Prof Lalan Kumar : बिहार के प्रोफेसर ललन कुमार ने लौटाई 23 लाख रुपए सैलरी, कहा जब स्टूडेंट्स को पढ़ाया ही नहीं तो कैसे लूं वेतन

Prof Lalan Kumar : स्कूल, कॉलेजों के शिक्षकों पर अक्सर पढ़ाने में रुचि नहीं लेने और मोटी फीस वसूलने के आरोप लगते हैं, परंतु प्रोफेसर ललन कुमार का मानना है कि उन्होंने कॉलेज में 2 साल 9 माह एक भी स्टूडेंट को नहीं पढ़ाया और वह अपने शैक्षणिक दायित्व का निर्वाह नहीं कर पाए तो ऐसे में उनका वेतन लेना अनैतिक है....

Update: 2022-07-06 10:17 GMT

Prof Lalan Kumar : बिहार के प्रोफेसर ललन कुमार ने लौटाई 23 लाख रुपए सैलरी, कहा जब स्टूडेंट्स को पढ़ाया ही नहीं तो कैसे लूं वेतन

Prof. lalan kumar : बिहार स्थित मुजफ्फरपुर के नीतीश्वर कॉलेज में सहायक प्रोफेसर के पद पर कार्यरत डॉ. (प्रो.) ललन कुमार ने अपने 2 साल 9 माह के कार्यकाल की पूरी सैलरी 23 लाख 82 हजार 228 रुपए लौटा दी, कारण जानकर आप भी चौंक जायेंगे।

स्कूल, कॉलेजों के शिक्षकों पर अक्सर पढ़ाने में रुचि नहीं लेने और मोटी फीस वसूलने के आरोप लगते हैं, परंतु प्रोफेसर ललन कुमार का मानना है कि उन्होंने कॉलेज में 2 साल 9 माह एक भी स्टूडेंट को नहीं पढ़ाया और वह अपने शैक्षणिक दायित्व का निर्वाह नहीं कर पाए तो ऐसे में उनका वेतन लेना अनैतिक है। दरअसल प्रोफेसर ललन कुमार का कहना है कि कक्षा में स्टूडेंट्स की उपस्थिति लगातार शून्य होती जा रही थी।

कुलसचिव ने प्रोफेसर का चेक लेने से किया इनकार

मंगलवार 5 जुलाई को डॉ ललन कुमार ने अपने वेतन की राशि वापस लौटाने के लिए 23 लाख 82 हजार 228 रुपए की राशि का चेक बीआरए बिहार विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ आरके ठाकुर को सौंपा तो सभी हैरान रह गए। कुलसचिव ने प्रोफेसर का चेक लेने से इनकार किया। इसके बाद उन्हें नौकरी छोड़ने को कहा, लेकिन डॉक्टर ललन की जिद के आगे उन्हें झुकना पड़ा।

डॉ ललन का कहना है कि मैं नीतीश्वर कॉलेज में अपने अध्यापन कार्य के प्रति कृतज्ञ महसूस नहीं कर रहा हूं। इसलिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बताए ज्ञान और अंतरात्मा की आवाज पर नियुक्ति तारीख से अब तक के पूरे वेतन के राशि विश्वविद्यालय को समर्पित करता हूं।

प्रोफेसर ने विश्वविद्यालय की गिरती शिक्षण व्यवस्था पर उठाये सवाल

प्रोफेसर ने विश्वविद्यालय की गिरती शिक्षण व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए कहा 'जबसे नियुक्त हुआ कॉलेज में पढ़ाई का माहौल नहीं देखा। 1100 स्टूडेंट्स का हिंदी मैं नामांकन तो है, लेकिन उपस्थिति लगभग शून्य रहने से मैं शैक्षणिक दायित्व का निर्वहन नहीं कर पाया, ऐसे में वेतन लेना अनैतिक है।' कोरोना काल में ऑनलाइन क्लास के दौरान भी स्टूडेंट्स उपस्थित नहीं रहे। उन्होंने प्राचार्य से लेकर विश्वविद्यालय तक से अपील की कि शिक्षण सामग्री ऑनलाइन अपलोड कर दें, मगर ऐसा नहीं हो पाया।

डॉक्टर ललन को नजरअंदाज किया गया

जानकारी के मुताबिक डॉक्टर ललन की नियुक्ति 24 सितंबर 2019 को हुई थी। ललन कुमार कहते हैं, वरीयता में नीचे वाले शिक्षकों को पीजी में पोस्टिंग मिली, जबकि उन्हें नीतीश्वर कॉलेज दिया गया। उन्हें यहां पढ़ाई का माहौल नहीं दिखा तो विश्वविद्यालय से आग्रह किया कि उस कॉलेज में स्थानांतरित किया जाए, जहां एकेडमिक कार्य करने का मौका मिले। विश्वविद्यालय ने इस दौरान छह बार ट्रांसफर आर्डर निकाले, लेकिन डॉक्टर ललन को नजरअंदाज किया जाता रहा। कुलसचिव डॉ आरके ठाकुर के मुताबिक स्टूडेंट्स किस कॉलेज में कम आते हैं यह सर्वे करके तो किसी की पोस्टिंग नहीं होगी।

कैरियर तभी बढ़ेगा जब लगातार एकेडमिक अचीवमेंट हो

डॉ लल्लन वैशाली में निवास करते हैं। एक सामान्य किसान परिवार से हैं। लल्लन इंटर की पढ़ाई के बाद दिल्ली गए। दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन, जेएनयू से पीजी और फिर दिल्ली यूनिवर्सिटी से पीएचडी एमफिल की डिग्री ली। डॉ ललन का मानना है कि अगर इसी तरह वे बिना पढ़ाये सेलरी लेते रहे तो 5 साल में उनकी एकेडमिक डेथ हो जाएगी। कैरियर तभी बढ़ेगा जब लगातार एकेडमिक अचीवमेंट हो।

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