स्टडी में चौंकाने वाला खुलासा, वायु प्रदूषण से दक्षिण एशिया में हर साल हो जाते 3.50 लाख गर्भपात
गर्भावस्था के नुकसान के मामलों में 77फीसदी भारत से, 12 प्रतिशत पाकिस्तान से और 11फीसदी बांग्लादेश से थे, भारत और पाकिस्तान में उत्तरी मैदानी क्षेत्र में गर्भावस्था के नुकसान अधिक आम थे..
जनज्वार। यूँ तो प्रदूषण से पूरी दुनिया प्रभावित हो रही है, पर भारत जैसे विकासशील देशों में इसका प्रभाव काफी ज्यादा है। विश्व के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में हमारे देश के कई शहर आ जाते हैं। प्रदूषण से पूरा सजीव जगत प्रभावित होता है, पर एक नई स्टडी से खुलासा हुआ है कि प्रदूषण का गर्भवती महिलाओं और गर्भ पर काफी बुरा असर पड़ता है। शोध में यह तथ्य भी सामने आया है कि दक्षिण एशिया की हवा सबसे खराब गुणवत्ता की है और इसके परिणामस्वरूप इस इलाके में हर साल औसतन साढ़े तीन लाख गर्भपात हो जाते हैं।
इस अध्ययन में पाया गया कि हवा की खराब गुणवत्ता प्रेगनेंसी में नुकसान की बड़ी वजह बन रही है। वायु में बढ़ते प्रदूषण के चलते अब तक कई महिलाओं का गर्भपात हो गया है और कई महिलाएं ऐसी हैं, जिनके बच्चे मृत पैदा हुए हैं। वहीं कई महिलाएं ऐसी भी सामने आ रही हैं, जिन्हें बच्चा कंसीव करने में भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, तो कई महिलाएं बच्चा कंसीव ही नहीं कर पा रही हैं।
द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ जर्नल में प्रकाशित एक मॉडलिंग अध्ययन के मुताबिक भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में खराब हवा की गुणवत्ता और प्रेगनेंसी में नुकसान आपस में जुड़ा हुआ है। इसमें कहा गया है कि उत्तर भारत और पाकिस्तान में इस तरह के नुकसान ज्यादा आम हैं।
द लैंसेट प्लेनेटरी हेल्थ जर्नल में प्रकाशित इस मॉडलिंग अध्ययन के अनुसार, भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश में गर्भवती महिलाओं, जो खराब वायु गुणवत्ता के संपर्क में हैं, वे स्टिलबर्थ और गर्भपात के अधिक जोखिम में हैं।
अध्धयन के अनुसार, दक्षिण एशिया में हर साल अनुमानित 349,681 गर्भावस्था में नुकसान PM2.5 सांद्रता से जुड़ा हुआ है, जो भारत की वायु गुणवत्ता मानक से अधिक हैं। अध्ययन के मुताबिक, 2000 से 2016 के बीच हर साल 7 प्रतिशत प्रेगनेंसी लॉस हुआ है। हालांकि इस अध्ययन में नेचुरल प्रेगनेंसी लॉस और गर्भपात के बीच के अंतर का पता नहीं लगाया जा सका है।
शोधकर्ताओं ने अपने शोध में 34,197 महिलाओं को शामिल किया। इनमें 27,480 महिलाएं वो हैं, जिनका गर्भपात हुआ है और 6,717 महिलाएं वो हैं, जिनके बच्चे मृत पैदा हुए थे। इनकी तुलना जीवित जन्म नियंत्रण से की गई थी।
गर्भावस्था के नुकसान के मामलों में 77 प्रतिशत भारत से, 12 प्रतिशत पाकिस्तान से और 11 प्रतिशत बांग्लादेश से थे। शोधकर्ताओं ने उल्लेख किया कि भारत और पाकिस्तान में उत्तरी मैदानी क्षेत्र में वायु प्रदूषण से जुड़े गर्भावस्था के नुकसान अधिक आम थे।
शोध टीम ने 1998-2016 तक स्वास्थ्य पर घरेलू सर्वेक्षणों से डेटा संयुक्त किया और वायुमंडलीय मॉडलिंग आउटपुट के साथ उपग्रह के माध्यम से गर्भावस्था के दौरान PM2.5 के लिए जोखिम का अनुमान लगाया।
उन्होंने मातृ आयु, तापमान और आर्द्रता, मौसमी भिन्नता और गर्भावस्था के नुकसान में दीर्घकालिक रुझानों के समायोजन के बाद PM2.5 में प्रत्येक 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर वृद्धि के लिए गर्भावस्था के नुकसान के जोखिम की गणना करने के लिए एक मॉडल बनाया।
शोधकर्ताओं ने साल 2000-2016 की अवधि के लिए पूरे क्षेत्र में PM2.5 के कारण होने वाले गर्भावस्था के नुकसान की संख्या की गणना की और देखा कि भारत और WHO के वायु गुणवत्ता मानक के तहत कितने गर्भावस्था के नुकसान को रोका जा सकता है।
अध्ययन के अनुसार, 10 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर के डब्ल्यूएचओ वायु गुणवत्ता दिशानिर्देश के ऊपर के वायु प्रदूषण का गर्भावस्था के नुकसान में 29 प्रतिशत तक योगदान हो सकता है।
पेकिंग विश्वविद्यालय, चीन से अध्ययन के प्रमुख लेखक ताओ ज़ू ने कहा, 'दक्षिण एशिया में विश्व स्तर पर गर्भावस्था के नुकसान का सबसे अधिक बोझ है और दुनिया में सबसे अधिक पीएम 2.5.5 प्रदूषित क्षेत्रों में से एक है।'
'हमारे निष्कर्ष बताते हैं कि खराब वायु गुणवत्ता इस क्षेत्र में गर्भावस्था के नुकसान के काफी बोझ के लिए जिम्मेदार हो सकती है, जिससे प्रदूषण के खतरनाक स्तरों से निपटने के लिए तत्काल कार्रवाई का औचित्य प्रदान किया जाता है,' ताओ जुए ने कहा।
वहीं चाइनीज एकेडमी ऑफ मेडिकल साइंसेज से तियानजिया गुआन ने कहा कि गर्भावस्था को खोने से महिलाओं पर मानसिक, शारीरिक और आर्थिक प्रभाव पड़ सकते हैं।
इससे पहले के कई शोध भी बता चुके हैं कि वायु प्रदूषण गर्भस्थ शिशु के विकास के लिए हानिकारक होता है। जो गर्भवती महिलाएं वायु प्रदूषण में ज्यादा रहती हैं, उनके बच्चों को अधिक जोखिम रहता है।
स्टॉकहॉम एनवायरमेंट इंस्टीट्यूट की स्टडी में पाया गया है कि साल में लगभग 30 लाख बच्चों का जन्म प्रदूषण की वजह से नौ महीने से पहले ही हो जाता है। इन बच्चों में नसों से संबंधित विकारों और शारीरिक विकलांगता का खतरा बहुत ज्यादा रहता है।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ द्वारा करवाई गई स्टडी के अनुसार, वायु प्रदूषकों जैसे छोटे कण और ओजोन की वजह से मिसकैरेज का खतरा बढ़ सकता है। ऐसा प्लेसेंटा में सूजन बढ़ने की वजह से होता है जिससे भ्रूण के विकास में दिक्कतें आती हैं।