झारखंड : हूल क्रांति के नायक सिद्धो-कान्हो के वंशज रामेश्वर मुर्मू की हत्या की CBI जांच को मंजूरी
मालूम हो कि 1857 की क्रांति से पहले झारखंड के संताल परगना इलाके में 1855 में संताल आदिवासियों ने अंग्रेजों के खिलाफ बगावत की थी, जिसके नायक सिद्धो - कान्हो मुर्मू थे। सिद्धो कान्हो साहिबगंज के भोगनाडीह गांव के रहने वाले थे। जून में उनके एक वंशज की हत्या हो गई थी...
जनज्वार। झारखंड सरकार ने शनिवार को संताल हूल के नायक सिद्धो कान्हो मुर्मू की छठी पीढी के वंशज रामेश्वर मुर्मू के मौत मामले की सीबीआइ जांच पर सहमति दे दी। अब निकट भविष्य में झारखंड सरकार केंद्र से इस मामले की सीबीआइ र्जाच कराने की सिफारिश करेगी।
झारखंड सरकार के मुख्यमंत्री कार्यालय के आधारिक ट्विटर एकाउंट से आज इस बात की जानकारी दी गई। ट्वीट में कहा गया कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अमर शहीद सिद्धो कान्हो के वंशज रामेश्वर मुर्मू की हत्या की जांच सीबीआइ से कराने के प्रस्ताव पर सहमति दी है। रामेश्वर मुर्मू की हत्या 12 जून 2020 को हुई थी। यह मामला साहेबगंज के बरहेट थाना में दर्ज है।
मालूम हो कि 1857 की क्रांति से पहले झारखंड के संताल परगना इलाके में 1855 में संताल आदिवासियों ने अंग्रेजों के खिलाफ बगावत की थी, जिसके नायक सिद्धो - कान्हो मुर्मू थे। सिद्धो कान्हो साहिबगंज के भोगनाडीह गांव के रहने वाले थे, जहां हूल दिवस के अवसर पर परंपरागत रूप से झारखंड के प्रमुख राजनेता जाते रहे हैं।
भोगनाडीह गांव में ही जून में गांव के पीछे खेत में 30 वर्षीय रामेश्वर मुर्मू का शव मिला है। उनके शरीर में चोट के निशान थे। उससे पहले वे शाम से लापता थे। इस घटना से पहले रामेश्वर मुर्मू का गांव के ही एक युवक से कहासुनी हुुई थी। इसकी वजह थी उक्त युवक द्वारा एक आदिवासी युवती पर भद्दी टिप्पणी करना जिसका रामेश्वर मुर्मू ने विरोध किया जिसके बाद दोनों के बीच हाथापाई की नौबत उत्पन्न हो गई और इस घटना के अगले ही दिन सुबह खेत में उनका शव मिला।
इस घटना के बाद दुमका व साहिबगंज जिले के विभिन्न आदिवासी संगठन आंदोलन चला रहे थे। आदिवासी संगठनों ने दुमका व साहिगंज जिला प्रशासन को ज्ञापन दिया और मुख्यमंत्री को भी ज्ञापन भेज कर मामले की सीबीआइ जांच कराने की मांग की।
आदिवासी संगठनों ने इस मामले में धरना व शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया। रामेश्वर मुर्मू की मौत की सीबीआइ जांच की मांग को लेकर 30 जून को हूल दिवस के मौके पर किसी राजनेता के गांव में आने का विरोध करने का भी ऐलान किया गया। इस वजह से कोई नेता इस बार भोगनाडीह गांव नहीं गया। 1855 की क्रांति जिसे स्थानीय तौर पर संताल हूल के नाम से जाना जाता है, उसके इतिहास में यह पहला आयोजन था, जब उसकी वर्षगांठ पर किसी प्रकार का भव्य आयोजन नहीं किया जा सका।
बहरहाल, अब मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के फैसले के बाद शहीद सिद्धो कान्हो मुर्मू के वंशजों ने संतोष और प्रसन्नता जतायी है।