दिल्ली में आंकड़ों की बाजीगरी से केजरीवाल कर रहे वायु प्रदूषण को नियंत्रित
प्रदूषण नियंत्रण के सन्दर्भ में केंद्र और दिल्ली सरकार दोनों का रवैया है एक झोलाछाप डॉक्टर जैसा, जिसे न तो रोगों का ज्ञान है और न ही सही इलाज का...
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने हाल में ही विज्ञापनों के जरिये डेंगू के मामलों को लगभग नगण्य बना दिया है। इसके बाद समाचार पत्रों में दो पृष्ठ के रंगीन विज्ञापनों के जरिये दिल्ली में वायु प्रदूषण को कम करने का काम दिल्ली सरकार कर रही है। विज्ञापन के अनुसार दिल्ली में वायु प्रदूषण 25 प्रतिशत कम हो गया है, जबकि आंकड़ों में केवल पीएम 2.5 की बात की गयी है।
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने नवम्बर 2009 में वायु गुणवत्ता मानक को अधिसूचित किया था, जिसमें 12 पैरामीटर सम्मिलित थे – पीएम 10, पीएम 2.5, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, ओजोन, अमोनिया, लेड, बेंजीन, बेन्ज़ोपाइरीन, आर्सेनिक और निकल। वायु गुणवत्ता मानक के कुल 12 पैरामीटर में से इस विज्ञापन में वायु प्रदूषण केवल पीएम 2.5 पर ही सिमट कर रह गया है।
इस सन्दर्भ में एक सवाल सहज तौर पर उठता है कि वायु प्रदूषण आप किसे मानेंगे? जाहिर है आपका जवाब होगा, मानकों के सभी पैरामीटरों के परिमापन के बाद जिस भी पैरामीटर का वास्तविक मान मानक से अधिक होगा। इसके लिए सभी पैरामीटरों का परिमापन आवश्यक है, पर पीएम को छोड़कर किसी और पैरामीटर की चर्चा भी नहीं की जाती।
हवा में ओजोन का संकट
28 जून को लोकसभा में पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने बताया कि 2016 से 2018 के बीच दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में हवा में ओजोन की समस्या गंभीर थी। इन तीन वर्षों के दौरान दिल्ली में 95 दिन, नोएडा में 49 दिन, गुरुग्राम में 48 दिन, फरीदाबाद में 11 दिन और गाजियाबाद में 8 दिनों तक ओजोन की सांद्रता तय सीमा से अधिक रही। यही नहीं, इस वर्ष पहली जनवरी से 31 मई के बीच भी दिल्ली में 23 दिनों तक ओजोन तय मानक से अधिक पाया गया।
ओजोन हवा में सीधे उत्पन्न नहीं होती, बल्कि नाइट्रोजन के ऑक्साइड और हाइड्रोकार्बन की धूप में आपसी प्रतिक्रिया से उत्पन्न होता है। इससे सांस की समस्याएं, चक्कर आना, उल्टी आना जैसी समस्याएं हो सकती हैं। इससे मानसिक परेशानियां भी हो सकतीं हैं और लम्बे समय तक इसकी अधिक सांद्रता में रहने पर जान भी जा सकती है।
ओजोन के प्रभावों पर पिछले वर्ष एक अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन प्रकाशित किया गया था, जिसके अनुसार ओजोन के कारण भारत में खूब मौतें होती हैं। अभी हाल में ही नाइट्रोजन के ऑक्साइड को गर्भपात से जोड़ा गया और दूसरे अनुसंधान में बताया गया कि पूरे उत्तर और मध्य भारत में लगभग हरेक जगह अमोनिया के अधिक सांद्रता की समस्या है।
वर्ष 2018 की स्टेट ऑफ़ ग्लोबल एयर रिपोर्ट में केवल पीएम2.5 से होने वाली मौतों की चर्चा की गयी है, जबकि 2017 की रिपोर्ट में ओजोन को भी शामिल किया गया था। स्टेट ऑफ़ ग्लोबल एयर 2017 के अनुसार हवा में पीएम 2.5 और ओजोन की अधिक सांद्रता के कारण हमारे देश में वर्ष 2015 के दौरान कुल 11,98,200 व्यक्तियों की असामयिक मृत्यु हुई, जो विश्व के किसी भी देश की तुलना में सर्वाधिक था।
हवा में विभिन्न गैसों की बढ़ती सांद्रता
इसी महीने, सितम्बर 2019, के दैरान 3 से 12 तारीख के बीच तीन दिन ओजोन और एक दिन नाइट्रोजन डाइऑक्साइड की समस्या दिल्ली में रही। दिल्ली के इकोनॉमिक सर्वे 2017-18 के अनुसार हालांकि दिल्ली की हवा में सल्फर डाइऑक्साइड की सांद्रता निर्धारित सीमा से कम रहती है, पर पिछले एक दशक के दौरान हम सांस के साथ इस गैस को पांच गुना अधिक लेने लगे हैं।
वर्ष 2008 में इसकी औसत सांद्रता 5 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर थी, जो 2017 में बढ़कर 23.36 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर तक पहुँच गयी। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमेटी 24 स्थानों पर हवा में प्रदूषण की जांच करती है और इसके आंकड़ों के अनुसार नाइट्रोजन डाइऑक्साइड की हवा में सांद्रता बढ़ती जा रही है और अधिकतर जगहों पर इसकी सांद्रता निर्धारित मानक से अधिक रहती है।
दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमेटी की एक रिपोर्ट के अनुसार नवम्बर 2017 से जनवरी 2018 के बीच में दिल्ली के 24 में से 11 स्थानों पर नाइट्रोजन डाइऑक्साइड की औसत सांद्रता कुल वार्षिक निर्धारित मानक की तुलना में दुगुने से भी अधिक थी। आईआईटी कानपुर द्वारा किये गए एक अध्ययन के अनुसार दिल्ली में प्रतिदिन 312 टन नाइट्रोजन ऑक्साइड का उत्सर्जन होता है, जबकि पीएम 2.5 का दैनिक उत्सर्जन महज 143 टन है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मनुएल उपकरणों के आंकड़ों के अनुसार दिल्ली में पीएम2।5 का उत्सर्जन पिछले पांच वर्षों के दौरान दुगुने से भी अधिक हो गया है।
दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी
दूसरी तरफ ग्रीनपीस द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली वायु प्रदूषण के सन्दर्भ में दुनिया में सबसे प्रदूषित राजधानी है। दरअसल केंद्र सरकार या दिल्ली सरकार के पास वायु प्रदूषण को कम करने की कोई योजना ही नहीं है। किसी भी प्रभावी योजना के लिए वायु प्रदूषण के गहन अध्ययन, आंकड़े और नीतियों की जरूरत होती है, पर दिल्ली सरकार तो आंकड़ों की बाजीगरी से ही प्रदूषण कम करना चाहती है।
तामझाम के साथ शुरू किये गए सम-विषम योजना के समय से यह सब चला आया रहा है। उस समय भी दिल्ली में प्रदूषण कम नहीं हुआ था, पर केजरीवाल लगातार प्रदूषण का स्टार आधा बताते जा रहे थे। इस समय उन्हें पीएम 2.5 के आंकड़े अपने अनुकूल लग रहे हैं। तब जनता के पैसे से दो पृष्ठ का विज्ञापन प्रकाशित किया जा रहा है। पिछले वर्ष केजरीवाल केंद्र सरकार को वायु प्रदूषण के मामले में कोस रहे थे और दिल्ली को गैस चैंबर बता रहे थे।
जिस बीजिंग (चीन की राजधानी) का प्रदूषण के संदर्भ में मजाक उड़ाया जाता था, उसने शान्ति से बिना विज्ञापनों के ही वायु प्रदूषण में इतनी कटौती कर ली कि अब इसका स्थान दुनिया के 200 सबसे प्रदूषित शहरों से भी गायब हो चुका है। वहां की सरकार ने बीजिंग में प्रदूषण कम करने की दीर्घकालीन योजना पर धैर्य से काम किया और अब इसके असर को बताने के लिए किसी विज्ञापन की जरूरत नहीं है।
इस विज्ञापन में बताया गया है कि हवा में धूल फैलाने वाले निर्माण कार्यों पर जुर्माना लगाया जा रहा है। पर यह जुर्माना केवल प्राइवेट निर्माण कार्यों पर ही थोपा जाता है। दिल्ली सरकार का पीडब्लूडी विभाग और दूसरे सरकारी विभाग सरेआम धूल उड़ाते हैं पर इन पर जुर्माना नहीं लगता। प्रगति मैदान के पास भैरों मार्ग पर जो सड़क का काम चल रहा है, वह इसका अच्छा उदाहरण है।
दिल्ली में स्थित ताप बिजली घरों को बंद करने के बाद कितना प्रदूषण कम हुआ, इसका जिक्र किसी रिपोर्ट में नहीं मिलता। वैसे भी बिजली घर बंद करने के बाद दिल्ली में बिजली की मांग बढ़ती जा रही है, इसका सीधा मतलब यह है कि दिल्ली की बिजली आपूर्ति के लिए अब कहीं और वायु प्रदूषण फ़ैल रहा है।
केजरीवाल हरेक सर्दियों में वायु प्रदूषण का सारा दोष पड़ोसी राज्यों में कृषि अपशिष्ट को खुले में जलाने पर मढ़ देते हैं, जबकि दिल्ली में भी यमुना किनारे जितनी खेती की जाती है उसका अपशिष्ट भी खुले में ही जलाया जाता है। पर केजरीवाल ने एनजीटी में हलाफनामा देकर बताया है कि दिल्ली में कहीं कृषि अपशिष्ट नहीं जलता। पिछले वर्ष भलस्वा लैंडफिल क्षेत्र में लगातार आग लगी रही पर दिल्ली सरकार वायु प्रदूषण का स्त्रोत पड़ोसी राज्यों में ही बताती रही।
कुल मिलाकर प्रदूषण नियंत्रण के सन्दर्भ में केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार का रवैया एक झोलाछाप डॉक्टर जैसा है, जिसे न तो रोगों का ज्ञान है और न ही इलाज का। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि साल-दर-साल दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ता गया, पर दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमेटी के अधिकारी फलते-फूलते रहे और लोग प्रदूषण से मरते रहे।