योगी सरकार मुकरी नौकरी से, डीएम करते हैं जलील

मां-बाप समेत दो बेटियों की हत्या के मामले में चर्चित उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री के क्षेत्र का गांव जूड़ापुर के पीड़ित फिर एक बार चर्चा में हैं, क्योंकि सरकार पीड़ितों को नौकरी देने से मुकर चुकी है तो डीएम और एडीएम सर्किट हाउस में दिन काट रहे पीड़ित भाई—बहन को रोज जलील करने से बाज नहीं आते और भगाने को तत्पर दिखते हैं...

Update: 2017-08-05 16:42 GMT

पढ़िए इलाहाबाद के सर्किट हाउस से लौटकर अनुराग अनंत की ग्राउंड रिपोर्ट

निर्भया हत्याकाण्ड पे रोने में ही देश के आंसू सूख गए, संवेदना गुम हो गयी। मोमबत्तियां चुक गयीं और कैंडल मार्च करने वाले कदम थक गए। इसीलिए तो देश में निर्भया के बाद निर्भया से भी बुरी मौत मरने वाली देश की बेटियों की जनता ने न वैसी सुध ली, न वैसा साथ दिया, न समर्थन किया और न ही उनकी इन्साफ की लड़ाई लड़ते घर वालों का साहस ही बढ़ाया।

जूड़ापुर हत्याकाण्ड में अपने माँ-पिता और दोनों बहनों को खो चुकी बबीता इस बात को भीतर तक महसूस करती है। शायद इसलिए उसकी आवाज़ में एक मायूसी, एक टूटापन था। इलाहाबाद के सर्किट हाउस में कमरा नंबर 23 में अपने भाई रंजीत के साथ बबीता उस हादसे को याद करती हुई सहम सी जाती है।

कहती है, "23 अप्रैल की रात कहर की रात थी, मैं हिमाचल प्रदेश में फार्मासिस्ट के कोर्स के इंटर्न अप्रेंटिक्स के लिए गयी थी और भाई प्रतापगढ़ में परीक्षा के लिए गया था। उसी रात घर पर माँ-पिता और दोनों छोटी बहनों की हत्या कर दी गयी। बहनों की हत्या से पहले बलात्कार भी किया गया और उन्हें प्राइवेट पार्ट्स को चाकुओं से गोद दिया गया। एकदम कीमा बना डाला जालिमों ने बहनों के प्राइवेट पार्ट्स को।"

इतनी हिंसा, इतनी कुंठा, इतना गुस्सा किस बात का था जालिमों को जो पूरे परिवार को इतनी बेरहमी से मार डाला गया। बबीता पूरी बात विस्तार से बताते हुए कहती है, हम तीन बहन और एक भाई थे। बड़ी मैं बबीता गुप्ता, मैंने बीफार्मा किया है। मुझसे छोटी हर्षिता गुप्ता, वो बीएड थी, एमए कर रही थी और तीसरे नंबर पर भाई रंजीत गुप्ता, इसने बीए किया है और सबसे छोटी मीनाक्षी गुप्ता थी, उसने अभी इंटर पास किया था और वो जिला टॉपर थी। 88 % नंबर थे उसके इंटर में। पिता मक्खन लाल गुप्ता की छोटी सी परचून की दुकान थी, जूड़ापुर करनाई, जिला इलाहाबाद, थाना नवाबगंज में और माता मीरा गुप्ता घर पर ही रहती थीं।

हम लोग सन 1999 में सहावपुर बाजार, नवाबगंज से यहाँ जूड़ापुर में आकर बसे थे। तभी से पड़ोसी जवाहर लाल यादव हमें वहां बसने नहीं देना चाहता था। हमारी परचून की दुकान की वजह से उसकी दुकान बंद हो गयी थी और घर बनवाते समय भी जमीन को लेकर कुछ विवाद हुआ था। इस तरह जवाहर से बीते सत्रह सालों से बेहतर सम्बन्ध नहीं रहे। हम सब भाई बहन पढ़-लिख गए थे। ख़ासतौर पर लड़कियां, इसलिए हम लड़कियों से उन्हें खासी खुन्नस रहती थी

10 मार्च को होली से दो-तीन दिन पहले हमारी छत पर चार—पांच लड़के छिपकर बैठे थे और जब बहन हर्षिता ऊपर छत पर पेशाब करने गयी, तो उन्होंने उसे दबोच लिया। हर्षिता ने शोर मचाया तो हम सब ऊपर पहुंचे और शोर मचाया, पर कोई हमारी मदद को नहीं आया। हमने एक लड़के के मुंह से नकाब हटा कर देखा तो बांके लाल यादव का लड़का अजय यादव था।

हम लोगों से 100 नंबर पर फोन करके पुलिस बुलाई और अजय समेत पांच लोगों के खिलाफ नामज़द रपट लिखाई। जवाहर लाल यादव का लड़का शिवबाबू यादव भी था। ये लड़के अक्सर दुकान पर आकर गालियां और फब्तियां कसते थे। रपट का कोई असर नहीं हुआ, क्योंकि गाँव के प्रधान ओम प्रकाश उर्फ़ मदन यादव ने पुलिस को पांच हज़ार दिलवा कर उन्हें छुड़वा लिया।

इस घटना के बाद जवाहर यादव और भाजपा नेता तुलसीराम यादव ने इसे यादव अस्मिता के साथ जोड़ दिया और अपने घर सभी यादवों की एक बैठक बुलाई गयी, जिसमें तय किया गया कि 'इस तेली को सबक सिखाना है, इसकी इतनी हिम्मत' इस बैठक के बाद उन लड़कों की हिम्मत बढ़ गयी और आये दिन वो गाली-गलौच करते रहते थे। हमारे पिता जी अकेले थे और दो—दो बहनें थीं। पुलिस भी उनसे मिल चुकी थी, इसलिए हम लोग बात टालते रहे। पर उन्होंने इसका फायदा उठाया और 23 अप्रैल को रात मेरे माँ-बाप और दोनों बहनों की निर्मम हत्या कर दी।

बबीता घटना को सिलसिलेवार ढंग से बताते हुए जैसे फिर एक बार उसी अनुभव से गुजरती है। उसके चेहरे में एक बेचैनी, परेशानी और एक डर का भाव उभरता है। और उसके जीवन में कातिलों द्वारा रचा गया खालीपन कमरे में एक गहरी उदासी बनकर फ़ैल जाता है।

बबीता खामोश हो जाती है तो उसका भाई रंजीत कहना शुरू करता है "हम लोगों ने हत्या में उन्हीं लोगों पर नामजद्द एफआईआर कराई थी, जिनके ऊपर हमने मार्च में रिपोर्ट दर्ज कराई थी। उनमें थे, शिवबाबू यादव, भल्लू यादव, नवीन यादव, अजय यादव, नागेंद्र यादव, पर पुलिस ने चार्जशीट फ़ाइल होने से तीन दिन पहले नीरज मौर्या को उठा लिया और उसके बयान के आधार पर मोहित पाल, सतेंद्र पटेल और प्रदीप पटेल को भी गिरफ्तार कर लिया।

नीरज मौर्या मेरी बहन हर्षिता के साथ सूरजदीन-भगवानदीन इंटर कॉलेज में पढ़ाता था। हर्षिता ने क़त्ल से एक दिन पहले उसे एमए फर्स्ट इयर की परीक्षा दिलाने के लिए फोन किया था, जिसके जवाब में नीरज ने कहा था उसके दोस्त मोहित की बहन की शादी 23 तारीख को ही है, इसलिए वो नहीं जा पायेगा।

हर्षिता ने ये बात मुझे बताई तो मैंने अपने एक दोस्त को हर्षिता को परीक्षा दिलाने के लिए कहा और वो राजी हो गया। मैंने रात में करीब नौ बजे फोन पर इस बारे में बताया था। उसके बाद मैंने जब अगली सुबह चार बजे कॉल किया तो कोई फोन नहीं उठा। फिर मुझे पता चला कि हमारे माता—पिता और बहनों की हत्या कर दी गयी है।

पुलिस कह रही है कि नीरज ने रात में 43 सेकेंड हर्षिता से बात की थी और दरवाजा खुलवा कर अंदर घुस गया और पूरे परिवार की हत्या कर दी। पुलिस के अनुसार नीरज मौर्या ने सारी वारदात को आधे घंटे में अंजाम दिया। हथियार के बतौर घर पर सब्जी काटने वाले चाकू का इस्तेमाल किया गया और हत्या की वजह साढ़े सात हज़ार का लेन-देन थी।

रंजीत कहता है, "ये बात समझ में नहीं आ रही है। हत्या जिस तरह से की गयी है, जाहिर है किसी ने बेहद खुन्नस में क़त्ल किया है। जबकि नीरज से हमारी कोई लड़ाई नहीं थी। चार लोग, चार लोग की हत्या इतनी आसानी से कैसे करेंगे और वो भी सब्जी काटने वाले चाकू से, और मोहित पाल की बहन की शादी उसी दिन थी वो अपनी बहन की शादी छोड़कर हत्या करने कैसे और क्यों आएगा। सवाल और भी हैं। जैसे तखत के नीचे बीड़ी और गुटखा के पैकेट का मिलना। पुलिस मामले को दूसरा रुख दे रही है।'

बकौल रंजीत, ''उसे नीरज मौर्या के भाई मुकेश मौर्या और महेंद्र मौर्या ने बताया है कि भाजपा के बड़े नेता यादवों से मिल चुके हैं और वो उन्हें बचा रहे हैं। नीरज के घर से उसके कपड़े और चाकू पुलिस ले गयी है। झूठे सबूत गढ़े गए हैं और यादव अस्मिता के आड़ में गाँव में झूठे गवाह खड़े किये जा रहे हैं।"

इस मसले पर एसएसपी इलाहाबाद, आनंद कुलकर्णी से यह पूछने पर कि पुलिस ने अपने मन से नए लोगों को क्यों गिरफ्तार किया, जबकि पीड़ितों ने दूसरे आरोपियों को नामजद कराया था? जवाब देते हैं, 'पीड़ितों की राय के बगैर हमने गिरफ्तारी नहीं की है, बल्कि पीड़ितों के कहने पर ही चार्जशीट दाखिल किए जाने से पहले हमने 4 आरोपियों नीरज मौर्या, मोहित पाल, सतेंद्र पटेल और प्रदीप पटेल को गिरफ्तार किया है। इस आशय का मैं प्रमाण भी दे सकता हूं जिसमें पीड़ित भाई बहन और उनके ने वकील कई मौकों पर कहा कि शुरू में जिन पांच यादव लड़कों शिवबाबू यादव, भल्लू यादव, नवीन यादव, अजय यादव, नागेंद्र यादव की गिरफ्तारी हुई है, वह ठीक नहीं है।'

क्या गांव में ऐसे हालात नहीं है कि वह वापस लौट सकें? पूछने पर एसएसपी कहते हैं, 'प्रशासन के स्तर पर जो जांच हमने की है, उसमें उनको कोई मुश्किल नहीं। जूड़ापुर गांव में पीएसी तैनात है। भाई—बहन को सुरक्षा मिली हुई है। वह चाहें तो गांव लौट सकते हैं। मैं इस बारे में कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता कि वह क्यों रूके हुए हैं।'

पीड़ित परिवार ने 19 मई को न्याय और निष्पक्ष जांच की मांग को लेकर धरना—प्रदर्शन करने की घोषणा की थी, पर उससे पहले ही रीता बहुगुणा जोशी ने पीड़ित भाई—बहिन को 18 मई को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलवाया। इस मुलाकात ने योगी आदित्यनाथ ने आश्वासन दिया कि 10 दिन के भीतर एसआईटी का गठन कर तुम्हें न्याय दिलाया जायेगा और तुम लोगों को एक सुरक्षित आवास और सरकारी नौकरी दी जाएगी।

एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि अब तक योगी सरकार योग्यता मुताबिक पीड़ितों को संविदा की नौकरी देने को तैयार थी, पर अब अपना मन बदल लिया है। सरकारी नौकरी देने से सरकार पहले ही मुकर चुकी थी। हालांकि इस मामले में सक्रिय रहीं महिला कल्याण एवं बाल विकास मंत्री रीता बहुगुणा से इस बारे में बात करने की कोशिश की गई तो उनका फोन स्वीच आॅफ था।

सरकार द्वारा नौकरी देने के सवाल पर बबीता कहती है, "ये आश्वासन कोरा ही रहा। रीता बहुगुणा जोशी, सिद्धार्थ नाथ सिंह और नन्द गोपाल नंदी ने भी सरकारी नौकरी, आवास और न्याय का आश्वासन दिया, पर कुछ नहीं हुआ। केस को पुलिस अपने तरीके से यादवों के पक्ष में ले जा रही है। खूब लीपापोती हो रही है। हमारे परिवार में सिर्फ हम भाई-बहन ही बचे हैं। जिनके खिलाफ हमने मुकदमा लिखाया था, वो अब जमानत पर बाहर आ चुके हैं और वो लगातार धमकी दे रहे हैं।

इधर नीरज मौर्या समेत बाकि लोगों के परिवार की तरफ से भी धमकियां मिल रहीं हैं। वो कहते हैं कि उन्होंने जो नहीं किया, उसकी सजा उन्हें मिल रही है अब वो गुनाह करके सजा लेंगे। हमारी पुलिस सुन नहीं रही है और हमने जब क्षेत्र के प्रतिनिधि केशव प्रसाद मौर्या से शिकायत करी तो वो कहते है 'ज्यादा हीरो मत बनो।'

हत्या के बाद रंजीत और बबीता को जिला प्रशासन ने सुरक्षा प्रदान की है और अभी फिलहाल इलाहाबाद के सर्किट हाउस में कमरा नंबर 23 में रखा है। बबीता कहती है कि जिलाधिकारी समय—समय पर उन्हें जलील करते हैं। पिछले तीन दिन से खाना नहीं दिया गया है और जब डीएम साहब से हमने कहा तो कहते हैं तुम लोगों के ऊपर पौने दो लाख खर्चा हो गए हैं। हत्या का मुआवजा जो आठ लाख मिले हैं उससे खाना खा लो।

हम लोगों की कोई सुनवाई कहीं नहीं हो रही है। लोग यहाँ तक धमकी देने आ जाते हैं। हम बेहद डरे हुए हैं और कभी कभी हमें लगता है कि हमारे साथ छल हुआ है और लगातार हो रहा है। हमारे केस में लगातार हमें बहला—फुसला कर देरी कराई जा रही है और जैसे जैसे पुराना होता जा रहा है। नेता और अफसर हमें दुत्कारने लगे हैं।

वहीं इस मसले पर एडीएम इलाहाबाद महेंद्र कुमार राय यह पूछने पर कि जूड़ापुर के पीड़ितों की शिकायत है कि उन्हें तीन दिन से प्रशासन की ओर से खाना नहीं मिला है? कहते हैं, 'खाना नहीं मिला है कि हमारा चार महीनों में 1.25 सवा लाख इनके खाने पर खर्च हो चुका है। पहले महीने में आठ—आठ लोगों के खाने का इंतजाम करना पड़ता था, सबकुछ अपनी जेब से किया है।'

क्यों सरकार के पास पीड़ितों के खाने के लिए कोई फंड नहीं होता? पूछने पर वह कहते हैं, 'ऐसा कोई फंड नहीं है, जिमसें इन लोगों को सर्किट हाउस में बैठाकर खाना खिलाया जाए। पहले एक—दो हफ्ते की बात थी पर अब चार महीने से उपर हो गए। मैंने और तहसीलदार अरविंद तिवारी ने अपनी जेब से व्यक्गित रूप से सवा लाख खर्च कर दिया है।'

आप कितनी सैलरी पाते हैं जो इतना पैसा लगा देते हैं, क्या प्रदेश सरकार के अधिकारी व्यक्गित चंदों पर ऐसे संवेदनशील मामलों को डील करते हैं? के जवाब में एडीएम साहब कहते हैं, 'आप तो हमीं से सवाल करने लगे। आप किसी से पूछ लीजिए कोई फंड नहीं है। ज्यादा हुआ तो लड़की को नारी निकेतन शिफ्ट कर देंगे, वहां मेस चलता है। सरकार इनको 4—4 लाख रुपए दे चुकी है, उससे खाएं। संविदा पर नौकरी का फार्म ही नहीं भरते, न इंटरव्यू में जाते हैं।'

बबीता और रंजीत के पास बहुत कुछ था कहने के लिए, जो वो नहीं कह पा रहे थे। जिनका पूरा परिवार मार दिया गया हो उनकी मनोदशा क्या होती होगी शायद हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते। बहुत सारी बातें ऑफ दी रिकार्ड भी हुईं। जो इस व्यवस्था के नंगेपन को बेपर्दा करतीं हैं।

कल तक जो लोग सपा में गुंडई कर रहे थे आज भाजपा का झंडा लगा कर गुंडई कर रहे हैं। तुलसीराम यादव, जवाहर यादव जैसे लोग जो कल जय अखिलेश कह रहे थे, आज जय योगी कह रहे है। झंडे बदले, मुख्यमंत्री बदले, और सत्ता में पार्टियां बदल गयीं जमीन पर सच्चाइयां वही हैं जिन्हे देखकर आम आदमी होने पर रोना आता है।

जोड़ापुर हत्याकांड मसले पर डीएम इलाहाबाद से बात करने की कोशिश की गई तो किसी और ने फोन उठाकर कहा कि वह कांवड़ियों के कार्यक्रम में एसएसपी साहब के साथ व्यस्त हैं। इस पर जनज्वार संवाददाता ने फोन उठाने वाले से कहा कि डीएम साहब से कह देना सर्किट हाउस में जो जोड़ापुर के पीड़ित हैं, उनको तीन दिन से खाना क्यों नहीं मिला है? और डीएम साहब ज्यादा व्यस्त हों तो जवाब एसएमस, वाट्सअप से भिजवा दें।

 (अनुराग अनंत जनज्वार के सहयोगी हैं।)

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