क्या इसीलिए योगी मुख्यमंत्री बने थे कि पुलिस से लेकर डॉक्टर तक जनता के लिए एक के बाद एक जानलेवा साबित होते जाएं और वोटर असहाय भगवान भरोस रह जाएं
जनज्वार, उन्नाव। बुखार, खांसी जैसी अन्य सामान्य बीमारियों का इलाज कराने पहुंचे उन्नाव के लोगों को क्या पता था कि उनका यह मामूली रोग एक डॉक्टर की लापरवाही और लालच के कारण असाध्य रोगों की गिनती में शामिल हो जाएगा। एचआईवी से संक्रमित होने वालों में सभी उम्र के रोगी शामिल हैं।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनउ से सटे उन्नाव जिले में पिछले 10 महीने में 46 लोग एचआईवी संक्रमित पाए गए हैं। यह सभी लोग एक ही तहसील बांगरमउ के रहने वाले हैं। उन्नाव के मुख्य चिकित्साधिकारी एसपी चौधरी के मुताबिक 46 लोगों को यह रोग बांगरमउ के एक झोलाछाप डॉक्टर द्वारा एक ही सीरिंज लगाने के कारण हुआ है। डॉक्टर एक ही सीरिंज से कई लोगों को इंजेक्शन सस्ते ईलाज के नाम पर लगाता था।
ध्यान रहे एचआईवी पीड़ित होना एड्स से पीड़ित होना नहीं होता — जानने के लिए पढ़िए सबसे नीचे दी गयी जानकारी
सीएमओ चौधरी के अनुसार पिछले वर्ष अप्रैल से जुलाई के बीच लगने वाले कैंपों में हुई जांच से पता चला कि एक ही तहसील बांगरमउ से 12 एचआईवी पॉजिटिव मामले सामने आए। उसके बाद नवंबर में इसी तहसील में फिर 13 और मामले सामने आए।
एक ही तसहील में इतनी बड़ी संख्या में एचआईवी पॉजिटिव रोगियों की तादाद से हलकान हुए स्वास्थ्य विभाग ने दो डॉक्टरों की एक समिति बनाई और जांच के आदेश दिए।
डॉक्टरों की टीम ने इस साल जनवरी 24, 25 और 27 को बांगरमउ के आसपास के दो क्षेत्रों चकमीरपुर और प्रेमगंज में कैंप लगाए। यहां कैंप इसलिए लगाए गए कि इसी इलाके से ज्यादा रोगी थे। इन कैंपों में कुल 566 लोगों की जांच हुई, जिसमें से 21 फिर एचआईवी पॉजिटिव पाए गए।
मुख्य चिकित्साधिकारी एसपी चौधरी ने बताया कि 10 महीने में बांगरमउ तहसील में अबतक कुल 46 एचआईवी पॉजिटिव पाए गए हैं। रोगियों की बढ़ी संख्या का कारण एक ही सीरिंज से इंजेक्शन लगाया जाना है। ऐसा करने वाले झोलाछाप डॉक्टर राजेंद्र कुमार के खिलाफ लापरवाही से इलाज करने को लेकर एफआईआर दर्ज कर दी गयी है।
हालांकि पीड़ितों के परिवारों का कहना है कि डॉक्टर के इस आपराधिक कृत्य के खिलाफ 307 का मुकदमा दर्ज होना चाहिए, क्योंकि यह एक तरह से हत्या की कोशिश ही है। यूपी में हर साल 9 हजार से अधिक लोग एचआईवी पीड़ित हो जाते हैं।
आॅनली हेल्थ से जानिए एचआईवी और एड्स् के फर्क
एचआईवी वायरस है एड्स बीमारी
एचआईवी, मतलब ह्यूमन इम्यूनोडिफिशिएंसी वायरस, जो कि एक वायरस है। एड्स, पूरा नाम एक्वायर्ड इम्यूनो-डिफिशिएंसी सिंड्रोम, एक मेडिकल सिंड्रोम है। एचआईवी वायरस प्रतिरक्षा प्रणाली की टी कोशिकाओं पर हमला करता है जबकि एड्स, एचआईवी संक्रमण के बाद सिंड्रोम के रुप में प्रकट होती है।
एचआईवी संक्रमित होने का मतलब एड्स नहीं
एक व्यक्ति अगर एचआईवी संक्रमित है तो जरूरी नहीं कि उसे एड्स हो। एचआईवी से संक्रमित अधिकतर व्यक्ति प्रोपर मेडिकेशन टर्म्स फॉलो कर सामान्य जिंदगी जी सकते हैं। इसका मतलब ये नहीं की सभी एचआईवी संक्रमित लोगों को एड्स नहीं। एचआईवी संक्रमित व्यक्ति को एड्स हो सकता है लेकिन हर एड्स से पीड़ित लोग जरूरी नहीं कि एचआईवी से संक्रमित हों।
बिना प्रोटेक्शन दो एड्स पीड़ित कर सकते हैं सेक्स
बिल्कुल नहीं। दो एड्स पीडि़त आराम से बिना प्रोटेक्शन के सेक्स नहीं कर सकते हैं। ये उनके लिए खतरनाक हो सकता है। एड्स भी कई तरह के होते हैं। साथ ही कोई एड्स से पीड़ित हो सकता है और कोई एचआईवी संक्रमित एड्स से पीड़ित हो सकता है। वहीं किसी एड्स पीडित को सीडी4 का कांउट ड्रॉप 200 होता है और किसी को संक्रमण या कैंसर होता है। ऐसे में प्रोटेक्शन के साथ ही सेक्स करें।
एचआईवी ट्रांसमिट होता है, एड्स नहीं
एचआईवी एक इंसान से दूसरे इंसान में ट्रांसमिट हो सकता है लेकिन एड्स नहीं। जबकि अधिकतर लोग बोलते हैं, "मुझे एड्स मत दो"। इंटरकोर्स, संक्रमित खून और इंजेक्शन से एचआईवी ट्रांसमिट होता है ना कि एड्स।
एचआईवी टेस्ट सिम्पल से कर सकते हैं, लेकिन एड्स टेस्ट कॉम्पलीकेटेड है
सिम्पल ब्लड टस्ट और स्लाइवा टेस्ट से एचआईवी संक्रमण का पता किया जा सकता है। साथ ही ये टेस्ट कुछ हफ्तों के बाद ही पता लग पाता है। इसे दूसरी तरह से भी पता किया जा सकता है। बॉडी में मौजूद एंटीजन्स का भी टेस्ट कर पता किया जा सकता है। लेकिन जब एचआईवी वायरस इम्यूनिटी सिस्टम को कमजोर कर देता है तब इंसान को एड्स होता है। इम्युन सेल्स को काउंट कर एड्स का पता किया जाता है। इस टेस्ट को सीडी4 सेल्स टेस्ट कहते हैं।
ट्रीटमेंट और उम्मीद में अंतर
एचआईवी को कंट्रोल किया जा सकता है। इसमें इंसान के अधिक जीने के चांसेस होते हैं। लेकिन एड्स में ऐसा नहीं है। एड्स में इम्युन सिस्टम डैमेज होता है जिसे ठीक नहीं किया जा सकता।