पौने दो साल से लापता लड़के को एमपी से कराया गया मुक्त, डाॅक्टर के घर से शुरू हुआ था शोषण का चक्र
गढवा जिले की एक गरीब आदिवासी महिला ने अपने मासूम बेटे को एक स्थानीय डाॅक्टर को पैसों के लिए घरेलू काम के लिए सौंपा। वहां से डाॅक्टर ने उसे अपने रिश्तेदार के पास पटना भेज दिया और फिर बाद में बच्चा मध्यप्रदेश के एक ढाबे में काम करने लगा जहां उसे मारपीटा जाता और 20 घंटे काम लिया जाता था...
जनज्वार। झारखंड में मानव तस्करी और गरीब बच्चों का अन्य प्रांतों में शोषण बड़े स्तर पर होता रहा है। ऐसे ही शोषण के शिकार हुए गढवा जिले के एक बच्चों को साझा पहले से मुक्त करा लिया गया और अब उसके पुनर्वास का प्रबंध किया जा रहा है। बच्चे के मिल जाने की आस उसके परिवार ने खो दी थी।
13 साल का एक आदिवासी बच्चा मई-जून 2019 से गायब था और उसके पिता का मजबूरी वश यह मान लिया था कि अब वह नहीं मिलेगा। हालांकि बाल कल्याण समिति, गढ़वा एवं बचपन बचाओ आन्दोलन के साझा प्रयास से वह बच्चा मिला गया है और फिलहाल मध्यप्रदेश में ही है।
क्या है मामला
गढ़वा थाना क्षेत्र के एक गाँव की आदिवासी महिला को उसके एक परिचित सीताराम उराँव ने गढ़वा में ही एक चिकित्सक के यहाँ उसके 13 साल के बेटे को घरेलू काम पर रखवाने और बदले में 2500 रुपये प्रतिमाह दिलाने की लालच दिया। उस महिला के अनुसार, उक्त चिकित्सक द्वारा उसके बेटे को पटना में किसी रिश्तेदार के यहाँ काम करने के लिए भेज दिया जाता है। कुछ दिनों के बाद ही चिकित्सक दंपती ने उस महिला को बताया कि उसका बेटा पटना उनके रिश्तेदार के यहाँ से कहीं गायब हो गया है। महिला ने उनसे अपने बेटे को खोजने की मिन्नतें की, जिस पर चिकित्सक दंपती ने उसे धमकी दी। यह बात मई 2019 की है। उस समय से अब तक उस बच्चे की कोई खबर नहीं थी।
इस मामले में बाल कल्याण समिति गढ़वा ने पुलिस को लिखा था पत्र
बच्चे के गायब होने की जानकारी प्राप्त होते ही बाल कल्याण समिति, गढ़वा ने आवश्यक कार्रवाई के लिए गढ़वा पुलिस को एवं जिले में मौजूद अन्य संबंधित एजेंसी को जनवरी 2020 में ही पत्र भेजा था। लेकिन, पुलिस ने इस दिशा में क्या कार्रवाई यह पता नहीं चला।
मालूम हो कि इस गुमशुदा बच्चे के मामले में हस्तक्षेप करने के लिए बचपन बचाओ आंदोलन की टीम ने फरवरी 2020 में ही गढ़वा एसपी को पत्र भेजकर आग्रह किया था।
बच्चा कैसे हुआ बरामद?
बचपन बचाओ आन्दोलन की टीम को 25 जनवरी देर रात बाल कल्याण समिति गढ़वा से जानकारी मिली कि उक्त बच्चे को मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले में एक अन्नपूर्णा ढाबा में बंधक बनाया गया है।
सटीक जानकारी मिलते ही 26 जनवरी दिन के 12 बजे इसकी सूचना बचपन बचाओ आन्दोलन मध्यप्रदेश की टीम के साथ साझा की गयी और कार्रवाई करते हुए, मध्यप्रेश पुलिस एवं अन्य संबंधित एजेंसी के साथ समन्वय से शाम ढलने से पहले ही उस बच्चे को विमुक्त करा लिया गया।
बचपन बचाओ आन्दोलन के मनीष शर्मा कहते हैं.- बाल कल्याण समिति गढ़वा की संवेदनशीलता और हमारी टीम एवं मध्यप्रदेश पुलिस की प्रतिबद्धता से इस गणतंत्र दिवस के अवसर यह एक शानदार उपलब्धि हासिल हुई, अब आवश्यक है कि पीड़ित बच्चे का समुचित पुनर्वास हो एवं दोषियों को कड़ी सजा मिले।
दिन में 20 घंटे लिया जाता था काम, होती थी मारपीट
मुक्त कराये गए बच्चे ने अपने बयान में बताया कि जबसे वह वहां काम कर रहा है, एक भी पैसा नहीं मिला। उसे 3000 रुपये प्रतिमाह देने की बात कही गई थी। सुबह 4.30 बजे से रात 12 बजे तक उससे काम लिया जाता था। ढाबे का मालिक, उसके साथ मारपीट करता था एवं गंदी गालियां देता था।
अब हो रही है कानूनी कार्रवाई
इस संबंध में बचपन बचाओ आंदोलन की शिकायत पर मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के डोलरिया थाने में बंधुआ मजदूरी कानून की धारा 16 सहित अन्य मामलों में प्राथमिकी दर्ज की गयी है।
मुक्त कराए गए बच्चों को मेडिकल जांच के बाद उसे फिलहाल चाइल्ड लाइन, होशंगाबाद को सौंप दिया गया है, ताकि उसका समुचित संरक्षण सुनिश्चित कराया जा सके। अब इस बात पर नजर रहेगी कि गढवा जिला प्रशासन इस मामले को लेकर क्या कार्रवाई करता है।
गुमशुदा बच्चे के मामले में क्या है कानूनी प्रक्रिया
बचपन बचाओ आन्दोलन बनाम भारत सरकार जनहित याचिका मामले में उच्चतम न्यायालय का स्पष्ट आदेश है कि किसी बच्चे की गुमशुदगी के मामले की सूचना पर पुलिस तत्काल प्राथमिकी दर्ज करेगी। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा भी गुमशुदा बच्चों हेतु एक एसओपी जारी की गयी है।