महत्वपूर्ण लेख : जल संकट से बचना है तो देनी होगी पानी के प्रशिक्षित संरक्षकों को अहमियत
अगर आप दूरदराज की एक नदी का पानी शहर में लाने की योजना भी बनाते हैं तो आपको यह समझना होगा कि लाये जाने वाले पानी का इस्तेमाल क्या होगा, पानी का स्तर बढ़ जाने पर उसकी निकासी का और गन्दगी ले जाने का डिजाइन कैसा होगा....
रोहिणी नीलकेणी और माला सुब्रमण्यम का विशेष लेख
आम लोगों की सेहत, रोजी-रोटी और आबोहवा के संकट से जुड़ी चुनौतियाँ से पार पाने के लिए जल एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है। लम्बे समय तक जल सुरक्षा बनाये रखने के लिए ज़रूरी है कि सरकार शक्तिशाली स्थानीय समुदायों और नित नया करते रहने वाली बाजार की ताकतों के साथ संवाद बनाये रखे, ताकि जल क्षेत्र द्वारा चाहे जाने वाले बेहतर लचीलेपन और अनुकूलन को हासिल किया जा सके।
जल से जुडी परियोजनाएं किसी भी स्तर की सोची जा सकती हैं, लेकिन सफल होने के लिए उनकी प्रासंगिकता और स्थानीय लोगों का उनसे जुड़ाव ज़रूरी है। उदाहरण के तौर पर अगर आप दूरदराज की एक नदी का पानी शहर में लाने की योजना भी बनाते हैं तो आपको यह समझना होगा कि लाये जाने वाले पानी का इस्तेमाल क्या होगा, पानी का स्तर बढ़ जाने पर उसकी निकासी का और गन्दगी ले जाने का डिजाइन कैसा होगा।
इसके लिए आपको ऐसे प्रशिक्षित पेशेवरों, स्थानीय नेताओं और नागरिक स्वयंसेवकों की ज़रुरत होती है जो ये जानते हैं कि सतह के ऊपर और नीचे स्थानीय पानी का तौर-तरीका क्या होता है। उन्हें ऐसे ठोस उपाय ढूंढने होंगे जो दूसरों के द्वारा सुझाए गए उपायों को शामिल करते हों।
पिछले कई दशकों से जल संबंधी ढाँचे को बेहतर बनाने के प्रति हर सरकार उत्सुक दिखाई देती रही है। जल शक्ति मंत्रालय ने अकेले इस साल के लिए पानी से जुड़े कार्यों के लिए 30,000 करोड़ रुपयों का आवंटन बजट में किया है। जल जीवन मिशन उम्मीद कर रहा है कि 2024 तक 145 मिलियन ग्रामीण घरों में नल की टोटियां लग जाएंगी। अटल भू-जल योजना का लक्ष्य 5 वर्षों में 8,353 ग्राम पंचायतों में भू-जल प्रबंधन को बेहतर बनाना है।
इस तरह के कार्यक्रमों के लिए देशभर में लाखों लोगों को प्रशिक्षित किया गया है। देश भर में इन्हें भू-जल जानकार, धारा सेवक या जल सुरक्षक कहा जा सकता है। संलग्न क्षेत्रों में काम करने वाले रोज़गार सहायक, कृषि मित्र और स्वच्छता दूत इसमें नहीं शामिल हैं।
बावजूद इसके अगर हम जानना चाहें कि ये सभी प्रशिक्षित लोग हैं कहाँ तो हमें निराशा ही होगी। किसी को भी ये तक नहीं पता है कि यह प्रशिक्षण कितना प्रभावी रहा है। इन प्रशिक्षकों के जीवनयापन पर क्या असर हुआ है? हस्तांतरित किये गए ज्ञान ने समुदायों को वर्तमान समस्याओं से निपटने के लिए कितना तैयार किया है? पानी के बारे में अव्यक्त छितरे पड़े ज्ञान को समझने की कोई व्यवस्था भी नहीं है। समाज द्वारा सबकुछ भुलाया जा चुका है।
इन लाखों कारीगरों को ढूंढ़ निकालना टेढ़ी खीर ज़रूर है, लेकिन अगर हम उन्हे ढूंढ़ निकालने में सफल भी हो जाते हैं तब भी पूर्व के उनके ज्ञान और अनुभव पर हमें कम ही विश्वास होगा। इसलिए प्रशिक्षण का हर प्रयास एक नई शुरुवात होता है। पहले से मौजूद अधरों पर इनका निर्माण कर पाना कभी-कभी ही संभव हो पता है।
इन्हें हम कैसे बदल सकते हैं?
अगर हम प्रशिक्षण पा चुके सभी लोगों को कुछ इस तरह पेश करें, जिससे कार्यक्रम चलाने वाले और समुदाय के लोग भी जान सकें कि वो कौन हैं और कहाँ हैं; वो पहले से ही कितने सक्षम हैं; और वो क्या-क्या कर चुके हैं तो कैसा रहेगा? ऐसे में सबके पास ये क्षमता होगी कि वो ज़रूरतमंद लोगों को ही लेंगे। साथ ही प्रशिक्षित कामगारों के पास भी एक एजेंसी हो जाएगी जिससे वे अपने काम में इस्तेमाल होने वाली सूचनाएं हासिल कर पाएंगे।
इस तरह के आविष्कार-योग्य प्रमाणित जलनायक पानी से जुड़े किसी भी नए प्रयास के आकार को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण हो सकते हैं। अगर सही तरीके से किया जाये तो हमारा विश्वास है कि इससे देशभर में 5 लाख नौकरियाँ पैदा हो सकती हैं।
जब हम हुनरमंद लोगों को आगे ला रहे हैं तो अगर साथ ही हम डिजिटल रूप से हम उन संसाधनों को भी चिन्हित कर सकें, जिनका वे इस्तेमाल करते हैं और उत्पादन करते हैं तो कैसा रहेगा? मुख्य प्रशिक्षकों, शिक्षण मॉड्यूल्स, जल सुरक्षा योजनाओं और कुओं तथा तालाबों जैसी जल सम्पत्तियों का इलेक्ट्रॉनिक पंजीकरण किया जा सकता है। ऐसा करके क्षमता निर्माण बजट को प्रशिक्षण की कमियों को पूरा करने में इस्तेमाल किया जा सकता है। इस तरह बचाई गई धनराशि का इस्तेमाल दी गई सेवाओं के भुगतान में किया जा सकता है। इससे लोगों को जल क्षेत्र में बने रहने का प्रोत्साहन मिलेगा और वे हर जगह गुणवत्ता दे सकेंगे और ले भी सकेंगे।
अर्घ्यम ने अभी हाल में एक साधारण डिजिटल सत्यापित सेवा शुरू करने के लिए फंड दिया है। ऐसी शुरुआत कुछ बड़े कार्यक्रमों में की गई है जिन्हें गैर-सरकारी संगठनों के साथ मिल कर कुछ राज्यों में लागू किया जा रहा है। महामारी ने कुछ शारीरिक प्रशिक्षणों को आभासी बनाने पर मजबूर कर दिया।
दिलचस्प बात तो ये है कि लोग अब निपुण प्रशिक्षकों के साथ कभी भी कहीं भी सीखने के सत्र की सुविधा का अनुभव ग्रहण कर रहे हैं। इस प्रक्रिया के माध्यम से प्रशिक्षु एक डिजिटल सत्यापन प्राप्त कर लेते हैं, जिसका इस्तेमाल वे नए अवसर तलाशने के लिए कर सकते हैं। हमारे प्रयास सरकार द्वारा गोद लिए Diksha, ECHO और iGot जैसे क्षमता-निर्माण प्लेटफॉर्म्स के पीछे लगे टेक्निकल डिज़ाइन और सिद्धांतों के साथ एकजुट हैं।
शुरुआती नतीजे उम्मीद भरे हैं। एकत्रित आंकड़ों की जानकारी और डिजिटल ढांचे में भागीदारी अत्यधिक ताक़तवर हो सकती है सामुदायिक संस्थाओं के माध्यम से समाज नामक संस्था की बहाली में, स्थानीय शासन के माध्यम से सरकार नामक संस्था की बहाली और निपुण कामगारों के लिए रोजी-रोटी के नए अवसरों के माध्यम से बाजार नामक संस्था की वापसी।
अगर हमें वर्तमान और भावी महामारियों से प्रभावी ढंग से निपटना है और जलवायु संबंधी आपात स्थितियों का सामना मिलजुल कर करना है तो लचीलापन और अनुकूलन महज शब्द नहीं हैं। वो महत्वपूर्ण कारीगरी है जिन्हें समुदायों को जल्द से जल्द सीख लेना चाहिए। इस अनिवार्यता को पूरा करने की दिशा में कुछ नया करने के लिए जल क्षेत्र एक अच्छी जगह है।
(रोहिणी नीलकेनी अर्घ्यम की चेयरपर्सन हैं। माला सुब्रमण्यम अर्घ्यम की सीईओ हैं और अर्घ्यम एक फाउंडेशन है जो सुरक्षित, टिकाऊ जल व्यवस्था एवं साफ-सफाई के मुद्दों पर काम करता है। यह आलेख द हिंदुस्तान टाइम्स से साभार लिया गया है।)