प्राकृतिक आपदा में पुरुषों के बजाय बेहतर प्रबंधक साबित होती हैं महिलाएं, मगर रहती हैं उपेक्षित
जिस दिन आपदा प्रबंधन में महिलाओं की उपेक्षा बंद हो जायेगी और उनकी बातें सुनी जाने लगेंगी उस दिन से आपदा प्रबंधन का काम अपेक्षाकृत आसान हो जाएगा...
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
जैसे-जैसे पृथ्वी का तापमान बढ़ता जा रहा है, प्राकृतिक आपदाओं की संख्या भी बढ़ती जा रही है। इस सन्दर्भ में हरेक नए साल में पिछले वर्ष के रिकॉर्ड टूट रहे हैं। अब तो लगभग सभी देशों में आपदा प्रबंधन के लिए एक अलग विभाग और इससे निपटने के लिए एक अलग बल हो गया है।
अब आपदा से सम्बंधित सूचनाएं भी जनता को समय रहते मिल जाती हैं, जिससे नुकसान कम होने लगा है। इन सबके बीच आपदा के सन्दर्भ में यदि कुछ नहीं बदला है तो वह है आपदा प्रबंधन में महिलाओं की उपेक्षा।
डिजास्टर नामक जर्नल के नए अंक में यूनिवर्सिटी ऑफ़ कोलोराडो के वैज्ञानिकों के एक शोधपत्र के अनुसार महिलायें आपदा से बचने के निर्णय पुरुषों से बेहतर लेती हैं और आपदा बीतने के बाद के बाद पुनर्निर्माण के काम में भी अधिक भागीदारी करते हैं, पर इनका योगदान हमेशा उपेक्षित ही रहता है।
शोधपत्र में कहा गया है कि जिस दिन आपदा प्रबंधन में महिलाओं की उपेक्षा बंद हो जायेगी और उनकी बातें सुनी जाने लगेंगी उस दिन से आपदा प्रबंधन का काम अपेक्षाकृत आसान हो जाएगा।
यूनिवर्सिटी ऑफ़ कोलोराडो के समाज विज्ञान और आपदा प्रबंधन विभागों में वैज्ञानिक मेलिसा विल्लार्रेअल की अगुवाई में इस अध्ययन को अमेरिका के विभिन्न क्षेत्रों में प्राकृतिक आपदा के बाद लोगों से बातचीत के आधार पर किया गया है। बातचीत में महिलायें और पुरुष दोनों ही शामिल थे।
मेलिसा के अनुसार आपदा के बारे में महिलाओं की अलग धारणा होती है और उनके पास बहुत सारे प्रायोगिक विकल्प भी होते हैं, पर अंत में केवल पुरुष ही हरेक चीज तय करते हैं। प्रबंधन में महिलाओं की उपेक्षा के कारण आपदा से जूझने में और फिर बाद में सामान्य स्थिति बनाने में सामान्य से अधिक समय लगता है।
महिलायें खतरे को जल्दी समझती ही नहीं हैं, बल्कि उससे निपटने के उपाय भी उसके साथ सोच लेती हैं फिर भी उनकी बात नहीं सुनी जाती क्योंकि पुरुष उन्हें अपनी तुलना में गौण समझते हैं। हद तो तब हो जाती है जब आपदा के बाद सहायता देने वाले संस्थान भी प्रभावित घरों के पुरुषों से ही बात कर चले जाते हैं। शोधपत्र में कहा गया है की यदि सहायता के सन्दर्भ में केवल प्रभावित घरों की महिलाओं से बात की जाए तब सहायता अधिक प्रभावी होती है।
इस शोधपत्र में अनेक उदाहरण दिए गए हैं जिसके अनुसार किसी आपदा के समय महिलायें घर के आसपास ही किसी सुरक्षित स्थान को परख लेती हैं, पर पुरुष अक्सर दूर की जगह ही सुरक्षित समझते हैं। पर पूरे घर को पुरुषों की बात माननी पड़ती है, इसका परिणाम यह होता है कि अनेक मौकों पर आपदा आपको दूर पहुँचाने नहीं देती और अंत में आप पहले से अधिक भीषण आपदा में फंसते हैं या फिर जान से हाथ धो बैठते हैं।
मेलिसा का मत है कि प्राकृतिक आपदा को केवल पुरुषों के आँखों से मत देखिये बल्कि महिलाओं को भी प्रबंधन में पूरी भागीदारी करने दीजिये, फिर आपदा प्रबंधन पहले से अधिक आसान और प्रभावी हो जाएगा।