भर्ती घोटाला : राज्यपाल के आदेश की अनदेखी, कब होगी एआरडी के पदों पर नियुक्ति की जांच?

विश्वविद्यालय के शुरुआत से ही काम कर रहे कई कर्मचारी अब तक अपने नियमितीकरण की राह देख रहे हैं। लेकिन चमचे शार्टकट से पद हथिया ले रहे हैं....

Update: 2021-08-28 06:57 GMT

(RTI के तहत राज्यपाल कार्यालय से मिले पत्र में आरोप लगाया गया है कि शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत ने एआरडी के आठ पदों पर पार्टी कार्यकर्ताओं की नियुक्ति करायी गई है।)

जनज्वार। उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में असिस्टेंट रीजनल डायरेक्टर (एआरडी) के आठ पदों पर हुई नियुक्तियों में भ्रष्टाचार के सीधे आरोप लगे हैं। इस सिलसिले में विश्वविद्यालय की कुलाधिपति की तरफ से सरकार और विश्वविद्यालय से जांच के लिए कहे जाने के बाद कोई कार्रवाई नहीं की गई।

आरटीआई के तहत राज्यपाल कार्यालय से मिले पत्र में आरोप लगाया गया है कि शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत ने एआरडी के आठ पदों पर अपने पर्सनल असिस्टेंट समेत पार्टी कार्यकर्ताओं की नियुक्ति करायी गई है। पंतनगर निवासी राजेश कुमार सिंह के इस पत्र को राज्यपाल कार्यालय में संयुक्त सचिव जितेंद्र कुमार सोनकर की तरफ से राज्य के उच्च शिक्षा सचिव को शिकायती पत्र कार्रवाई के लिए भेजा गया था। लेकिन मामले में खुद शिक्षा मंत्री का नाम होने पर इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की गई।

पत्र में विस्तार से बताया गया है कि धन सिंह रावत ने अपने निजी सहायक गोविंद सिंह को पहले एक अस्थाई क्लर्क के तौर पर विश्वविद्यालय में नियुक्ति कराई थी। गोविंद सिंह का वेतन विश्वविद्यालय देता रहा लेकिन वे मंत्री के साथ रहकर उनके राजनीतिक काम देखते रहे। इस दौरान बाकी कर्मचारियों की तहत गोविंद के विश्वविद्यालय में होने के प्रमाणों की जांच उनकी बायमेट्रिक उपस्थिति देख कर की जा सकती है। बशर्ते की इससे कोई छेड़छाड़ ना की जाए। गोविंद सिंह की इस दौरान लगातार राज्य के विभिन्न स्थानों पर मंत्री के साथ उपस्थिति भी इस बात का प्रमाण है कि विश्वविद्यालय के नाम मात्र के कर्मचारी थे। बाद में इन्हीं गोविंद सिंह की नियुक्ति एआरडी के पदों पर हो जाती है।

राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली इस परीक्षा में कई अनियमितता बरतने के आरोप हैं। इसका प्रश्नपत्र द्विभाषी रखने के बजाय सिर्फ हिंदी में रखा गया। इसमें बीजेजी-आरएसएस कार्यकर्ताओं को सबसे ज्यादा अंक हासिल हुए जबकि इन परीक्षाओं में कई पीसीएस अलायड सर्विसेज में काम कर रहे उम्मीदवार भी शामिल हुए थे। इतना ही नहीं समय साक्ष्य नाम की एक वेबसाइट ने नियुक्ति से पहले ही भ्रष्टाचार की खबर प्रकाशित कर ली थी और चयन होने उम्मीदवारों के नाम पहले ही बता दिये थे। 

एआरडी की नियुक्तियों में कुलपति पर पैसे लेने और राजनीतिक दबाव में नियुक्ति करने का आरोप लगा था। कांग्रेस से जुड़े भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन (एनएसयूआई) ने इसके खिलाफ विश्वविद्यालय मुख्यालय में प्रदर्शन किया और पार्टी के पूर्व सांसद महेन्द्र पाल ने एक प्रेस कांफ्रेस कर मामले की जांच की मांग की। लेकिन कुछ वक्त बाद सभी शांत बैठ गए।

असिस्टेंट रीजनल डायरेक्टर की नियुक्ति राज्य के विभिन्न केंद्रों में विश्वविद्यालय का काम देखने के लिए की गई थी। राज्य के इन आठ केंद्रों में इन रीजनल डायरेक्टर को जाना था लेकिन कुलपति ने उनकी नियुक्ति के बाद अपनी चौधराहट दिखाने के लिए विश्वविद्यालय मुख्यालय में ही रखा है। इन सभी लोगों को महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां दी गई हैं और विश्वविद्यालय में इनकी तूती बोलती है। सारे गोपनीय कामों से लेकर खरीद-फरोख्त के कामों से इनको जोड़ा गया है। ऐसा लगता है कि ये विश्वविद्यालय नहीं, भारतीय जनता पार्टी का कार्यालय है। रेखा बिष्ट कुलपति की पर्सनल सेक्रेटरी का काम करती हैं तो ब्रजेश बनकोटी के जिम्मे खरीद-फरोख्त करने की जिम्मेदारी है। राज्यपाल को लिखे पत्र में भी इस बात का जिक्र किया गया है कि जिन पदों पर ये स्थाई नियुक्तियां की गई हैं वहां पर अस्थाई तौर पर 9000 हज़ार रुपए वेतन देकर दूसरे कॉलेज के अध्यापकों से ये काम करवाया जा रहा है।

कुलपति ने विश्वविद्यालय के कोर्पस फंड से करोड़ों रुपये अंधाधुंध निर्माण कार्य करवाना शुरू किया है। सरकार से इसके लिए कोई मदद नहीं मिली है। लेकिन इन योजनाओं का राजनीतिक श्रेय लेने के लिए सरकार बहादुर हाजिर हो जाती है। मुक्त विश्वविद्यालय के निर्माण कार्यों में कोई कमीशनखोरी नहीं होती!

असिस्टेंट रीजनल डायरेक्टर विश्वविद्यालय में रहकर "भ्रष्टाचार" पर नजर रखते हैं। कुलपति ने अपना कार्यालय किसी फाइव स्टार होटल की तर्ज पर बनाया है। वे कुलपति की नियुक्ति को एक राजनीतिक पद मानते हैं इसलिए उन्होंने कुलपति कार्यालय का नाम बदलकर कुलपति सवचिवालय कर दिया है। इस बीच पुनर्निर्माण के नाम पर विश्वविद्यालय में अच्छा–खासा फर्श उखाड़कर वहां नए टाइल्स बिछाये गये हैं। बिना वजह टायलेट्स के कमोड बदले गये हैं। फॉल्स सीलिंग लगायी गई है। इस सब का फायदा कुलपति के करीबी लोगों को मिलता है जबकि अध्यापकों और आम कर्मचारियों को कोई पूछने वाला नहीं है।

विश्वविद्यालय के शुरुआत से ही काम कर रहे कई कर्मचारी अब तक अपने नियमितीकरण की राह देख रहे हैं। लेकिन चमचे शार्टकट से पद हथिया ले रहे हैं।

कुलपति आरएसएस के पुराने कार्यकर्ता रहे हैं। इसलिए उन्होंने विश्वविद्यालय को आरएसएस के कार्यक्रमों का अड्डा बना दिया है। विरोधी विचार के लोगों को वे लगातार निशाना बनाते रहते हैं। इस काम में अवैध रूप से विश्वविद्लाय में रखे एआरडी उनके जासूसों का काम करते हैं। सरकार और मंत्री का नाम इस घपलेबाजी में आने की वजह से न्यायिक जांच ही इसका पर्दाफाश कर सकती है। वरना राज्य में सरकार बदल जाने के बाद भी इस गंदगी को साफ करना मुश्किल होगा।

(राज्यपाल को मिले शिकायती पत्र और वहां से शिक्षा सचिव को लिखे पत्र की कॉपी संग्लग्न है)


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