आजाद भारत का जलियांवाला कांड है खरसांवा गोलीकांड जिसमें मारे गए थे आज ही के दिन दर्जनों आदिवासी

खरसावां गोलीकांड की तुलना जालियावाला कांड से की जाती है। राज्यों के पुनर्गठन के समय ओडिशा में अपने इलाके का विरोध करने के लिए जुटे आदिवासी समुदाय को लोगों पर ओडिशा आम्र्ड पुलिस ने अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी थी...

Update: 2021-01-01 08:51 GMT

खरसावां गोलीकांड के शहीदों की समाधि। 

जनज्वार, रांची। एक एक जनवरी है। दुनिया भर के लोग इसे नए साल के जश्न, उमंग और उल्लास के रूप में मनाते हैं, लेकिन झारखंड में इस तारीख को शहादत दिवस के रूप में मनाया जाता है। आजाद भारत की पहली एक जनवरी यानी एक जनवरी 1948 को जमशेदपुर से सटे खरसावां के एक मैदान में जुटे हजारों आदिवासियों पर पुलिस ने गोली चलायी थी, जिसमें दर्जनों निर्दोष लोगों की जान गयी थी।

इस गोलीकांड में कितने लोग मारे गए थे, इसके लोकर अलग-अलग तर्क हैं। सरकारी आंकड़े जहां 17 लोगों के मारे जाने की बात करते हैं, वहीं उस जमाने के अत्यंत प्रतिष्ठित अखबार ने इस खबर को हेडलाइन बनाते हुए 35 आदिवासी के मारे जाने की खबर लिखी थी। हालांकि बाद में स्थानीय लोगों का यह दावा रहा कि इस गोलीकांड में सैकड़ों लोग मारे गए थे। मैदान में खरसावां का ओडिशा में विलय के विरोध में आदिवासी समुदाय के लोग प्रदर्शन के लिए जुटे थे और इसी दौरान ओडिशा आम्र्ड पुलिस ने गोलियां चलायी।

कहते हैं कि गोली मारे जाने के बाद आदिवासियों को मैदान में स्थित कुएं में डाल दिया गया था। आदिवासियों पर बिना वार्निंग के ओडिशा पुलिस ने 15 मिनट तक अंधाधुंध गोलियां चलायीं और मैदान लाशों से पट गया जिन्हें कुएं में डाल दिया गया। यह भी कहा जाता है कि भागने का रास्ता नहीं होने की वजह से भी लोग कुएं में जान बचाने के लिए कूद गए और मारे गए। आज वही कुआं शहीदों का स्मारक है। बाद में उस कुएं को भरकर वहां शहीदों की समाधि बनायी गयी। देश के तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इस गोलीकांड की तुलना जालियांवाला गोलीकांड से की थी।

खरसावां में गोली क्यों चलायी गयी?

खरसावां हाट मैदान में एक जनवरी 1948 को करीब 50 हजार आदिवासी अपनी मांगों को लेकर जुटे थे। हालांकि कोलकाता से प्रकाशित अखबार स्टेट्समैन ने तीन जनवरी 1948 को रिपोर्ट की थी कि इस प्रदर्शन के लिए 30 हजार लोग जुटे थे और 35 आदिवासी मारे गए थे। यह वह दौर था जब संचार के साधन इतने सहज नही ंथे, शायद इसलिए अखबार में एक दिन के अंतराल पर खबर छपी थी।


आजादी के बाद राज राजवाड़ों के विलय की प्रक्रिया अलग-अलग राज्यों चल रही थी। खरसावां रियासत के विलय को लेकर विवाद था। आसपास के आदिवासी समुदाय के लोग इसके ओडिशा में विलय के खिलाफ गोलबंद हो गए। उस समय खरसावां रियासत की सुरक्षा की जिम्मेवारी ओडिशा आम्र्ड पुलिस निभाती थी। आदिवासियों की मांग थी कि उनके इलाके का विलय बिहार में किया जाए या पृथक राज्य उनके लिए गठित कर दी जाए। इसी को लेकर विवाद जब प्रदर्शन के खरसावां हाट मैदान में आदिवासी जुटे तो उन्हें गोलियों से ओडिशा आम्र्ड पुलिस ने छलनी कर दिया गया।

कहते हैं कि मैदान में मिले शवों में पुरुषों के अलावा महिला और बच्चों के शव भी थे। इस गोलीकांड के शिकार पशु भी हुए। अधिकतर लोगों की पीठ में गोली लगी थी जो इस बात का प्रमाण है जान बचाने के लिए भागते लोगों पर भी पुलिस ने गोलियां चलायीं और यह मानने की वजह खारिज होती है कि पुलिस से झड़प होने पर ही गोलियां चलायी गयीं। इस मामले की जांच के लिए एक आयोग भी बना था जिसकी रिपोर्ट का कुछ पता नहीं चला।

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