आदिवासियों के हाथों आदिवासियों की सामूहिक हत्या कराने का नया सरकारी पैंतरा 'बस्तरिया ब्रिगेड'

Update: 2018-05-23 14:26 GMT

पिछले 15 वर्षों से सरकारें माओवादी सफाये के नाम पर सुरक्षा बलों का उपयोग कर आदिवासियों को तबाह-बर्बाद कर रही हैं, आम नागरिकों को आर्थिक तौर पर चूस रही हैं, हालात यह हैं कि पूरे माओवादी क्षेत्र में अशांति और हिंसा में कोई कमी नहीं आ रही, उसी कड़ी में सलवा जुडूम और एसपीओ के बाद अब छत्तीसगढ़ सरकार लेकर आई है बस्तरिया ब्रिगेड

सिद्धार्थ

भारत सरकार ने बस्तर क्षेत्र से माओवादियों के सफाये के लिए बस्तरिया बिग्रेड या बस्तरिया बटालियन का गठन किया है। इस बिग्रेड के में सिर्फ आदिवासियों को ही भर्ती किया गया है। इसमें बस्तर क्षेत्र के चार जिलों बीजापुर, नारायणपुर, दंतेवाड़ा और सुकमा के आदिवासियों लड़के-लड़कियों को भर्ती किया है।

बस्तरिया बिग्रेड में कुल 534 सदस्य हैं, जिसमें 189 आदिवासी लड़कियां हैं और 345 आदिवासी लड़के हैं। इन आदिवासी लड़के-लड़कियों को ‘बस्तरिया योद्धा’ नाम भी दिया गया है।

बस्तरिया बिग्रेड नाम देने के दो कारण बताये गए हैं, पहला यह कि यह कि इनकी भर्ती बस्तर क्षेत्र से ही हुई है। दूसरा यह कि इनको माओवादियों से लड़ने के लिए बस्तर क्षेत्र में ही तैनात किया जायेगा।

भारत के गृह मंत्रालय ने इस बटालियन के गठन को केंद्रीय सुरक्षा बल (CRPF) के तहत करने की अनुमति प्रदान की थी। यह बटालियन केंदीय सुरक्षा बलों के एक हिस्से के रूप में गठित की गई है। शुरू में 744 पदों की स्वीकृति दी गई थी। फिलहाल 534 की भर्ती हुई है।

आदिवासियों के बीच से भर्ती करने के लिए भर्ती केंद्रीय सुरक्षा बल में भर्ती की शर्तों में भी छूट दी गई है। जैसे कम लंबाई और वजन के लोगों को भी भर्ती किया जा सकता है। जब गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने इस बटालियन को अनुमति दी थी, उसी समय इसमें आदिवासी महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया था।

जिन आदिवासी युवक-युवतियों को इसमें शामिल किया गया है, उन्हें बस्तर के चार जिलों के घने जंगली इलाकों के गांवों के लोगों में छांटा गया है। इनकी विशेषता बताते हुए सुरक्षा बलों के अधिकारी कहते हैं कि ये युवा स्थानीय भाषा समझते हैं, इस पूरे क्षेत्र से परिचित हैं। ये माओवादियों की गतिविधयों और उनके काम करने के तरीकों को जानते हैं। इनके सहयोग से माओवादियों का सफाया करने में मदद मिलेगी।

इस बटालियन का उद्देश्य माओवादियों का सफाया है, यह साफ तौर पर गृह मंत्रालय और सुरक्षा बल के अधिकारी स्वीकार करते हैं। इनकी विशेषता बताते हुए कहा गया है कि ये स्थानीय परिस्थियों, भाषा और माओवादियों की गतिविधियों से परिचित होने के चलते माओवादियों की गतिविधियों की सूचना जुटाने में अत्यन्त कारगर होंगे।

साथ यह भी कहा जा रहा है कि चूंकि बस्तर क्षेत्र के अधिकांश माओवादी वहीं के आदिवासी ही है, इसके चलते ये माओवादी आदिवासी लड़ाकों से लड़ने में ज्यादा सफल होंगे। क्योंकि ये उनसे अच्छी तरह परिचित हैं।

इस बटालियन को सभी अत्याधुनिक हथियारों से लैस किया गया है और मुकम्मिल ट्रेनिंग दी गई है। कहा जा रहा है कि इस इस बटालियन के गठन का एक उद्देश्य स्थानीय युवक-युवतियों को रोजगार प्रदान करना भी है।

इसके साथ यह भी बताते चलें कि बस्तर के माओवादियों से निपटने के लिए विशेष सुरक्षा दस्ता ग्रीनहाउन्ड की तर्ज पर ब्लैक पैंथर दस्ता तैयार करने की भी घोषणा इस मौके पर गृहमंत्री ने की है। गृहमंत्री ने कहा कि जल्दी यह विशेष दस्ता भी छत्तीगढ़ को उपलब्ध हो जायेगा। इस मौके पर छतीसगढ़ के मुख्यमंत्री भी मौजूद थे। यह सारा आयोजन बस्तरिया बिग्रेड़ के गठन के अवसर पर किया गया था।

बताते चलें कि बस्तर क्षेत्र दुनिया के सबसे सैन्याकृत इलाकों में से एक है, बस्तर क्षेत्र के सात जिलों में 100,000 सुरक्षा बल लगे हुए हैं, जिसमें स्थानीय पुलिस, सीआरपीफ (CRPF) और अन्य केंद्रीय अर्द्धसैनिक बल शामिल हैं, जिसमें कुख्यात स्पेशल फोर्स कोबरा (Commando Battalion for Resolute Action) भी शामिल है।

साथ ही समय-समय पर सेना के मदद की भी सूचना मिलती रहती है। इसके अलावा राज्य सरकार, कार्पोरेट घरानों और राजनीतिक दलों के गठजोड़ से खड़ी की गई लंपटों-माफियाओं- अपराधियों और दलालों की निजी सेनाएं भी हैं, जो कभी सलवाजुड़म के नाम से काम करती थीं, फिर इन्हें सामाजिक एकता मंच (SEM) नाम दिया गया। आजकल इसका नाम एक्शन ग्रुप ऑफ नेशनल इंट्रीगेशन (AGNI) है।

बस्तर क्षेत्र की वास्तविक सच्चाई शायद ही किसी से छिपी हो। बस्तर क्षेत्र पर देश–दुनिया के सभी कार्पोरेशनों की हवस भरी निगाह टिकी हुई है। इस क्षेत्र में 70 प्रतिशत आदिवासी हैं, जिस भूमि पर वे रहते हैं, खेती करते हैं, मवेशी चराते हैं और जिन जंगलों से अपने जीवन जीने के साधन जुटाते हैं, जिन जल स्रोतों से पानी पीते हैं, उस सब के नीचे अमूल्य खनिज पदार्थ दबे पड़े हैं।

इसमें बाक्साइट, डोलोमाइट, आयरन अयस्क, लाईम स्टोन, गार्नेट, मार्बल, ग्रेनाइट, टिन कोरूनडम, कोयला आदि शामिल हैं। टाटा और एस्सार के हित इस क्षेत्र से बड़े पैमाने पर जुड़े हुए हैं। यहां टाटा का ग्रीनफिल्ड स्टील प्लांट है, और खदानें हैं। इस इलाके में 2 हजार हेक्टेयर भूमि टाटा को दी गई है, जिमसें 104 हेक्टेयर फारेस्ट लैंड है। दांतेवाड़ा में एस्सार के प्लांट को भी भूमि दी गई है।

यह सारा कुछ संविधान की पांचवीं अनुसूची और फारेस्ट राइट एक्ट का उल्लंघन करके किया गया है। ग्रामसभाओं से आवश्यक सहमति भी नहीं ली गई है। अब यह जगजाहिर हो चुका है कि आदिवासियों को उजाड़े बिना दैत्याकार कार्पोरेशन अपनी मंशा को पूरी नहीं कर सकते हैं और आदिवासी इन ताकतवर कंपनियों द्वारा अपनी जमीन और जंगल पर कब्जा करने का प्रतिरोध कर रहे हैं।

कोई यह कह सकता है कि यह प्रतिरोध आदिवासियों का नहीं, तथाकथित माओवादियों का है तो इसका बहुत सीधा जवाब यह है कि जहां माओवादियों की उपस्थिति नहीं है वहां भी आदिवासी जल, जंगल और जमीन पर कब्जे की कार्यवाहियों का तीखा विरोध कर रहे हैं और करते रहे हैं।

साथ ही यह बात भी नहीं भूलनी चाहिए कि जब माओवादी, नक्सलवादी या वामपंथ का जन्म भी नहीं हुआ था, उस समय भी आदिवासी बाहरी (दिकुओं) लोगों के उनके क्षेत्र में प्रवेश या कब्जे की कोशिशों का विरोध करते रहें हैं, कभी उन्हें हार मिली, तो कभी जीत। इतिहास इन साक्ष्यों से भरा पड़ा है। रही बात माओवादियों या नक्सलियों की तो, जो भी पर्यवेक्षक (अरूंधती राय आदि) इस क्षेत्र में जाते हैं, वह इस बात की ताकीद करता है कि माओवादी आदिवासियों के संघर्षों में उनका सहयोग और समर्थन ही करते हैं।

राजसत्ता और कार्पोरेशनों का गठजोड़ एक तीर से दो निशाने साध रहा है, पहला तो यह कि आदिवासियों को माओवादी ठहरा कर उनके ऊपर आक्रामक हमले करना, ताकि उनके जंगल और जमीन बचाने के प्रतिरोध को तोड़ा जा सके। इसके लिए सरकारी सुरक्षा बलों के साथ लंपटों, माफियाओं, अपराधियों और दलालों के निजी सुरक्षा बल (आजकल इन्हें अग्नि नाम दिया गया है) भी खड़े किए गए हैं। दूसरा माओवादियो और नक्सलियों की नेस्तनाबूद करके इस देश के भीतर जनविरोधी सत्ताओं और कार्पोरेशनों के गठजोड़ की निर्णायक मुखालफत करने वाली शक्तियों को पूरी तरह कुचलने देने की कोशिश है।

इसी काम को अंजाम देने के लिए बस्तर जैसे छोटे से इलाके में 100, 000 के आसपास सुरक्षा बल लगाए गए हैं। वे संवैधानिक-कानूनी और गैरकानूनी सारे हथकंड़े अपनाकर इस पूरे क्षेत्र को हर प्रकार के प्रतिरोध से मुक्त करके कार्पोरेशनों को सौंपना चाहते हैं। इसके लिए बड़े पैमाने पर हिंसा का सहारा लिया जा रहा है।

इसका सबसे बड़ा सबूत यह है कि 2016 में पुलिस फायरिंग में देशभर में मारे गए तथाकथित 185 माओवादियों में 134 बस्तर क्षेत्र में मारे गए। इस क्षेत्र में माओवादियों के सफाए के नाम पर बड़े पैमाने पर आदिवासियों के साथ हिंसा की जा रही है। आदिवासी महिलाओं के साथ बलात्कार, सामूहिक बलात्कार और हिंसा इसी हमले का एक हिस्सा है।

इतने बड़े पैमाने पर सुरक्षा बलों की उपस्थिति के बावजूद भी केंद्र और राज्य सरकार इस क्षेत्र को कॉरपोरेट हाउसों के हाथ में पूरी तरह सौंप नहीं पा रही है, न तो यहां के खनिज संपदा और अन्य प्राकृति संसाधनों पर पूरी तरह नियंत्रण कर पार रही है। न ही इस क्षेत्र को कॉरपोरेट के लिए पूरी तरह सुरक्षित नहीं बना पा रही है। अब वह इस क्षेत्र के लोगों के खिलाफ सरकार आदिवासियों को ही सीधे अर्धसैनिक बल की एक बस्तरिया बटालियन के नाम पर उतार रही है।

(सिद्धार्थ फॉरवर्ड प्रेस हिंदी के संपादक हैं.)

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