संपादक सुभाष राय के घर में घुसकर की यूपी एसटीएफ के इंस्पेक्टर ने गुंडागर्दी

Update: 2018-06-11 07:44 GMT

बिना ड्यूटी किसी परिचित के विवाद में फोन पर आया था इंस्पेक्टर गुंडागर्दी करने, साथ लेकर आया था 10 बंदूकधारी

इस आपबीती के अलावा एसटीएफ के आईजी अमिताभ यश को भी वरिष्ठ पत्रकार सुभाष राय ने लिखा है एक पत्र, आइए पढ़ते हैं एक पत्रकार की आपबीती...

'मैं एसटीएफ से रणजीत राय हूँ, जो उखाड़ना हो, उखाड़ लो'

‘अब तुम किसी पुलिस वाले को, किसी दरोग़ा को, एसपी को, जिसको चाहो बुला लो। देखता हूँ तुम्हारी औक़ात क्या है। ये देखने से ही गुंडा लगता है, पत्रकार है, गुंडई करता है। अब बता कौन आएगा तुझे बचाने, बोल कौन है बुला। नम्बर दे मैं बुलाता हूँ।' एक गुस्साया हुआ आदमी दर्जन भर लोगों के साथ रविवार 10 जून शाम तीन से चार के बीच मेरे विराजखंड स्थित आवास पर आ धमका। तब मैं और मेरी पत्नी केवल हम दो ही घर पर थे। उनमें से कई हथियारों से लैस थे। वे सब धड़ाधड़ रैम्प फलाँगते हुए मेरे दरवाज़े के अंदर आ गए। चीख़ते, चिल्लाते और अभद्र भाषा का इस्तेमाल करते हुए। हमलावर अन्दाज़। एक झटके में डरा देने की कोशिश। हम अवाक थे। लगा कि वह किसी भी क्षण मुझे थप्पड़ जड़ देगा, मेरी पत्नी पर हमले कर देगा।

मैं एकबारगी डर गया, लेकिन अपने डर से बाहर आते हुए मैंने उससे कहा, आप बाहर जाइए, दरवाज़े से हटिए, मैं आप से बात नहीं कर रहा हूँ। वह खौखियाते हुए बोला, तुम्हें मुझसे बात करनी पड़ेगी, क्यों नहीं बात करेगा? बोल कौन पुलिसवाला है जो तुम्हारी मदद करेगा। बुला, फ़ोन कर।

मैंने पूछा, आप हैं कौन? वह मुझे डपटते हुए चीख़ा, 'मैं एसटीएफ से हूँ, रणजीत राय क्या उखाड़ लेगा।' लग रहा था कि वह कभी भी मुझे घसीट लेगा, मार देगा। उसकी भाषा में खिसियाहट, उग्रता, आक्रामकता और गंदगी भरी हुई थी। चिल्लाते हुए उसके हाथ बिलकुल मेरे सिर के पास तक लहरा रहे थे। मेरी पत्नी डर गयीं थीं, वे मुझे अंदर खींचने का प्रयास कर रहीं थीं। मैं जितना पीछे हट रहा था, वह उतना आगे बढ़ रहा था।

लगभग आधे घंटे तक वह और उसके मवाली साथी मेरे घर पर हंगामा करते रहे। मुझे नहीं पता कि कोई भी एसटीएफ वाला इस तरह सादी वर्दी में कैसे किसी भी आम नागरिक को डरा-धमका सकता है। मुझे यह भी नहीं पता कि वह किसी असाइनमेंट पर था या अपने अधिकारियों को सूचित करके आया था या निजी तौर पर ही अपने रिश्तेदारों, मित्रों की ग़ैरक़ानूनी मदद करने आया था। इस तरह किसी फ़ोर्स का कोई आदमी रंगबाज़ी और सरासर गुंडई की मुद्रा में किसी सभ्य नागरिक के घर पर धावा बोलकर केवल एसटीएफ की छवि को ही बट्टा लगाएगा और उसने ऐसा ही किया।

पुलिस वालों ने ऐसा हड़काया कि भाजपा नेता को रोना आ गया

मामला क्या था, यह बताऊँ तो आप आसानी से समझ जाएँगे कि किस तरह पुलिस संगठनों के कुछ लोग अपने पद की धौंस दिखाकर क़ानून का दायरा लाँघते हुए अपने अराजक, रंगबाज़ और दलाल सम्बन्धियों की मदद कर रहे हैं। मैं और मेरी पत्नी, दोनों एक जून को बाहर चले गए थे, जब आठ की रात दो बजे वापस लौटे तो यह देखकर सन्न रह गए कि किसी ने घर के सामने कई ट्रक मोरंग इस तरह गिरवा दिया था कि मैं अपनी गाड़ी बाहर नहीं निकाल सकता था।

पता करने पर मालूम हुआ कि मोरंग मिस्टर राकेश तिवारी ने डलवाया था। अगले दिन नौ जून को मैंने उनसे कहा कि भाई घर के सामने से सिर्फ़ इतना मोरंग हटा लें कि मैं गाड़ी निकाल सकूँ और कार्यालय जा सकूँ। उसने कहा, जी बिलकुल अभी करवा दूँगा। जब दस बज गया और कोई हलचल नहीं हुई तो मेरी पत्नी उसके घर गयीं और वही आग्रह दुहराया। राकेश और उसकी पत्नी दोनों ने आश्वस्त किया की बहुत जल्द वे मोरंग हटा लेंगे, पर शाम तक कुछ नहीं हुआ। मैं कार्यालय नहीं जा सका और हम अपने घर में लगभग क़ैद हो गए। मेरे पास अपने हर काम के लिए पैदल निकलने के अलावा कोई और चारा नहीं बचा। मेरे लिए इस उम्र में यह सम्भव नहीं था।

यह चित्र उस समय का है जब वरिष्ठ पत्रकार सुभाष राय के घर के सामने मोरंग पटा था

शाम को मैंने राकेश तिवारी से कहा कि आप यहाँ से मोरंग हटा लें अन्यथा मुझे क़ानून की मदद लेनी पड़ेगी। पहले तो वह सामान्य ढंग से बात करता रहा और कहता रहा कि अब आप ही बताइए इसे कहाँ ले जाऊँ। मैं जानता हूँ कि आप को तकलीफ़ हो रही है, लेकिन मेरे पास कोई और चारा नहीं है। वह मेरी मुश्किल समझने को कतई तैयार नहीं था। बात करते-करते अचानक उसकी भौंहें तन गयीं और भाषा बदल गयी। वैसे भी वह मुहल्ले में अकारण लोगों से झगड़ता रहता है। वह बंदूक़ भी रखता है।

वह ग़ुस्से में बोला, अब मोरंग यहीं रहेगा, आप को जो उखाड़ना हो, उखाड़ लीजिए। मजबूरन मुझे 100 पर पुलिस को ख़बर करनी पड़ी। पुलिस आती, इसके पहले तिवारी ने अपने कुछ लोगों बुला लिया। वे आए, मेरी घंटी बजायी और धमकाने वाली भाषा में बात करने की कोशिश की। मैंने किसी से बात करने से इनकार किया और दरवाज़ा बंद करके घर में चला गया। मैंने पुलिस के उच्च अधिकारियों को भी सूचना दे दी थी। रात आठ बजे के आसपास एक पुलिस अधिकारी आए, उन्होंने सब देखा, राकेश तिवारी को बुलवाया और उनसे कहा, आप इस तरह सड़क बंद नहीं कर सकते। कल सुबह जेसीबी मंगवाइए और यहाँ से मोरंग हटवाइए। तिवारी ने सहमति जतायी और पुलिस अफ़सर को आश्वस्त किया कि सवेरे काम हो जाएगा।

अगला दिन 10 जून। सवेरा हुआ। दस बजा, बारह बजा। सब ख़ामोश। वहाँ एक चुटियावाला आदमी तिवारी का काम करा रहा था। मैंने उससे कहा तो उसने रुखा जवाब दिया, अभी सुबह नहीं हुई है, कर रहे हैं, कर देंगे। हटा देंगे, ज़्यादा हाइपर न होइए। दोपहर गुज़र गयी, मगर उनकी सुबह नहीं आयी। मैंने फिर पुलिस अधिकारी से सम्पर्क किया तो पता चला कि मिस्टर तिवारी को जेसीबी नहीं मिल पा रही है। मैंने कहा कि अगर मैं जेसीबी मँगवा दूँ तो... अधिकारी ने कहा, आपको मिल जाय तो मँगा लीजिए और जब जेसीबी आ जाए तो मुझे फ़ोन कर दीजिएगा, मैं फ़ोर्स भेज दूँगा, आप मोरंग हटवा दीजिएगा। मैंने जेसीबी मंगा ली।

उसके आते ही मिस्टर तिवारी आए, उन्होंने मुझे बताया कि खाली प्लॉट में डलवा दीजिए। मैंने उनको बताया कि इसे तीन हज़ार रुपए भी देने हैं। मिस्टर तिवारी ने कहा, कोई बात नहीं, हो जाएगा। मुझे लगा, समस्या हल हो गयी लेकिन जेसीबी ने अभी एक तिहाई भी मोरंग नहीं उठायी होगी कि तिवारी की पत्नी आकर मशीन के सामने खड़ी हो गयी और गाली देने लगी, चिल्लाने लगी। तिवारी के तेवर भी अचानक बदल गए, वह भी अनाप-शनाप बोलने लगा।

जेसीबी वाला डर कर भाग गया। मैंने सुना, तिवारी की पत्नी ने किसी को फ़ोन किया और कुछ ही पलों में एक गाड़ी से दनदनाते हुए एक दर्जन हथियारबंद लोग आ गए। आते ही उन्होंने मेरे घर पर धावा बोल दिया, गरियाते हुए, औक़ात पूछते हुए और धमकाते हुए। शोर सुनकर मेरे एक पत्रकर साथी भी आए, उन्होंने हस्तक्षेप करने की कोशिश की, लेकिन हमलावर किसी की कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे।

इस बीच मैंने पुलिस अधिकारी को कई बार फ़ोन करने की कोशिश की, मगर नाकाम रहा। उनका जब तक फ़ोन आया, तब तक मिस्टर तिवारी के बुलावे पर आए लोगों ने मुझे, मेरी पत्नी को झुकाने, डराने, धमकाने और मैनहैंडलिंग के हरसम्भव जतन कर लिए। जब हम नहीं डरे तो वे सब बाहर निकलकर खड़े हो गए और तिवारी दम्पती चीख़-चीख़ कर चुनौती देने लगे, अब जिसे बुलाना हो बुला लो और एक इंच भी मोरंग हटवा कर दिखा दो।

मैं पसोपेश में था। समझ में नहीं आ रहा था क्या करूँ। इसी बीच पुलिस अधिकारी का फ़ोन आया। मैंने उन्हें सारी बात बतायी, अपमानजनक घटना का पूरा ब्योरा दिया। तब तक मेरे मित्र अरुण सिंह और रामबाबू भी आ गए थे। आधे घंटे बाद पुलिस आयी। जेसीबी बुलाने की बहुत कोशिश हुई, पर वह भाग चुका था, मिला नहीं। फिर पुलिस ने आसपास काम कर रहे मज़दूरों को लगाकर मोरंग हटवायी।

वैसे तो मैं क़ानून के अलावा किसी से डरता नहीं हूँ, और अन्यायी, अपराधी और गुंडे मवालियों से तो बिलकुल ही नहीं लेकिन सोचता हूँ कि जब पुलिस और एसटीएफ के लोग इस तरह क़ानून तोड़ने वाले, अराजक और अपराधी क़िस्म के मित्रों और रिश्तेदारों की मदद में आम जीवन जीने वालों का जीना हराम करने के लिए बिना किसी सक्षम अधिकारी की अनुमति लिए, बिना किसी असाइनमेंट के गुंडों की तरह कहीं भी हमला करने लगेंगे तो हम जैसे आम और साधारण लोगों का जीवन कभी भी संकट में पड़ सकता है।

बाद में मैंने जानना चाहा कि वह सचमुच एसटीएफ वाला था या नहीं। फ़ेसबुक पर ढूँढ़ा तो उसका प्रोफ़ाइल मिला, वह एसटीएफ से ही है, एक चित्र उस समय का है जब मेरे घर के सामने मोरंग पटा था और पहला चित्र एसटीएफ वाले रणजीत राय का।

इस घटना के तुरंत बाद मैंने एसटीएफ के आईजी अमिताभ यश को भी एक पत्र भेजा, और उन्हें अपनी आपबीती बताई, यह भी कि किस तरह एसटीएफ वालों ने हमारे साथ गुंडई की।

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