छात्रों का सुसाइड हब बनता कोटा, इस साल यहां कोचिंग में तैयारी करने वाले 14 युवा लगा चुके मौत को गले

कोटा के कोचिंग संस्थानों में जो छात्र पढ़ने के लिए आते हैं, वे अच्छे—खासे मानसिक तनाव में जीवन बसर करते हैं और तनाव जब हद से गुजर जाता है तो बिना सोचे विचारे मौत को गले लगा लेना ही बेहतर समझते हैं...

Update: 2022-12-16 07:33 GMT

आत्महत्या करने वाले दो छात्रों की तस्वीरें सोशल मीडिया से

संजय रोकड़े का विश्लेषण

'मेरा भाई, मेरा भाई...' का रूदन कर बिलखते हुए एक महिला एबुलेंस में रखे डीप फ्रीजर से लिपट कर रोए जा रही है। ये महिला लगातार रो रही है उसका रोना बंद ही नही हो रहा था। आंखों से आंसू भी थमने का नाम नहीं ले रहे।

हाल ही में इस तरह की एक तस्वीर सोशल मीडिय़ा पर तेजी से वायरल हो रही है। ये तस्वीर कोटा शहर से आई है। इस तस्वीर में जो एक एंबुलेंस खड़ी दिखाई दे रही है, वह राजस्थान के कोटा शहर के एमबीएस अस्पताल की मॉर्चरी के सामने खड़ी है। एंबुलेंस में एक डीप फ्रीजर रखा है और उस फ्रीजर में 17 साल के अंकुश नाम के युवक का शव रखा हुआ है और इस डीप फ्रीजर से लिपट, बिलख-बिलख कर जो महिला रो रही है वह अंकुश की बड़ी बहन है। इस फ्रीजर में उसी के छोटे भाई अंकुश का शव रखा है। अंकुश अपनी दो बड़ी बहनों के बीच छोटा भाई था। बिहार के सुपौल से अंकुश की बहन, जीजा अमरीश और कुछ परिजन उसका शव लेने कोटा की इस मॉर्चुरी में पहुंचे थे।

आखिर ये माजरा है क्या अब उसकी और ले चलता हूं आपको। काबिलेगौर है कि बीते दिनों कोटा के तलवंडी इलाके में दो मंजिला पीजी के ऊपर वाले फ्लोर के अलग-अलग कमरों में बिहार के सुपौल से आए अंकुश और गया के उज्ज्वल ने खुदकुशी कर ली थी। तलवंडी में बिहार के अंकुश और उज्ज्वल ने जबकि कुंहाड़ी इलाके में मध्य प्रदेश के प्रणव वर्मा ने खुदकुशी की है। पुलिस के मुताबिक, कोटा में एक ही दिन में खुदकुशी करने वाले 3 छात्रों में से ही एक अंकुश भी था।

आखिर इन छात्रों ने खुदकुशी क्यों कर ली, इसका जवाब किसी के पास भी नही था। न तो उन पड़ोसियों के पास जो इस उस पीजी के करीब रहते थे, जिसमें दो छात्रों ने आत्महत्या की। न ही उन छात्रों के पास जो खुदकुशी करने वालों के पीजी में रहते थे या उनक दोस्त थे। किसी के पास कोई सुराख नहीं था जो ये बताता कि आखिर ऐसा हुआ तो हुआ क्यों। मृतक अंकुश की बहन तो इस स्थिति में ही नहीं थी कि बात कर सके। कुछ बता सके। उसका तो रो-रोकर ही बुरा हाल हो रहा था।

आखिर राज खुला तो खुला कोटा कलेक्टर ओपी बुनकर और पुलिस अधीक्षक केसर सिंह शेखावत के माध्यम से। इस हादसे के बारे में कोटा कलेक्टर ओपी बुनकर ने मीडिया के सामने अपनी बात रखते हुए कहा कि दो छात्र पढ़ाई को लेकर खासे तनाव में थे, जबकि एक छात्र के अफेयर का मामला सामने आया है। इसके साथ ही कलेक्टर बुनकर ने ये भी कहा कि एक छात्र करीब महीने भर से कोचिंग नहीं जा रहा था। किसी अन्य स्टूडेंट के जरिए उसका अटेंडेंस कार्ड पंच किया जा रहा था। कार्ड पंच करने वाले छात्र ने ये स्वीकार किया है।

मौत का कारण पूछने के संबंध में कोटा शहर के पुलिस अधीक्षक केसर सिंह शेखावत ने कहा कि शुरुआती जांच में पढ़ाई का तनाव सामने आया है। जांच कर रहे हैं और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट का इंतजार है। एसपी शेखावत ने ये भी बताया कि तीनों छात्रों के शव पोस्टमॉर्टम के बाद परिजनों को सौंप दिए गए हैं। हालांकि अभी तक यह बात सामने नही आई कि किस छात्र ने पढ़ाई के दबाव में खुदकुशी की और किस छात्र का अफेयर था। पर पहली नजर में एक बात सामने आती है कि जब अफेयर वाले छात्र के बारे में घर वालों को मालूम हुआ होगा तो संभव हो उसके घर वालों ने डांटा हो, इसके बाद ही उसने यह कदम उठाया हो।

आखिर छात्रों की खुदकुशी का असल जिम्मेदार कौन है। अब भी ये लाख टके का सवाल वहीं खड़ा है। आखिर इन तीन छात्रों के अलावा कोटा में अब तक हुई छात्रों की खुदकुशी का असल जिम्मेदार है कौन। क्यों कोटा छात्रों के लिए मौत की फैक्टरी बनते जा रहा है। इस बात की तह में जाने से पहले ये जान लेना बेहतर होगा कि कोटा में कोचिंग क्लास और छात्रों के बीच किस तरह का रिश्ता है। इस शहर में किस राज्य के छात्र ज्यादा तादात में कोचिंग पढ़ने आते हैं। ये छात्र कोटा शहर के किस इलाके में बहुसंख्य आबादी में रहते हैं।

आपको बता दें कि कोटा में राजीव गांधी नगर इलाके के तलवंडी, जवाहर नगर, विज्ञान विहार, दादा बाड़ी, वसंत विहार और इनके करीब के इलाकों में करीब पौने दो लाख छात्र निवासरत हैं। जबकि, लैंडमार्क इलाके में 60 हजार तक छात्र रहते हैं। इसी तरह हजारों की संख्या में छात्र कोरल पार्क, बोरखेड़ा में भी रहते हैं। लैंडमार्क इलाके में आप जिस भी सड़क से गुजरें, वहां बड़ी संख्या में 16 से 20 साल के छात्र कंधे पर बैग लटकाए कोचिंग और हॉस्टल की ओर तेजी से भागते और आते जाते दिख जाते हैं।

एक अनुमान के तहत करीब ढाई लाख छात्र कोटा में रहते हैं। इनमें से अधिकांश यूपी और बिहार से हैं। कोटा शहर में करीब-करीब सात से आठ नामी गिरामी कोचिंग सेंटर हैं। इनके अलावा बहुत से कोचिंग सेंटर हैं, जो शहर में कुकुरमुत्तों की तरह खुले हुए हैं। अब बात करते है शहर में छात्रों के रहने की व्यवस्था क्या है तो बता दें कि करीब साढ़े तीन हजार हॉस्टल और पीजी हैं, जिनमें ये छात्र रहते हैं।

अब बात करते हैं छात्रों की खुदकुशी की। ये जो शहर से छात्रों की खुदकुशी की खबरें लगातार सामने आती रही हैं उसके पीछे का सच क्या है? बेशक पहली नजर में सबसे बड़ा कारण और अधिकतर हादसों में पढ़ाई का तनाव ही एकमात्र कारण हो सकता है, लेकिन क्या इसके लिए छात्र ही जिम्मेदार हैं। यकीनन नहीं, इसके लिए अकेले केवल छात्र ही जिम्मेदार नहीं है इसके इतर भी उनकी खुदकुशी के अनेक कारण हैं।

कोटा में साल 2011 से अब तक कोचिंग क्लास में पढने वाले 135 छात्रों ने आत्महत्या की है। इस साल 14 स्टूडेंट्स ने बेसमय मौत को गले लगा लिया, यानी सुसाइड कर लिया। प्रशासन के मुताबिक 2017 में एक महीने में 24 छात्रों ने खुदकुशी की थी। इस पर खूब मीडियाबाजी भी हुयी थी। उस दौरान दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार नीलम गुप्ता ने कोटा से एक रिपोर्ट की थी। उस समय उनने जो रिपोर्ट तैयार की थी उसमें मुंबई के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ साइंसेज की रिसर्च का हवाला देते हुए बताया था कि जो छात्र कोचिंग में अध्ययनरत हैं, उनकी खुदकुशी का एक नहीं बल्कि अनेक कारण बताये थे और उस रिपोर्ट में उनका हवाला भी दिया था।

यह बात किसी से छुपी नहीं है कि कोचिंग संस्थानों की आपसी प्रतिस्पर्धा के चलते कोचिंग मालिक छात्रों की सुविधाओं को दरकिनार कर बस अपना व्यावसायिक लाभ देखते हैं। हॉस्टल व पीजी का वातावरण भी ऐसा नहीं होता है जो एक छात्र के अनुसार होना चाहिए। इसके अलावा भी कोचिंग के विज्ञापनों में जो लोभ दिखाया जात है वह भी छात्रों के लिए मानसिक परेशानी का सबब बनते हैं। इस तरह के प्रलोभनों को लेकर न तो स्थानीय प्रशासन कोचिंग माफियाओं पर दबाव ड़ालता है और न ही मीडिय़ा संस्थान उनकी कारस्तानी को सामने लाता है।

ये तो समझ आता है कि मीडिय़ा कोचिंग संस्थानों से मिलने वाले विज्ञापनों के दबाव में सच सामने नहीं लाता है, मगर प्रशासन क्यों मौन रहता है यह बात समझ से परे है। कोई भी कोचिंग मालिकों की मनमानियों व कमियों को उजागर नहीं करता है, जबकि पुलिस प्रशासन को अपनी इस जिम्मेदारी को ईमानदारी से समझना चाहिए और कमियों को सामने लाना चाहिए।

ये भी स्पष्ट है कि कोचिंग संस्थान जब तब मन मुताबिक नियम बना कर छात्रों को तनाव देते रहते हैं। छात्रों के बीच भी स्टडी ग्रुप का अच्छा खासा प्रेशर रहता है। बच्चे अपना सब कुछ दांव पर लगाकर कोचिंगों में पढने को जाते हैं, उपर से परिजनों का भी दबाव रहता है। नीट और जेईई की पढ़ाई का तो कुछ ज्यादा ही प्रेशर रहता है। कोचिंग संस्थान अपना परिणाम बेहतर साबित करने के लिए पढ़ाई में तेज बच्चों पर ज्यादा फोकस करते हैं, जबकि दूसरे कमज़ोर बच्चे उनकी वरीयता में ही नहीं होते। तेज और कमजोर बच्चों के बीच ये भी एक तनाव का कारण होता है। इसके अलावा कोचिंग संस्थानों के क्लास टाइमिंग और शेड्यूल भी एक बड़ा फैक्टर है। सप्ताह में सातों दिन क्लास रहती है। इन संस्थानों द्वारा छात्रों को त्योहारों पर भी छुट्टियां नहीं मिलती हैं, इस कारण भी बच्चों में मानसिक तनाव पैदा होता है।

काबिलेगौर ये भी हो कि कोचिंग संस्थान से जुड़े लोग बच्चों को स्कूल में दाखिला भी अपने स्तर पर करवा देते हैं। स्कूल में डमी स्टूडेंट की तरह दाखिला होता है और कोचिंग में नीट, जेईई की तैयारी करवाई जाती है। इससे भी बच्चों में तनाव और पढ़ाई का दबाव बनता है। हालाकि बच्चों को तनाव से मुक्ति दिलाने के लिए स्थानीय प्रशासन अपने स्तर पर कुछ पहल करती है, लेकिन वह पर्याप्त नहीं होती है। इस समय कोटा के कलेक्टर ओपी बुनकर ने छात्रों की मनोदशा को ध्यान में रखते हुए कोचिंग संस्थानों को योगा क्लास, मोटिवेशनल स्पीच के अलावा सप्ताह में एक अवकाश की पहल की है। इसके साथ ही सरकारी गाइडलाइंस का प्रमुखता से पालन करवाने का प्रावधान किया है।

बहरहाल, इस तरह की पहल छात्रों के लिए कितनी मददगार साबित होगी ये तो वक्त के गर्भ में है, लेकिन कोचिंग में पढऩे वाले बच्चों की मानसिक स्थिति और उनकी मनोदशा को लेकर होस्टल और पीजी मालिकों का तजुर्बा बहुत अच्छा है। छात्र किन स्थिति-परिस्थितियों में जीवन बसर करते हैं, वे बखूबी बयां करते हैं। बकौल उनके अभिभावक बच्चे को हॉस्टल छोड़ने के बाद छह महीने से एक साल तक मिलने नहीं आते हैं। इस कारण छात्र खुद को परिवार से कटा महसूस करते हैं। परिवार से दूर रहने और दूसरी तरफ अभिभावकों की ये बेरुखी भी छात्रों को अंदर ही अंदर कमजोर करती है। मानसिक रूप से तोड़ती है।

कुल मिलाकर कोचिंग संस्थानों में जो छात्र पढऩे के लिए आते हैं, वे अच्छे खासे मानसिक तनाव में जीवन बसर करते हैं और तनाव जब हद से गुजर जाता है तो बिना सोचे विचारे मौत को गले लगा लेना ही बेहतर समझते हैं। छात्रों द्वारा मौत को गले लगाने का ये सिलसिला कहां जाकर रूकेगा, फिलहाल इसका जवाब किसी के पास नहीं है।

(संजय रोकड़े द इंडिय़ानामा पत्रिका के संपादन के साथ ही सम-सामयिक विषयों प्श्र कलम चलाते हैं।)

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