोझ समझने की प्रवृति का सबसे बड़ा हाथ है। यही कारण है कि दूसरे प्रदेशों से ब्याह कर आई ये मोलकियाँ अपने गर्भ में पल रहे शिशु के प्रति अधिक चिंतित दिखाई देती हैं और यह सोचकर घबराती हैं कि अगर उन्होंने लड़कियों को जन्म दिया तो ससुराल में उनका रहना दुष्कर हो जायेगा।

यह बात अलग है कि ससुराल वाले इस बात से भी डरते हैं कि यदि उन्होंने किसी प्रकार की सख्ताई की तो पैसे दे कर लायी ये मोलकियां भाग न जाएं, जैसा पहले कई मामलों में हो चुका है।

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