Bihar News : बिहार के Tilakmanjhi Bhagalpur University में BPL कोटे के छात्रों का एडमिशन बंद, छात्र आंदोलन की राह पर

Bihar News : साल 2018 से ऑनलाइन प्रक्रिया के माध्यम से केन्द्रीकृत व्यवस्था के तहत विश्वविद्यालय द्वारा नामांकन लिए जाने के पश्चात निर्धारित सीट के अतिरिक्त 2 सीट पर बीपीएल परिवार के छात्रों का नामांकन लेना अकारण बंद कर दिया गया....

Update: 2021-09-22 08:12 GMT

(भागलपुर स्थित तिलकामांझी विश्वविद्यालय में बीपीएल छात्रों के लिए रास्ते बंद)

Bihar News जनज्वार। बिहार (Bihar) के तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय (Tilakmanjhi Bhagalpur University) में बीपीएल (Below To Powerty Line) कोटे के छात्रों के लिए एडमिशन (Admission) बंद कर लिया गया है। इसको देखते हुए छात्र अब आंदोलन की राह पर हैं। विश्वविद्यालय में साल 2010 से सभी स्नातकोत्तर विभागों, महाविद्यालयों में स्नातक (Graduate) व स्नातकोत्तर (Post Graduate) के सभी विषयों व व्यवसायिक कोर्सों (Professional Courses) में निर्धारित सीट के अतिरिक्त 2 नामांकन बीपीएल परिवार के छात्रों का शुरू हुआ था और साल 2017 तक बीपीएल (BPL) परिवार के छात्रों का नामांकन होता रहा।

इसके बाद साल 2018 से ऑनलाइन प्रक्रिया के माध्यम से केन्द्रीकृत व्यवस्था के तहत विश्वविद्यालय (स्नातक में एक बार ओएफएसएस के माध्यम पटना से) द्वारा नामांकन लिए जाने के पश्चात निर्धारित सीट के अतिरिक्त 2 सीट पर बीपीएल परिवार के छात्रों का नामांकन लेना अकारण बंद कर दिया गया। उस समय इस सवाल पर विश्वविद्यालय प्रशासन का चुप्पी बना रहा।

दूसरी ओर स्नातकोत्तर के लिए ऑनलाइन नामांकन (Online Enrollment) विश्वविद्यालय प्रशासन ने 2018 में खुद संचालित किया लेकिन बीपीएल कोटे से नामांकन नहीं लिया गया। खास बात यह है कि जो पत्र विश्वविद्यालय प्रशासन Memorial No. CCDC/489-572, 17.09.2010 को बीपीएल कोटे में नामांकन को लेकर जारी किया था। आज तक इसे खत्म करने के लिए कोई भी पत्र विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से जारी नहीं हुआ है।

जब इस मामले को लेकर तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर के अतिथि शिक्षक संघ के अध्यक्ष डॉ. आनंद आजाद (Dr. Anand Azad) ने विश्वविद्यालय प्रशासन के सीसीडीसी व डीएसडब्ल्यू से बात की तो सीसीडीसी ने कहा कि अब बीपीएल कोटे का नामांकन बंद हो गया है, 2017 में नया रेगुलेशन आने के पश्चात स्पोर्ट्स तथा वार्ड आदि के लिए कोटा निर्धारित किया गया, पर बीपीएल के लिए कुछ नहीं किया गया।

वहीं, डीएसडब्ल्यू (Dean Of Student Walfare) ने कहा कि बीच में दो-तीन साल नामांकन बंद रहा तो आप लोग कुछ नहीं बोले, अब बोल रहे हैं,अब कैसे होगा? मतलब, एक तरह से कहें तो विश्वविद्यालय प्रशासन अपने ही द्वारा निर्गत किये गये पत्र के आलोक में अपनी जवाबदेही से पीछे भाग रहे हैं।

अतिथि शिक्षक संघ के अध्यक्ष डॉ. आनन्द आजाद कहते हैं कि 2017 में स्पोर्ट्स तथा वार्ड के लिए कोई पहली बार कोटा का शुरुआत नहीं किया गया। विश्वविद्यालय में यह पूर्व से ही चला आ रहा था। सीसीडीसी महोदय को विश्वविद्यालय द्वारा 2005 तथा 2002 मे निर्गत पत्र का भी अवलोकन करना चाहिए। हां! रेगुलेशन में समय-समय पर कुछ संशोधन हो सकता है, जैसे 2019 के बाद सभी शैक्षणिक संस्थानों समेत सरकारी नौकरियों में10 फिसदी आरक्षण दिया जा रहा है।

डॉ. आनंद कहते हैं, ''उपरोक्त जितने भी तरह के आरक्षण की बात की जा रही है वो निर्धारित सीट के अंदर की बात है। पर यहां बीपीएल कोटे की बात की जा रही है। वह निर्धारित सीट के अतिरिक्त 2 सीट की बात है, उसे निर्धारित सीट के भीतर धक्का-मुक्की करने की कोई जरूरत नहीं है। वर्तमान समय तक बीपीएल कोटा को कहीं से किसी भी निर्देश द्वारा समाप्त नहीं किया गया है।''

डीएसडब्ल्यू महोदय के जवाब में डॉ. आनंद आजाद कहते हैं कि डीएसडब्ल्यू महोदय ये कहते हुए अपनी जवाबदेही से पीछे भाग रहे हैं कि 'दो-तीन साल नामांकन बंद रहा तो आप लोग कुछ नहीं बोले, अब बोल रहे हैं, अब कैसे होगा? ' इस सवाल पर जवाब देते हुए डॉ. आनंद आजाद ने कहा कि अगर दो-तीन साल से बीपीएल कोटे से एडमिशन नहीं हो रहा है तो इस अपराध के लिए जिम्मेवार विश्वविद्यालय प्रशासन है ना कि कोई छात्र संगठन, राजनीतिक व सामाजिक कार्यकर्ता! नियम के तहत कार्य करना विश्वविद्यालय प्रशासन की जिम्मेवारी है ना कि किसी और की। हां, कोई छात्र संगठन, राजनीतिक व सामाजिक कार्यकर्ता आपके द्वारा ही निर्गत पत्र के आलोक में आपकी कमजोरियों व खामियों की ओर विश्वविद्यालय प्रशासन की ध्यान जरूर आकृष्ट करायेंगे।

''हां! अगर, विश्वविद्यालय प्रशासन (University Administration) बीपीएल कोटे के छहत नामांकन नहीं ले रहे हैं तो विश्वविद्यालय प्रशासन बड़ा अपराध कर रहे हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन खुद अपने निर्गत पत्र के आलोक में जानकारी के अभाव के कारण 2018 में हुए नामांकन के वक्त इस सवाल को लेकर चुप्पी साधे रहा लेकिन जब अब ये मामला संज्ञान में आ गया है, उसके बाद अगर विश्वविद्यालय प्रशासन जान बूझकर लापरवाही करता है तो इसका साफ मतलब है कि विश्वविद्यालय प्रशासन बीपीएल कोटे की हकमारी कर रही है।''

वह आगे कहते हैं, ''इस सवाल को लेकर जब छात्र संगठनों (Student Organisations) ने आवाज उठाना शुरू किया तो विश्वविद्यालय प्रशासन पूरे मामले को सुलझाने के बजाय उलझाने में तुले हुए हैं। अब बहाना ये बनाने लगे हैं कि बीपीएल कोटे के नामांकन को लेकर सरकार से मंतव्य का बहाना बना रहे हैं, जबकि वर्तमान समय तक विश्वविद्यालय प्रशासन ना तो सिंडिकेट व सीनेट में 2010 के पत्र के आलोक में कोई फैसला लिया है। जब बीपीएल कोटे से एडमिशन को लेकर सवाल उठने लगा तो अपनी काली करतूतों को छिपाने के लिए सरकार से मंतव्य का रास्ता ढ़ूंढ़ रहा है। जो साफ तौर पर विश्वविद्यालय प्रशासन की लापरवाही है। इससे साफ स्पष्ट होता कि विश्वविद्यालय प्रशासन के कुर्सी पर बैठे व्यक्ति कितना असंवेदनशील है।''

डॉ. आनंद आगे कहते हैं कि एक तरह से कहें तो विश्वविद्यालय प्रशासन जानबूझकर बीपीएल कोटे को खत्म किया जा रहा है और गरीब छात्रों को उसके हक से वंचित करने का पूरा साजिश रचा जा रहा है जो विश्वविद्यालय के लिए अत्यंत दु:खद व दुर्भाग्यपूर्ण है।

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