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विमर्श

Surrogacy सुविधाभोगी वर्ग के लिए Figure बचाने की एक विकृत पूँजीवादी रवायत बनती जा रही है

Janjwar Desk
27 Jan 2022 5:42 AM GMT
Surrogacy सुविधाभोगी वर्ग के लिए Figure बचाने की एक विकृत पूँजीवादी रवायत बनती जा रहीं हैं
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Surrogacy सुविधाभोगी वर्ग के लिए Figure बचाने की एक विकृत पूँजीवादी रवायत बनती जा रहीं हैं

What is Surrogacy? निःसंतान दम्पत्तियों के संतान प्राप्ति की एक चिकित्सीय सुविधा 'सरोगेसी' वर्तमान समय मे सुविधाभोगी अभिजात्यवर्गीय संवेदनहीन शूरमाओं के लिए एक शौकिया मसला और फिगर बचाने की एक विकृत पूँजीवादी रवायत बनती जा रहीं हैं।

लगातार बढ़ते सरोगेसी के मामलों पर दयानंद की तल्ख टिप्पणी

What is Surrogacy? निःसंतान दम्पत्तियों के संतान प्राप्ति की एक चिकित्सीय सुविधा 'सरोगेसी' वर्तमान समय मे सुविधाभोगी अभिजात्यवर्गीय संवेदनहीन शूरमाओं के लिए एक शौकिया मसला और फिगर बचाने की एक विकृत पूँजीवादी रवायत बनती जा रहीं हैं। सामाजिक सांस्कृतिक मुद्दों पर अपनीं बेबाक राय रखनें वाली प्रख्यात लेखिका और विचारक तस्लीमा नसरीन ने ट्विटर हैंडल पर इस अभिजात्यवर्गीय अमानवीयता पर निशाना साधा तो कुछ सुविधाभोगी डपोरशंखी बिलबिला उठें। समझ में नहीं आता कि इतने संवेदनशील मुद्दें को व्यक्तिगत स्वतंत्रता और वयक्तिगत पसंद की बिषय बस्तु के रूप में प्रस्तुत कर एक बेहद घनघोर पूँजीवादी विकृत मानसिकता और दिखावे वाली इस झूठी प्रगतिशीलता को डिफेंड करनें की बेशर्म अहंकार कहाँ से लातें हैं ये लोग।

लेखिका तस्लीमा नसरीन ने लिखा, "उन माताओं को कैसा महसूस होता है, जब वे सरोगेसी के माध्यम से अपने रेडीमेड बच्चे प्राप्त करती हैं? क्या उनमें भी बच्चों के लिए वैसी ही भावनाएँ होती हैं जैसी कि बच्चों को जन्म देने वाली माँ के भीतर होती हैं?" वाक़ई ये कितनी दुखद बात हैं कि जो खुद बच्चें को जन्म देनें में सक्षम हैं वो भी इस तरह की विकृत मानसिकता का प्रदर्शन करनें में जुटे हैं। अभी हाल में ही वॉलीवुड के एक बड़े सेलिब्रेटिज ने सेरोगेसी तकनीक द्वारा बच्चें को प्राप्त करनें की सूचना सोशल मीडिया के माध्यम से दिया।

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार चर्चित सेलिब्रेटिज ने सेरोगेसी के द्वारा बच्चें को इस लिए प्राप्त करना उचित समझा क्योंकि महिला की बिजी शेड्यूल और 39 वर्ष की उम्र में माँ बनना उनकें लिए परेशानियों का सबब था। मीडिया में इसके पीछे की एक अन्य वजह भी बताई जा रही हैं। रिपोर्ट में प्रियंका चोपड़ा के हवाले से बताया जा रहा है कि, "उनके पति नीक एक बहुत बड़े स्टार हैं। और वर्तमान में उनका कैरियर बहुत हाई पीक पर चल रहा है। इस बीच वह एक बच्चे पर समय नहीं दे पाएंगे, और प्रियंका चोपड़ा ने अपने माँ नही बनने का यही एक बहुत बड़ा कारण बताया। निक जोनास हॉलीवुड के बहुत बड़े पॉप स्टार सिंगर और एक्टर है वह काफी व्यस्त रहते हैं। इसी वजह से प्रियंका चोपड़ा का वह ज्यादा समय नहीं दे पाते हैं।" अगर मीडिया रिपोर्ट सही हैं तो वाक़ई ये आले दर्जे की अमानवीयता ही कहा जाएगा।

भारतीय सेरोगेसी कानून के अनुसार सेरोगेसी तकनीक केवल उन्हीं दम्पत्तियों के लिए होगी जिनके शरीर मे फर्टिलाइजेशन कि क्रिया नहीं होती हैं या जो किसी अन्य कारण से निःसंतान हैं। सेरोगेसी (विनियमन) कानून 2016 के अनुसार जो भी दंपति सरोगेसी के विकल्प को चुनना चाहते हैं उन्हें 90 दिनों के भीतर इनफर्टिलिटी सर्टिफिकेट देना होगा। सेरोगेसी (विनियमन) विधेयक 2016 के अनुसार एकल जनक, समलैंगिक जोड़ों, लिविंग कपल्स (लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले युगल), NRI को यह सुविधा नही मिलेंगी। इस विधेयक के अनुसार सेरोगेसी का लाभ केवल उन भारतीय दम्पत्तियों को मिलेगा जिनके विवाह को न्यूनतम 5 वर्ष हो चुकें हों लेकिन उसके कोई जैविक या दत्तक सन्तान न हो तथा चिकित्सीय रूप में गर्भधारण में सक्षम नहीं हो।

जिस वॉलीवुड सेलिब्रेटी ने हाल में ही सेरोगेट बेबी प्राप्ति की सूचना दी हैं उनकी शादी के भी 5 वर्ष पुरें नहीं हुए हैं और मीडिया रिपोर्ट के अनुसार चिकित्सीय रूप से गर्भधारण में असक्षम होनें की बात भी नहीं हैं। ऐसी स्थिति में यह सेरोगेसी कानून के अनुसार भी अपराध हैं। कुछ लोग बता रहें हैं उनके पास विदेशी नागरिकता हैं। हलांकि मेरी जानकारी में ये दावा भी गलत हैं। भारतीय कानून के दायरे से क्या उक्त सेलिब्रेटिज बाहर हैं ? अथवा किस देश की विधान के दायरें उन्हें इसकी इजाज़त प्रदान किया हैं ये यक्ष प्रश्न हैं ? अगर वाक़ई उन्हें किसी अन्य देश की कानून ऐसा करनें की इजाजत प्रदान करतें है तो भी अंतराष्ट्रीय मानवाधिकार समूह को ऐसे पूँजीवादी अमानवीयता को गम्भीरता से लेना चाहिए।

वस्तुतः सरोगेसी एक चिकित्सीय सुविधा है जिसमें एक महिला प्राप्त भ्रूण को अपनें गर्भाशय में अंतः स्थापित कर उसके भ्रूणीय बृद्धि और विकास को पूरा करती हैं और जन्म के बाद बच्चें को सम्बंधित दम्पति को सौप देतें हैं। समान्य शब्दों में सेरोगेसी का मतलब 'किराये का कोख' होता हैं। इसमें एक महिला और दम्पति के बीच एग्रीमेंट होता है, जिसके अनुसार बच्चें की चाह रखनें वालें दम्पति सेरोगेट मदर के गर्भ में भ्रूण की वृद्धि और परिवर्द्धन के लिए चिकित्सीय खर्च एवं अन्य खर्च को उठाता हैं और बच्चें के जन्म के बाद एक तय रकम गर्भधारण करनें वाली महिला को देकर बच्चें को प्राप्त कर लेता हैं।

सरोगेसी दो तरह की होती है एक ट्रेडिशनल सरोगेसी जिसमें होने वाले पिता या डोनर का स्पर्म सरोगेट मदर के एग्स से मैच कराया जाता है। इस सरोगेसी में सरोगेट मदर ही बॉयोलॉजिकल मदर (जैविक मां) होती है। और दूसरी जेस्टेशनल सरोगेसी जिसमें सरोगेट मदर का बच्चे से संबंध जेनेटिकली नहीं होता है। यानी प्रेग्नेंसी में सरोगेट मदर के एग का इस्तेमाल नहीं होता है। इसमें सरोगेट मदर बच्चे की बायोलॉजिकल मां नहीं होती है। वो सिर्फ बच्चे को जन्म देती है. इसमें होने वाले पिता के स्पर्म और माता के एग्स का मेल या डोनर के स्पर्म और एग्स का मेल टेस्ट ट्यूब कराने के बाद इसे सरोगेट मदर के यूट्रस में प्रत्यारोपित किया जाता है।

तस्लीमा ने सही ही लिखा, "सरोगेसी गरीब महिलाओं के कारण संभव है। अमीर अपने फायदे के लिए समाज में गरीबी हमेशा बनाए रखना चाहते हैं। अगर आपको बच्चे पालने बेहद जरूरी हैं तो किसी बेघर बच्चे को गोद लें। बच्चों को आपके गुण विरासत में मिलने चाहिए- यह एक स्वार्थी और संकीर्णतावादी अहंकार है।"

इतना ही नहीं, तस्लीमा लिखती है, "मैं तब तक सरोगेसी स्वीकार नहीं करूँगी, जब तक कि अमीर महिलाएँ सरोगेट मॉम नहीं बनतीं। मैं तब तक बुर्का स्वीकार नहीं करूँगी, जब तक पुरुष इसे प्यार से नहीं पहनेंगे। मैं तब तक वेश्यावृत्ति स्वीकार नहीं करूँगी, जब तक कि पुरुष वेश्यावृत्ति में नहीं आ उतर जाते और वे महिला ग्राहकों का इंतजार नहीं करते। तब तक मैं सरोगेसी, बुर्का, वेश्यावृत्ति को महिलाओं और गरीबों का सिर्फ शोषण ही मानूँगी।" तस्लीमा ने पूंजीपतियों के दिखावटी प्रगतिशीलता को आड़े हाथ लेतें हुए बिल्कुल सही निशाना साधा हैं।

विदित हो कि, सेरोगेसी के लिए भारत को एक विशाल हब में तब्दील होता देख कर ही मानवाधिकार संगठनों ने इस पर चिंता व्यक्त की थी। 2015 में सुप्रीमकोर्ट ने भी इस पर चिंता व्यक्त करतें हुए केंद्र सरकार को व्यबसायिक सेरोगेसी नियंत्रित करने के लिए विधि बनाने को कहा था। इसके बाद ही 19 दिसम्बर 2016 को लोकसभा में सेरोगेसी विनियमन विधेयक 2016 को पारित किया गया था। जिसके द्वारा व्यबसायिक सेरोगेसी को प्रतिबंधित किया गया। हलांकि इस विधेयक के द्वारा सेरोगेट माता के लिए जो मापदंड निर्धारित किया गया था उसके अनुसार, सेरोगेट मदर विवाहित होने चाहिए, उसकी उम्र 25 से 35 वर्ष के बीच होनी चाहिए, वह एक जैविक सन्तान को जन्म दे चुकी हो और और बच्चे के इच्छुक दम्पति के निकट सम्बन्धी होने चाहिए। हालांकि की सेरोगेसी विनियमन अधिनियम 2020 के द्वारा 'निकट सम्बन्धी' की बाध्यता को खत्म कर दिया गया।

सेरोगेसी कानून में स्पष्ट रूप से उल्लेख हैं कि फैशन और फिगर के लिए सेरोगेसी उपलब्ध नहीं होगा। लेकिन एक विशेष सेलिब्रेटिज कल्चर में यह जिस तरह से फैलता जा रहा हैं उसे देखतें हुए लग नही रहा कि वर्तमान कानून अपनें उद्देश्य में सफल हैं।

शाहरुख खान, करन जौहर, सीरियल क्वीन एकता कपूर, तुषार कपूर, श्रेयस लतपड़े, सनी लियोनी, प्रीति जिंटा, प्रियंका चोपड़ा जैसे नाम यह बताने के लिए काफ़ी है कि अपनें दैहिक आकर्षण, पब्लिसिटी और ग्लैमरस लुक के बूते कैरियर की सीढ़ियां चढ़ने लिए प्लास्टिक सर्जरियों के सहारे फ़िगर बनवाने वाले इस सेलिब्रेटियों के बीच सेरोगेसी का प्रचलन बढ़ना कहीं न कहीं सेरोगेसी कानून को धता बताने जैसा हैं।

सेरोगेसी को व्यक्तिगत पसंद का बिषय बस्तु बताने वाले असंवेदनशील अभिजात्यवर्गीय जमात मानवाधिकार के इसस गम्भीर मुद्दें पर प्रश्न उठाने वाले को पितृसत्ता के पोषक बताने की बचकानी तर्क दे रहें हैं। लेकिन इस मसले का पितृसत्ता से कोई लेना देना नही हैं, बल्कि यह मानवाधिकार का मुद्दा है। इस संवेदनशील मामले को पितृसत्तात्मक विचारधारा कह कर खारिज करना एक गम्भीर आपराधिक मामले का सरलीकरण हैं। सरोगेसी में भी इस्तेमाल नारी का ही होता है। एक धनाढ्य सबल नारी एक गरीब दुर्बल नारी का इस्तेमाल करती है।

कई दफ़े तो ऐसा मसला भी होता हैं कि जन्म देने वाली माँ एक भावनात्मक लगाव के कारण अपनें गर्भ में पलनें वाले बच्चे से विमुख होना ही नही चाहती और बच्चे को सम्बंधित दम्पप्ति को सौंपना ही नही चाहतीं लेकिन धनपतियों के धनबल के आगे इनकी बिल्कुल नही चलतीं और सिक्कों की खनक के आगे एक माँ का करुण चीत्कार दम तोड़ देती हैं।

होना तो यह चाहिए कि एक चिकित्सीय सुविधा के रूप में संतान प्राप्ति के इस सूत्र और मानवाधिकार से जुड़े इस मसले पर गम्भीरता और संजीदगी से विचार करना चाहिए और इसके दुरुपयोग पर सख्ती से पाबंदी लगाना चाहिए। लेकिन यहां झूठी प्रगतिशीलता और पूंजीवादी व्यक्तिगत चुनाव की स्वतंत्रता के नाम पर मानवाधिकार के गम्भीर मसले को हल्के में ले रहें है और मानवाधिकार हनन किया जा रहा हैं। ये मसला न केवल जन्म देने वाली माँ बल्कि जन्म लेने वाले बच्चें के मानवाधिकार का भी मसला है।

सोचिए, कल को कोई सेरोगेट बच्चा बड़ा होकर जब यह पूछेगा की कौन हैं मुझें गर्भ में 9 माह अपनें खून से सींच कर और अथाह प्रसव पीड़ा को झेलकर जन्म देने वाली माँ ? आख़िर उनके दोस्तों के समान उसकी भी असली और एक कम्प्लीट फैमली क्यों नहीं हैं ? तो क्या जबाब देंगें ? किसी व्यक्ति को उसे जन्म देनें वाली मां का नाम जानने का हक नही क्या ? क्या उसके मानवाधिकार को अपनी सुविधाभोगी व्यक्तिगत च्वाइस की पूँजीवादी बुलडोजर से कुचल देना चाहते हैं आप ?

मेरे मतानुसार सेरोगेसी कानून में सख्त संसोधन की जरूरत है। नियम बनाया जाना चाहिए जिसके तहत सेरोगेट मदर (चाहे वो एग डोनर भी हो या केवल भ्रूण की वृद्धि के लिए कोख दात्री) के नाम को सरकार के किसी विश्वसनीय एजेंसी के पास संरक्षित रखा जाए और बच्चें के बड़ा होने पर या एक तय आयु वर्ष के बाद यदि बच्चें अपनें मां का नाम जानना चाहे तो उसे कानून की मदद से ये जानकारी मुहैया कराई जाए, ताकि वो बच्चा भी जन्म देने वाली मां के छाती से लगकर उस असली वात्सल्य का आनंद ले सकें, जन्म देने वाली उस मां की गरीबी को दूर करने का प्रयत्न कर सकें, इच्छा होने पर उसका सानिध्य पा सकें।

अगर बार ये आधुनिकता के रंग में रचें-बसे ये सुविधाभोगी दम्पति तलाक लेतें हैं तो बच्चे के रहनें का एक विकल्प उसे जन्म देने वाली मां भी हों। इसके अलावा सामान्य स्थिति में भी यदि बच्चें उसे जन्म देने वाली माँ के पास रहना चाहे तो उसे यह अधिकार हों। कुछ लोग तो कहते हैं बच्चें अग्रीमेंट के तहत सम्बंधित दम्पति के पास होते हैं, ऐसे में जन्म देने वाली मां का अधिकार नही बनता हैं। क्या वाकई जन्म लेने वाला बच्चा कोई बस्तु अथवा पालतू जानवर हैं जिसके बारे में फैसला आप अपनें तिजोरी के रकम से कर सकें अथवा बच्चा क्या डाउनलोड किया गया मेटेरियल हैं ? एक प्रगतिशील सभ्य समाज किसी बच्चें के भविष्य को उसके जन्म के पहले ही कैसे खरीद बेच सकता हैं ? क्या हम दास व्यापार वाले मध्ययुगीन सामंती समाज का सृजन करना चाहते हैं?

(दयानंद की यह टिप्पणी पहले उनकी FB वॉल पर प्रकाशित)

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