तेजी से पिघल रही है दुनियाभर में जमी बर्फ, यह है पर्यावरण संकट का नया संकेत

मनुष्य के लिए धरती पर बर्फ का होना उतना ही जरूरी है जितना मिट्टी, हवा व पानी का। लेकिन, सामान्यतः बर्फ के महत्व के बारे में कम चर्चा होती है। इस आलेख में जानिए कि बर्फ क्यों और कैसे मनुष्य के जीवल के लिए अहम है...

Update: 2020-08-26 08:00 GMT

महेंद्र पांडेय की टिप्पणी

तापमान वृद्धि के कारण पूरी पृथ्वी और महासागरों का तापमान बढ़ता जा रहा है और इसके बढ़ाते तापमान के साथ ही पृत्वी के दोनों ध्रुवों और ऊचे पगादों पर जमी बर्फ की परत के पिघलने की रफ़्तार तेज होती जा रही है।

ऐसे अधिकतर अध्ययन अलग-अलग जगह किये जा रहे हैं। जैसे कोई हिमालय की पिघलती ग्लेशियर के बारे में बता रहा है। कोई उत्तरी ध्रुव के बारे में अध्ययन कर रहा है। वैज्ञानिकों का एक समुदाय दक्षिणी ध्रुव की तहकीकात कर रहा है, तो दूसरा समुदाय ग्रीनलैंड की जानकारी दे रहा है और हरेक जगह की तस्वीर पहले से अधिक भयानक होती जा रही है।

हाल में ही ब्रिटेन के लीड्स यूनिवर्सिटी, एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी कॉलेज ओर लंदन के वैज्ञानिकों के एक संयुक्त दल ने दुनियाभर में पृथ्वी पर, पहाड़ों की चोटियों पर और महासागरों की सतह पर जमी बर्फ का विस्तृत अध्ययन किया है और बताया है कि पिछले 1994 से 2017 के बीच पूरी दुनिया में जमी 28 खरब बर्फ पिघल चुकी है और यह आंकड़ा चौकाने वाला है और परेशान करने वाला भी।

क्रायोस्फेयर डीस्कशंस नामक जर्नल में प्रकाशित इस शोधपत्र के अनुसार दुनियाभर में तेजी से पिघलती बर्फ का मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि है। लीड्स यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर एंडी शेफर्ड के अनुसार समस्या केवल यह नहीं है कि पृथ्वी और महासागरों में जमीन बर्फ तेजी से पिघल रही है।

इसके पिघलने के बाद यह पानी महासागरों में जा रहा है, जिससे सागर तल की औसत ऊंचाई इस शताब्दी के अंत तक एक मीटर बढ़ जाएगा, जिससे पूरी दुनिया का भूगोल और जनसंख्या का वितरण प्रभावित होगा। जब सागर तल महज एक सेंटीमीटर बढ़ता है तब पूरी दुनिया में लगभग 10 लाख लोग विस्थापित होते हैं। दूसरी तरफ जब ध्रुवों की बर्फ का ठंडा पानी भारी मात्रा में महासागरों में मिलता है तब उसमें रहने वाले जीव जंतु प्रभावित होते हैं।

वैज्ञानिकों के अनुसार दुनियाभर में जितनी बर्फ पिघलती है, उसका सारा पानी महासागरों का तल बढाने में मददगार नहीं होता। दुनिया में जितनी बर्फ पिघल रही है, उसमें से 54 प्रतिशत तो महासागरों की सतह के ऊपर जमी बर्फ है, जिसके पिघलने से सागर तल पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

दोनों ध्रुवों की भूमि पर जमी बर्फ और पहाड़ों की चोटियों पर जमी बर्फ के पिघलने से कुल 46 प्रतिशत पानी ऐसा है जो महासागरों का तल बढ़ रहा है।

बर्फ कैसे बढते तापमान को रोकती है?

बर्फ की सतह सूर्य की किरणों को अंतरिक्ष में परावर्तित करने में सक्षम है। इसलिए यह तापमान वृद्धि से पृथ्वी को बचाती है। जब यह तेजी से पिघलती है, तब उसके नीचे से भूमि या फिर महासागर की सतह सामने आती है, जो सूर्य की किरणों को अवशोषित करती है और तापमान वृद्धि में सहायता पहुंचाती है। इसलिए बर्फ के आवरण का तेजी से पिघलना तापमान वृद्धि का महत्वपूर्ण कारण बन जाता है और फिर बढ़ाते तापमान से बर्फ की सतह और तेजी से पिघलती है।

1980 से 89 के दशक की तुलना में 1990 से 99 के दशक के दौरान तापमान 0.14 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया, जबकि अगले दो दशकों के दौरान यह बढ़ोत्तरी 0.2 डिग्री सेल्सियस प्रति दशक तक पहुँच गई। अनुमान है कि अगले दशक तक यह वृद्धि 0.3 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच जायेगी।

शोधपत्र के अनुसार दुनिया के हरेक हिस्से में जमी बर्फ के पिघलने की रफ़्तार तेज हो गई है। हिमालय जैसे पहाड़ की चोटियों पर जमी बर्फ के तेजी से पिघलने का असर उनसे निकालने वाली नदियों पर पड़ता है, जिस पर बड़ी आबादी पानी की जरूरतों के लिए निर्भर करती है।

दुनिया में हरेक जगह जमी बर्फ के तेजी से पिघलने के कारण भी अलग-अलग हैं। दक्षिणी ध्रुव के क्षेत्र में बर्फ के पिघलने का मुख्य कारण महासागरों का बढ़ता तापमान है, जबकि पहाड़ों पर जमीन ग्लेशियर के पिघलने का मुख्य कारण वायुमंडल का बढ़ता तापमान है। उत्तरी ध्रुव और ग्रीनलैंड जैसे खतरों में बर्फ पिघलने का कारण महासागरों और वायुमंडल दोनों का बढ़ता तापमान है। 

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