रोहतक के युवा कवि संदीप कुमार की कविता 'युद्ध'
1.
जिनके बेटे शहीद हो गए
वो युद्ध के खिलाफ हैं
जिनके बेटे फौज में हैं
वो युद्ध के खिलाफ हैं
जो गांव सीमा रेखा के आसपास हैं
वो युद्ध के खिलाफ हैं
मैं दोनों देशों की बात कह रहा हूँ
किसी मां-बाप का इंटरव्यू नहीं है
युद्ध के पक्ष में
किसी बहन-भाई का इंटरव्यू नहीं है
युद्ध के पक्ष में
किसी फौजी की जीवनसाथी का
इंटरव्यू नहीं है युद्ध के पक्ष में
और न ही किसी बेटे और बेटी का
फिर कौन लोग हैं
जो युद्ध-युद्ध चिल्ला रहे हैं?
हमें सतर्क रहना होगा
हर उस मीडिया चैनल से
जिसने चौथे स्तंभ की
सब मर्यादाएं लांग दी
और भ्रमित कर दिया
युवा दिमागों को।
2.
पाश, मैं नहीं लड़ना चाहता था
तुम्हारी कविताएं पढ़ने के बाद
चारू, मैं युद्ध के खिलाफ रहा
आपके लेख पढ़ने के बावजूद
चेराबंडू और श्री श्री की कविताएं भी मुझे
हथियारों की ओर नहीं ले जा सकी
मुझे दुख है
मैं हमेशा उस युद्ध से बचता रहा
जो चूल्हे पर रखी
पतीलियों में पकता रहा
मैंने जिंदगी के खूबसूरत साल
सड़कों पर ट्रक चलाते गुजार दिए
और घर पर बेटी को
एक नई जोड़ी ड्रैस नहीं दिला सका
अब भी बचाता रहा
अपने को युद्ध में शामिल होने से
मगर युद्ध ने
घर दरवाजा आ खटखटाया
वो कहते हैं वही सच है
जो सरकार बोलती है
वही विचार प्रकट करो
जो सरकार चाहती है
मैं शुक्रगुजार हूं आपकी किताबों
जिन्होंने मुझे सवाल करना सिखाया
जिन्होंने मुझे इंसान बनाया
जिन्होंने मुझे प्यार करना सिखाया
इसलिए अब और बर्दाश्त नहीं होता
मैं आ रहा हूँ, जुलूसों में
मैं शामिल हो रहा हूँ सेमिनारों में
मैं प्रायश्चित नहीं कर रहा
मैं उस युद्ध में शामिल हो रहा हूँ
जिसके बाद कोई युद्ध ना हो
जिसके बाद कोई गटर में ना मरे
जिसके बाद कोई किसी के
पांव धोने की जगह गले लगाए
मैं शामिल हो रहा हूँ उस युद्ध में
जिसके बाद किसी का विस्थापन ना हो
लड़की पैदा होने पर
सिर ना झूके किसी का शर्म से
और कोई उंगली ना उठाए
किसी की अस्मिता पर
हां, मैं उस युद्ध में शामिल हो रहा हूँ
जिसके बाद
कोई युद्ध नहीं लड़ा जाएगा।