फीस वसूली में प्राइवेट स्कूलों के साथ खड़ी हुई योगी सरकार, कोर्ट में कहा अभिभावकों से ज्यादा फीस जायज

अभिभावकों की ओर से दाखिल शपथपत्र में ये कहा गया है कि किसी भी निजी स्कूल में पिछले साल से ही ऑनलाइन ट्यूशन को छोड़कर कोई भी सेवा नहीं दी जा रही है। इस प्रकार निजी स्कूलों द्वारा ट्यूशन फीस से एक भी रुपया ज्यादा लेना मुनाफाखोरी और शिक्षा के व्यवसायीकरण है.....

Update: 2021-07-25 14:05 GMT


यूपी चुनाव को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कही अहम बात

जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट

जनज्वार। उत्तर प्रदेश के बड़े-बड़े प्राइवेट स्कूलों की महंगी फीसों को लेकर सवाल उठाने वाले अभिभावकों की दलीलों से योगी सरकार सहमत नहीं है। कोरोना काल में स्कूलों की बंदी के बावजूद सभी फीसों की अदायगी के दबाव से परेशान अभिभावकों को सरकार से राहत मिलने की उम्मीद नजर नहीं आ रही है। यह हालात उस समय पैदा हो गया जब हाई कोर्ट की नोटिस पर सरकारी अधिवक्ता द्वारा लगाए गए जवाब में अभिभावकों से मनमानी फीस वसूली की शिकायत को गलत बताया गया। प्राइवेट विद्यालयों के प्रबंधन के पक्ष में सरकार यहां खड़ी नजर आई।

कोरोना के साथ ही बेरोजगारी और महंगाई की मार झेल रहे प्रदेश के लाखों परिवारों को यूपी सरकार ने झटका दिया है। मनमानी फीस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट में दायर याचिका में सरकार ने जो शपथ पत्र दाखिल किया है उसके मुताबिक प्रदेश के प्राइवेट स्कूल नियम संगत फीस ले रहे हैं। सरकार की गाइडलाइन के मुताबिक ही फीस की वसूली हो रही है। अभिभावकों का केस लड़ रहे वकील ने सरकार के इस हलफनामे को झूठा करार दिया है। मामले की अगली सुनवाई अब 28 जुलाई को होगी।

अभिभावकों की जनहित याचिका पर कोर्ट ने मांगा था जवाब

प्रदेश भर में निजी स्कूलों की मनमानी फीस वसूली के खिलाफ अभिभावकों की जनहित याचिका पर 30 जून को हाईकोर्ट में सुनवाई हुई थी। कोर्ट ने राज्य सरकार, यूपी बोर्ड , सीबीएससी, आईसीएसई व तमाम निजी स्कूलों को नोटिस भेजकर जवाब मांगा था। यह आदेश एक्टिंग चीफ जस्टिस मुनीश्वर नाथ भंडारी व जस्टिस राजेंद्र कुमार ने मुरादाबाद पैरेंट्स ऑफ ऑल स्कूल एसोसिएशन के मेंबर्स (अनुज गुप्ता एवं अन्य) की याचिका पर दिया था।

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने राज्य सरकार के वकील से पूछा था कि निजी स्कूलों की मनमानी फीस वसूली के खिलाफ सरकार ने अब तक क्या किया? तो सरकारी वकील ने कहा कि हमने सभी बोर्डों और स्कूलों में शुल्क के विनियमन के लिए शासनादेश जारी किया है। इस पर याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता शाश्वत आनंद ने कहा था कि ऐसे आदेश का क्या फायदा जब उस पर कोई अमल ही न हो।

सरकार के कोर्ट में दिया है यह हलफनामा

30 जून को हुई सुनवाई के जवाब में राज्य सरकार की ओर से शपथपत्र दाखिल किया गया। जिसमें कहा गया कि सभी स्कूल सरकार के 20 मई के शासनादेश के अनुसार ही शुल्क वसूल कर रहे हैं। कोई भी निजी स्कूल ट्यूशन फीस के अलावा और कोई फीस नहीं ले रहा है।स्कूल एग्जाम फीस, स्पोर्ट्स, साइंस लैबोरेटरी, लाइब्रेरी, कंप्यूटर, एनुअल फंक्शन व ट्रांसपोर्ट फीस आदि नहीं ले सकते। सभी स्कूल लंबे समय से शारीरिक उपस्थिति के लिए बंद हैं और परीक्षाएं भी फिजिकली नहीं हो रही हैं।

अभिभावकों ने जवाब में कहा- झूठा है सरकार का हलफनामा

इसके जवाब में याचिकाकर्ताओं ने अधिवक्ता शाश्वत आनंद, प्रशांत शुक्ला व अंकुर आज़ाद के माध्यम से शपथपत्र दाखिल किया। इस शपथ पत्र में सरकार पर कोर्ट में झूठा शपथपत्र दाखिल करने का गंभीर आरोप लगाया है। याचिकाकर्ताओं का कहना है की सभी स्कूल सामान्य दिनों की तरह ही पूरी फीस ले रहे हैं।

फीस के लिए अभिभावकों को प्रताड़ित किया जा रहा है। कोरोना के बाद भी पिछले दो सालों में अभिभावकों को एक भी रुपए की छूट नहीं दी गयी है। इस तरह से आज के समय में सभी निजी स्कूलों ने शिक्षा प्रदान करने जैसी पवित्र प्रथा को मुनाफाखोरी और व्यवसायीकरण का जरिया बना दिया है। अमानवीय ढंग से अभिभावकों और स्कूली बच्चों को फीस के लिए प्रताड़ित किया जा रहा है।

ऑनलाइन क्लास के अलावा नहीं दी जा रही है कोई सेवा

अभिभावकों की ओर से दाखिल शपथपत्र में ये कहा गया है कि किसी भी निजी स्कूल में पिछले साल से ही ऑनलाइन ट्यूशन को छोड़कर कोई भी सेवा नहीं दी जा रही है। इस प्रकार निजी स्कूलों द्वारा ट्यूशन फीस से एक भी रुपया ज्यादा लेना मुनाफाखोरी और शिक्षा के व्यवसायीकरण के अलावा कुछ भी नहीं है। याचिकाकर्ताओं ने अपने तर्कों के समर्थन में सर्वोच्च न्यायालय के इंडियन स्कूल, जोधपुर बनाम स्टेट ऑफ़ राजस्थान के हाल ही में दिए हुए फैसले का भी हवाला दिया है, जिसमें भी कहा है कि निजी स्कूलों द्वारा बिना कोई सेवा दिए फीस की मांग करना, मुनाफाखोरी व शिक्षा का व्यवसायीकरण ही है।

ऑनलाइन क्लास का पूरा आर्थिक भार अभिभावकों पर

अपने शपथपत्र में याचिकर्ताओं ने यह भी तर्क दिया है की ऑनलाइन क्लास का आर्थिक भार बच्चों केे माता-पिता पर पड़ता है। इंटरनेट के अलावा महंगे लैपटॉप, टेबलेट या समर्टफोन खरीदने का खर्च बढ़ गया है। ऐसे में ऑनलाइन क्लास की लागत निजी स्कूलों के लिए नाम मात्रा है और ऐसी परिस्थिति ट्यूशन फीस में भी अभिभावकों व छात्रों को न्यूनतम 50% की छूट मिलनी चाहिए। मनमानी फीस वसूली के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में अब 28 जुलाई को सुनवाई होगी।

कोरोना के बाद बेरोजगारी और महंगाई की मार झेल रहे प्रदेश के लाखों परिवारों को यूपी सरकार ने झटका दिया है। मनमानी फीस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट में दायर याचिका में सरकार ने जो शपथ पत्र दाखिल किया है उसके मुताबिक प्रदेश के प्राइवेट स्कूल नियम संगत फीस ले रहे हैं। सरकार की गाइडलाइन के मुताबिक ही फीस की वसूली हो रही है। अभिभावकों का केस लड़ रहे वकील ने सरकार के इस हलफनामे को झूठा करार दिया है। मामले की अगली सुनवाई अब 28 जुलाई को होगी।

कोर्ट ने सरकार व सभी बोर्डों से मांगा था जवाब

प्रदेश भर में निजी स्कूलों की मनमानी फीस वसूली के खिलाफ अभिभावकों की जनहित याचिका पर 30 जून को हाईकोर्ट में सुनवाई हुई थी। कोर्ट ने राज्य सरकार, UP बोर्ड, CBSE और ICSE बोर्ड व तमाम निजी स्कूलों को नोटिस भेजकर जवाब मांगा था। यह आदेश एक्टिंग चीफ जस्टिस मुनीश्वर नाथ भंडारी व जस्टिस राजेंद्र कुमार ने मुरादाबाद पैरेंट्स ऑफ ऑल स्कूल एसोसिएशन के मेंबर्स (अनुज गुप्ता एवं अन्य) की याचिका पर दिया था।

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने राज्य सरकार के वकील से पूछा था कि निजी स्कूलों की मनमानी फीस वसूली के खिलाफ सरकार ने अब तक क्या किया? तो सरकारी वकील ने कहा कि हमने सभी बोर्डों और स्कूलों में शुल्क के विनियमन के लिए शासनादेश जारी किया है। इस पर याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता शाश्वत आनंद ने कहा था कि ऐसे आदेश का क्या फायदा जब उस पर कोई अमल ही न हो।

सरकार के हलफनामे के 6 मुख्य बिंदु

30 जून को हुई सुनवाई के जवाब में 3 जुलाई को राज्य सरकार की ओर से शपथपत्र दाखिल किया गया।स सभीस्कूल सरकार के 20 मई के शासनादेश के अनुसार ही शुल्क वसूल कर रहे हैं।

कोई भी निजी स्कूल ट्यूशन फीस के अलावा और कोई फीस नहीं ले रहा है।

स्कूल एग्जाम फीस, स्पोर्ट्स, साइंस लैबोरेटरी, लाइब्रेरी, कंप्यूटर, एनुअल फंक्शन व ट्रांसपोर्ट फीस आदि नहीं ले सकते।

सभी स्कूल लंबे समय से शारीरिक उपस्थिति के लिए बंद हैं और परीक्षाएं भी फिजिकली नहीं हो रही हैं।

इसलिए बाकी मद में ली जाने वाली फीस नियम विरुद्ध है। सभी स्कूल लंबे समय से शारीरिक उपस्थिति के लिए बंद हैं और परीक्षाएं भी फिजिकली नहीं हो रही हैं।

अभिभावकों ने जवाब में कहा- झूठा है सरकार का हलफनामा

इसके जवाब में याचिकाकर्ताओं ने 12 जुलाई को अधिवक्ता शाश्वत आनंद, प्रशांत शुक्ला व अंकुर आज़ाद के माध्यम से शपथपत्र दाखिल किया। इस शपथ पत्र में सरकार पर कोर्ट में झूठा शपथपत्र दाखिल करने का गंभीर आरोप लगाया है। याचिकाकर्ताओं का कहना है की सभी स्कूल सामान्य दिनों की तरह ही पूरी फीस ले रहे हैं।

फीस के लिए अभिभावकों को प्रताड़ित किया जा रहा है। कोरोना के बाद भी पिछले दो सालों में अभिभावकों को एक भी रुपए की छूट नहीं दी गयी है। इस तरह से आज के समय में सभी निजी स्कूलों ने शिक्षा प्रदान करने जैसी पवित्र प्रथा को मुनाफाखोरी और व्यवसायीकरण का जरिया बना दिया है। अमानवीय ढंग से अभिभावकों और स्कूली बच्चों को फीस के लिए प्रताड़ित किया जा रहा है।

ऑनलाइन क्लास के अलावा नहीं दी जा रही है कोई सेवा

अभिभावकों की ओर से दाखिल शपथपत्र में ये कहा गया है कि किसी भी निजी स्कूल में पिछले साल से ही ऑनलाइन ट्यूशन को छोड़कर कोई भी सेवा नहीं दी जा रही है। इस प्रकार निजी स्कूलों द्वारा ट्यूशन फीस से एक भी रुपया ज्यादा लेना मुनाफाखोरी और शिक्षा के व्यवसायीकरण के अलावा कुछ भी नहीं है। याचिकाकर्ताओं ने अपने तर्कों के समर्थन में सर्वोच्च न्यायालय के इंडियन स्कूल, जोधपुर बनाम स्टेट ऑफ़ राजस्थान के हाल ही में दिए हुए फैसले का भी हवाला दिया है, जिसमें भी कहा है कि निजी स्कूलों द्वारा बिना कोई सेवा दिए फीस की मांग करना, मुनाफाखोरी व शिक्षा का व्यवसायीकरण ही है।

ऑनलाइन क्लास का पूरा आर्थिक भार अभिभावकों पर

अपने शपथपत्र में याचिकर्ताओं ने यह भी तर्क दिया है की ऑनलाइन ट्यूशन/क्लास का पूरा आर्थिक भार बच्चों के माता-पिता पर पड़ता है। इंटरनेट के अलावा महंगे लैपटॉप, टेबलेट या समर्टफोन खरीदने का खर्च बढ़ गया है। ऐसे में ऑनलाइन क्लास की लागत निजी स्कूलों के लिए नाम मात्रा है और ऐसी परिस्थिति ट्यूशन फीस में भी अभिभावकों व छात्रों को न्यूनतम 50% की छूट मिलनी चाहिए।इंटरनेट के अलावा महंगे लैपटॉप, टेबलेट या समर्टफोन खरीदने का खर्च बढ़ गया है।

याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यूपी स्व-वित्तपोषित स्वतंत्र स्कूल (शुल्क विनियमन) अधिनियम, 2018 में दिए गए 'वार्षिक कम्पोजिट फीस' के प्रावधान के कार, बच्चों और उनके असहाय माता-पिता से अवैध रूप से धन वसूला जा रहा है। अधिकांश निजी स्कूलों/संस्थानों ने अलग से ट्यूशन फीस सपष्ट नहीं किया है। फीस के कई हेड को मिलाकर एक ही हेड यानी 'कम्पोजिट फीस / समग्र शुल्क' में समाहित कर दिया गया है। ऐसे प्रावधान ने फीस वसूली कि पूरी प्रक्रिया को रहस्यमयी, अपारदर्शी बना दिया है।

कम्पोजिट फीस की आड़ में निजी स्कूल कुछ भी और कितना भी शुल्क वसूल रहे हैं। यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 19 व 21 में प्रत्याभूत जनता के मौलिक अधिकारों के खिलाफ है, जिसमें जानने का अधिकार भी शामिल है। ऐसे में तमाम सर्वोच्च न्यायलय के फैसलों का हवाला देते हुए याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट से 'कम्पोजिट फीस' के प्रावधान को असंवैधानिक घोषित करने का आग्रह किया है। साथ ही कोर्ट से यह भी प्रार्थना किया है कि वह सरकार को स्कूलों की मनमानी फीस वसूली पर सख्ती से रोक लगाए व अपनी पूरी फीस संरचना को स्पष्ट करे, ताकि ट्यूशन फीस को छोड़कर बाकि फीस माफ़ हो सके।

राज्य सरकार द्वारा दाखिल झूठा शपथपत्र कोर्ट की अवमानना है

अभिभावकों ने अपने शपथपत्र में निजी स्कूलों द्वारा ली जा रही मनमानी फीस को लेकर विस्तृत साक्ष्य पेश कर हाईकोर्ट से यह आग्रह किया है कि राज्य सरकार कि ओर से शपथपत्र दाखिल करने वाले मोरादाबाद के जिला विद्यालय निरीक्षक ( श्यामा कुमार) पर भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत शपथभंग (सेक्शन 193 आईपीसी ) व कोर्ट की आपराधिक अवमानना का मुकदमा चला कर दंडित किया जाना चाहिए। याचिका में अभिभावकों की ओर से की गई सभी मांगों को स्वीकार किए जाने और पूरी प्रदेश में सभी स्कूलों को समान नियम के तहत फीस लेने का आदेश जारी करने की मांग की गई।

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