उत्तराखंड सचिवालय में भर्तियों की धांधली : खुले हाथ से सभी भाजपाइयों ने बांटी नौकरियां, कैबिनेट मंत्री रेखा आर्य पत्रकारों से बोलीं आपकी भी कर दूंगी सिफारिश

Uttarakhand Bharti Ghotala :

Update: 2022-08-30 10:25 GMT

सलीम मलिक की रिपोर्ट

देहरादून। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून स्थित विधानसभा सचिवालय में हुई तमाम नियुक्तियों के हो रहे खुलासे के बाद जहां राज्य सरकार सकते में है तो कांग्रेस के दिग्गज गांधीवादी नेता व पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल को इसमें कोई अनियमितता नजर नहीं आ रही। वह खुलेआम ने केवल इन नियुक्तियों को जायज ठहरा रहे हैं, बल्कि उनका दर्द यह है कि पिछले विधानसभा अध्यक्षों ने जो नियुक्तियां की हैं, उन पर कोई बात नहीं कर रहा है। छोटी विधानसभा में कार्मिकों की फौज के तर्क को वह यह कहकर खारिज कर रहे हैं कि विधानसभा छोटी हो या बड़ी, काम उतना ही होता है।

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बता दे कि कुंजवाल का यह बयान उस समय आया है जब इन्हीं आरोपों पर एक और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद्र अग्रवाल झल्लाए हुए हैं। उत्तराखंड की स्थापना के बाद से विधानसभा सचिवालय में अपने चहेतों को बैकडोर से नियुक्त किए जाने का मामला इन दिनों चर्चा में है। विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल के पुत्र की उपनल के माध्यम से हुई नियुक्ति से पता चल रहा है कि सैनिक या सैनिक आश्रित को रोजगार दिए जाने वाला राज्य पूर्व सैनिक कल्याण निगम लिमिटेड (उपनल) सत्ताधारी रसूखदारों के लिए सचिवालय में नौकरी देने का चोर-रास्ता बना हुआ था। 2016 में आचार संहिता लगने से कुछ ही पहले नियमों को ताक पर रखते हुए उत्तराखंड विधानसभा में उपनल के ज़रिए काम कर रहे 78 लोगों को पक्का करने के बहाने और फिर दिसंबर 2016 में 80 और लोगों को मिलाकर कुल 158 लोगों को विधानसभा सचिवालय में तदर्थ नियुक्ति दी गई थी, जिसमें अधिकांश से भी आगे मतलब लगभग सभी तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष से लेकर नेताओं के नाते-रिश्तेदार हैं।

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राज्य में 2003 से तदर्थ नियुक्तियों पर पूरी तरह रोक होने के कारण विशेष परिस्थितियों में होने वाली नियुक्तियों के लिए कैबिनेट के साथ ही कार्मिक विभाग की जरूरी मंजूरी तो क्या ही ली जाती, इसके लिए एक विज्ञापन तक निकलने की जरूरत महसूस नहीं की गई। कोई गौर करे तो उसके लिए यह जानना दिलचस्पी से खाली न होगा कि उपनल के तहत कुमाऊं मंडल के बेरोजगारों का हल्द्वानी में और गढ़वाल मंडल के बेरोजगारों का देहरादून में रजिस्ट्रेशन होता है। लेकिन आश्चर्य की बात है विधानसभा में हुई इन नियुक्तियों के सारे रजिस्ट्रेशन ही केवल देहरादून कार्यालय में ही हुए हैं। रक्षक पद पर हुई 44 नियुक्तियों के लिए जरूरी शारीरिक परीक्षण से भी इनको बाहर रखा गया। चतुर्थ श्रेणी के 17 पदों के सापेक्ष 23 लोग सीधी भर्ती से नौकरी हासिल किए हैं। मतलब छह लोग पिछले डेढ़ साल से वित्त विभाग की मेहरबानी से बिना पद के तनख्वाह ले रहे हैं।


इन्हें मिला सत्ता का अटूट प्रसाद

अब जिन नियुक्तियों को लेकर उत्तराखंड में कोहराम मचा हुआ है, उनमें से कुछ नामों का जिक्र किया जाए तो तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल के बेटे पंकज कुंजवाल को क्लास टू श्रेणी में विधानसभा रिपोर्टर के पद पर नियुक्ति दे दी गई। इस पद के लिए अंग्रेजी और हिंदी में शॉर्ट हैंड अनिवार्य है। लेकिन पंकज कुंजवाल शॉर्ट हैंड विधा से अनभिज्ञ है। इन्हें शॉर्ट हैंड नही आती। बात करें कुंजवाल की बहु स्वाति कुंजवाल की तो इन्हें 5400 ग्रेड पे पर उप प्रोटोकॉल अधिकारी में तदर्थ नियुक्ति दे दी गई। गांधीवादी नेता गोविंद सिंह कुंजवाल के भतीजे स्वपनिल कुंजवाल को भी उत्तराखंड के युवाओं के हक़ मारी करके सहायक समीक्षा अधिकारी के पद पर नियुक्ति दी गई है।

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हरीश रावत सरकार के कार्यकाल में धुंआधार बल्लेबाजी करने वाले धारचूला के तत्कालीन विधायक हरीश धामी पर भी कुंजवाल की कृपा निर्विकार से भाव से प्रकट हुई। धामी के जिस भाई खजान धामी को विधानसभा रिपोर्टर के पद पर नियुक्ति दी गई है, उन्हें भी शॉर्ट हैंड का ज्ञान नहीं है। विधायक हरीश धामी की बहू यानि कि खजान धामी की पत्नी लक्ष्मी चिराल भी इन नियुक्तियों में सहायक समीक्षा अधिकारी बनी हुई हैं। हर साल एक धार्मिक यात्रा निकालकर लोगों को आस्था की घुट्टी पिलाने वाले तत्कालीन कैबिनेट मंत्री मंत्री प्रसाद नैथानी ने लोगों को भले ही आस्था यात्रा में झूमने पर मजबूर किया हो, लेकिन आस्था की आड़ में वह लड़कों को ऐसा मूर्ख बना रहे थे कि अपनी पुत्री मोनिका को वह अपर सचिव पद पर तैनाती दे दिलवाकर अपना फर्ज निभा रहे थे। आसान गंगा और मुफ्त के गोते वाली कहावत को बेहद ईमानदार समझे जाने वाले पूर्व सीएम भुवनचंद्र खंडूरी के ओएसडी रहे जयदीप रावत ने भी क्षमता भर गोते लगाए। इनकी पत्नी सुमित्रा रावत को भी इसी दौरान विधानसभा में नियुक्ति दी गई।

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चिट्ठी लिखनी नहीं आती और बन बैठे अधिकारी

विधानसभा सचिवालय में अंधेरगर्दी यह रही कि इन 158 लोगों ने नौकरी के लिए एक ऐसे सादे कागज पर नौकरी के लिए आवेदन किया जिसमें आवेदन करने की तारीख तक यह लोग न डाल सके। आवेदन करने वालों की चिट्ठी की भाषा देखने के बाद इन्हें कोई घोड़े चराने की नौकरी न दे। लेकिन राजनैतिक लोगों का प्रताप ही था कि यह करीब लाख रुपए का चूना सरकार को लगा रहे हैं।

...और इनके बचाव में अपने परिवार की बेरोजगारी की दुहाई दे रहे हैं गांधीवाद के पुरोधा

ऐसी ही भर्तियों पर उत्तराखंड में गांधीवादी नेता के तौर पर जाने वाले पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल के कहना है कि मेरा बेटा बेरोजगार था, मेरी बहू बेरोजगार थी, दोनों पढ़े-लिखे थे। अगर डेढ़ सौ से अधिक लोगों में मैंने अपने परिवार के दो लोगों को नौकरी दे दी तो कौन सा पाप किया ? उत्तराखंड विधानसभा में हुई भर्तियों के मामले में बिना किसी अपराधबोध के हरीश रावत में सरकार में विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी संभाले गोविंद सिंह कुंजवाल की इस मामले में सफाई है कि "मेरा बेटा बेरोजगार था, मेरी बहू बेरोजगार थी, दोनों पढ़े-लिखे थे। अगर डेढ़ सौ से अधिक लोगों में मैंने अपने परिवार के दो लोगों को नौकरी दे दी तो कौन सा पाप किया। मेरे कार्यकाल में कुल 158 लोगों को विधानसभा में तदर्थ नियुक्ति दी गई थी। इनमें से आठ पद पहले से खाली थे। 150 पदों की स्वीकृति मैंने तत्कालीन सरकार से ली थी।"

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कुंजवाल का यह भी कहना है कि उनके कार्यकाल के दौरान हुई नियुक्तियों को लेकर कुछ लोग हाईकोर्ट गए थे, लेकिन हाईकोर्ट ने इन नियुक्तियों को सही करार दिया। इसके बाद कुछ लोग सुप्रीम कोर्ट चले गए। वहां भी तमाम नियुक्तियों को सही ठहराया गया। अब जो लोग नियुक्तियों पर सवाल उठा रहे हैं, वह हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की अहवेलना कर रहे हैं। नियुक्तियों पर सवाल उठाने वाले लोगों को गांधीवादी तरीके से धमकाते हुए कुंजवाल मानते हैं कि उनके कार्यकाल में विधानसभा अध्यक्ष को संविधान की ओर से प्रदत्त शक्तियों के अनुरूप ही नियुक्तियां की गई हैं। इसमें कहीं कुछ भी गलत नहीं है। इसमें कहीं भी पैसे के लेन-देन या भ्रष्टाचार की बात कोई सिद्ध कर सकता है तो वह किसी भी जांच के लिए तैयार हैं।


अपनी करतूत के छिपाने के लिए विपक्षियों को दे रहे हैं क्लीन चिट

गांधीवाद के झंडाबरदार गोविंद सिंह कुंजवाल पर अपने परिजनों को विधानसभा सचिवालय में तमाम नियमों को दरकिनार नौकरी दिए जाने के इल्जाम के वह भर्ती की इन विसंगतियों को अपने पूर्ववर्ती विधानसभा अध्यक्षों की आड़ में जायज करार दिए जाने पर आमादा हैं। इसके लिए वह अपने से पहले विपक्षी पार्टी के विधानसभा अध्यक्षों की आड़ लेने से भी नहीं हिचकिचा रहे हैं। अपने कामों को जायज ठहराने के लिए कुंजवाल का कहना है कि पूर्व विधानसभा अध्यक्ष प्रकाश पंत की अध्यक्षता में बनी समिति ने उत्तराखंड विधानसभा में 500 कर्मचारियों-अधिकारियों की नियुक्ति की सिफारिश की थी। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल ने जो भी नियुक्तियां की हैं वह सभी नियुक्तियां भी पूरी तरह वैध हैं।

कुंजवाल का इकलौता दर्द यह है कि उनके समय में हुई नियुक्तियों को लेकर कुछ लोग कोर्ट चले गए, जबकि इससे पूर्व विधानसभा अध्यक्ष रहे प्रकाश पंत और यशपाल आर्य के समय में भी तमाम नियुक्तियां की गई थीं, उन पर किसी ने सवाल नहीं उठाए। कुल मिलाकर गांधीवादी नेता के इस बयान का मतलब है कि दूसरों ने गलत किया तो कोई उन पर उंगली नहीं उठा रहा हैं। सारी उंगलियां उनकी ही तरफ उठ रहीं हैं।

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नियुक्तियों में संघ प्रचारकों को भी मिली मलाई, कोश्यारी की भतीजी को भी मिली नौकरी

उत्तराखंड विधानसभा सचिवालय में हुई नियुक्तियों के मामले में सेवा, त्याग और समर्पण के लिए माने जाने वाले राष्ट्रीय स्वयं सेवक के प्रचारक भी पीछे नहीं रहे। किसी प्रचारक ने अपने रिश्तेदार को नौकरी दिलाई तो कोई खुद ही सरकारी नौकरी करने लगा। एक प्रचारक का तो ड्राइवर भी नौकरी हासिल करने में सफल रहा। ऐसे भी कई नाम हैं जो संघ से जुड़े हैं और वह बिना प्रतियोगी परीक्षा के विधानसभा में नौकरी पाने में सफल रहे।

आरएसएस प्रचारकों की बात की जाए तो इसमें सबसे पहला नाम आरएसएस के प्रांत प्रचारक युद्धवीर का है। इनके भांजे दीपक यादव को नियुक्ति देने की बात कही गई है। इसी तरह संघ के विभाग प्रचारक भगवती प्रसाद के भाई बद्री प्रसाद को भी नौकरी मिली हुई है। संघ के सह प्रांत प्रचारक देवेंद्र की बहन को भी नौकरी मिली है तो प्रांत प्रचारक के ड्राइवर रहे विजय सुंद्रियाल भी आसानी से नौकरी पाने वालों में शामिल हैं। संघ के महानगर सह कार्यवाह सत्येंद्र पवार तो खुद ही सरकारी नौकरी पर लग गए। बात महाराष्ट्र में राज्यपाल बने हुए उन भगत सिंह कोश्यारी की करें जिनकी ब्रांडिग सीधे-सरल और व्यवहार कुशल कहकर की जाती रही है, तो इन्हीं के भाई की बेटी छाया कोश्यारी को भी विधानसभा में नौकरी मिली है।


धामी सरकार में मंत्री रेखा आर्य भी विवादों में, सिफारिशी पत्र हुआ वायरल

राज्य सरकार में मंत्री रेखा आर्य का एक पत्र सोशल मीडिया में वायरल हो रहा है, जिसमें बतौर विभागीय मंत्री उन्होंने पशुपालन एवं मत्स्य विभाग के सचिव को उत्तरकाशी के चार युवकों को पढ़ा लिखा बेरोजगार बताया है और विभाग में समायोजित करने के निर्देश जारी किये हैं। इस पत्र के वायरल होने पर उत्तराखण्ड प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता गरिमा दशौनी ने सवाल उठाया है, आखिर मंत्री को नियमानुसार प्रक्रिया अपनाने के बजाए ऐसे सिफारिश करने की जरूरत ही क्यों पड़ी। बीजेपी के मंत्री भी रेवड़ियों की तरह नौकरी बांट रहे हैं, ऐसे में आम बेरोजगार युवकों का क्या होगा, बड़ा सवाल है। इस पत्र की सफाई में कैबिनेट मंत्री रेखा आर्य कहती हैं, मैं एक जनप्रतिनिधि हूं, जब कोई पत्र लेकर आएगा तो उस पर निर्देश देना मेरा काम है। पत्रकारों से बात करते हुए रेखा आर्य ने कहा, आप भी कोई सिफारिशी पत्र लेकर आ जाइए, मैं उस पर भी लिख दूंगी। ये मैंने पहले भी किया है, आज भी किया है और आगे भी करती रहूंगी।

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