DDU गोरखपुर में विवि परिनियम में संशोधन किये बगैर असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति प्रक्रिया पूरी, शाम तक चला साक्षात्कार और रातोंरात ज्वानिंग

साक्षात्कार में शामिल रहे डॉ सुनील कुमार भी भर्ती प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहते हैं, पूरी की पूरी चयन प्रक्रिया अपारदर्शी रही है। ऐसा कहाँ संभव है प्रत्येक सीट पर बुलाए गए 10 उम्मीदवारों में से कोई भी उपयुक्त उस पद पर न पाया जाए। विश्वविद्यालय ने प्रौढ़ शिक्षा के दोनों पदों पर नाट फाउंड सुटेबल कर दिया...

Update: 2023-07-25 14:10 GMT

DDU Gorakhpur : सीएम योगी के शहर गोरखपुर स्थित दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में वर्षों से खाली चल रहे शिक्षक पदों पर वर्ष 2018 में भर्ती पूर्व कुलपति प्रोफ़ेसर विजय कृष्ण सिंह के कार्यकाल में संपन्न हुई थी। यह भर्ती कई मामलों में विशेष थी। इस भर्ती में एक ओर असिस्टेंट प्रोफेसर के सामान्य संवर्ग के पदों पर एक खास जाति को तरजीह देने से सामान्य संवर्ग के अभ्यर्थियों में चयन को लेकर असंतोष था, तो असिस्टेंट प्रोफेसर (शिक्षाशास्त्र) पद के सामान्य संवर्ग के अभ्यर्थी को अनुसूचित जाति संवर्ग के पद पर नियुक्ति पाये अभ्यर्थी का मामले ने तूल पकड़ा था, जिस खबर को जनज्वार ने प्रमुखता से प्रकाशित किया था।

अब इसी तरह का एक और मामला सामने आया है। इस मसले को लेकर दो अभ्यर्थियों आदित्य नारायण क्षितिजेश तथा इतेन्द्र धर दुबे ने विश्वविद्यालय प्रशासन और शासन स्तर तक शिकायत दर्ज कराई, राजभवन ने पत्रों का संज्ञान लेते हुए कुलाधिपति के कार्याधिकारी डॉक्टर पंकज एल. जानी ने दोनों अभ्यर्थियों को दिनांक 11.04.2023 को पत्र भेजकर प्रश्नगत प्रकरण पर शपथ पत्र पर साक्ष्य समेत प्रत्यावेदन मांगा। मजेदार बात यह रही कि एक तरफ दोनों अभ्यर्थियों से राजभवन शपथ पत्र पर साक्ष्य सहित प्रत्यावेदन मांगता है, जिसका निस्तारण किए बगैर विश्वविद्यालय प्रशासन को चयन प्रक्रिया पूर्ण करने की अनुमति भी देता है।

इस स्थिति में दोनों अभ्यर्थियों ने माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद में परिनियम में आवश्यक संशोधन किए बगैर विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा की जा रही नियुक्ति के संबंध में आदित्य नारायण क्षितिजेश एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं दो अन्य नाम से दिनांक 31.05.2023 को रिट दाखिल की थी।

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माननीय उच्च न्यायालय में रिट ग्रीष्मकालीन बेंच में दिनांक 14.06.2023 को पंजीकृत होते ही विश्वविद्यालय प्रशासन ने आनन-फानन में अचानक दिनांक 15.06.2023 को जितने विषयों के असिस्टेंट प्रोफेसर के साक्षात्कार हो चुके थे, उनके चयन का लिफाफा खोलने के लिए एकल एजेंडे पर कार्य परिषद की आकस्मिक बैठक बुला ली। इससे भी बेहद चौंकाने वाली बात यह रही कि जिस विषय का साक्षात्कार उसी दिन देर शाम तक चला उसका भी लिफाफा उसी दिन खोलते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन ने रातोंरात ज्वाइन भी करा दिया।

उच्च न्यायालय में दाखिल रिट की सुनवाई दिनांक 19.06.2023 को जब हुई तो विश्वविद्यालय की तरफ से अधिवक्ता बालमुकुंद सिंह तथा राज्य सरकार के स्थाई अधिवक्ता एवं याची के तरफ से अधिवक्ता अरविंद प्रबोध दुबे के पक्ष को माननीय उच्च न्यायालय ने सुना। माननीय उच्च न्यायालय ने रिट को स्वीकार करते हुए विश्वविद्यालय को 4 सप्ताह में जवाब दाखिल करने को कहा, साथ ही याची को भी 2 सप्ताह का प्रत्युत्तर हलफनामा दाखिल करने का समय दिया। माननीय उच्च न्यायालय ने यह आब्जर्वेशन दिया कि असिस्टेंट प्रोफेसर (शिक्षाशास्त्र) का जो भी परिणाम आयेगा वह इस याचिका के परिणाम पर निर्भर करेगा।

वहीं विश्वविद्यालय प्रशासन ने दिनांक 24.06.2023 को कार्यपरिषद की सामान्य बैठक में असिस्टेंट प्रोफेसर (शिक्षाशास्त्र) तथा असिस्टेंट प्रोफेसर (प्रौढ़ सतत एवं प्रसार शिक्षा) का लिफाफा भी खोल दिया। अब तक प्राप्त जानकारी के मुताबिक शिक्षाशास्त्र विभाग के दोनों पदों पर चयनित अभ्यर्थियों ने कार्यभार ग्रहण कर लिया है।

याचिकाकर्ता आदित्य नारायण क्षितिजेश असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्ती में भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए कहते हैं, 'जिस राजभवन के आदेश पर यह भर्ती प्रक्रिया की जा रही है, वह पारदर्शिता से संबंधित होने के बावजूद भी उसका अनुपालन सुनिश्चित कराने के लिए विश्वविद्यालय परिनियम में न ही संशोधन किया गया, न ही चयन प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए जो सुरक्षात्मक उपाय राजभवन के आदेश द्वारा सुनिश्चित किए गए थे, उसको भी सुनिश्चित नहीं किया गया।'

वहीं असिस्टेंट प्रोफेसर पद के अभ्यर्थी एवं याचिकाकर्ता इतेन्द्र धर दुबे कहते हैं, पूरी भर्ती प्रक्रिया अपारदर्शी तथा अनियमितता से लिप्त है। उनका आरोप है कि सामान्य संवर्ग के पदों पर एक विशेष जाति को तरजीह देते हुए चयन करना भर्ती प्रक्रिया का माखौल उड़ाना है।

इस संबंध में डीडीयू विश्वविद्यालय से सम्बद्ध महाविद्यालय शिक्षक संघ (गुआक्टा) ने भर्तियों पर प्रश्नचिन्ह खड़ा किया था। संघ के पदाधिकारी प्रोफेसर धीरेन्द्र सिंह एवं प्रोफेसर केडी तिवारी ने संयुक्त बयान में बेहद गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि बहुत से विभागों में नॉट फॉर सूटेबल किया गया और जहां सेटिंग हो गई थी वहां भर्ती की गई।

डीडीयू के छात्र नेता भास्कर चौधरी कहते हैं, विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर की आयोजित की गई भर्ती परीक्षा में भाषा के माध्यम से लेकर प्रश्नपत्रों के बिना सील लगे हुए वितरण करने की बात कही। बाद में विश्वविद्यालय ने 18 दिसंबर 2022 की आयोजित परीक्षा को निरस्त करते हुए पुनः परीक्षा आयोजित की। आगे भास्कर ने कहा कि परीक्षा के बाद एपीआई के अंक जोड़कर विषयवार एक श्रेष्ठता सूची तैयार करके सार्वजनिक करने का प्रावधान था, जिसमें एक पद के लिए 10 लोगों को साक्षात्कार में बुलाया जाना था। लेकिन बेहद आश्चर्यजनक तरीके से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा पिछड़े वर्ग के अधिसंख्य पदों पर नॉट फाउंड सुटेबल करके पदों को रिक्त रखा गया। इसके साथ ही सामान्य और ईडब्ल्यूएस के कुछ पदों को भी नॉट फाउंड सुटेबल करते हुए रिक्त रखा। इसकी निष्पक्ष जांच हुए बगैर भर्ती के भ्रष्टाचार का उजागर होना संभव नहीं।

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असिस्टेंट प्रोफेसर (प्रौढ़ शिक्षा विषय) के साक्षात्कार में शामिल रहे डॉ सुनील कुमार भी भर्ती प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहते हैं, 'पूरी की पूरी चयन प्रक्रिया अपारदर्शी रही है। ऐसा कहाँ संभव है प्रत्येक सीट पर बुलाए गए 10 उम्मीदवारों में से कोई भी उपयुक्त उस पद पर न पाया जाए। विश्वविद्यालय ने प्रौढ़ शिक्षा के दोनों पदों पर नाट फाउंड सुटेबल कर दिया।'

अक्टूबर 2021 में दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर (Deen Dayal Upadhyay Gorakhpur University) में वर्ष 2017 में शिक्षकों की हुई भर्ती में गड़बड़ी की शिकायत पर हाईकोर्ट इलाहाबाद ने नोटिस जारी किया था। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) के शहर में स्थित विश्वविद्यालय में गड़बड़ी का मामला कोर्ट की नोटिस के बाद एक बार फिर गरमा गया था, जिसके बाद सामान्य श्रेणी (General category) में आवेदन और साक्षात्कार के बाद एससी कोटे में नियम विरुद्ध चयन की शिकायत पर कोर्ट ने छह सप्ताह के अंदर जवाब मांगा था।

DDU news : गोरखपुर विश्वविद्यालय शिक्षक भर्ती अनियमितता मामले में हाईकोर्ट का नोटिस, जाति विशेष को दी थी तरजीह

इसी क्रम में वर्तमान कुलपति प्रो. राजेश कुमार सिंह के कार्यकाल में वर्ष 2021 में असिस्टेंट प्रोफेसर के कुल 44 पद विज्ञापित हुए, जिसमें सामान्य संवर्ग के 10, अन्य पिछड़ा वर्ग के 08, अनुसूचित जाति/जनजाति के 14 तथा आर्थिक कमजोर संवर्ग के 12 पद थे, मगर वर्तमान कुलपति प्रोफ़ेसर राजेश सिंह ने नियम-परिनियम को ताक पर रखकर असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्ती पूरी कर ली।

असल विवाद का विषय है यह कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने वर्ष 2021 में असिस्टेंट प्रोफेसर के पदों पर विज्ञापन 06.05.2021 को जारी किया था, जिसके आवेदन की अंतिम तिथि 10.06.2021 थी। इसी दौरान शिक्षक पदों पर सीधी भर्ती के लिए "साक्षात्कार में पारदर्शिता" के संदर्भ में राजभवन के एक आदेश संख्या ई-3019/32-जी० एस०/2020, दिनांक: 18,मई 2021 को राज्यपाल सचिवालय, उत्तर प्रदेश ने जारी किया, जिसके संबंध में विश्वविद्यालय प्रशासन ने 04.06.2021 को Ref. No.: 06/RAC/2021 के माध्यम से एक "शुद्धि-पत्र" जारी किया।

इसमें बताया गया कि राजभवन के आदेश दिनांक 18.05.2021 के जारी दिशा-निर्देशों के संदर्भ में यह शुद्धि पत्र जारी किया जा रहा है, जिसमें बिंदु 02 के तहत यह सूचना प्रदान की गई कि राजभवन से आए दिशा-निर्देशों को विश्वविद्यालय अपनायेगा। साथ ही ऑनलाइन आवेदन भरने की अंतिम तिथि 28.06.2021 तक तथा आवेदन की हार्डकॉपी दिनांक 30.06.2021 तक विश्वविद्यालय को पहुंचने की विस्तारित कर दी गई। आवेदन की अंतिम तिथि में एक बार फिर आवेदन की तिथि बढ़ाने की सूचना 30.06.2021 को पत्रांक:09/RAC/2021 के माध्यम से दी गई, लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन ने चयन प्रक्रिया शुरू करने के पूर्व तक परिनियम की न ही संशोधन प्रति, न ही परिनियम संशोधन की आधिकारिक अधिसूचना अभ्यर्थियों के लिए सार्वजनिक की, मगर दूसरी तरफ विश्वविद्यालय प्रशासन ने अपनी नियुक्ति प्रक्रिया अबाध गति से जारी रखी।

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