Kanshiram Death Anniversary : कांशीराम के 10 क्रांतिकारी विचार जिसने शीर्ष पर ला दी भारत की दलित राजनीति
Kanshiram Death Anniversary : कांशीराम मानते थे कि अपने हक के लिए खुद लड़ना होगा, उसके लिए गिड़गिड़ाने से बात नहीं बनेगी
जनज्वार। उत्तर भारत में दलितों को राजनीति के केंद्र में लाने वाले कांशीराम की आज पुण्यतिथि है। इस मौके पर बहुजन समाज पार्टी उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में विशाल रैली कर रही है। बसपा की स्थापना 1984 में कांशीराम ने ही की थी। उनके समर्थक उन्हें प्रेम से मान्यवर कहते थे। कांशीराम एक चिंतक तो थे ही साथ ही एक जमीनी कार्यकर्ता भी थे। उनके ही नेतृत्व बसपा ने बहुत कम समय में उत्तर प्रदेश की राजनीति में बसपा ने अपनी एक अलग छाप छोड़ी। कांशीराम मानते थे कि अपने हक के लिए खुद लड़ना होगा, उसके लिए गिड़गिड़ाने से बात नहीं बनेगी। आइए कांशीराम की पुण्यतिथि पर जानते हैं उनके दस क्रांतिकारी विचार-
1. मान्यवर कांशीराम कहते थे कि 'ऊंची जातियां हमसे पूछती हैं कि हम उन्हें पार्टी में शामिल क्यों नहीं करते, लेकिन मैं उनसे कहता हूं कि आप अन्य सभी दलों का नेतृत्व कर रहे हैं। यदि आप हमारी पार्टी में शामिल होंगे तो आप बदलाव को रोकेंगे। मुझे पार्टी में ऊंची जातियों को लेकर डर लगता है। वे यथास्थिति बनाए रखने की कोशिश करते हैं और हमेशा नेतृत्व संभालने की कोशिश करते हैं। यह सिस्टम को बदलने की प्रक्रिया को रोक देगा।'
2. 'जब तक, जाति है, मैं अपने समुदाय के लाभ के लिए इसका उपयोग करूँगा। यदि आपको कोई समस्या है, तो जाति व्यवस्था को समाप्त करें।'
3. ब्राह्मणवाद को लेकर उन्होंने कहा था, "जहां ब्राह्मणवाद एक सफलता है, कोई अन्य ' वाद' सफल नहीं हो सकता है, हमें मौलिक, संरचनात्मक, सामाजिक परिवर्तनों की आवश्यकता है।"
4. कांशीराम कहते थे, ''बहुत लंबे समय से हम सिस्टम के दरवाजे खटखटा रहे हैं, न्याय मांग रहे हैं और न्याय नहीं पा रहे हैं, इन हथकड़ियों को तोड़ने का समय आ गया है।"
5. कांशीराम के मुताबिक, "हम तब तक नहीं रुकेंगे जब तक हम व्यवस्था के पीड़ितों को एकजुट नहीं करेंगे और हमारे देश में असमानता की भावना को खत्म नहीं करेंगे।"
6. कांशीराम कहते थे, "मैं गांधी को शंकराचार्य और मनु (मनु स्मृति के) की श्रेणी में रखता हूं जो उन्होंने बड़ी चतुराई से 52% ओबीसी को किनारे रखने में कामयाब रहे। जिस समुदाय का राजनीतिक व्यवस्था में प्रतिनिधित्व नहीं है, वह समुदाय मर चुका है।"
7. "हम सामाजिक न्याय नहीं चाहते हैं, हम सामाजिक परिवर्तन चाहते हैं। सामाजिक न्याय सत्ता में मौजूद व्यक्ति पर निर्भर करता है। मान लीजिए, एक समय में, कोई अच्छा नेता सत्ता में आता है और लोग सामाजिक न्याय प्राप्त करते हैं और खुश होते हैं लेकिन जब एक बुरा नेता सत्ता में आता है तो वह फिर से अन्याय में बदल जाता है। इसलिए, हम संपूर्ण सामाजिक परिवर्तन चाहते हैं।"
8. कांशीराम का मानना था कि जब तक हम राजनीति में सफल नहीं होंगे और हमारे हाथों में शक्ति नहीं होगी, तब तक सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन संभव नहीं है। राजनीतिक शक्ति सफलता की कुंजी है।
9. कांशीराम कहते थे, "सत्ता पाने के लिए जन आंदोलन की जरूरत होती है, उस जन आंदोलन को वोटों में परिवर्तित करना, फिर वोटों को सीटों में बदलना, सीटों को (सत्ता में) परिवर्तित करना और अंतिम रूप से (सत्ता में) केंद्र में परिवर्तित करना। यह हमारे लिए मिशन और लक्ष्य है।
10. अंबेडकर की दलितों के लिए पृथक निर्वाचक मंडल की मांग को गांधी ने दबाव की राजनीति से पूरा नहीं होने दिया और पूना पैक्ट के फलस्वरुप आगे चलकर संयुक्त निर्वाचक मंडलों में उनके 'चमचे' खड़े हो गए।