सुप्रीम कोर्ट में कैग जांच को लेकर मोदी सरकार ने बोला झूठ, देश के साथ किया धोखा : प्रशांत भूषण
प्रशांत भूषण बोले अनिल अंबानी की रिलायंस को ऑफसेट का फायदा पहुँचाने के मामले में भी मोदी सरकार द्वारा अदालत को किया गया गुमराह...
जनज्वार। राफेल सौदे में विवादास्पद ढंग से 36 विमानों की खरीद के संबंध में अदालत की निगरानी में सीबीआई जाँच की माँग कर रहे याचिकाकर्ता यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अत्यंत दुखद और हैरत भरा बताया है।
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने आज रक्षा सौदों में भ्रष्टाचार जैसे मसलों पर आश्चर्यजनक ढंग से अपनी ही न्यायिक समीक्षा के दायरे को छोटा कर लिया। मोदी सरकार इस सौदे में भ्रष्टाचार के जिन आरोपों के संतोषजनक जवाब भी नहीं दे पा रही थी, उनकी अगर स्वतंत्र जाँच भी न हो तो देशवासियों के कई संदेहों पर से पर्दा नहीं हटेगा। ऐसे में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को झूठी जानकारी देकर जिस तरह गुमराह किया वो देश के साथ धोखा है।
संबंधित खबर : राफेल सौदे में मोदी ने दबाव डालकर बनवाया अंबानी को पार्टनर : प्रशांत भूषण
सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले का एक आधार यह बताया गया कि केंद्र सरकार ने सीएजी से लड़ाकू विमान की कीमतें साझा की, जिसके बाद सीएजी ने पीएसी (लोकलेखा समिति) को रिपोर्ट जमा कर दिया और फ़िर पीएसी ने संसद के समक्ष राफेल सौदे की जानकारी दे दी है जो अब सार्वजनिक है।
संबंधित खबर : प्रशांत भूषण ने किया दावा, राफेल डील इतना बड़ा घोटाला जिसकी नहीं की जा सकती कल्पना भी
ऑफसेट पर उठ रहे सवालों के संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह निर्णय दस्सो एविएशन का था जो कि वर्ष 2012 से ही रिलायंस से चर्चा में था। जबकि सच्चाई यह है कि जिस रिलायंस पर आज सवाल उठ रहे हैं वो अनिल अंबानी की है और 2012 से जिनसे दस्सो की चर्चा रही थी वो मुकेश अम्बानी की।
ये दोनों दो अलग अलग कंपनियां हैं और अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस तो 2015 में प्रधानमंत्री द्वारा फ्रांस में राफेल सौदे की घोषणा के कुछ ही दिनों पहले गठित की गई थी। यानी कि अनिल अंबानी की रिलायंस को ऑफसेट का फायदा पहुँचाने के मामले में भी अदालत को गुमराह किया गया।
यह भी पढ़ें : प्रशांत भूषण से जानिए अंबानी की खातिर राफेल डील में मोदी सरकार ने कैसे निभाई दलाल की भूमिका
इन्हीं कारणों से याचिकर्ताओं ने उच्चतम न्यायालय के फैसले को आश्चर्यजनक बताते हुए असंतुष्टि व्यक्त की है। उच्चतम न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत अपनी न्यायिक समीक्षा के दायरे को आधार बनाकर याचिका खारिज़ किया है। इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट ने राफेल सौदे में सरकार को क्लीनचिट दे दिया है।
यह फ़ैसला भी सहारा बिड़ला जैसे पिछले फैसलों की तरह ही है, जिनमें पारदर्शी ढंग से जाँच करवाने की बजाए मामले को रफ़ा दफा कर दिया गया। राफेल सौदे में भ्रष्टाचार के संगीन आरोप देशवासियों को तब तक आंदोलित करते रहेंगे, जब तक कि मामले में निष्पक्ष जाँच करके दूध का दूध और पानी का पानी न हो जाए।
पूरी प्रेस विज्ञप्ति के लिए करें इस लिंक पर क्लिक..