वैज्ञानिकों ने चेताया पूरी दुनिया के लिए खतरा है भारत-पाक परमाणु युद्ध, चली जायेगी 12.5 करोड़ लोगों की जान

Update: 2019-10-04 14:01 GMT

साइंटिस्ट्स ने कहा भारत और पाकिस्तान को यदि परमाणु युद्ध से बचाना है तो आपस में युद्ध नहीं करने की करनी पड़ेगी संधि, ऐसी संधि पर पहले भी की जा चुकी है कई बार चर्चा, पर कभी नहीं हो पाया अमल....

भारत और पाकिस्तान के बीच परमाणु युद्ध होने की स्थिति में वायुमंडल में लगभग 3.63 करोड़ टन धुआं पहुंचेगा और यह केवल भारत और पाकिस्तान के ऊपर ही नहीं सीमित रहेगा, बल्कि पूरी दुनिया में फैलेगा, जिससे सूर्य की किरणें पृथ्वी पर नहीं पहुँच पाएंगी

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

भारत और पाकिस्तान ऐसे पड़ोसी देश हैं, जिनके बीच लगातार तनाव बना रहता है। सबसे बड़ी बात यह है कि दोनों पड़ोसी देश परमाणु हथियारों से लैस हैं और जब आपसी तनाव बढ़ता है तो एक दूसरे को इन हथियारों की धौंस दिखाने से बाज भी नहीं आते।

भी कश्मीर की स्थिति को लेकर फिर से दोनों देशों के बीच कटुता चरम पर है। पहले राजनाथ सिंह ने कहा कि भारत की परमाणु हथियारों की नीति बहुत पुरानी हो गयी है। यह नीति है पहले आक्रमण नहीं करने की, पर राजनाथ सिंह ने कहा कि यदि जरूरत पड़ी तो इस नीति को बदला भी जा सकता है। जाहिर है, इस वक्तव्य से वे पाकिस्तान को धमका रहे थे। इसके बाद हाल ही में इमरान खान ने न्यूयॉर्क टाइम्स में अपने लेख में परमाणु बम को लेकर भारत को धमकी दी।

बुलेटिन ऑफ़ द एटॉमिक साइंटिस्ट्स ने 23 सितम्बर को इस सम्बन्ध में एक विस्तृत लेख प्रकाशित किया है। इसमें कहा गया है कि भारत और पाकिस्तान को यदि परमाणु युद्ध से बचाना है तो आपस में युद्ध नहीं करने की संधि करनी पड़ेगी। ऐसी संधि पर पहले भी कई बार चर्चा की जा चुकी है, पर कभी अमल नहीं हो पाया।

स लेख के अनुसार दोनों देशों को इस बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए, क्योंकि यदि युद्ध छिड़ता है और लम्बे समय तक चलता है तो न चाहते हुए भी परमाणु बम का ही विकल्प रह जाएगा। यदि ऐसा होता है तो गंभीर नुकसान दोनों देशों को ही होगा, क्योंकि दोनों की सीमा एक दूसरे से जुड़ी है और दोनों देशों में जनसंख्या का घनत्व बहुत अधिक है।

स लेख में आगे यह भी बताया गया कि दोनों देशों को आपस में युद्ध नहीं करने की संधि करने से पहले इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए और युद्ध की परिभाषा भी निश्चित कर लेनी चाहिए। इसके अनुसार ऐसी किसी भी प्रभावी संधि में निम्न विषयों का समावेश होना आवश्यक है:

एक दूसरे के विरूद्ध सेनाओं और हथियारों का उपयोग या धमकी;

एक-दूसरे के क्षेत्र में घुसपैठ;

हथियारबंद गिरोहों या उग्रवादी समूहों को एक-दूसरे के विरुद्ध भड़काना या सहायता करना;

एक दूसरे के जनता के विघटन या नुकसान से सम्बंधित हरकतें;

एक दूसरे के उपयोग के लिए भूमि, जल या वायु मार्ग को बाधित करना;

दोनों देशों के बीच बहाने वाली नदियों के बहाव को रोकना;

एक दूसरे के विरुद्ध अफवाह फैलाना;

एक दूसरे को नुकसान पहुंचाने के लिए व्यापार युद्ध;

किसी देश के आंतरिक मामलों में दखलंदाजी; और

एक दूसरे को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से किसी तीसरे देश से संधि या समझौता।

मेरिका के यूनिवर्सिटी ऑफ़ कोलोराडो बोल्डर और रुत्गेर्स यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने ब्रायन तून की अगुवाई में एक विस्तृत अध्ययन कर भारत और पाकिस्तान के बीच यदि परमाणु युद्ध छिड़ गया तब के नुकसान का आकलन किया है। इस अध्ययन को जर्नल ऑफ़ साइंस एडवांसेज ने हाल में ही प्रकाशित किया है।

सके अनुसार यदि भारत और पाकिस्तान के बीच परमाणु युद्ध होता है तो इसका सीधा प्रभाव पूरी दुनिया पर पड़ेगा। इस युद्ध से 5 करोड़ से 12.5 करोड़ लोग मरेंगे, यानी मरने वालों की कुल संख्या द्वितीय विश्व युद्ध के 6 वर्ष के दौरान दुनियाभर में मरने वालों की कुल संख्या से भी बहुत अधिक होगी। इस समय दोनों देशों में से हरेक के पास लगभग 150 परमाणु बम हैं। पर, इन बमों की संख्या बढ़ती जा रही है। अगले पांच वर्षों में इनकी संख्या बढ़कर 200 तक पहुँचने की उम्मीद है।

स अध्ययन के अनुसार अनुमान है कि पूर्ण परमाणु युद्ध की स्थिति में पहले सप्ताह के दौरान दोनों देश सम्मिलित तौर पर कुल 250 परमाणु बमों का इस्तेमाल करेंगे और हरेक परमाणु बम से लगभग 7 लाख जानें जायेंगी। इस स्थिति में दुनिया की औसत मृत्यु दर दुगुनी से भी अधिक हो जायेगी। परमाणु बम के विस्फोट से तो कम मौतें होंगी, पर इसके बाद जो आग फैलेगी उससे ज्यादा जानें जायेंगी।

न वैज्ञानिकों के अनुसार हिरोशिमा में परमाणु बम गिराने के बाद जिस “मशरुम क्लाउड” की चर्चा की जाती है या चित्र दिखाए जाते हैं, वह भी विस्फोट के कारण नहीं थे बल्कि आग लगाने के कारण बने थे।

भारत और पाकिस्तान के बीच परमाणु युद्ध होने की स्थिति में वायुमंडल में लगभग 3.63 करोड़ टन धुआं पहुंचेगा और यह केवल भारत और पाकिस्तान के ऊपर ही नहीं सीमित रहेगा, बल्कि पूरी दुनिया में फैलेगा, जिससे सूर्य की किरणें पृथ्वी पर नहीं पहुँच पाएंगी। इस कारण पूरी दुनिया में औसत तापमान में 12 से 15 सेल्सियस तक कमी आयेगी। इस स्थिति को वैज्ञानिक भाषा में “न्यूक्लियर विंटर” कहा जाता है।

पूरे वैज्ञानिक जगत को यह शब्द देने वाले इस अध्ययन के मुख्य वैज्ञानिक ब्रायन तून ही हैं। इस युद्ध के कारण पृथ्वी का तापमान इतना कम हो जाएगा, जितना पिछले हिम युग (लगभग 12000 वर्ष पहले) के बाद कभी नहीं हुआ।

तापमान में यह कमी कई वर्षों तक बनी रहेगी और इसकी विभीषिका पूरी दुनिया झेलेगी। वायुमंडल में धुएं के मिलने से सूर्य की धूप में जो कमी आयेगी और तापमान कम होने के कारण पूरी दुनिया में कृषि प्रभावित होगी, हरेक फसल की उत्पादकता कम होगी। दूसरी तरफ महासागरों में पादप प्लवक के कम होने के कारण मछलियों और दूसरे समुद्री खाद्य पदार्थों में भी कमी होगी। कुल मिलाकर एक ऐसी स्थिति होगी जब दुनिया में खाने की कमी हो जायेगी।

ब्रायन तून ने कहा है कि उन्हें आशा है कि भारत और पाकिस्तान की सरकारें उनके रिपोर्ट को देखेंगी और परमाणु युद्ध की विभीषिका को समझेंगी। पूरी दुनिया को ऐसी किसी भी स्थिति से बचना चाहिए, क्योंकि परमाणु युद्ध का प्रभाव केवल दो देशों तक ही सीमित नहीं रहता बल्कि इसका असर पूरी दुनिया को झेलना पड़ेगा।

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