DDU news : गोरखपुर विश्वविद्यालय शिक्षक भर्ती अनियमितता मामले में हाईकोर्ट का नोटिस, जाति विशेष को दी थी तरजीह

दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में सामान्य श्रेणी में आवेदन और साक्षात्कार के बाद एससी कोटे में नियम विरुद्ध चयन की शिकायत पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने छह सप्ताह के अंदर जवाब मांगा है...

Update: 2021-10-09 15:00 GMT

दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में सामान्य श्रेणी में आवेदन और साक्षात्कार के बाद एससी कोटे में नियम विरुद्ध चयन 

जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट

गोरखपुर ब्यूरो, जनज्वार। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर (Deen Dayal Upadhyay Gorakhpur University) में वर्ष 2017 में शिक्षकों की हुई भर्ती में गड़बड़ी की शिकायत पर हाईकोर्ट इलाहाबाद ने नोटिस जारी किया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) के शहर में स्थित विश्वविद्यालय में गड़बड़ी का मामला कोर्ट की नोटिस के बाद एक बार फिर गरमा गया है। सामान्य श्रेणी (General category) में आवेदन और साक्षात्कार के बाद एससी कोटे में नियम विरुद्ध चयन की शिकायत पर कोर्ट ने छह सप्ताह के अंदर जवाब मांगा है।

दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर में व्यापक स्तर पर अनियमितता एवं भष्टाचार तथा सामान्य संवर्ग के एक विशेष जाति को तरजीह देने के आरोप लगे थे, जिसके विरोध में कुछ आवाजें उठी लेकिन कार्रवाई के नाम पर लीपापोती का ही खेल चलता रहा। इसी मामले में आरक्षण संबर्ग में नियम विरुद्ध चयन की आदित्य नारायण क्षितिजेश ने शिकायत दर्ज कराते हुए हाईकोर्ट से न्याय के लिए गुहार लगाई थी।

गोरखपुर विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर पद के लिये हुये विज्ञापन में विभिन्न विषयों में चयन का आधार साक्षात्कार ही था। शिकायतकर्ताओं का कहना है कि मनमानी का हाल यह रहा कि एक ही दिन में 80 या अधिक अभ्यर्थियों के साक्षात्कार लिये बुलाए गए। ऐसे में साक्षात्कार में शामिल अभ्यर्थियों को औसतन 4 से 7 मिनट का समय मिला। इससे अभ्यर्थियों में व्यापक असंतोष उत्पन्न होना स्वाभाविक था। इस पर कुछ लोगों ने सवाल उठाते हुए इसकी शिकायत सरकार से लेकर राजभवन तक की। इसके अलावा विश्वविद्यालय के कार्य परिषद के सदस्य तक ने चयन प्रक्रिया पर सवाल उठाया।

इसके बाद भी न्याय न मिलने पर अभ्यर्थी रहे शिकायतकर्ता आदित्य नारायण क्षितिजेश ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। ऐसे में याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट इलाहाबाद ने सभी प्रतिवादियों को 6 सप्ताह के अंदर अपना जवाबी हलफनामा दाखिल करने को कहा है। साथ ही याचिकाकर्ता को प्रत्युत्तर हलफनामा 2 सप्ताह के अंदर कोर्ट में दाखिल करना होगा। इस मामले की अगली सुनवाई अब 17 दिसंबर 2021 को होगी।

शिकायतकर्ता आदित्य नारायण क्षितिजेश कहते हैं, न्याय की उम्मीद में माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद में याचिका दायर की थी, जिसकी सुनवाई दिनांक 04 अक्टूबर 2021 को हुई। इसमें विश्वविद्यालय की तरफ से रोहित पाण्डेय उपस्थित हुए तथा सरकार के तरफ से स्थायी अधिवक्ता उपस्थित हुए। प्रतिवादी ममता चौधरी को नोटिस जारी करने का आदेश दिया गया, जो दो सप्ताह की अवधि के भीतर मे नोटिस की उपलब्ध करा देना है।

दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर में पहली बार वर्ष 2014 में असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्ती के लिए विज्ञप्ति जारी की गई। यह भर्ती प्रक्रिया पूरी न होने पर वर्ष 2017 में तत्कालीन कुलपति विजय कृष्ण सिंह के कार्यकाल में एक बार फिर चयन प्रक्रिया शुरू की गई। इस दौरान शिक्षकों के भर्ती में व्यापक स्तर पर अनियमितता एवं भष्टाचार के आरोप लगे। इस क्रम में सामान्य संवर्ग की एक विशेष जाति को तरजीह देने के आरोप लगे, जिसके विरोध में कुछ आवाजें उठी, लेकिन कार्रवाई के नाम पर विश्वविद्यालय प्रशासन के तरफ से कोई कदम नहीं उठाए गए।

असिस्टेंट प्रोफेसर पद के लिये जारी किये गये विज्ञापन के बाद विभिन्न विषयों के साक्षात्कार में एक ही दिन में 80 या अधिक अभ्यर्थियों का साक्षात्कार लिया गया। इसमें शामिल अभ्यर्थियों को औसतन 4 से 7 मिनट का समय मिलने से व्यापक असंतोष होने के बावजूद साक्षात्कार प्रक्रिया उसी तरह सम्पन्न हुई। शिक्षाशास्त्र विषय के साक्षात्कार में भी ऐसी ही शिकायत मिली।

साक्षात्कार के परिणाम घोषित होने के बाद अनेक विषयों के आवेदकों ने सूचना अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत साक्षात्कार के अंकों के सूचना की मांग की, जिसको विश्वविद्यालय प्रशासन ने गोपनीय कहते हुए, सूचना नहीं प्रदान की। शिक्षाशास्त्र विषय में असिस्टेंट प्रोफेसर पद के लिये दिनांक 2 जुलाई 2018 को घोषित परिणाम में असफल हुये साक्षात्कार में शामिल आवेदक आदित्य नारायण क्षितिजेश ने भी साक्षात्कार के अंकों को जानने के लिये सूचना अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत सूचना लगायी, जिसके जवाब में सूचना दी गयी कि साक्षात्कार के अंको को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है।

इसकी शिकायत चयन से वंचित आदित्य नारायण क्षितिजेश ने कुलाधिपति, दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय से की। शिकायत के बाद कुलाधिपति दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विद्यालय ने दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति को 15 फरवरी 2021 को पत्र प्रेषित कर इसका जवाब मांगा, जिस पर विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा कायर्वाही नहीं करने पर राजभवन से पुनः अनुस्मारक दिनांक 26 मार्च 2021, 30 मई 2021 तथा 23 जुलाई 2021 प्रेषित किया, तब जाकर मजबूरन राजभवन को आख्या प्रेषित की, जिसकी प्रतिलिपि आवेदक को भी भेजी।

वहीं शिक्षाशास्त्र विषय में विश्वविद्यालय प्रशासन ने नियमों को तक पर रखते हुए शिक्षाशास्त्र विषय के असिस्टेंट प्रोफेसर के सामान्य संवर्ग के पद की आवेदक ममता चौधरी जो मूल रूप में सामान्य संवर्ग में साक्षात्कार सूची में चयनित थी, जिनके संवर्ग को विश्वविद्यालय प्रशासन ने अनुसूचित जाति संवर्ग में परिवर्तित करके नियुक्ति अनुसूचित जाति के विज्ञापित पद कर दी।

विश्वविद्यालय प्रशासन ने राजभवन को प्रेषित पत्र में स्वीकार किया कि डॉ. ममता चौधरी ने अपने प्रार्थना पत्र दिनांक 21 अप्रैल, 2021 में यह निवेदन किया था कि शैक्षणिक पदों के लिए विज्ञापित विज्ञापन संख्या विज्ञापन संख्या DDUGU/T-3/Gen. Admn दिनांक 19.09.2017 आवेदन संख्या 10661 के क्रम में सहायक आचार्य पद के दिये गये आनलाइन आवेदन पत्र गलती से सामान्य श्रेणी में अंकित हो गया है, जबकि अनुसूचित जाति संवर्ग की हैं, जिसका प्रमाण पत्र उन्होंने संलग्न कर अनुसूचित जाति संवर्ग में सम्मिलित करने के लिए अनुरोध किया था। इनके प्रार्थना पत्र पर विचार करते हुये तत्कालीन कुलपति ने डॉ. ममता चौधरी के सहायक आचार्य के आवेदन पत्र को अनुसूचित जाति वर्ग में स्थानांतरित करने का निर्णय लिया था।

ऐसे में शिकायतकर्ता ने सवाल खड़ा किया कि आवेदन करने के दौरान अगर कोई एससी संवर्ग का अभ्यर्थी सामान्य कोटि में अपना नाम दर्ज कराता है, तो फिर बाद में कोई बदलाव कैसे हो सकता है। किसी भी भर्ती में आवेदन के दौरान दिए गए ब्यौरा के आधार पर ही आगे की प्रक्रिया पूरी की जाती है। बाद में आवेदन के साथ किया गया कोई भी बदलाव नियम विरुद्ध है। ऐसे आवेदन को निरस्त कर दिया जाना चाहिए। इस बीच हाईकोर्ट के शिकायत संज्ञान में लेने के बाद से याचिकाकर्ता को न्याय की एक उम्मीद जगी है।

इस मामले में शिक्षक नेता राजेश मिश्र कहते हैं, गोरखपुर विश्वविद्यालय अपने कारनामों को लेकर इधर कई वर्षों से चर्चा में रहा है। असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्ती में अनियमितता के मामले में लगे आरोपों की जांच को लेकर शासन स्तर पर भी कोई पहल नहीं किया गया। इलाहाबाद हाईकोर्ट के शिकायत को संज्ञान में लेने के बाद एक उम्मीद जगी है कि विलंब से ही सही शिकायतकर्ता को न्याय मिलेगा।

Tags:    

Similar News