दुनियाभर में हर साल पैदा होता है इतना कचरा कि ढक जायेगा 41 हजार किलोमीटर का क्षेत्र

Update: 2019-07-08 05:24 GMT

हरेक सेकंड लगभग 2 बस के बराबर प्लास्टिक कचरा पहुंच रहा है महासागरों में यानी हर वर्ष लगभग 80 टन प्लास्टिक जा रहा है महासागरों में, इसे रोकने के लिए नहीं किये जा रहे कोई ठोस उपाय...

महेंद्र पाण्डेय की रिपोर्ट

पूरी दुनिया में शहरीकरण का क्षेत्र और आबादी बढ़ रही है और इसी के साथ घरों से, बाज़ारों से या फिर कार्यालयों से उत्पन्न कचरे की मात्रा भी बढ़ रही है। दुनिया में प्रतिवर्ष 2.1 अरब टन कचरा प्रतिवर्ष उत्पन्न होता है, जिससे ओलिंपिक साइज़ के 8,22,000 स्विमिंग पूल भरे जा सकते हैं और यदि इन्हें एक लम्बाई में लगाया जाए तब 41,000 किलोमीटर का क्षेत्र ढक जाएगा। इसमें से केवल 15 प्रतिशत कचरे की रिसाक्लिंग की जाती है, जबकि 46 प्रतिशत का निपटान ऐसे किया जाता है जिससे आबादी प्रभावित होती है।

वेरिस्क मेपलक्राफ्ट नामक संस्था ने कचरे के प्रबंधन के सन्दर्भ में 194 देशों का अद्ध्यायाँ कर एक रिपोर्ट प्रकाशित किया है। इसके अनुसार अमेरिका में प्रतिव्यक्ति के सन्दर्भ में कचरे का उत्पादन सबसे अधिक 773 किलोग्राम प्रतिवर्ष है। अमेरिका की आबादी दुनिया के सन्दर्भ में 4 प्रतिशत है, पर कुल कचरे में इसकी भागीदारी 12 प्रतिशत है।

मेरिका में प्रतिव्यक्ति कचरे का उत्पादन दुनिया के औसत की तुलना में तीन गुना अधिक है। दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बाद भी अमेरिका कचरा प्रबंधन के सन्दर्भ में विकसित देशों में सबसे पीछे है। यहाँ कुल उत्पन्न कचरे में से महज 35 प्रतिशत कचरे की रिसाक्लिंग की जाती है।

चीन और भारत की सम्मिलित आबादी दुनिया की कुल आबादी का 36 प्रतिशत है, पर इन दोनों देशों का कचरा महज 27 प्रतिशत है। इंग्लैंड में प्रतिव्यक्ति कचरे का उत्पादन 482 किलोग्राम प्रतिवर्ष है। रिसाइक्लिंग के सन्दर्भ में सबसे आगे जर्मनी है, जहां 68 प्रतिशत की रिसाइक्लिंग की जाती है, जबकि इंग्लैंड में 44 प्रतिशत का। कचरे के सन्दर्भ में सबसे खतरनाक देशों में अमेरिका, नीदरलैंड, कनाडा, ऑस्ट्रिया, स्विट्ज़रलैंड, जर्मनी, फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं।

चरे की दुनिया में और भी विकराल होने वाली है। अब तक विकसित देशों के कचरे को विकासशील देशों में भेज दिया जाता था, पर अब भारत, चीन, थाईलैंड, वियतनाम और मलेशिया जैसे अनेक देशों ने कई तरह के कचरों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है। प्लास्टिक के चलते कचरा हरेक जगह पहुँच गया है।

स्ट्रेलिया से 2100 किलोमीटर उत्तर पश्चिम में स्थित कोकोस आइलैंड पर लगभग 300 लोग रहते हैं। दुनिया से लगभग कटा हुआ यह द्वीप विश्व के उन चुनिन्दा क्षेत्रों में से है, जहां अब तक समझा जाता था कि पर्यावरण विनाश या फिर प्रदूषण का असर नहीं पड़ा है। पर हाल में ही वैज्ञानिकों ने इस द्वीप पर लगभग 238 टन कचरा खोज निकाला है, जो हिन्द महासागर की लहरों के साथ इसके किनारे पर जमा हो गया है। इस कचरे में लगभग 42 करोड़ प्लास्टिक के टुकड़े भी हैं।

मेरिका के विक्टर वेस्कोवो ने प्रशांत महासागर की सबसे गहरी जगह, मारिआना ट्रेंच, में 10927 मीटर की गहराई तक पहुँच कर एक नया विश्व रिकॉर्ड स्थापित किया। माउंट एवेरेस्ट की ऊंचाई कुल 8848 मीटर है, यानी विक्टर वेस्कोवो जिस गहराई तक गए, वह माउंट एवेरेस्ट की कुल ऊंचाई से भी अधिक है। उनसे पहले महासागर में इस गहराई तक पहुँचने की हिम्मत कोई नहीं जुटा पाया था। इस रिकॉर्ड-तोड़ गहराई में भी उन्हें प्लास्टिक से ढका कचरा मिला।

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार हरेक सेकंड लगभग 2 बस के बराबर प्लास्टिक महासागरों में पहुंच रहा है, और हरेक वर्ष लगभग 80 टन प्लास्टिक महासागरों में जा रहा है और इसे रोकने के लिए कोई ठोस उपाय नहीं किये जा रहे हैं। अधिकतर प्लास्टिक विकासशील देशों से ही पर्यावरण में पंहुच रहा है। विकसित देश अपना प्लास्टिक कचरा एकत्रित कर वैध या फिर अवैध तरीके से विकासशील देशों तक पहुंचा देते हैं, जहाँ इनका निपटान किया जाता है या फिर इनकी रिसाइक्लिंग की जाती है।

निपटान के लिए इन्हें जमीन पर छोड़ दिया जाता है, जहां हवा के बहाव के साथ ये दूर तक फैलते हैं और फिर सागरों और महासागरों तक पहुँच जाते हैं। रिसाइक्लिंग के दौरान भारी मात्रा में जहरीली गैसें वायुमंडल में मिलती हैं।

टीयरफंड नामक एक गैर-सरकारी संस्था के अनुसार विकासशील देशों में प्रतिवर्ष 1 करोड़ से अधिक लोग केवल कचरे के बेतरतीब तरीके से बिखरे होने के कारण मर जाते हैं। कचरे में प्लास्टिक मौजूद होने के कारण हालात और बिगड़ गए हैं। प्लास्टिक में मौजूद हानिकारक अवयव धीरे-धीरे रिस कर भू-जल तक पहुँचाने लगे हैं। प्लास्टिक और कचरा हवा और पानी के साथ नदियों और झीलों को भी प्रभावित कर रहा है।

छलियों और दूसरे खाने योग्य जलीय जन्तुओं में प्लास्टिक और दूसरे प्रदूषणकारी पदार्थों की मात्रा बढ़ती जा रही है। कचरे से पानी के प्रदूषित होने के कारण अतिसार का कहर बढ़ता जा रहा है और यह दुनिया में असामयिक मृत्यु का सबसे बड़ा कारण भी है।

दुनिया में लगभग 2 अरब आबादी ऐसी है, जिनके कचरे का प्रबंधन कोई नहीं करता और यह आबादी लगभग 10 करोड़ टन कचरा प्रतिवर्ष उत्पन्न करती है। यह पूरा कचरा आबादी के बीचोंबीच पड़ा रहता है और इसे सड़क किनारे, खाली जमीन पर, नदियों के किनारे और नालों में देखा जा सकता है।

चरा बीनना दुनिया में सबसे बड़ा असंगठित कारोबार भी है। हमारे देश में भी लाखों लोग कचरे से ही अपना गुजर-बसर करते हैं। इसके अपने खतरे हैं। सड़कों पर कचरा बीनने के दौरान अनेक व्यक्ति दुर्घटनाओं का शिकार भी होते हैं। कचरे के ढेर के गिरने से कई बार कचरा बीनने वाले दब जाते हैं और मर जाते हैं। कचरे से निकालने वाले हानिकारक पदार्थ भी इन लोगों को नुकसान पहुंचाते हैं। कचरे के ढेर पर आग लगना सामान्य घटना है, इसमें अनेक बार कचरा बीनने वाले झुलस जाते हैं।

प्लास्टिक के नुकसान यहीं तक सीमित नहीं हैं। अब नए अनुसंधान इसे तापमान वृद्धि और जलवायु परिवर्तन से भी जोड़ने लगे हैं। सेंटर फॉर इंटरनेशनल एनवायर्नमेंटल लॉ नामक संस्था द्वारा कराये गए एक अध्ययन के अनुसार केवल एक बार इस्तेमाल किया जा सकने वाला प्लास्टिक जलवायु परिवर्तन में बड़ी भूमिका निभा रहा है।

नुमान है कि वर्ष 2050 तक दुनिया में कुल कार्बन उत्सर्जन में से 13 प्रतिशत से अधिक का योगदान प्लास्टिक के उत्पादन, उपयोग और अपशिष्ट का होगा, जो लगभग 615 कोयले से चलने वाले ताप-बिजली घरों जितना होगा। इप्लास्टिक के पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों की तो खूब चर्चा की जाते है, पर इसके तापमान वृद्धि में योगदान को नजरअंदाज कर दिया जाता है।

इतना तो स्पष्ट है कि कचरे का वैज्ञानिक और पर्यावरण अनुकूल प्रबंधन समय की आवश्यकता है, पर इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। हालत यह है कि निर्जन द्वीपों पर भी कचरे का अम्बार लगा है।

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