झारखंड के शिक्षा मंत्री का बड़ा बयान : हालात नहीं बदले तो 42 हजार स्कूलों को निजी हाथों में देंगे
Jharkhand News: झारखंड सरकार के शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो ने झारखंड जिला परियोजना परिषद की 16 फरवरी को हुई एक बैठक में एक काफी विवादित बयान दे डाला। उन्होंने कहा कि 'सरकार हर बच्चे पर सालाना 22 हजार रुपए खर्च करती है, लेकिन अब तक शिक्षा व्यवस्था दुरुस्त नहीं हो पाई।
विशद कुमार की रिपोर्ट
Jharkhand News: झारखंड सरकार के शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो ने झारखंड जिला परियोजना परिषद की 16 फरवरी को हुई एक बैठक में एक काफी विवादित बयान दे डाला। उन्होंने कहा कि 'सरकार हर बच्चे पर सालाना 22 हजार रुपए खर्च करती है, लेकिन अब तक शिक्षा व्यवस्था दुरुस्त नहीं हो पाई। अगर शिक्षा व्यवस्था दुरुस्त नहीं हुई तो राज्य के करीब 42 हजार स्कूलों को निजी हाथों में दे दिया जाएगा।'
इ बयान के बाद राज्य के शिक्षा जगत से जुड़े लोगों सहित सामाजिक कार्यकर्ता व जनप्रतिनिधि काफी चकित हैं। किसी ने शिक्षा मंत्री के बयान को गैर-जिम्मेदाराना बताया है तो किसी ने बयान को अव्यवहारिक मंत्रीपद की गरिमा के विरुद्ध बताया है।
बता दें कि चालू वित्तीय वर्ष के डेढ़ महीने से भी कम समय बचे हैं, लेकिन शिक्षा विभाग 450 करोड़ रुपए खर्च नहीं कर पाया है। मंत्री के अनुसार ये पैसे छात्रों के बौद्धिक कार्यकलापों और शारीरिक विकास मद में खर्च होने थे। अब इन पैसों को सरेंडर करने की नौबत आ गई है।
शिक्षा मंत्री ने तर्क दिया कि जो शिक्षक सरकारी नौकरी से रिजेक्ट हो जाते हैं, वैसे शिक्षक निजी शिक्षक कहलाते हैं। फिर भी अभिभावक अपने बच्चों को सरकारी की जगह निजी स्कूलों में भेजने को प्राथमिकता देते हैं।
शिक्षा मंत्री का एक बयान पर भारत ज्ञान विज्ञान समिति के राष्ट्रीय महासचिव काशीनाथ चटर्जी कहते हैं कि झारखंड के शिक्षा मंत्री का एक बयान में उन्होंने सरकारी शिक्षकों को कहा है कि अगर आप नहीं सुधारते हैं, तो हम सारे स्कूलों का निजीकरण कर देंगे। यह गैर-जिम्मेदारना बयान है। झारखंड के शिक्षा मंत्री माननीय जगन्नाथ महतो जी जब शिक्षा मंत्री बने तो उन्होंने झारखंड की शिक्षा पर कुछ अच्छा करने का कोशिश किया। पहला उन्होंने मर्जर के विरुद्ध कदम उठाया, दूसरा उन्होंने पारा शिक्षकों के वेतन में वृद्धि किया और पारा शिक्षकों को सहायक शिक्षक के रूप में पदोन्नति दिया। शायद देश में इस तरह के काम करने में झारखंड राज्य पहला राज्य बना। लेकिन उनका ऐसा बयान काफी निराशाजनक है और केंद्र सरकार द्वारा जो शिक्षा नीति लायी गयी है जो निजीकरण को बढ़ावा देता है, उस बढ़ावा का समर्थन करता है। यह चिंतनीय विषय है, अगर एक शिक्षा मंत्री इस तरह का बयान देते हैं तो झारखंड जो पहले ही शिक्षा में पीछे है और पीछे चला जाएगा और केंद्र सरकार जो आज के दिन सत्ता में है जो कोविड के समय शिक्षा नीति को लाकर शिक्षा नीति लागू किया है वह धीरे-धीरे निजीकरण का बढ़ावा देगा। केंद्रीयकरण को बढ़ावा देगा और खास करके इस बार का जो बजट आया है जिसमें केंद्र सरकार डिजिटल विश्वविद्यालय का बात कर रही है, यह नीति गरीबों और वंचितों को शिक्षा से दूर करेगा।
चटर्जी ने आगे बताया कि हमने भारत ज्ञान विज्ञान समिति की तरफ से देश के 9 राज्यों के 35,000 घरों का सर्वेक्षण किया था, जिसमें यह बात सामने आयी है कि 95% बच्चों के पास मोबाइल नहीं है। झारखंड में भी हमने जो सर्वेक्षण किया था, उस सर्वेक्षण में यही बात उभर कर आई थी। ऐसी स्थिति में शिक्षा मंत्री का यह बयान केंद्र सरकार की जन विरोधी शिक्षा नीति को लागू करने में मदद करेगा। हम यह मानते हैं की अंतिम जन तक शिक्षा का विस्तार और पहुंच तभी हो सकता है जब सरकारी स्कूलों को मजबूत किया जाए। इसका रास्ता है स्कूल प्रबंध समिति का सुदृढ़ करना, समुदाय को जागृत करना और साथ-साथ जिन क्षेत्रों में हिंदी छोड़कर दूसरी भाषा बोली जाती है, अर्थात संथाली, नागपुरी, मुंडारी इत्यादि वहां के शिक्षकों को 6 महीना तक इन भाषाओं का प्रशिक्षण लेकर बच्चों को उनके मात्रीभाषाओं में भी समझाना चाहिए। सरकारी स्कूलों को मजबूत कर ही हम झारखंड को शिक्षित राज्य बना सकते हैं इसलिए हम इस तरह के वक्तव्य का विरोध करते हैं।
ज्ञान विज्ञान समिति झारखंड के अध्यक्ष शिव शंकर प्रसाद का कहना है कि शिक्षा मंत्री का यह फरमान कि शिक्षा अधिकारी, शिक्षक सुधार जाये अन्यथा स्कूल को नीजि संस्थान के हवाले कर दिया जायेगा। पर जब सवाल किया तो उन्होंने कहा कि विभाग के पदाधिकारी शिक्षक जो काम नहीं करते हैं उनके लिए कहा है। उन्होंने कहा कि एक छात्र पर 22,000 रूपये खर्च करते हैं और रिजल्ट नहीं मिलता है। इस सम्बंध में मेरा मानना है कि ये सही है कि अधिकांश सरकारी शिक्षक अपने दायित्व का निर्वहन ईमानदारी से नहीं करते हैं, लेकिन नीजिकरण इसका समाधान नहीं है। आज भी देश के कई राज्यों में सरकारी स्कूल की पढ़ाई बेहतर है जिसमें केरल, दिल्ली, कुछ हद तक तामिलनाडु, महाराष्ट्र भी शामिल हैं। हमें तंत्र को सुधारने की जरूरत है तंत्र को समाप्त करने की नहीं, शिक्षा जैसे बुनियादी आवश्यकता को कभी भी नीजी हाथो में नहीं देना चाहिए।
ऑल ईण्डिया जन विज्ञान नेटवर्क, झारखंड के संयोजक समिति के सदस्य असीम सरकार कहते हैं कि शिक्षा मंत्री द्वारा झारखंड राज्य में 42,000 सरकारी विद्यालयों को प्राइवेट के हाथों में देने की चेतावनी पर चिन्ता व्यक्त किया है। लोक कल्याणकारी राज्य में शिक्षा की पूरी जिम्मेवारी सरकार की होती है। विद्यालय में गुणवत्तापूर्ण जिम्मेवारी शिक्षा विभाग की है। अगर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा छात्रों को नहीं मिल पा रही हैं तो विभाग की मानीटरिंग व्यवस्था की विफलता ही प्रमाणित होता है। शिक्षा मंत्री द्वारा नीजी क्षेत्र की पैरवी करना केन्द्र सरकार की नई शिक्षा नीति का समर्थन करना है। खानापूर्ति छोड़ सही अर्थ में मानीटरिंग और स्कूली व्यवस्था में समुदाय को स्वामित्व देते हुए जोड़ने का काम हो।
देव कुमार, स्वतंत्र शोधकर्ता व लेखक का मानना है शिक्षा की जरूरत ही नहीं अधिकार वर्तमान में हर बच्चे को है और उसे मिलना भी चाहिए। शिक्षा से आशय बच्चे का शारिरिक विकास, मानसिक विकास, बौद्धिक विकास, अध्यात्मिक विकास करते हुए बच्चे का सर्वांगीण विकास करना होता है। चूंकि शिक्षा राज्य के अधीनस्थ विषय हैं अतः यह तब तक बेहतर और गुणवत्तापूर्ण संभव नहीं है जब तक कि राज्य सरकार स्पष्ट मंशा एवं नीति के साथ काम करें। सरकार द्वारा स्कूलों का निजीकरण करने की योजना बनाई जा रही है अगर ऐसा होता है कि पूरे राज्य की शिक्षा व्यवस्था चरमरा जायेगी एवं गरीब बच्चे शिक्षा के अधिकार से वंचित रहेंगे।
व्याख्याता एवं खोरठा के साहित्यकार दिनेश दिनमणी कहते हैं कि शिक्षा मंत्री महोदय का यह बयान बिल्कुल अनुचित है। क्या स्कूल की व्यवस्था को ठीक करने के लिए निजीकरण ही एक मात्र उपाय है? शिक्षा को निजी हाथों में सौंपना शिक्षा का बाजारीकरण है। शिक्षा के नाम पर पूंजीपतियों को जनता से निर्मम लूट का अवसर देना है। सरकारी स्कूलों को ठीक करना है तो केरल और दिल्ली की नीति, सोच-संकल्प और कार्यशैली को अध्ययन करवा कर झारखंडी परिप्रेक्ष्य में ठोस कदम उठाने की जरूरत है, निजीकरण की नहीं।