तापमान वृद्धि के असर से बादल पहले से हो गये हैं अधिक खतरनाक, बिजली गिरने की घटनाओं से बढ़ रही मौतें

19वीं सदी के मध्य की तुलना में तापमान अब तक 1.1 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है और यह लगातार बढ़ता जा रहा है, पिछले वर्ष दुनिया में मौसम से सम्बंधित चरम प्रभाव वाली जितनी घटनाएं देखी गईं, उनमें से सबसे खतरनाक 5 घटनाएं भारत के आसपास के मानसून से जुड़ी थीं...

Update: 2021-04-18 07:32 GMT

जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली प्राकृतिक आपदाओं में हर साल सैकड़ों लोग गंवाते हैं जान (प्रतीकात्मक फोटो)

वरिष्ठ लेखक महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

जनज्वार। हमारे देश में मानसून भोजन, खेती और अर्थव्यवस्था का आधार है, पर अब तापमान वृद्धि के कारण मानसून की वर्षा का आकलन कठिन होगा और वर्षा की तीव्रता भी बढ़ेगी। एक नए अध्ययन के अनुसार जलवायु परिवर्तन के असर से हरेक 1 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि के कारण मानसून के बारिश की तीव्रता में 5 प्रतिशत तक वृद्धि दर्ज की जायेगी।

इस अध्ययन को पाट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च से जुड़े वैज्ञानिकों ने किया है और इसे जर्नल ऑफ़ अर्थ सिस्टम डायनामिक्स में प्रकाशित किया गया है। भारतीय मानसून जून से शुरू होकर सितम्बर तक अपना असर दिखाता है और यह दुनिया की लगभग 20 प्रतिशत आबादी के जीवन का आधार है।

भारतीय मौसम विभाग ने इस वर्ष के मानसून का पूर्वानुमान जारी किया है, इसके अनुसार इस वर्ष मानसून सामान्य रहेगा| इस वर्ष बारिश के दीर्घकालीन औसत की तुलना में 98 प्रतिशत तक बारिश होगी और देश के केवल पूर्वी और उत्तर पूर्वी हिस्सों – ओडिशा, बिहार, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश और असम – में सामान्य से कम वर्षा हो सकती है। यह एक राहत भरी खबर है।

जर्नल ऑफ़ अर्थ सिस्टम डायनामिक्स में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार भविष्य में मानसून की बारिश का पूर्वानुमान कठिन होता जाएगा, क्योंकि बारिश अप्रत्याशित और अव्यवस्थित होगी और इसकी तीव्रता बढ़ती जायेगी। इस अध्ययन के लिए दुनियाभर के वैज्ञानिकों द्वारा तैयार किये गए 30 सर्वाधिक प्रचलित जलवायु परिवर्तन और तापमान बृद्धि से सम्बंधित मॉडल का विस्तृत अध्ययन और पिछले 50 वर्षों के दौरान मानसून की बारिश का आकलन किया गया है।

अध्ययन के मुख्य लेखक अनजा कत्ज़ेन्बेर्गेर के अनुसार पहले भी इस तरह के आकलन किये जा चुके हैं, पर उनमें जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित पुराने मॉडल का अध्ययन किया गया था और पुराने अध्ययनों का निष्कर्ष भी यही था कि तापमान वृद्धि के साथ भारत में बारिश बढ़ेगी। एक बड़ा अंतर यह है कि पुराने अध्ययनों के अनुसार बारिश में 3 प्रतिशत बढ़ोत्तरी का अनुमान था, दरअसल बारिश में वृद्धि उससे भी अधिक होगी| इस कारण बारिश के समय उगाई जाने वाली फसलों को तीव्र बारिश के कारण नुकसान का खतरा बढ़ जाएगा।

अध्ययन के अनुसार हवा में प्रदूषण के कारण बहुत छोटे ठोस कण या रसायनों की बूँदें, जिन्हें एरोसोल कहा जाता है, मौजूद रहते हैं। हवा में इनकी अत्यधिक सांद्रता के कारण सूर्य की किरणें पृथ्वी पर पहुँचाने से पहले ही परावर्तित होकर अंतरिक्ष में पहुँच जाती हैं| हवा में एरोसोल की सांद्रता बढ़ने पर तापमान वृद्धि का असर कम हो जाता है, पर समस्या यह है की हवा में तापमान कम होने पर बादलों के बनने और बरसने की प्रक्रिया कमजोर पड़ जाती है और बारिश कम होती है।

आंकड़ों के अनुसार देश में वर्ष 1950 से 2000 के बीच बारिश में कमी आई थी, पर उसके बाद से बारिश में तेजी आई और इसमें अस्थिरता भी आई। इस दौर में हवा में मौजूद एरोसोल से तापमान में कमी का असर जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि ने बेअसर कर दिया, और अब तापमान लगातार बढ़ रहा है। तापमान बढ़ने के कारण बादलों के बनने और बरसने की प्रक्रिया तेज हो गयी, और बारिश बढ़ने लगी।

तापमान वृद्धि के असर से बादल पहले से खतरनाक हो गए और पिछले कुछ वर्षों के दौरान बादलों के बीच बिजली कड़कने की घटनाएं बढ़ने लगीं। पिछले कुछ वर्षों के दौरान मानसून के दौरान बिजली गिरने की घटनाओं के दौरान बहुत सारे लोग मारे जा रहे हैं।

19वीं सदी के मध्य की तुलना में तापमान अब तक 1.1 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है और यह लगातार बढ़ता जा रहा है। पिछले वर्ष दुनिया में मौसम से सम्बंधित चरम प्रभाव वाली जितनी घटनाएं देखी गईं, उनमें से सबसे खतरनाक पांच घटनाएं भारत के आसपास के मानसून से जुड़ी थीं। वैज्ञानिकों के अनुसार आगे मानसून में बदलाव हरेक वर्ष अलग होगा, इसलिए इससे जुडी दीर्घकालीन योजनायें बनाना कठिन होगा।

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