दलित सामाजिक कार्यकर्ता जिंदान समेत देश में हो चुकी है 72 आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या
सामाजिक कार्यकर्ता केदार सिंह जिंदान की हत्या के आरोपियों पर तुरंत कार्यवाही के लिए सामाजिक सामाजिक संगठनों ने हिमाचल के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के नाम लिखा पत्र
जनज्वार। जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय एनएपीएम ने हिमाचल में दलित सामाजिक कार्यकर्ता केदार सिंह जिदान के हत्यारों पर तुरंत कार्रवाई करने के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के नाम एक पत्र लिखा। कहा जन आंदोलनों के कार्यकर्ता सिरमौर जिले के शिलाई ब्लाक में सामाजिक कार्यकर्ता और जुझारू नेता केदार सिंह जी की दुर्दांत हत्या की आलोचना और निंदा करते हुए मुख्यमंत्री से यह अपेक्षा करते हैं कि इस मामले की कड़ी कार्यवाही करने में हिमाचल सरकार कोई कमी नहीं छोड़ेगी।
पत्र में आगे लिखा, देश में वर्तमान तक 72 आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्याएं हो चुकी हैं और यह अत्यंत निंदनीय और शर्मनाक है कि हिमाचल प्रदेश ने इस आंकड़े में एक और संख्या बढ़ा दी। इस हत्या को किसी भी तरह से सामान्य दर्शाये जाने का प्रयास नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह बात स्पष्ट रूप से सामने आ चुकी है कि केदार सिंह जिंदान की हत्या के पीछे वही लोग हैं जिनका वे कई बार भंडाफोड़ कर चुके थे।
जो काम सरकार की अनेक एजेंसियां करने का सोच भी नहीं पातीं उसे जिंदान ने सूचना के अधिकार का उपयोग करते हुए फर्जी तरीके से बनाये गए गरीबी की रेखा के नीचे के प्रमाण पत्र से नौकरी हासिल करने वालों की समाज के सामने पोल खोली, ताकि सरकारी योजनाओं के सच्चे हकदारों को उनका हक मिल सके। यह बात उस इलाके के सत्ताधारी लोगों को हजम नहीं हो पायी।
जिंदान पेशे से वकील होने के साथ में अपने ‘कोली’ (दलित) समाज के उत्थान के लिए लगातार संघर्षशील थे। उनका प्रयास हमेशा यह रहा कि उनके इलाके के युवाओं को सही शिक्षा मिले और आगे बढ़ें। जिंदान पर पहले भी हमला किया गया, मगर अफसोस कि हिमाचल राज्य की पुलिस और सतर्कता गुप्तचर एजेंसियां इस पर कोई भी कार्यवाही नहीं कर पायीं। जिसका नतीजा यह हुआ कि कोली समाज के साथ-साथ हिमाचल के एक सच्चे सामाजिक कार्यकर्ता की दिन के उजाले में बेरहमी से हत्या कर दी गई।
एनएपीएम ने लिखा, जहां राष्ट्रीय स्तर पर आपकी पार्टी अनुसूचित जातियों के हक में होने का दावा करती है और इसके लिए कानून बना रही है, वहीं आपके राज्य में सवर्ण जातियों के बनाये समूह, राजपूत सभा इस कानून के उपयोग के खिलाफ नारेबाजी कर रहे हैं। केदार सिंह जिंदान के हत्यारे सवर्ण समाज के थे और उन्होंने एक दलित नेता पर खुलेआम हमला किया और कई बार जान से मारने की धमकी भी दे चुके थे। इसी वजह से पुलिस ने (prevention of atrocities act) की धाराएं भी इस केस में लागू की हैं – सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा की इस मामले की कानूनी कार्यवाही जातीय हिंसा के खिलाफ बने प्रावधानों के अंतर्गत की जाये।
एक लोकतंत्र में सिरमौर के ट्रांस गिरी क्षेत्र में आज भी ‘खुम्बडी पंचायत’ जैसी जमघट रोज़मर्रा के फैसले जातियों के आधार पर लेती है, यह दर्शाता है कि सरकार आज़ाद भारत में भी सामाजिक और आर्थिक न्याय इस इलाके तक नहीं पहुंचा पाई है। हिमाचल जैसे राज्य, जो कि अपने ‘गुड गवर्नंस के लिए पहचाना जाता है, के लिए यह शर्म की बात है।
आगे लिखा, आपकी सरकार राज्य में भ्रष्टाचार के खिलाफ, शोषण के खिलाफ और सबका साथ देने के नारे के साथ पदासीन हुई है। ऐसे में इस तरह की योजनाबद्ध हत्या होना सत्ताधारी दल के लिए एक बड़ा प्रश्न है कि क्या संविधान की धारा 21 के तहत दिए गए जीने के अधिकार को सुनिश्चित किया जाएगा?
इस योजनाबद्ध हत्या पर यदि सरकार पीड़ितों को सुरक्षा देने के लिए कोई कार्यवाही नहीं करती और समयबद्ध न्याय प्रक्रिया के तहत दोषियों को सजा नहीं देती तो भविष्य में इस तरह के जातीय हिंसकों को शह मिलेगी। सरकार को इस समस्या के और बढ़ने से पहले ही सख्त कार्यवाही कर उस पर अंकुश लगाना चाहिए।
एनएपीएम ने मांग की कि एससी एसटी एक्ट के तहत दर्ज मुकदमे व हत्या के मुकदमे के लिए त्वरित न्यायालय स्थापित हो। अगले 3 महीने में न्यायिक प्रक्रिया स्थापित करके केदार सिंह जिंदान के हत्यारों को सजा मिले।
साथ ही राज्य सरकार अपनी सभी योजनाओं का पीड़ित परिवार को लाभ दे, उनको समुचित एकमुश्त सहायता के साथ जीवन यापन के लिए साधन उपलब्ध कराएं। सिरमौर के इस क्षेत्र में कोली समाज के सशक्तिकरण हेतु सामाजिक और आर्थिक न्याय के लिए नीतियां बनाई जायें। इस इलाके में और पूरे राज्य में अनुसूचित जातियों के लिए ज़मीन और आजीविका का अधिकार सुनिश्चित करने के लिए कानूनी प्रावधान और नीतियों का तुरंत क्रियान्वयन हो।
मांग यह भी की गई कि इन सभी मुद्दों पर सचिव स्तरीय कार्यवाही व निगरानी हो। भ्रष्टाचार और फर्जीवाड़े के जितने भी मामले केदार सिंह जिन्दान द्वारा दर्ज किये गए और उजागर किये गए, उसकी तय समय सीमा के अन्दर जाँच हो और इसमें लिप्त आरोपियों पर तुरंत कार्यवाही की जाए। 2014 में पास किये गए व्हिसलब्लोअर संरक्षण अधिनियम (Whistleblower Protection Act) को अविलम्ब लागू किया जाए।
एनएपीएम ने यह भी मांग की कि सूचना के अधिकार के तहत उजागर जानकारी, भ्रष्टाचार और फर्जीवाड़े को सरकार स्वतः ही सार्वजनिक करे।