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जनज्वार विशेष

Bihar Liquor Ban Act: 2 लाख से ज्यादा मुकदमें, 3 लाख को जेल फिर भी बिहार में शराबबंदी फेल

Janjwar Desk
22 March 2022 5:23 AM GMT
Bihar liquor ban: शराबबंदी के बावजूद बिहार में जहरीली शराब से लगातार मौतें हो रही हैं
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Bihar liquor ban: शराबबंदी के बावजूद बिहार में जहरीली शराब से लगातार मौतें हो रही हैं

Bihar Liquor Ban Act: बिहार में शराबबंदी के बाद जहरीली शराब अब तक सैकड़ों लोगों की जिंदगियां निगल चुकी हैं,तो हजारों परिवार उजड़ गए। होली के उमंग में नशे का शौक ने तकरीबन तीन दर्जन लोगों की जान ले ली।

जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट

Bihar Liquor Ban Act: बिहार में शराबबंदी के बाद जहरीली शराब अब तक सैकड़ों लोगों की जिंदगियां निगल चुकी हैं,तो हजारों परिवार उजड़ गए। होली के उमंग में नशे का शौक ने तकरीबन तीन दर्जन लोगों की जान ले ली। पिछले तकरीबन छह वर्षों में ऐसी न जाने कितनी घटनाएं हो चुकी हैैं। हर हादसों के बाद पूर्ण शराबबंदी की परिकल्पना को धरातल पर उतारने की जिद्द लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कहते हैं कि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कठोर कदम उठाए जाएंगे। उधर हाल यह है कि पिछले छह वर्षों में शराब के मामले से जुड़े 2.03 लाख मुकदमे दर्ज हो चुके हैं तो तीन लाख से अधिक लोगों को कानून ने जेल के सलाखों के पीछे भेज दिया। इसके बाद भी आंकड़े बता रहे हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का शराबबंदी फेल है।

एक रिपोर्ट के मुताबिक, अप्रैल 2016 से दिसंबर 2021 तक बिहार में शराबबंदी कानून के तहत 2.03 लाख मामले दर्ज हुए। 1.08 लाख मामलों का ट्रायल शुरू हो गया है। 94 हजार 639 मामलों का ट्रायल शुरू होना अब भी बाकी है। रिपोर्ट के मुताबिक, दिसंबर तक 1 हजार 636 मामलों का ट्रायल पूरा हो चुका है। इनमें से 1 हजार 19 मामलों में आरोपियों को सजा मिल चुकी है। जबकि, 610 मामलों में आरोपी बरी हो चुके हैं। इनमें सर्वाधिक शिकार होनेवाले समाज के गरीब तबके के लोग हैं। जबकि अन्य लोगों में से अधिकांश अपने वर्चस्व के बल पर कानूनी कार्रवाई से बच जाते हैं।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अर्थात सुशासन बाबू का शराबबंदी को लेकर बेशक उनके संकल्पों से इंकार नहीं किया जा सकता। इसकी सच्चाई जाननी हो तो तकरीबन पांच वर्ष पूर्व के एक लोक संवाद पर नजर डालनी होगी। यह तिथि थी 14 नवंबर 2016 की। उस समय महागठबंधन सरकार के चेहरा थे नीतीश कुमार। शराबबंदी के छह माह पूर्ण होने पर पटना में एक लोक संवाद का आयोजन किया गया था। जिसमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के निमंत्रण पर राज्यभर से विभिन्न क्षेत्रों के पांच दर्जन प्रतिनिधि उपस्थित हुए थे। मैंने भी बतौर पत्रकार इसमें हिस्सा लिया। इसमें शराबबंदी को लेकर सख्त कानून पर कई प्रतिनिधियों ने एतराज जताते हुए स्वास्थ्य कारणों समेत विभिन्न जरूरतों के लिहाज से परमिट जारी करने की वकालत की।

हालांकि इन सुझावों को मुख्यमंत्री नीतीश कंुमार ने खारिज करते हुए अपने तकरीबन एक घंटे के संबोधन में विस्तार से शराबबंदी को लेकर अपनी मंशा जाहिर की। उन्होंने पटना में अपने छात्र जीवन के दौरान के कई संदर्भों को सुनाते हुए पूर्ण शराबबंदी की आवश्यकता जताई। इन्हीं संदर्भों में एक बात उन्होेंने बताई कि मैं जिस मोहल्ले में रहता था। उसी में म्यूनिशिपल्टी के कर्मचारियों का परिवार भी रहता था। बकौल मुख्यमंत्री, मैने देखा कि हर माह के अंतिम सप्ताह में इन कई परिवारों में झगड़े की आवाज सुनाई देती है। हमने जब इसकी तहकीकात किया तो पाया कि ये आदतन शराबी लोग हैं। जिनकी कमाई माह का अंत आने के पहले ही खत्म हो जाती है। ऐसे में परिवार के सदस्यों के साथ शराब खरीदने के लिए झगड़ते रहते हैं। जिसका सर्वाधिक दंश महिलाएं झेलती हैं। ऐसे में हमने तय किया कि भविष्य में कभी भी अवसर मिला तो पूर्ण शराबबंदी करूंगा।

कानूनन सुशासन बाबू की इच्छा तो पूरी हो गई,पर शराबबंदी ने हजारों परिवारों को उजाड़ दिया। यह मौत का खेल लगातार जारी है। इसके बाद भी सरकार के तरफ से इन मौतों के लिए प्रशासनिक अमलों को जिम्मेदार ठहराने के बजाए इन गरीबों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है।जिनकी नासमझी उनके मौत का कारण बन रही है। वरिष्ठ पत्रकार अनुपम कुमार कहते हैं कि शराबबंदी के बाद एक पूरा रैकेट सक्रिय हो गया है। जिसके द्वारा राज्यभर में अवैध रूप से शराब की तस्करी की जाती है। जिसके बदले में पुलिस कर्मियों से लेकर उनके अफसरों तक की मुठठी गर्म करनी पड़ती है। काले धन की कमाई के इस खेल में नौकरशाह से लेकर बड़े सफेदपोश भी शामिल हैं। जिनके उंची पहुंच के चलते कानून का डंडा इन पर नहीं चल पाता है। लिहाजा जिस गरीबों को न्याय दिलाने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शराबबंदी के जीद पर अड़े हैं,उन्हीं की हर दिन जान जा रही है और परिवार उजड़ रहे हैं। ऐसे लाखों लोग शराब पीने के जुर्म में बिहार के जेलों में बंद पड़े हैं। जिनकी जमानत तक के लिए पैरोकार उपलब्ध नहीं है। जिसको लेकर उच्च न्यायालय तक ने अपनी नाराजगी जता चुकी है।

भाकपा-माले के बिहार के राज्य सचिव कुणाल कहते हैं कि होली के दौरान राज्य के कई जिलों में जहरीली शराब के कारण बड़ी संख्या में हुई मौत ने यह साबित कर दिया है कि सरकार के तमाम दावों के विपरीत जहरीली शराब का कहर लगातार बरस रहा है। अब तो सरकार समाज सुधार का ढोंग बंद करके इन घटनाओं के असली कारकों पर प्रहार करे। शराब माफियाओं पर कार्रवाई करें। हमने बारंबार कहा है कि जहरीली शराब का तंत्र राजनेता-प्रशासन-शराब माफिया गठजोड़ के तहत फल-फूल रहा है। जबतक इसपर कार्रवाई नहीं की जाती, तब तक ये घटनाएं रूकने वाली नहीं है। लेकिन नीतीश कुमार ने लगातार इसकी अनदेखी की है। इसकी जगह वे तरह-तरह का महज ढोंग करते रहे हैं। नतीजा सबके सामने है।

हम एक बार फिर से आग्रह करते हैं कि यदि सचमुच बिहार को जहरीली शराब के कहर से बचाना है, तो मुख्यमंत्री अविलंब उच्चस्तरीय बैठक बुलाएं, सामाजिक-सांस्कृतिक संगठनों को शामिल करें और सबसे बढ़कर जहरीली शराब के बढ़ते तंत्र की असलीयत को स्वीकार करें और तदनुरूप कार्रवाई करें। कहा कि जो भी घायल हैं, सरकार उनके उचित इलाज की व्यवस्था करे और मृतक परिजन को 20 लाख रु. का मुआवजा दे।

प्रदेश सचिव कहते हैं, यह कैसा न्याय है। शराबबंदी के बाद से इसकी सर्वाधिक मार गरीबों पर पड़ी है। इसके साथ शराबबंदी के बाद उससे अप्रत्यक्ष रूप से चल रही छोटी दुकानदारी उजड़ गई। इनके रोजगार के लिए सरकार के पास कोई फार्मुला नहीं रहा। राज्य के लिए बेरोजगारी बड़ा मुददा है। इसका हल किए बिना ऐसे किसी भी तरह के कानून लोगों को न्याय नहीं दिला सकते।

गुजरात मॉडल अपनाने की उठती रही है मांग

बिहार सरकार के प्रमुख सहयोगी दल भाजपा के नेता शराबबंदी के बिहार मॉडल को खारिज करते हुए गुजरात मॉडल की वकालत करते रहे हैं। कुछ माह पूर्व भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने शराबबंदी कानून की समीक्षा की बात कह कर बहस छेड़ दी थी। भाजपा नेता शराबबंदी के बिहार मॉडल पर सवाल खड़ा करते रहे हैं। गुजरात में भी शराब बंदी लागू है। वहां, परमिट के आधार पर लोगों को शराब दिया जाता है। 6.75 करोड की आबादी में गुजरात में मेडिकल आधार 31,000 लोगों को लिकर परमिट दिया गया है। जबकि विजिटर और टूरिस्ट परमिट जैसे टेंपरेरी परमिट को मिलाकर कुल 66,000 लोगों को परमिट दिया गया है।

स्वास्थ्य कारण बताकर सुबह में शराब पीने का परमिट मिल सकता है, जिसे हेल्थ परमिट कहते हैं। गुजरात राज्य में शराब की बिक्री करने वाली सिर्फ 60 दुकानें हैं। शराबबंदी से होने वाले टैक्स की भरपाई के लिए केंद्र सरकार हर साल गुजरात को 1200 सौ करोड़ की राशि देती है। गुजरातियों को कानूनी रूप से शराब पीने के लिए राज्य के प्रोहिबिशन विभाग द्वारा परमिट दिया जाता है। इंडिया परमिट हासिल करने के लिए शारीरिक या मानसिक तौर पर बीमारी का प्रमाण पत्र दिखाना जरूरी है जो किसी एमडी डॉक्टर के द्वारा जारी किया गया हो।

परमिट हासिल करने के लिए आवेदन पत्र के साथ डॉक्टर से प्राप्त प्रमाण पत्र और आयकर दस्तावेज भी दाखिल करने होते हैं। रोज कितनी मात्रा में शराब की जरूरत है या सिविल अस्पताल का डॉक्टर ही तय करता है और परमिट धारी राज्य सरकार की प्रमाणित लिकर शॉप से शराब की खरीदारी कर सकते हैं। गुजरात घूमने वाले बाहर के लोग गुजरात में शराब पी सकते हैं लेकिन गुजरातियों को छूट नहीं है। कोई बिहार का व्यक्ति शराब खरीदने जाता है तो उसे शराब नहीं दिया जाता इसलिए कि बिहार में शराबबंदी है। ऐसे में शराबबंदी के बिहार मॉडल और गुजरात मॉडल को लेकर बहस शुरू हो गई है। भाजपा नेता जहां गुजरात मॉडल की वकालत कर रहे हैं, वहीं जदयू बिहार मॉडल के पक्ष में खड़ी दिख रही है।

शराबबंदी कम महिलाओं के वोट वैंक का सर्वाधिक खेल

वर्षं 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने शराबबंदी करने का वादा किया था। उनके इस वादे का असर ये हुआ था कि महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत 60 के करीब हो गया था। कई इलाकों में तो 70 फीसदी से ज्यादा महिलाओं ने वोट दिया था। अर्थात महिलाओं के लिए नीतीश कुमार पहली पसंद बन गए।सरकार बनने के बाद अप्रैल 2016 में बिहार में शराबंबदी का कानून आया।

बिहार में शराब की खपत महाराष्ट्र से ज्यादा

बिहार में शराबबंदी लागू होने के बाद भी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक यहां शराब की खपत महाराष्ट्र से भी ज्यादा है, जबकि महाराष्ट्र में शराबबंदी नहीं है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि ड्राई स्टेट होने के बावजूद बिहार में महाराष्ट्र से ज्यादा शराब की खपत होती है। आंकड़ों के मुताबिक, बिहार में 15.5 पुरूष पुरुष शराब पीते हैं। जबकि, महाराष्ट्र में शराब पीने वाले पुरुषों की तादात 13.9 प्रतिशत है। हालांकि, 2015-16 की तुलना में बिहार में शराब पीने वाले पुरुषों में काफी कमी आई है। 2015-16 के सर्वे के मुताबिक, बिहार में करीब 28 फीसदी पुरुष शराब पीते थे। आंकड़े ये भी बताते हैं बिहार के ग्रामीण और शहरी इलाकों में महाराष्ट्र की तुलना में शराब पीने वालों की संख्या ज्यादा है। बिहार के ग्रामीण इलाकों में 15.8 प्रतिशत और शहर में 14 प्रतिशत पुरुष शराब पीते हैं। वहीं, महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में 14.7 प्रतिशत और शहरी इलाकों में 13 प्रतिशत पुरुष शराब का सेवन करते हैं।

शराबबंदी के बाद बढ़े हैं अवैध निर्माण

पूर्ण शराबबंदी वाला राज्य बिहार देश का पांचवा प्रदेश है। नीतीश कुमार ने वर्ष 2015 के विधान सभा चुनाव में शराबबंदी का वादा किया था। सरकार बनने के बाद अप्रैल 2016 में बिहार में शराबंबदी का कानून लागू कर दिया गया। जिसका नतीजा रहा कि चोरी छूपे शराब निर्माण का धंधा बढ़ गया। जिसका परिणाम जहरीली शराब के रूप में आए दिन सामने आ रहे हैं। इस बार होली के आसपास तीन दिनों में तकरीबन तीन दर्जन लोगों की जहरीली शराब पीने से मौत हो गई। वर्ष 2021 की मात्र बात करें तो सरकारी आंकड़ों के मुताबिक जहरीली शराब ने 66 लोगों की जान ले ली। हालांकि यह संख्या वास्तव में काफी अधिक रही है। जहरीली शराब के एक-दो नहीं पूरे 13 मामले सामने आए।

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