जनता के विरोध को दबाने के लिए इंटरनेट सेवाओं को रोकना मोदी के न्यू इंडिया की नयी पहचान

Update: 2019-12-21 11:13 GMT

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प्रधानमंत्री मोदी भले ही सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास की बातें करते हों पर तथ्य तो यही है कि वे सरकार के नीतियों की आलोचना जरा भी बर्दाश्त नहीं कर पाते, और आलोचना को कुचलने का आज के दौर में सबसे अच्छा माध्यम इन्टरनेट सेवाओं पर रोक है....

महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

मारे प्रधानमंत्री मोदी और दूसरे मंत्री लगातार भारत को विश्वगुरु बताते रहे हैं और साथ में दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को चलाने का दंभ भरते हैं, जबकि तथ्य यह है कि हम जो विश्वगुरु हैं वह जनता के दमन के सन्दर्भ में हैं। जब सरकारें डरतीं हैं तब सबसे पहले आन्दोलनों को दबातीं हैं, लोगों को सड़कों पर उतरने से रोकतीं हैं, शांतिपूर्ण जनता पर गोलियां बरसातीं हैं और इन्टरनेट को ठप्प करतीं हैं।

प जानकर हैरान होंगे कि पूरी दुनिया के सभी देशों की तुलना में भारत, जो तथाकथित लोकतंत्र है, में सरकारी तौर पर सबसे अधिक इन्टरनेट ठप्प किया जाता है। अभी दिल्ली के कुछ क्षेत्रों में यह किया गया, इसके पहले पश्चिम बंगाल, असम, अलीगढ़ और उत्तरप्रदेश के दूसरे जिलों और कर्नाटक के कुछ क्षेत्रों में यह किया जा रहा है। कश्मीर तो दुनिया की सबसे लम्बी इन्टरनेट-बंदी की त्रासदी से गुजर रहा है।

चीन के पीपल्स डेली ऑनलाइन ने सम्पादकीय में इस सन्दर्भ में लिखा है कि आपातकाल में इन्टरनेट प्रतिबंधित करने के बजाय भारत ने इसे एक सामान्य कार्यवाही बना दिया है। स्वघोषित विश्वगुरु और दुनिया का नेता बनता देश पूरी दुनिया के सामने एक खतरनाक उदाहरण प्रस्तुत कर रहा है। दुनिया के किसी लोकतंत्र में ऐसा नहीं किया जाता, पर भारत के बाद दूसरे लोकतांत्रिक देश भी यह तरीका अपनाने लगेंगे। हमारे ट्विटर से चिपके रहने वाले प्रधानमंत्री ने जब 12 दिसम्बर को ट्विट्टर पर असम के नागरिकों को संबोधित करते हुए शांति बनाए रखने के लिए ट्वीट किया, तब असम में इन्टरनेट पर प्रतिबन्ध था।

इन्टरनेट प्रतिबंधित करने का हिसाबकिताब रखने वाले पोर्टल इन्टरनेट शटडाउन ट्रैकर के अनुसार इस वर्ष भारत में अब तक 100 से अधिक बार सरकारी तौर पर इन्टरनेट सेवायें ठप्प की गयी हैं, जो किसी भी देश की तुलना में सर्वाधिक हैं। पिछले वर्ष यानी 2018 में देश में 134 बार इन्टरनेट सेवायें ठप्प की गयीं थीं, जो पूरी दुनिया में ठप्प की जाने वाली संख्या का 68 प्रतिशत हैं।

भारत और दूसरे देशों में इन्टरनेट सेवाओं को प्रतिबंधित करने के बीच कितना फासला है, इसे वर्ष 2018 के आंकड़ों से पता किया जा सकता है। इस वर्ष पहले स्थान पर 134 प्रतिबंधों के साथ भारत था, जबकि दूसरे स्थान पर पाकिस्तान था जहां महज 12 बार यह प्रतिबन्ध लगाया गया।

क्सेस नाऊ नामक वेबसाइट के अनुसार भारत में पहली बार वर्ष 2012 में सरकारी तौर पर 6 बार इन्टरनेट सेवाओं को प्रतिबंधित किया गया था, पर उसके बाद से यह आंकड़ा लगातार बढ़ता रहा और वर्ष 2018 तक 134 बार तक पहुँच गया। यह सब तब हो रहा है जबकि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों के समय मोदी जी सबको इन्टरनेट कनेक्टिविटी देने की लगातार चर्चा करते रहे और फिर डिजिटल इंडिया का बड़े जोरशोर से प्रचार किया।

प्रधानमंत्री मोदी को दरअसल एक ऐसा इन्टरनेट और इससे चलने वाला सोशल मीडिया प्लेटफार्म चाहिए जो झूठे और मनगढ़ंत सरकारी प्रचार को आगे बढाए, जो गांधी-नेहरु पर जहर उगल सके, गोडसे का महिमा मंडन कर सके, जो महिलाओं को बलात्कार की धमकी दे सके और जो समाज के अल्पसंख्यकों को समय-समय पर धमका सके। इसमें जो उनका साथ देता है, उसे तो वे पुरस्कृत भी करते हैं।

प्रधानमंत्री मोदी भले ही सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास की बातें करते हों पर तथ्य तो यही है कि वे सरकार के नीतियों की आलोचना जरा भी बर्दाश्त नहीं कर पाते, और आलोचना को कुचलने का आज के दौर में सबसे अच्छा माध्यम इन्टरनेट सेवाओं पर रोक है। दुनिया की सबसे डरी हुई सरकार बस यही कर रही है।

क्सेस नाऊ नामक वेबसाइट के अनुसार लगभग पूरी दुनिया में अब भारत जैसी स्थिति आ गयी है, पर जनता की आवाज कुचलते हुए भी अपने आप को लोकतंत्र कहने का दावा केवल भारत ही करता है। इराक, ईरान, इथियोपिया, वेनेज़ुएला, रूस और चीन में ऐसा लगातार किया जा रहा है पर इसमें कोई भी देश लोकतंत्र या विश्वगुरु का दावा कभी नहीं करता। इन्टरनेट सेवाओं को रोकना ही न्यू इंडिया की नयी पहचान है।

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