तापमान वृद्धि नहीं रुकी तो केदारनाथ जैसी आपदाओं के लिए रहिए तैयार

Update: 2019-06-25 08:24 GMT

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दुगुनी तेजी से पिघल रहे हैं हिमालय के ग्लेशियर जिसका कारण है लगातार हो रही तापमान वृद्धि, यह एक ऐसी भयानक आपदा है जिसका कारण प्रकृति नहीं बल्कि मानव है, इसके बारे में कभी विस्तार में नहीं की जाती चर्चा, मगर प्रभावित होंगे करोड़ों लोग...

वरिष्ठ लेखक महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

मेरिका के रक्षा विभाग ने लगभग 40 वर्ष पहले एक उपग्रह अंतरिक्ष में भेजा था, जिसका काम था दुनियाभर की सामरिक जानकारी ख़ुफ़िया तरीके से एकत्रित करना। इस खुफिया उपग्रह ने हिमालय के ग्लेशियर के बारे में चौंकाने वाली जानकारी दी है।

स उपग्रह के चित्रों के बारे में कहा जा रहा है कि अब तक के उपग्रहों की तुलना में इसके चित्र सबसे स्पष्ट हैं और इनसे 3-डी चित्र आसानी से बनाए जा सकते हैं। 3-डी चित्रों से ग्लेशियर की ऊंचाई में अंतर को आसानी से परखा जा सकता है। कोलम्बिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने इन चित्रों के आधार पर हिमालय के ग्लेशियर पर पिछले 40 वर्षों में आये अंतर का अध्ययन किया है और अपना शोधपत्र जर्नल ऑफ़ साइंस एडवांसेज नामक जौरना में प्रकाशित किया है।

कोलंबिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने हिमालय के 2000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में स्थित 650 ग्लेशियर का बारीकी से अध्ययन किया है। इनके अनुसार सभी ग्लेशियर तापमान वृद्धि के कारण खतरे में हैं और पिछले 15 वर्षों के दौरान इनके पिघलने और सिकुड़ने की दर पहले से दुगुनी हो गयी है। वर्ष 1975 से 2000 के बीच ग्लेशियर की औसत ऊंचाई लगभग 25 सेंटीमीटर प्रतिवर्ष की दर से कम हो रही थी, जबकि 2000 के बाद यह दर औसतन 46 सेंटीमीटर तक पहुँच गयी है। इस बड़ी दर के कारण हिमालय के ग्लेशियर से प्रतिवर्ष 8 अरब टन पानी नदियों में बहने लगा है। इन वैज्ञानिकों के अनुसार इसका कारण तापमान वृद्धि है।

न सबके बीच दुखद तथ्य यह भी है कि तापमान वृद्धि अब कोई कल्पना नहीं है, बल्कि हकीकत है। अमेरिका के मौसम विभाग के पूर्वानुमान के अनुसार जब से पृथ्वी के तापमान का रिकॉर्ड रखा जा रहा है, यानी वर्ष 1850 के बाद से, 2014 से 2023 का दशक सर्वाधिक गर्म रहने वाला है। इतिहास में पहली बार वर्ष 2015 में पृथ्वी का औसत तापमान पूर्व-औद्योगिक काल की तुलना में 1 डिग्री सेल्सियस अधिक पहुँच गया था। इसके बाद से 2016, 2017 और 2018 लगातार क्रमशः दूसरा, तीसरा और चौथा गर्म वर्ष रहा है।

मौसम विभाग के रिसर्च फेलो डॉ डोउ स्मिथ के अनुसार वर्ष 2019 से 2023 तक पूर्वानुमान है कि पृथ्वी का औसत तापमान पूर्व-औद्योगिक काल की तुलना में 1 डिग्री सेल्सियस से अधिक ही रहेगा और यह 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक भी हो सकता है। इस तापमान वृद्धि का असर वायुमंडल, भूमि, महासागर और ग्लेशियर सब पर पड़ेगा।

हिन्दूकुश हिमालय लगभग 3500 किलोमीटर के दायरे में फैला है और इसके अंतर्गत भारत समेत चीन, अफगानिस्तान, भूटान, पाकिस्तान, नेपाल और मयन्मार का क्षेत्र आता है। इससे गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिन्धु समेत अनेक बड़ी नदियाँ उत्पन्न होती हैं। इसके क्षेत्र में लगभग 25 करोड़ लोग बसते हैं और 1.65 अरब लोग इन नदियों के पानी पर सीधे आश्रित हैं।

नेक भू-विज्ञानी इस क्षेत्र को दुनिया का तीसरा ध्रुव भी कहते हैं क्योंकि दक्षिणी ध्रुव और उत्तरी ध्रुव के बाद सबसे अधिक बर्फीला क्षेत्र यही है। पर तापमान वृद्धि के प्रभावों के आकलन की दृष्टि से यह क्षेत्र उपेक्षित रहा है। हिन्दूकुश हिमालय क्षेत्र में 5000 से अधिक ग्लेशियर हैं और इनके पिघलने पर दुनियाभर में सागर तल में 2 मीटर की वृद्धि हो सकती है।

न वैज्ञानिकों के अनुसार पूर्व-औद्योगिक काल की तुलना में वर्ष 2100 तक यदि तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस ही बढ़ता है तब भी हिन्दूकुश हिमालय के लगभग 36 प्रतिशत ग्लेशियर हमेशा के लिए ख़त्म हो जायेंगे। यदि तापमान 2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ता है तब लगभग 50 प्रतिशत ग्लेशियर ख़त्म हो जायेंगे, पर यदि तापमान 5 डिग्री तक बढ़ जाता, जिसकी पूरे संभावना है, 67 प्रतिशत ग्लेशियर ख़त्म हो जायेंगे। यहाँ ध्यान रखने वाला तथ्य यह है कि वर्ष 2018 तक तापमान 1.1 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है।

तापमान वृद्धि के क्षेत्र में काम कर रहे वैज्ञानिकों के अनुसार अभी दुनिया जिस हिसाब से इसे हलके में ले रही है, उसे ध्यान में रखते हुए तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री तक रोकने के बारे में सोचना तो बेमानी है, और 2 डिग्री के लिए भी सरकारों को वर्तमान की तुलना में 5 गुना अधिक मिहनत करनी पड़ेगी। यह स्थिति भी उम्मीद से परे है क्योंकि अभी तक पूरी दुनिया इस समस्या की तरफ ध्यान नहीं दे रही है।

सामान्य अवस्था में इस शताब्दी के अंत तक लगभग 5 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने की उम्मीद है और ऐसी स्थिति में हिमालय के 67 प्रतिशत ग्लेशियर ख़त्म हो जाएंगे।

इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट के वैज्ञानिक फिल्लिपस वेस्टर, जो इस पुस्तक के सह-सम्पादक भी हैं, के अनुसार यह एक ऐसी भयानक आपदा है, जिसका कारण प्रकृति नहीं बल्कि मानव है, जिसके बारे में कभी विस्तार में चर्चा नहीं की जाती पर इससे करोड़ों लोग प्रभावित होंगे।

स आपदा को गंभीरता से लेने की जरूरत इसलिए भी है क्योंकि 1970 के दशक से अब तक हिन्दूकुश हिमालय के 15 प्रतिशत से अधिक ग्लेशियर ख़त्म हो चुके हैं। ग्लेशियर के तेजी से पिघलने के कारण 100 वर्षों में जितनी भयंकर बाढ़ आती थी, उतनी अब 50 वर्षों में ही आ जाती है। ग्लेशियर ख़त्म होने का प्रभाव खेती के साथ-साथ पनबिजली योजनाओं पर भी पड़ेगा क्योंकि इस क्षेत्र में अधिकतर बिजली इससे ही उत्पन्न होती है।

रिपोर्ट के अनुसार, ग्लेशियर के तेजी से पिघलने के कारण वर्ष 2050 से 2060 के बीच यहाँ से उत्पन्न होने वाली नदियों में पानी का बहाव अधिक हो जाएगा, पर वर्ष 2060 के बाद बहाव कम होने लगेगा और पानी की किल्लत शुरू हो जायेगी। यूनिवर्सिटी ऑफ़ ब्रिस्टल के प्रोफ़ेसर जेम्मा वधम के अनुसार इस पुस्तक में जो कुछ भी कहा गया है वह पूरी तरह से विज्ञान पर आधारित है और इससे तापमान वृद्धि के प्रभाव से किस क्षेत्र को बचाने की सबसे अधिक आवश्यकता है, उसका भी पता चलता है।

ग्लेशियर के तेजी से पिघलने पर हिमालय के ऊपरी क्षेत्रों में अनेक झीलें बन जायेंगी और इनके टूटने पर नीचे के क्षेत्रों में केदारनाथ जैसी भारी आपदा आ सकती है। जर्नल ऑफ़ हाइड्रोलोजिकल प्रोसेसेज में प्रकाशित एक शोध के अनुसार वर्ष 1976 से 2010 के बीच हिमालय के ऊपरी क्षेत्रों में ग्लेशियर के पानी से बनी झीलों का क्षेत्र 122 प्रतिशत तक बढ़ चुका है और इस तरह के 20000 से अधिक झीलों की पहचान की जा चुकी है।

गभग सभी हिमालयी नदियाँ जिन क्षेत्रों से बहती हैं, वहां की संस्कृति का अभिन्न अंग हैं। यदि ग्लेशियर नष्ट हो जायेंगे तो नदियाँ भी नहीं रहेंगी और सम्भवतः संस्कृति भी बदल जायेगी।

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