गिल के मरने पर गम नहीं गालियों से विदाई दे रही पंजाब की जनता

Update: 2017-06-11 05:22 GMT

मीडिया का बहुतायत जहां पंजाब के पूर्व डीजी और खालिस्तानियों के सफाए के लिए चर्चित रहे केपीएस गिल की मौत को 'एक महानायक' की विदाई बता रहा है, वहीं पंजाब के आम लोग सोशल मीडिया पर गालियों, फब्तियों से तंज कस रहे हैं और गिल को 'कसाई' की संज्ञा देते नहीं अघा रहे हैं...

तैश पोठवारी

इसे आप त्रासदी कह सकते हैं या त्रासदीपूर्ण सच। पर ऐसा ही है। और यह कोई नया नहीं बल्कि हमेशा होता रहा है कि आतंकवाद झेलती और आतंकवाद खत्म होते देखती सत्ता की निगाहों में बड़ा फर्क होता है। भारत में पारंपरिक तौर पर जिस तरह से सरकार आतंकवाद खत्म करती है, उसमें आतंकवादियों से अधिक नुकसान, हत्याएं और मुश्किलें आम जनता को झेलनी पडती हैं। वही फर्क गिल की मौत के मामले में भी दिखाई दे रहा है।

पंजाब में 1988 से 1995 तक डीजीपी रहे और पद्मश्री से सम्मानित केपीएस गिल की 26 मई को दिल्ली में दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गयी। वह 1996 में एक महिला आइपीएस के यौन उत्पीड़न के लिए सजायाफ्ता भी रह चुके थे। 26 मई को उनकी मौत होने के बाद नेताओं, नौकरशाहों और मीडिया के बड़े हिस्से ने गिल को श्रद्धांजलि देते हुए लिखा कि देश ने अपना एक महत्वपूर्ण अधिकारी खो दिया है, जिसकी दूरद्रष्टा गंवाया है।

एक तरफ देश भर के ज्यादातर मीडिया घराने अलगाववाद के दौर में गिल की सरकारी छवि को राष्ट्रीय व आमजमानस की छवि बनाकर पेश कर रहे हैं, वहीं गिल के जुल्मों की भुक्तभोगी जनता गिल की मौत पर उनको एक अलग तरह से याद कर रही है।

पंजाब और देश के अन्य हिस्सों में रहे सिख समुदाय और दूसरे समुदायों के लोग भी सोशल मीडिया पर गिल की मौत पर ख़ुशी जताकर अंतिम विदाई दे रहे हैं। फेसबुक पर हर कोई अपने तरीके से उन्हें गिल को जलील कर रहा है। कोई उनकी मौत को बर्बरता के साथ झूठी मुठभेड़ों में पंजाब की जवानी को मारने वाला कसाई की मौत कह रहा है तो कोई अपनी कविता, नारों और पोस्ट के जरिए व्यंग्य कस रहा है।

यह पहली बार है किसी अधिकारी की मौत पर जनता इस तरह प्रतिक्रिया दे रही है। बहुत से लोग गालियां दे रहे हैं। यह विरोध इतने बड़े पैमाने पर और निर्विरोध है कि उनके समर्थन में पंजाब में फेसबुक पर कहीं कोई एक पोस्ट या कमेंट नहीं है। छात्र ,बूढ़े ,लेखक ,कलाकार ,पत्रकार, महिलाएं व हर वर्ग के लोग बिना लाग लपेट,संकोच के उनके प्रति अपनी नफरत और गुस्से का इजहार कर रहे हैं।

यही नहीं उनकी मौत से जुड़े सभी कार्यकर्मों के सामाजिक बहिष्कार की भी अपील की गई है। यहां तक कि किसी भी ग्रंथी को उनके अंतिम धार्मिक क्रियाकलापों को न करने और किरतपुर साहिब में उनकी अस्थियों को विसर्जित न करने देने की अपील भी की गई है।

at Sunday, May 28, 2017

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