हुनर : मिलिए विश्व के इकलौते इंटरनेशनल 'मूछ' नर्तक से

Update: 2017-12-10 14:59 GMT

विश्व में इकलौते इंटरनेशनल मूछ नर्तक दुकान जी उर्फ राजेंद्र कुमार तिवारी का नाम दर्ज है लिम्का एवं गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में

राजेंद्र तिवारी उर्फ दुकान जी कैसे बने इंटरनेशनल मूछ नर्तक, साझा किया जीवन से जुड़ी कहानियों के माध्यम से जनज्वार के साथ

इलाहाबाद से सूर्य प्रकाश त्रिपाठी की खास रिपोर्ट

कहते हैं शौक बड़ी चीज होती है, प्रयाग में ऐसा ही एक शख्स है जिसने अपनी जिंदगी का मकसद ही इस भागमभाग भरी दुनिया में परेशानियों से घिरे लोगों के चेहरे पर खुशियां बिखेरना बना लिया है। अपनी तमाम जरूरतों को नजरअंदाज कर आम जनमानस के चेहरे पर हँसी लाने के लिए प्रयाग का ये गंगा पुत्र पिछले 34 सालों से अपनी कला के बेहतरीन परफार्मेंस में लगा हुआ है। 

जी हां, हम बात कर रहे हैं इंटरनेशनल ख्यातिलब्ध मूछ नर्तक राजेन्द्र कुमार तिवारी उर्फ दुकान जी की। इलाहाबाद के दारागंज में रहने वाले दुकान जी के शौक भले ही शुरू में लोगों को अजीब लगे हों, लेकिन बाद में उनके यही अजीबोगरीब शौक न केवल उनकी पहचान बन गए, अपितु प्रयाग के भी गौरव मान में उनके शौक ने चार चांद लगा दिए। जनज्वार इस अंतर्राष्ट्रीय मूछ नर्तक के बारे में विस्तार से बताने जा रहा है। दुकान जी उर्फ राजेंद्र तिवारी विश्व में इकलौते मूछ नर्तक हैं।











34 साल से मूछ नृत्य कर रहे दुकान जी कई बार हो चुके हैं घायल
लगभग 52 साल के हो चुके राजेंद्र कुमार तिवारी उर्फ दुकान जी ने महज 20 साल की उम्र से ही मूछ नृत्य करना शुरू कर दिया था। लेकिन तब उनका यह शौक घर के अंदर और मोहल्ले की गलियों में अपनों के बीच होता था।

राजेंद्र जी बताते हैं कि जैसे ही उनके मूछ और दाढ़ी निकलनी शुरू हुई, हुई वैसे ही उन्होंने उससे खेलना शुरु कर दिया। पहले ऐसे ही मुंह को फुलाकर दाढ़ी—मूछ को इधर-उधर करते थे, बाद में धीरे-धीरे मूछों में मिर्च बांधना, छोटी-छोटी लकड़ी बांधना और फिर उसमें नृत्य करना उनके शौक में शामिल हो गया।

लाइट कटने पर मूछ में मोमबत्ती बांधकर पहली बार घर में घूमे थे दुकान जी, जल गई थी भौहें और बाल
एक दिन वह घर पर थे और लाइट कट गई तो उन्होंने मोमबत्ती जलाई और अपनी मूछों में मोमबत्ती लपेटकर पूरे घर में घूमने लगे। मोमबत्तियों को मुंह के जरिये इधर-उधर घुमाने लगे, अंधेरे में यह दृश्य बहुत अच्छा लग रहा था। यह देखकर उनके भाई बहन बहुत खुश भी हुए थे, लेकिन इसमें उनकी मूछें और आंख ही भौहें जल गई थी।

मूछ नृत्य में दिक्कत होने पर 21 साल में नीचे के जबड़े के निकलवा दिए थे सारे दांत
पहली बार दुकान जी ने वर्ष 1986 में दारागंज में आयोजित एक हास्य कवि सम्मेलन के दौरान अपने मूछ नृत्य की कला का प्रदर्शन किया था, जिसमें उनकी मूछों से ज्यादा उनके पाँव कांप रहे थे।

उस सम्मेलन को याद करते हुए राजेंद्र जी बताते हैं, इस बीच मुझे लगा कि मेरे मूछ नृत्य में मेरे मुंह के निचले हिस्से के दांत अड़चन पैदा कर रहे हैं। मैंने डॉक्टर से सम्पर्क कर दांतों को निकालने की गुजारिश की, लेकिन चेक करने के बाद डॉक्टर ने दांत उखाड़ने से मना कर दिया, जिसे लेकर मेरा डॉक्टर से झगड़ा भी हो गया।











मेरी जिद और जुनून को देखते हुए डॉक्टर मान गए और महज 21 साल की उम्र में मैने अपने नीचे के जबड़े के सारे दांत निकलवा दिए, ताकि मूछ नृत्य में दिक्कत न आये। तब से वो कोई कठोर चीज नहीं खा पाते हैं।

पहली बार 1990 में मिली पॉपुलरटी
वर्ष 1990 में उन्होंने बाल भारती स्कूल में बड़े स्तर पर बच्चों के लिए मूछ नृत्य किया था, जिसमें उन्हें फर्स्ट प्राइज मिला था। उससे भी बड़ी बात यह थी कि अगले दिन के पेपरों में फ्रंट पेज पर मेरी फोटो छपी और मेरी कला की खूब वाहवाही हुई, जिससे मेरा हौसला बढ़ा और मैंने इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने की ठान ली।

कई देशों में कर चुके हैं मूछ नृत्य
दुकान जी भारत ही नही चीन, ताइवान, जापान, सिंगापुर, मलेशिया, नेपाल, भूटान जैसे देशो में भी अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके हैं। पहली बार 1995 मे चीन के बीजिंग शहर में विदेश की धरती पर मूछ नृत्य किया था, जिसमें खूब वाहवाही मिली थी। उसी कार्यक्रम के बाद उनका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज हुआ।

हजारों की भीड़ में पहनावे और भाषा की वजह से अलग दिखते हैं दुकान जी
दुकान जी हजारों के भीड़ में अलग पहचान रखते हैं, उनके पहनावे से लेकर बोलचाल की भाषा तक सबसे अलग होती है।

हमेशा कलरफुल घुटने से नीचे तक का कुर्ता, चूड़ीदार पायजामा और नुकीली राजसी ठाठ वाली जूती, लंबी मूछ और दाढ़ी एवं बाल और उस पर कभी लाल, कभी गेरुआ के रूप में बना हुआ गमछा, उनकी पहचान को अलग करता है। उनके पास जो स्कूटर है उसे भी उन्होंने अपने पसंद के अनुसार कलरफुल कर रखा है।











माता पिता की मौत पर भी नहीं बनवाये दाढ़ी-बाल
वह अपनी मूछ और दाढ़ी एवं बाल से बहुत प्यार करते हैं। उनका कहना है कि भारत देश की आन—बान—शान और पहचान हैं मूछ। इसी वजह से जब उनके माता-पिता का देहावसान हुआ तो उन्होंने बाकी सारे कर्मकांड किए, लेकिन अपनी मूछ, दाढ़ी और बाल नहीं बनवाए।

इसको लेकर उनकी आलोचना भी हुई लेकिन उसको उन्होंने नजरअंदाज कर दिया।

डॉ मुरली मनोहर जोशी के खिलाफ मृत्यु शैया पर लेटकर पहुंचे थे नामांकन करने
वर्ष 1999 में वह इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र से डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी के खिलाफ संसदीय चुनाव भी लड़ चुके हैं। उस दौरान भी वह चर्चा में थे, क्योंकि वह इकलौते ऐसे प्रत्याशी थे जो अपना नामांकन करने के लिए मृत्युशैया पर लेटकर 4 कंधों पर गए थे।

इसके पीछे उनका तर्क था कि जब 60 साल में सरकारी कर्मचारी और 65 की उम्र में जजेज रिटायर्ड हो जाते हैं, तो नेता क्यों कब्र में पैर लटकाये रहने तक चुनाव लड़ते रहते हैं, इन पर भी बैन होना चाहिए।

इलाहाबाद जिला प्रशासन के ब्रांड एंबेसडर रहते हैं दुकान जी
हमेशा कुछ अलग करने की चाहत रखने वाले दुकान जी नागरिक सुरक्षा कोर से भी जुड़े हुए हैं वह जिला प्रशासन व अन्य सामाजिक कार्यक्रमों में हमेशा आगे रहते हैं। वह नशे का प्रचार-प्रसार हो या बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का अभियान हो अथवा कोई इस तरह का भी राष्ट्रीय कार्य, वे इलाहाबाद जिला प्रशासन के लिए ब्रांड अंबेसडर की तरह होते हैं।

कई टीवी सीरियल, फिल्मों एवं एलबम में काम कर चुके हैं दुकान जी
अलौकिक प्रतिभा के धनी राजेंद्र कुमार तिवारी उर्फ दुकान जी बेहतरीन एक्टिंग भी कर लेते हैं। इस बारे में वह बताते हैं, अभी तक मैं बॉलीवुड हिंदी फिल्म व्यवस्था, रोड टू संगम भोजपुरी फिल्म रंगबाज दरोगा, सच भईल सपनवा हमार, तेलुगु फिल्म प्यार करेंगे पल पल, मैकेनिक मोमिया, TV सीरियल प्रतिज्ञा, जेलर की डायरी, त्रिया चरित्र, कल उद्दीन और एक दर्जन से ज्यादा अलबमों में काम कर चुके हैं।


















रिटायर्ड पिता की दुकान पर कार्टून बनाते थे दुकान जी

इलाहाबाद के गंगा तट पर बसे दारागंज मोहल्ले में स्थित महानिर्वाणी अखाड़े की बिल्डिंग के एक छोटे से हिस्से में बतौर किराएदार रहने वाले राजेंद्र कुमार तिवारी उर्फ दुकान जी मूछ नर्तक कला के बूते गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड और लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड समेत कई जगहों पर अपना नाम दर्ज करा चुके हैं।

मूछ नर्तक कला के बारे में राजेंद्र तिवारी


उर्फ दुकान जी बताते हैं कि उन्होंने यह कला कहीं और से नहीं सीखी, बल्कि घर में भाई—बहनों और मोहल्ले के लड़कों के बीच में मनोरंजन करने से शुरू हुई यह कला उनकी पहचान बन गई।

दुकान जी के पिता मूलतः रायबरेली के रहने वाले थे, वह मिलिट्री से रिटायर्ड थे दारागंज में महानिर्वाणी अखाड़े की बिल्डिंग में एक छोटे से हिस्से में अपनी चार बेटियों और तीन बेटों के साथ रहते थे। दारागंज अड्डे पर उनकी कार्टून बनाने की दुकान थी।

राजेंद्र तिवारी उनकी 7 संतानों में सबसे छोटे थे और उनके साथ दुकान पर बैठते थे।जब चुनाव का दौर आता था तो वह विभिन्न प्रकार के नेताओं और पार्टियों के कार्टून बनाकर वहां आसपास टांग देते थे, जिसमें व्यंगात्मक चित्र और शब्द लिखे होते थे जिसे पढ़कर लोग न चाहते हुए भी मुस्कुरा देते थे।

आगे चलकर समान जी और मकान जी तो उनके नाम से हट गया, लेकिन दुकान जी उनकी पहचान बन गई है।

देखें मूछ नृत्य सम्राट के मूछ नृत्य की एक झलक :



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