भारत की सबसे बड़ी कार कंपनी मंदी की भयंकर चपेट में, लाखों मजदूर पहुंचे भुखमरी के कगार पर
उत्तराखंड में मजदूरों के संगठन मासा से जुड़े मुकुल सिन्हा, मारुति प्लांट गुड़गांव के मजदूर नेता रामनिवास और राजस्थान के नीमराणा के मजदूर नेता सुमित से जानिए मंदी और मजदूरों की हालत
अजय प्रकाश की रिपोर्ट
जनज्वार, गुड़गांव। भारतीय अर्थव्यवस्था में छा रही मंदी का असर चौतरफा दिखने लगा है, मगर भाजपा के तमाम दिग्गज नेता उटपटांग बयानबाजी से बाज नहीं आ रहे। बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी कहते हैं, 'सावन—भादो में मंदी आ जाती है' तो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फणनवीस की आत्मा से आवाज निकलती है कि मंदी का कारण भ्रष्टाचारियों पर कार्रवाई है।
लेकिन इन अंधविश्वासी और जनता को उल्लू बनाने के बयानों से इतर सचाई यह है कि आटोमोबाइल सेक्टर में मंदी का भयंकर असर दिखने लगा है। अब इसकी जद में भारत की सबसे बड़ी कार उत्पादक कंपनी आ गयी है। मारुति ने 7 साल बाद 2 दिन का ब्रेक लिया है। 2012 के बाद पहली बार पहली बार मारुति सुजुकी के गुड़गांव और मानेसर प्लांट 2 दिन के लिए बंद रहेंगे। 7 और 9 सितंबर को कारों का उत्पादन नहीं किया जाएगा। दोनों ही दिनों को कंपनी ने 'नो प्रॉडक्शन डे' घोषित किया है।
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गौरतलब है कि ऑटो सेक्टर पर छाई मंदी के चलते मारुति कंपनी को अगस्त में अपना उत्पादन 33.99 प्रतिशत घटाना पड़ा था। हालांकि कंपनी पिछले 7 महीनों से उत्पादन घटा रही थी। कंपनी ने पिछले माह यानी अगस्त में 1,11,370 यूनिट बनाई थी, जबकि पिछले साल अगस्त माह में मारुति ने 1,68,725 यूनिट का निर्माण किया था। ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि कारों की बिक्री बहुत कम हो गयी है। अगस्त महीने में 32.7 प्रतिशत घटकर बिक्री 1,06,413 वाहन रह गई थी, जबकि पिछले साल अगस्त महीने में कंपनी ने 1,58,189 वाहन बेचे थे।
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इस बंदी का सर्वाधिक असर फैक्ट्री के कर्मचारियों और मजदूरों पर पड़ा है। मारुति की सहयोगी आठ कंपनियां पहले से ही बंद हैं, जो उसके लिए सहयोगी पार्ट्स का उत्पादन करती हैं। तीन शिफ्ट में चलने वाली मारुति का मानेसर प्लांट एक शिफ्ट में चल रहा है। इसके कारण सबसे ज्यादा भुखमरी के कगार पर वह मजदूर पहुंचे हैं जो कंपनी में ठेके या दिहाड़ी मजदूर के तौर पर 8 से 10 हजार की नौकरी करते हैं। नौकरी जाने पर एकाध मजदूरों को सदमा ऐसा लगा कि उन्होंने आत्महत्या कर ली। वहीं ज्यादातर मजदूर अपने घरों और गांवों की ओर लौट रहे हैं।
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बड़ी बात यह है कि मंदी का असर सिर्फ मारुति पर ही नहीं पड़ा है, बल्कि टाटा मोटर्स, हीरो कॉर्प, अशोक लीलैंड समेत सभी आटो सेक्टर की तमाम कंपनियों पर पड़ा है। राजस्थान का निमराणा औद्योगिक क्षेत्र हो या उत्तराखंड का सिडकुल या फिर हरियाणा का गुड़गांव और फरीदाबाद, हर जगह मंदी की मार से कंपनी मालिकों के साथ मजदूरों की भारी तबाही शुरू हो गयी है। यहां तक कि गुड़गांव में किराया इकोनॉमी पर बुरा असर पड़ा है और मंदी के बाद मजदूरों के पलायन से हजारों कमरे खाली पड़ते हुए हैं।
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मंदी की वजह, मजदूर आंदोलन की स्थिति और मजदूरों का अपने संकट के प्रति क्या है रवैया, इसको जानने के लिए जनज्वार ने देश के 3 राज्यों राजस्थान, हरियाणा और उत्तराखंड के तीन मजदूर नेताओं से मुलाकात की और जानने की कोशिश की कि असल में मोदी के दूसरी बार प्रधानमंत्री बनते ही देश के आर्थिक संकट में जाने की असल वजह क्या रही।
मजदूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) के आंदोलनकारी और उत्तराखंड मजदूर आंदोलन के वरिष्ठ नेता मुकुल सिन्हा, राजस्थान के नीमराणा के मजदूर नेता सुमित और देश के सर्वाधिक चर्चित मारुति मजदूर आंदोलन के नेता रामनिवास बता रहे हैं कि मोदी सरकार टू के बाद से छाई मंदी के कारण कैसे मजदूर बर्बाद हो रहे हैं और देश की पूरी आर्थिकी कैसे हो रही है चौपट।
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