मोदी सरकार की दया से अब विदेशी वकील भी हमारी अदालतों में लड़ेंगे मुकदमे
ब्रिटिश लॉ फर्म डिलॉयट का सालाना राजस्व 43.2 बिलियन डालर व प्राइसवाटर हाउस कूपर का 41.3 अरब डालर का है। इनको भारतीय अदालतों में प्रैक्टिस करने की अनुमति मिलने के बाद ये हमारे कानूनी बाजार पर उसी तरह कब्जा कर लेंगी, जैसे अमेरिकी बहुराष्ट्रीय निगम कोक व पैप्सी ने देश के कोल्ड ड्रिंक बाजार पर कर लिया है...
मुनीष कुमार, स्वतंत्र पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता
देश की जनता को राष्ट्रवाद का पाठ पढ़ाने वाली मोदी सरकार कानून के क्षेत्र में भी विदेशी कानूनी फर्म को देश में अपनी शाखाएं खोलने व न्यायालयों में पैरवी करने की अनुमति देने जा रही है। इसके लिए कानून एवं वाणिज्य मंत्रालय को नियम-कायदे बनाने के लिए कहा गया है।
100 से अधिक भारतीय लॉ फर्मों के संगठन ‘सोसायटी आफ इंडियन लाॅ फर्म’ ने भी यू टर्न लेते हुए चार चरणों में विदेशी कानूनी फर्मों को देश के न्यायालयों में प्रैक्टिस करने व अपनी शाखाएं खोलने पर सहमति व्यक्त कर दी है। इससे पूर्व उक्त सोसायटी विदेशी लाॅ फर्मों को देश में अनुमति दिये जाने की खिलाफत करती रही है।
देश में डिलोईट, पी.डब्ल्यू.सी, ई.बाई व के.पी.एम.जी जैसी विदेशी लाॅ फर्म को आडिट करने की छूट पूर्व में ही दी जा चुकी है। अब आने वाले समय में उक्त विदेशी लाॅ फर्म देश के न्यायालयों में पैरवी करती हुयी दिखाई देने लगे तो आप चौंकिएगा मत। एडवोकेट एक्ट 1961 के तहत देश के न्यायालयों में भारत के नागरिकों को ही प्रैक्टिस करने का अधिकार था।
इस कानून के तहत कोई भी विदेशी नागरिक देश के न्यायालय में पैरवी के लिए उपस्थित नहीं हो सकता था। अब इसमें भी संशोधन करने की तैयारी की जा रही है। संशोधन के बाद विदेशी लाॅ फर्म के वकील देश के न्यायालयों में प्रैक्टिस कर सकेंगे।
अभी तक देश में विदेशी लॉ फर्मों को फ्लाई इन, फ्लाई आउट (फिफो) के तहत विदेशी कानूनों के मामले में मात्र सलाह/राय देने की ही अनुमति थी। यह अनुमति पिछले वर्ष सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले (बार काउंसिल आफ इंडिया बनाम् ए.के.बालाजी आदि) के तहत प्रदान की गयी थी।
भारत सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 का जो प्रारूप जारी किया है, उसमें भी विदेशी लॉ फर्म को भारत में अनुमति दिये जाने का विशेष ध्यान रख गया है। उसमें कहा गया है कि भविष्य में कानूनी शिक्षा को द्विभाषिक बनाया जाना चाहिए, जिसमें कानूनी विद्यार्थियों - वकील और न्यायाधीशों को अंग्रेजी और उस राज्य की अधिकारिक कार्यों की भाषा दोनों में शिक्षा दी जानी चाहिए।
वर्ष 1991 में लागू की गयी आर्थिक नीतियों के तहत देश के विकास के लिए विदेशी पूंजी निवेश को आवश्यक मान लिया गया है। कांग्रेस-भाजपा की सरकारें रहीं हों या संयुक्त मोर्चा व अन्य गठबंधन की सरकार रही हो, सभी ने देश के उद्योग, सेवा व कृषि क्षेत्र को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए खोलने का काम किया है तथा बहुराष्ट्रीय निगमों को देश में हर प्रकार की रियायतें प्रदान की हैं, जिसके कारण देश में बहुराष्ट्रीय निगमों व साम्राज्यवादी मुल्कों का प्रभुत्व लगातार बढ़ रहा है।
इज आफ डूइंग बिजनेस के नाम पर साम्राज्यवादियों की सहूलियतों के लिए वर्ष 2017 में गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) व दीवाला कानून इंसोलवेंसी एंड बैंकरफ्सी कोड, 2016 को लागू किया गया। डब्ल्यूटीओ के तहत स्वीकार किए गये इंटलैक्चुअल प्रापर्टी राईट कानून (पेटेंट कानून) आदि को भारत में सख्ती से लागू करने को लेकर साम्राज्यवादी मुल्क व बहुराष्ट्रीय निगम विदेशी लॉ फर्मों को भारत में अनुमति के लिए लगातार दबाव बनाए हुए हैं।
भारत में पूंजी निवेश करने वाली बहुराष्ट्रीय कम्पनियां देश के वकीलों तथा लॉ फर्मों के मुकाबले दुनिया की डिलोईट व पी.डब्ल्यू.सी. जैसी विदेशी लॉ फर्म पर अधिक भरोसा करते हैं।
तर्क दिया जा रहा है कि इज आफ डूइंग बिजनेस में भारत की रैंकिंग में सुधार होने के कारण भारत में विदेशी पूंजी निवेश बढ़ रहा है। भारत सरकार की स्टार्ट अप इंडिया, स्टेंड अप इंडिया, मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया व स्किल इंडिया आदि योजनाओं के कारण लीगल प्रोफसनलों की मांग बढ़ रही है। आटोमेशन आफ लीगल प्रोसेस व डाटा सिक्योरिटी के विकास के लिए भी देश को विदेशी लॉ फर्म को भारत में अनुमति दी जानी चाहिए।
देश में 6 लाख से अधिक अधिवक्ता देश के न्यायालयों में पंजीकृत हैं। देश में कानून का सालाना बाजार 9 अरब डालर (63 हजार करोड़ रु.) से भी अधिक का है। इसमें कार्पोरेट बाजार 1.3 अरब डालर का बताया जा रहा है। विदेशी लॉ फर्म इस बाजार में अपनी पैठ बनाना चाहती हैं।
ब्रिटिश लॉ फर्म डिलॉयट का सालाना राजस्व 43.2 बिलियन डालर व प्राइसवाटर हाउस कूपर का 41.3 अरब डालर का है। इनको अनुमति मिलने के बाद ये भारत के कानूनी बाजार पर उसी तरह कब्जा कर लेंगी जैसे अमेरिकी बहुराष्ट्रीय निगम कोक व पैप्सी ने देश के कोल्ड ड्रिंक बाजार पर कर लिया है।
400 वर्ष पूर्व एक ईस्ट इंडिया कम्पनी भारत में व्यापार करने के लिए आयी थी। व्यापार के बहाने ब्रिटिश हुकूमत ने हमारे देश पर अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया। भारत की खेती, दस्तकारी आदि को तबाह-बर्बाद कर दिया। ब्रिटिश हुकूमत द्वारा बनाए गये काले कानूनों, वकीलों व अदालतों के जरिये देशवासियों की आवाज को कुचल कर रख दिया गया।
1991 के बाद से भारत सरकार जिस रास्ते पर चल पड़ी है, वह रास्ता हम देशवासियों के जेहन में 400 वर्ष पुरानी औपनिवेशिक यादें ताजा कर देता है। तब हमारे पूर्वजों को बताया गया था कि अंग्रेज सभ्य हैं तथा वे हमें सभ्य बनाने के लिए देश में आए हैं। आज भी हमें बताया जा रहा है कि देश का विकास करने के लिए विदेशी तकनीक, पूंजी व निपुणता की जरुरत है। अतः देश की तरक्की व विकास के लिए देश में विदेशी पूंजीनिवेश व बहुराष्ट्रीय निगम जरूरी हैं।
आज देश में धीरे-धीरे हर जगह लुटेरे विदेशियों का ही बोलवाला बढ़ रहा है। उद्योग, सेवा, कृषि हर जगह विदेशियों-साम्राज्यवादियों को माई-बाप बनाकर बुलाया जा रहा है। देश में अब सब-कुछ विदेशी हो रहा है। वकील भी अब विदेशी होंगे।
देश में अब सभी क्षेत्रों में विदेशियों को बुलाने की जरूरत है। उन्हें अब देश में कहीं भी घुसने से रोकने की जरुरत ही क्या है? उन्हें हर जगह पर बुलाओ। जब विदेशी इतने ही निपुण, कुशल व उच्च तकनीक वाले हैं तो न्यायपालिका के जज भी विदेशी बनाओ।
फिर संसद व विधानसभाओं में भी देशी शासकों की जरूरत ही क्या है। प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी व मनमोहनों की देश को जरूरत ही क्या है। वहां भी राज करने को सीधे बुलाओ अमेरिका से डोनाल्ड ट्रम्फ को, रूस से पुतिन और फ्रांस से इमैनुएल मैंक्रों को।
(मुनीष कुमार समाजवादी लोक मंच के सह संयोजक हैं।)