Independence Day 2022: अचानक पूछे गए एक सवाल ने तय की थी आजादी की तारीख 15 अगस्त

Independence Day 2022: भारत अपनी आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है। इस दिन से पहले भारतीय इतिहास में 15 अगस्त की तारीख का कोई ऐतिहासिक महत्व नहीं था। लोगों के मन में अक्सर यह सवाल उठता है कि कोई विशेष दिन ना होने पर भी 15 अगस्त को ही भारत को आजादी क्यों मिली?

Update: 2022-08-15 03:29 GMT

Independence Day 2022: अचानक पूछे गए एक सवाल ने आजादी की तारीख 15 अगस्त तय की थी, वरना इतना लंबा समय और लगता

मोना सिंह की रिपोर्ट

Independence Day 2022: भारत अपनी आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है। इस दिन से पहले भारतीय इतिहास में 15 अगस्त की तारीख का कोई ऐतिहासिक महत्व नहीं था। लोगों के मन में अक्सर यह सवाल उठता है कि कोई विशेष दिन ना होने पर भी 15 अगस्त को ही भारत को आजादी क्यों मिली? और यह तारीख किसने और क्यों तय की? तो यह जान लें कि आजादी की यह तारीख भारतीय नेताओं के द्वारा नहीं चुनी गई थी। यह तारीख एक अंग्रेज अफसर ने चुनी थी और इसके पीछे क्या वजह थी? ये तारीख अचानक पूछे गए एक सवाल और विश्व युद्ध की एक घटना से तय हुई थी। 15 अगस्त 1947 की तारीख के पीछे की दिलचस्प कहानी, जानिए इस रिपोर्ट से..

किस दिन आजादी की औपचारिक घोषणा हुई थी?

3 जून 1947 के दिन भारत के वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने 'माउंटबेटन योजना' की घोषणा की थी। इस योजना के तहत उन्होंने भारत की आजादी और विभाजन दोनों की घोषणा की थी। लेकिन तब तक आजादी की तारीख तय नहीं की गई थी।

क्या थी 'माउंटबेटन योजना'? जिसने तय की भारत की आजादी

विभाजन डोमिनिक लैपियर और लैरी कॉलिंस ने अपनी पुस्तक "फ्रीडम एट मिडनाइट" में लिखा है कि 2 जून को लॉर्ड माउंटबेटन और 7 भारतीय नेताओं, जिनमें कांग्रेस के जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, आचार्य कृपलानी और मुस्लिम लीग से मोहम्मद अली जिन्ना, लियाकत अली खान और सिख प्रतिनिधि बलदेव सिंह शामिल थे, ने एक मीटिंग की थी। इस मीटिंग में लॉर्ड माउंटबेटन ने भारत की आजादी और विभाजन की रूपरेखा तैयार की थी। माउंटबेटन चाहते थे कि, उनके हर फैसले को भारतीय नेता बिना किसी विरोध के स्वीकार करें। माउंटबेटन ने भारतीय नेताओं को अपनी योजना बतानी शुरू की, जिसके तहत पंजाब और बंगाल के हिंदू और मुस्लिम बहुसंख्यक जिलों के सभासदों की अलग बैठक बुलाई जाएगी। अगर कोई धर्म के आधार पर प्रांत का बंटवारा चाहेगा तो कर दिया जाएगा। दो संविधान सभा का निर्माण किया जाएगा। सिंध प्रांत अपना फैसला खुद लेगा। नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर और असम के सिलहट क्षेत्र में जनरल वोटिंग करके निश्चित किया जाएगा कि वहां के लोग भारत के किस हिस्से में रहना चाहेंगे। भारतीय रजवाड़ों को स्वतंत्र रहने का विकल्प नहीं दिया जाएगा।

उन्हें या तो भारत या पाकिस्तान में शामिल होने का विकल्प दिया गया था। हैदराबाद भारत का ही हिस्सा रहेगा। भारत विभाजन की इस योजना में मतभेद होने पर एक सीमा आयोग का गठन किया जाएगा। माउंटबेटन चाहते थे कि सभी नेता बिना विरोध के उनकी इस योजना को स्वीकार कर लें। कांग्रेस और सिख नेताओं ने इस योजना के लिए माउंटबेटन को अपनी सहमति दे दी थी। लेकिन मुस्लिम लीग के मोहम्मद अली जिन्ना इसे अपनी सहमति नहीं दे रहे थे। बाद में लॉर्ड माउंटबेटन के दबाव में आकर उन्होंने इस योजना को स्वीकार कर लिया। क्योंकि लॉर्ड माउंटबेटन नहीं चाहते थे कि भारत की आजादी और विभाजन का श्रेय उनके अलावा किसी और को मिले। वह यह साबित करना चाहते थे कि सब उनका किया धरा है।

महात्मा गांधी आजादी की घोषणा की पहली बैठक में शामिल नहीं हुए थे। उन्होंने लॉर्ड माउंटबेटन के साथ एक दूसरी बैठक की और बिना विरोध के माउंटबेटन योजना को स्वीकार कर लिया। 3 जून को लॉर्ड माउंटबेटन ने भारतीय नेताओं के साथ उनकी योजना को औपचारिक रूप से स्वीकार करने के लिए एक मीटिंग की और भारतीय नेताओं की सहमति से भारत विभाजन की औपचारिक घोषणा कर दी।

अचानक तय हुई थी आजादी की तारीख

डोमिनिक लैपियर और लैरी कॉलिंस अपनी पुस्तक "फ्रीडम एट मिडनाइट" में लिखते हैं कि, 4 जून 1947 को लॉर्ड माउंटबेटन ने भारत की आजादी और विभाजन की रूपरेखा को लेकर एक प्रेस कांफ्रेंस आयोजित की थी। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में वे सभी सवालों के जवाब दे रहे थे। तभी एक सवाल ऐसा आया कि उसका जवाब देने के लिए वे सोचने पर मजबूर हो गए। सवाल था कि,' यदि सभी लोग यह मानते हैं कि सत्ता जल्द से जल्द भारतीय हाथों में सौंपी जानी चाहिए। तो सर आपने इसकी कोई तारीख भी सोची होगी?' इस सवाल को सुनकर लॉर्ड माउंटबेटन खामोश हो गए। क्योंकि उन्होंने आजादी की कोई तारीख अभी तक नहीं सोची थी। हॉल में खामोशी थी, सब बेसब्री से उस तारीख को सुनने का इंतजार कर रहे थे।

लॉर्ड माउंटबेटन भी ठान चुके थे कि भारत की आजादी और विभाजन का श्रेय वह लेकर ही रहेंगे। इसलिए उन्होंने कहा कि वे तारीख तय कर चुके हैं। उनके दिमाग में उनसे जुड़ी हुई महत्वपूर्ण बहुत सी तारीखें आने लगी। तभी उन्हें अपने जीवन की सबसे गौरवशाली जीत की याद आई जब उनके नेतृत्व में जापान की सेना ने आत्मसमर्पण किया था और दूसरे विश्व युद्ध की समाप्ति हुई थी। वह तारीख थी 15 अगस्त 1945 की और अब इसकी दूसरी वर्षगांठ भी नजदीक ही थी। तब माउंटबेटन की आवाज रूंध गई वह भावुक हो उठे और उन्होंने घोषणा कर दी कि भारतीय हाथों में सत्ता 15 अगस्त 1947 को सौंप दी जाएगी।

ब्रिटिश संसद ने भारत की आजादी के लिए दी थी 30 जून 1948 की तारीख

लॉर्ड माउंटबेटन द्वारा बिना किसी मशवरे के आजादी की तारीख की घोषणा ने भारत से लेकर लंदन तक विस्फोट कर दिया था। क्योंकि ब्रिटिश संसद ने 30 जून 1948 की तारीख भारत की आजादी के लिए तय की थी। इस बारे में भारत के पहले गवर्नर जनरल सी राजगोपालाचारी ने कहा था कि, यदि अंग्रेज 30 जून 1948 की तारीख का इंतजार करते तो उनके पास कोई पावर ही ना बचती हिंदुस्तानियों को ट्रांसफर करने के लिए, इसलिए भी लॉर्ड माउंटबेटन ने अगस्त 1947 को ही भारत की आजादी का फैसला ले लिया था।

आधी रात को ही आजादी क्यों मिली?

भारतीय ज्योतिषी 15 अगस्त 1947 की तारीख को भारत विभाजन के लिए अशुभ मान रहे थे। भारतीय परंपरा के अनुसार सूर्योदय के बाद दूसरा दिन शुरू हुआ माना जाता है। जबकि अंग्रेजी सभ्यता में रात 12:00 बजे के बाद ही तारीख बदल जाती है। इसलिए समझौते के तौर पर 14-15 अगस्त की आधी रात को ही भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ और दो आजाद देश अस्तित्व में आए।

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