संघी भारत माता के नाम पर गाली दे सकते हैं, औरतों को बराबरी नहीं

Update: 2019-01-07 16:59 GMT

भगवा ताकतें पहली बार शनि मंदिर या सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश का विरोध नहीं कर रही हैं, बल्कि इन ताकतों का समता के अधिकार के लिए उठाए गए क़दमों के विरोध का एक सिलसिलेवार पूरा इतिहास है...

अभिषेक आजाद की रिपोर्ट

आज जब देश की आधी आबादी मंदिर में प्रवेश के लिए संघर्षरत है, ऐसे में देश की सत्ताधारी पार्टी भाजपा ने अपनी स्त्री विरोधी मानसिकता का परिचय देते हुए भगवा ताकतों का खुला समर्थन किया है। भगवा ताकतें हमेशा से औरतों को बराबरी का हक़ देने के खिलाफ रहीं हैं। इन ताकतों ने हमेशा प्रगतिशील परिवर्तनों का विरोध किया है।

भगवा ताकतों का महिला अधिकारों के खिलाफ खड़ा होना कोई नई बात नहीं है। जब राजा राम मोहन राय ने सती प्रथा का विरोध किया तो इन्ही भगवा ताकतों के पूर्वजों (पंडों और पुरोहितों) ने सती प्रथा का खुला समर्थन किया। जब ईश्वर चंद विद्यासागर ने महिला पुनर्विवाह के पक्ष में और बाल विवाह को रोकने के लिए आंदोलन चलाया तो इन्हीं भगवा ताकतों ने इस प्रगतिशील कदम को धर्म पर हमला बताकर सांप्रदायिक उन्माद पैदा करके सभी सामाजिक सुधारों का पुरजोर विरोध किया।

देश की प्रथम महिला शिक्षिका सावित्री बाई फुले को भी इन भगवा ताकतों के विरोध का सामना करना पड़ा। भारतीय पुनर्जागरण के सभी अग्रदूतों को इन भगवा ताकतों के विरोध का सामना करना पड़ा। आज उन्ही भगवा ताकतों के वंशज सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बावजूद महिलाओं को मंदिर में प्रवेश करने से जबरन रोक रहे हैं।

अगर हम महिलाओं के प्रवेश का विरोध करने वाले लोगो के तर्कों का विश्लेषण करें तो उसमें कुछ भी नया नहीं है। इसी तरह का तर्क सती प्रथा, बाल विवाह, छुआछूत के समर्थक और स्त्री शिक्षा, विधवा पुनर्विवाह, दलितों के मंदिर प्रवेश विरोधी दिया करते थे। न तो ये कोई नए लोग हैं और न ही इनके पास कोई नया तर्क है।

देश की आजादी के बाद जब महिलाओं को बराबरी का हक़ देने के लिए तत्कालीन विधि मंत्री डॉ बाबा साहेब अम्बेडकर 'हिन्दू कोड बिल' लाये तो भारतीय जनसंघ ने इसका आक्रामक विरोध किया। भारतीय जनसंघ के विरोध के चलते 'हिन्दू कोड बिल' पारित नहीं हो पाया और बाबा साहेब अम्बेडकर ने विधि मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। जनसंघ को आप भारतीय जनता पार्टी का मूल चेहरा कह सकते हैं। भारतीय जनसंघ से ही 1980 में भारतीय जनता पार्टी बनी।

ऐसा नहीं है कि ये भगवा ताकतें सिर्फ आज ही शनि मंदिर या सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश का विरोध कर रही है। इन भगवा ताकतों का समता के अधिकार के लिए उठाए गए क़दमों के विरोध का एक पूरा इतिहास है। इन्हीं ताकतों ने दलितों को मंदिर में प्रवेश करने से रोका था जो आज सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बावजूद महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में घुसने नहीं दे रहे। हमेशा से प्रतिगामी ताकतों (Regressive forces) के साथ खड़ा होना और प्रगतिशील ताकतों (Progressive Forces) का विरोध करना भगवा ब्रिगेड का एक मात्र एजेंडा है।

सबरीमाला मंदिर में प्रवेश की लड़ाई केवल लैंगिक मुद्दा या मात्र महिलाओं का संघर्ष नहीं है बल्कि प्रगतिशील ताकतों (Progressive Forces ) और प्रतिगामी ताकतों (Regressive Forces ) के बीच का टकराव है। यह दो विचारधाराओं का संघर्ष है, एक प्रगतिशील (Progressive ) देश को आगे ले जाने वाली और दूसरी प्रतिगामी (Regressive) देश को पीछे ढकेलने वाली।

दक्षिणपंथी और वामपंथी दोनों पार्टियां अपने मतदाताओं को कंफ्यूज नहीं रखना चाहती। दोनों ने अपना स्टैंड क्लियर कर दिया है। हमेशा की तरह वामपंथ प्रगतिशील ताकतों और दक्षिणपंथ प्रतिगामी ताकतों के साथ खड़ा है। अब देश की जनता को तय करना होगा कि वह किसके साथ खड़ी है। प्रतिगामी ताकतों ने अपनी एकजुटता दिखा दी है। अब यह प्रगतिशील ताकतों के एकजुट होने का वक्त है। (All progressive forces must unite.)

(अभिषेक आज़ाद दिल्ली विश्वविद्यालय के दर्शन विभाग में शोधछात्र और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य हैं।)

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