पश्चिम बंगाल के पुरुलिया से साइकिल पर पत्नी को बैठा इलाज के लिए झारखंड पहुँच गया यह शख्स
रिक्शा चालक हरी कहते हैं 'जब मैं पुरुलिया के अस्पतालों में दर-दर की ठोकरें खा रहा था तो एक समय तो मुझे ऐसा महसूस हुआ कि अब मैं अपनी पत्नी को नहीं बचा पाउंगा। वह लगातार दर्द से चीख रही थी और अस्पताल के लोग मुझे दूसरी जगह जाने की सलाह दे रहे थे। अस्पताल की बात सुनकर मुझे लगा कि जैसे मैं आत्महत्या कर लूं, लेकिन भगवान ने मुझे हौसला दिया और रास्ता भी दिखाया।'
कुमार विकास की रिपोर्ट
जनज्वार। कोरोना संक्रमण के इस दौर में एक ओर जहाँ कई पीड़ादायक खबरें आपको झकझोर रही हैं, वहीं यह खबर आपके मन को सुकून देगी और एक नई पॉजिटिविटी का संचार करेगी। यह खबर मानवता की मिसाल भी पेश करती है।
यह कहानी है रिक्शाचालक हरी की जो अपनी पत्नी वंदनी के साथ धड़ंगा गांव में रहते हैं। हरी की पत्नी की तबीयत लगातार खराब रहती थी, वह कई बार डॉक्टरों से भी मिले लेकिन तुरंत राहत के अलावा और कुछ हाथ न लगा। कोरोना काल के इस दौर में वंदनी को अचानक एक दिन पेट दर्द शुरू हुआ, दर्द ऐसा कि वंदनी को लगा मानो वह जिन्दा नहीं बचेंगी।
हरी ने पुरूलिया के अस्पतालों के चक्कर काटे पर किसी ने भी अपने यहाँ मरीज को भर्ती करने की हिम्मत नहीं दिखाई। कई अस्पतालों ने कोविड-19 टेस्ट कराने की बात कही। वहीं आवागमन के साधन की बंदी को लेकर हरी कहीं और इलाज के लिए सोच भी नहीं पा रहे थे।
पत्नी की तबीयत लगातार बिगड़ता देख हरी ने 50 रुपये रोजाना पर भाड़े की साइकिल ली और अपनी 10 साल की बेटी एवं पत्नी को बिठाकर झारखंड के नजदीकी शहर जमशेदपुर के लिए निकल पड़े। करीब 100 किमी का सफर अपनी पत्नी एवं बेटी के साथ पूरा करके हरी ने झारखंड के जमशेदपुर स्थित एक अस्पताल का दरवाजा खटखटाया, लेकिन वहां भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी।
इसी दौरान किसी स्थानीय राहगीर ने उन्हें गंगा मेमोरियल अस्पताल के बारे में बताया। हरी ने उम्मीद नहीं खोई और वहां भी पहुंच गए। गंगा मेमोरियल अस्पताल के चिकित्सकों ने हरी की पत्नी वंदनी की जांच की, अपैंडिक्स फटा हुआ होने की वजह से तुरंत ऑपरेशन किया और करीब 10 दिनों तक रखकर स्वास्थ्य लाभ देकर घर भेजा।
हरी पश्चिम बंगाल के रहने वाले हैं। रिक्शाचालक हरी बताते हैं, 'जब मैं पुरुलिया के अस्पतालों में दर-दर की ठोकरें खा रहा थी तो एक समय तो मुझे ऐसा महसूस हुआ कि अब मैं अपनी पत्नी को नहीं बचा पाउंगा। वह लगातार दर्द से चीख रही थी और अस्पताल के लोग मुझे दूसरी जगह जाने की सलाह दे रहे थे। अस्पताल की बात सुनकर मुझे लगा कि जैसे मैं आत्महत्या कर लूं, लेकिन भगवान ने मुझे हौसला दिया और रास्ता भी दिखाया। मैं सीधे जमशेदपुर, झारखंड चला आया और आज सब ठीक हो गया है। अगर मैं जमशेदपुर नहीं आता तो मेरी पत्नी की जान नहीं बचती। मेरे शहर पुरुलिया में गरीबों की जान की परवाह कोई भी नहीं करता है, हम सब भगवान भरोसे हैं।'
हरी बताते हैं कि जब गंगा मेमोरियल अस्पताल पहुंचकर उन्होनें वहां के डॉक्टर नागेंद्र सिंह को अपनी कहानी बताई औऱ आर्थिक स्थिति के बारे में बताया तो डॉक्टर साहब ने पैसे के बारे में कभी बात ही नहीं की। चेहरे पर विश्वास का तेज लिए हरी बताते हैं, 'असल जीवन के हमारे भगवान तो डॉक्टर नागेंद्र सिंह जैसे लोग ही हैं जो हम गरीबों की मदद करते हैं।'
हरी बताते हैं कि 50 रुपये रोजाना के भाड़े पर उन्होनें जो साइकिल ली थी, वह उसका पैसा भी चुकाने की स्थिति में नहीं थे। लेकिन डॉक्टर नागेंद्र सिंह ने उन्हें साइकिल के भाड़े का खर्च भी दिया, पत्नी के मुफ्त इलाज समेत खाने का खर्च भी माफ कर दिया।
ऑपरेशन के बाद स्वास्थ्य लाभ ले रही वंदनी बताती हैं, 'मेरे पति का हौसला ही है जो साइकिल से मुझे इतनी दूर ले आए। डॉक्टर नागेंद्र साहब की दरियादिली की वजह से ही मुफ्त इलाज हो पाया है और इसी वजह से मैं आज जिंदा बची हूं नहीं तो मैं तो दर्द से मर गई होती।'
गंगा मेमोरियल अस्पताल के डॉक्टर नागेंद्र सिंह जमशेदपुर के अच्छे चिकित्सकों में से एक है। नागेंद्र सिंह बताते हैं कि बंगाल से यह रिक्शाचालक पत्नी एवं बेटी को लेकर झारखंड आये थे। अपनी पत्नी की रक्षा के लिए 100 किमी का सफर जिस हौसले से इन्होनें तय किया, वह काबिले-तारीफ है।
नागेंद्र सिंह कहते हैं 'बचपन में आर्थिक दिक्कतों की वजह से मैंने अपने पिता को खोया तब से मैं अपनी मां के कहने पर पहले इलाज करता हूं, पैसा जो नहीं भी दे पाया उससे पैसे की मांग नहीं करता हूं। भगवान ने हम डॉक्टरों को सेवा के लिए भेजा है। वंदनी को अगर समय पर इलाज न मिलता तो मामला बिगड़ सकता था क्योंकि अपेंडिक्स पेट में फट चुका था। समय पर हमलोगों ने ऑपरेशन किया और अब वह बिल्कुल ठीक हो गई।'
चेहरे पर किसी जरुरतमंद को मदद करने का संतोष और किसी की जान बचाने की खुशी लिए गंगा मेमोरियल अस्पताल के डॉक्टर नागेंद्र सिंह बताते हैं ' इलाज के बाद उन्होंने हरी को साइकिल के पैसे चुकाने के लिए कुछ उपहार राशि भी दी। साथ ही उन्होंने नई साइकिल मंगाकर स्थानीय विधायक सरयू राय के हाथों हरी को दिलवाई, ताकि वह वापस पुरूलिया जाकर कुछ काम कर सकें। अस्पताल के एम्बुलेंस से उनलोगों को वापस पुरूलिया भेजा गया।'
(Thebetterindia.com से साभार)