कोरोना से उपजे भय और भूख का सरकार करे सबसे पहले इंतजाम : अर्थशास्त्री अरुण कुमार  

Update: 2020-05-26 14:00 GMT

मोदीराज में दिन ब दिन लाचार होता आम आदमी (file photo)

80 करोड़ लोगों में 2100 रुपए प्रतिमाह जब जोड़ते हैं तो साल का 18 लाख करोड़ रुपए बन रहा है, जबकि पैकेज में इन्हें सिर्फ दिया गया दो लाख करोड़ रुपए...

आम जनता के अर्थशास्त्री प्रोफेसर अरुण कुमार का विशेष लेख

जनज्वार। कोरोना से निपटने के लिए लॉकडाउन से करोड़ों मजदूरों को एक झटके में बेरोजगार कर दिया है। खाली हाथ अब मजदूर अपने घरों की ओर लौट रहे हैं। केंद्र सरकार ने पिछले दिनों 20 लाख करोड़ के पैकेज की घोषणा की, जो सुनने में सुखद है लेकिन बड़ा सवाल ये है कि इस पैकेज से मजदूरों और आम जनता को कितनी राहत मिलेगी?

लॉकडाउन के बाद से इस वक्त देश में करोड़ों लोग परेशान हाल जिंदगी जीने को मजबूर हैं, लेकिन यह पैकेज उन्हें राहत देता नजर नहीं आ रहा है। यह पैकेज उद्योपगतियों को तो एक मौका दे रहा है, मगर जो भूखे प्यासे हैं, परेशान हैं, बेघर होकर दर-दर भटक रहे हैं, उनके लिए इसमें कुछ नहीं है।

मैं अभी तक जो डाटा देख पाया हूं उसके अनुसार भारत के असंगठित क्षेत्रों में बीस करोड़ कामगार बेरोजगार हो गए हैं। अब एक व्यक्ति पर यदि परिवार के चार सदस्य भी निर्भर हैं तो यह संख्या 80 करोड़ के आसपास पहुंच जाएगी। इन लोगों के लिए इस पैकेज में बहुत कम है।

में यह समझना होगा कि जिसकी आमदनी खत्म हो गयी, वह गरीबी की रेखा के नीचे आ गया। वर्ल्ड बैंक की गरीबी की रेखा की दर 1.9 डालर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन है। यदि इसका आधा भी दिया जाए तो करीब 70 रुपए प्रति व्यक्ति प्रतिदिन होगा। तो इस तरह से 2100 रुपए प्रति व्यक्ति प्रतिमाह बनेगा। 80 करोड़ लोग में 2100 रुपए प्रति माह जब जोड़ते हैं तो साल का 18 लाख करोड़ रुपए बन रहा है, जबकि पैकेज में इन्हें सिर्फ दिया गया दो लाख करोड़ रुपए है।

वाल है फिर बाकी क्या है? बाकी तो सारा लोन है! इस पर कुछ छूट मिल जाएगी। कर्ज मिल जाएगा। बचे पूरे पैकेज में पॉलिसी की घोषणा है, इससे तो गरीब को कोई फायदा होने वाला नहीं है। इसलिए मैं इसे रिलीफ पैकेज नहीं बोलता, यह एक प्रकार से लंबी अवधि या मध्यम अवधि की इंवेस्टमेंट है।

मएसएमई में भी बजट ज्यादातर स्मॉल व मीडियम इंडस्ट्री के लिए है। अक्सर यह देखा गया है कि माइक्रो इंडस्ट्री तक कर्ज पहुंच नहीं पाता। यह केवल कहने के लिए है कि एमएसएमई में बड़ा बजट रख दिया गया है, हकीकत में माइक्रो इंडस्ट्री की इसमें अनदेखी हुई है,जबकि एमएसएमई में माइक्रो इंडस्ट्री की संख्या ज्यादा है।

होना तो यह चाहिए था कि जो सबसे गरीब तबका है, जो सबसे ज्यादा पीड़ित है, उसे इस पैकेज में ज्यादा से ज्यादा मदद दी जाती। जैसे 40 हजार करोड़ रुपए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी स्कीम में दिए हैं। मछली पालन और ढांचागत सुविधाओं के लिए व अनाज मुफ्त में देने की बात हो रही है। इससे कुछ राहत मिल सकती है, लेकिन इसमें सवाल यह है कि क्या इसे सही से अमल में लाया जाएगा? और यदि अमल में सही से ले भी आए तो भी इसमें सिर्फ दो लाख करोड़ की राशि ही क्यों रखी गयी है?

पैकेज में कई घोषणाएं तो पहले से ही हैं। अब सवाल यह है कि जिन पर अभी तक काम नहीं हुआ, अब क्या गारंटी है इस पर काम शुरू हो जाएगा। परेशानी तो अभी है, हम बात कर रहे हैं कि हम इंवेस्टमेंट कर देंगे, हम लोन दे देंगे। लेकिन यह तो लंबी अवधि के लिए हैं। इसका तो आने वाले समय में लाभ होगा। जरूरत तो आज की है। अभी इन लोगों का क्या होगा। छह आठ माह की योजना क्या है, इस बारे में सोचना चाहिए।

सलिए मेरा मानना है कि सरकार के पास सिर्फ सर्वाइवल पैकेज के लिए पैसा है। लॉकडाउन के वक्त रेट ऑफ ग्रोथ माइनस '-75' प्रतिशत हो गया था। लॉकडाउन खुलने के बाद यह पांच, सात प्रतिशत कम होकर '-70' प्रतिशत तक हो जाएगा। अब अगर साल भर में रिकवरी हो भी जाए तो भी रेट ऑफ ग्रोथ इस साल '-37.5' प्रतिशत होगा। इसका सीधा मतलब है कि टैक्स कलेक्शन बुरी तरह से गिर जाएगा।

क्यों गिरेगी अर्थव्यस्था की विकास दर

अब जीएसटी आवश्यक वस्तुओं पर जीरो से पांच प्रतिशत तक ही होता है। अब गैर आवश्यक वस्तुओं का उत्पादन बंद है, लेकिन सबसे ज्यादा टैक्स कलेक्शन गैर आवश्यक वस्तुओं की बिक्री से होता था। लॉकडाउन के कारण बिजनेस दो माह से बंद पड़े हैं। जो लाभ में थे वे भी बंदी की वजह से वह भी नुकसान में चले जाएंगे। इस तरह से वहां से काेआपरेशन टैक्स कलेक्शन कम हो जाएगा, इंकमटैक्स कलेक्शन भी कम हो जाएगा। केंद्र और राज्य मिलाकर हमारा टैक्स जीडीपी रेसियो का 16 प्रतिशत था, वह अब आधा रह जाएगा। यानी वह 8 प्रतिशत। एक तरफ तो जीडीपी गिर जाएगा 35 से 40 प्रतिशत। यह पिछले साल 204 लाख करोड़ था, इस बार 130 लाख करोड़ पर ही रह जाएगा।

दूसरा टैक्स जीडीपी 16 प्रतिशत से आठ प्रतिशत पर आएगा तो इससे 32 लाख करोड़ रुपए आना चाहिए था, लेकिन इसका 16 लाख करोड़ ही आएगा। इस तरह से 22 लाख करोड़ का टैक्स कलेक्शन कम हो जाएगा। इसी तरह से नान टैक्स रेवेन्यू था, जो पब्लिक सेक्टर अंडर टेकिंग से आता था, वह भी कम होगा। ऐसे में 25 लाख करोड़ रुपए का रेवेन्यू पिछले बजट की तुलना में कम हो जाएगा।

बकि 18 लाख करोड़ रुपए अतिरिक्त खर्च किए जाने हैं। हेल्थ पर डेढ़ दो लाख करोड़ रुपए देना, फिर जो छोटे सेक्टर के माइक्रो यूनिट है उनको पांच से छह लाख करोड़ रुपए चाहिए होगा। तो इस तरह से 25 लाख करोड़ रुपए अतिरिक्त चाहिए। इसके साथ ही 25 लाख करोड़ रुपए का टैक्स कलेक्शन कम हो जाएगा। तो अब इतना रेवेन्यू कम आएगा तो ब्याज देना, सेलरी देना, डिफेंस का खर्च भी उठाने की स्थिति में नहीं रहेंगे।

से में 25 लाख करोड़ रुपए अतिरिक्त और कहां से खर्च करेंगे। इस स्थिति में सरकार को खर्च में कटौती करनी होगी, सब कुछ काटना पड़ेगा। सेलरी काटनी पड़ेगी, डिफेंस का खर्च कम करना होगा। तब जाकर 25 लाख करोड़ रुपए निकलेगा।

सर्वाइवल पैकेज पर ही काम करे सरकार

जो राजकोषीय घाटा अभी साढे़-तीन चार प्रतिशत रहता है, वह बढ़कर 50 प्रतिशत हो जाएगा, इसलिए बाकी सारे खर्च रोक देने चाहिए। सिर्फ सर्वाइवल पैकेज पर ही काम होना चाहिए। जो 80 करोड़ लोग गरीबी की रेखा से नीचे चले गए हैं, उन्हें सुविधा मिल जाएं, उन्हें घर तक पहुंचाया जाए। उनमें कैसे फिजिकल डिस्टेंसिंग हो। इस दिशा में काम करना चाहिए।

न्हें किसी स्कूल, हॉल या सार्वजनिक जगह पर रखें जहां फिजिकल डिस्टेंसिंग के नियम का पालन हो सके। उन्हें वहीं पर खाना दिया जाना चाहिए। इस पर ही खर्च होना चाहिए। बाकी सब कुछ भूल जाना चाहिए। क्योंकि सभी के खाने पीने की व्यवस्था करनी है, रहने की व्यवस्था करनी है, लेकिन सरकार इस ओर ध्यान ही नहीं दे रही है। होना तो यह चाहिए कि सरकार का पूरा तंत्र इसी काम में लग जाए। यदि ऐसा नहीं किया गया तो लॉकडाउन सफल नहीं होगा। हमारे यहां यूं भी टेस्टिंग पर्याप्त नहीं है। अब यदि लोगों को हम फिजिकल डिस्टेंसिंग नहीं करते हैं तो अभी छह से साढ़े छह हजार केस आ रहे हैं, ऐसे में यदि अभी भी फिजिकल डिस्टेंशिंग की ओर ध्यान नहीं दिया गया तो फिर केस बढ़ सकते हैं। दोबारा से फिर से लॉकडाउन के बारे में सोचना होगा।

कोरोना के बीच बिजनेस चलाने के लिए बाजार खोलना घातक

यह बोला जा रहा है कि कोरोना से निपटने का एक तरीका यह भी है कि हर किसी की रोगप्रतिरोधक क्षमता मजबूत हो जाए। यह तभी संभव है जब ज्यादा लोग वासरस से संक्रमित हों। मेरा मानना है कि इस तरह से तो 60 से 70 प्रतिशत लोगों को संक्रमण होगा। यदि ऐसा होता है तो दो प्रतिशत भी बीमार होकर मर जाते हैं तो यह संख्या भी एक से डेढ़ करोड़ लोगों तक पहुंच जाएगी। इसमें भी चार पांच करोड़ लोगों को अस्पताल में रखना होगा। वहां उन्हें उचित इलाज चाहिए, वेंटिलेटर चाहिए। लेकिन इतना तो हमारे अस्पताल में सुविधा ही नहीं है। इसलिए रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की बात तो बिजनेसमैन कर रहे हैं, क्योंकि उनका नुकसान हो रहा है। वह चाहते हैं कि लॉकडाउन खोल दिया जाए।

लेकिन इससे गरीब आदमी को नुकसान होगा। एक तो यहां मेडिकल सुविधा नहीं है, दूसरा वे कुपोषण के शिकार हैं। ऐसे में वे कोरोना की चपेट में आ जाते हैं तो उनकी बड़ी संख्या में मौत हो सकती है। इसलिए इस वक्त जो बात चल रही है कि बिजनेस खोल देना चाहिए, यह भयंकर स्थिति है। पहले तो लॉकडाउन शुरू कर दिया बिना किसी सुविधा के, अब लॉकडाउन खत्म कर रहे हैं। हमारे देश में गरीब आदमी के लिए कोई नहीं सोच रहा। हमारी नीतियों में उनकी ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। पॉलिसी की घोषणा प्रभावशाली लोगों को ध्यान में रख कर होती है। मेरा मानना है कि सरकार को सर्रवाइवल पैकेज की ओर ध्यान देना चाहिए। इससे समाज बचा रहे। यदि बहुत बड़ी संख्या में भुखमरी हुई, लोग मरने लगे तो दंगे हो सकते हैं, लूटपाट भी हो सकती है। अब तो बात समाज बचाने की होनी चाहिए।

मनरेगा की कोरोना संकट में गरीबों की जिंदगी का मूलाधार बनेगा

महात्मा गांधी रूरल रोजगार गारंटी योजना को तुरंत चला देना चाहिए। इसमें भी 40 हजार करोड़ रुपए तो कुछ भी नहीं है। अगर देखें तो 80 करोड़ लोग भुखमरी के कगार पर हैं, तो कम से कम और नहीं तो परिवार के मुखिया को रूरल रोजगार गारंटी स्कीम में काम दिया जाना चाहिए। दो-तीन लाख करोड़ रुपए इस योजना में दिया जाना चाहिए था। शहर में भी इसी तरह की योजना शुरू करनी चाहिए, जिससे यहां भी लोगों को रोजगार मिल सके। इसके बाद भी जो पटरी पर सो रहे हैं, घूमंतू है, उन्हें खाने पीने और कुछ ऐसा भोजन मिले जो उनके शरीर में पोषक तत्वों की कमी को पूरा कर सके। जो जहां पर है वह वहीं रहे। वह घूमे फिरे नहीं, जिससे सोशल डिस्टेंसिंग बनी रहे। मैंने पहले ही कहां कि डेढ करोड़ लोग मरने लगे, या तीन चार करोड़ लोग अस्पताल में लोग आने लगे तो स्थिति काबू से बाहर हो जाएगी। मुंबई में ही अभी 30 से 40 हजार लोग संक्रमित है, वहां अस्पताल भर गए हैं। ऐसे में हम बड़ी संख्या में यदि मरीज आते हैं तो उन्हें कैसे इलाज दिया जा सकता है।

ब्रिटेन के अनुभव और अमेरिका के हालात से सीखे भारत

अब जब मजदूर वापस जा रहे हैं, जो गांव के क्षेत्र हैं वहां अस्पताल नहीं है। प्रवासी मजदूर अपने घर की ओर जा रहे हैं, वहां यदि संक्रमण फैल जाता है तो स्थिति काबू से बाहर हो जाएगी। इसलिए हार्ड एम्यूनिटी का फार्मूला सही नहीं है। यह भारत के लिए बहुत ही खतरनाक है। यह ब्रिटेन में देखा भी गया पहले सप्ताह में उन्होंने इस ओर ध्यान नहीं दिया। वह यही कहते रहे कि हार्ड एम्यूनिटी हो जाएगी, लेकिन एक सप्ताह में हालात बिगड़ने लगे तो वह लॉकडाउन की ओर आए। उनका हेल्थ सिस्टम बहुत ही अच्छा है।

सी तरह से अमेरिका में देखा गया है। वहां के राष्ट्रपति ने बोला कि ज्यादा नहीं होगा, लेकिन वहां भी स्थिति काबू से बाहर हो गयी। वहां चीन से भी ज्यादा मौत हो गयी है। चीन ने मजबूत लॉकडाउन की बदौलत संक्रमण पर काबू पा लिया है। दो माह के बाद अब वहां स्थिति काफी कंट्रोल में है। लॉकडाउन संक्रमण रोकने के लिए बहुत जरूरी है। लेकिन हमारे जैसे गरीब देश में लॉकडाउन कुछ अलग तरह से होना चाहिए। इसके लिए स्पेशल कंडीशन है, इसके लिए लोगों की भीड़ कम की जाए, उन्हें खाने-पीने का सामान वहीं उपलब्ध कराया जाए। अब लॉकडाउन के बाद भी हमारे यहां केस बढ़ रहे हैं, क्योंकि हमने सही से लॉकडाउन नहीं किया।

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