झारखंड : संविदा का विरोध कर रही पुलिस पर ही पुलिस का लाठीचार्ज

रघुवर दास भले विपक्ष में होने पर अभी जो तर्क दे रहे हों, लेकिन 2017 में सुप्रीम कोर्ट की फटकार के कुछ दिनों बाद राज्य में संविदा पुलिस कर्मियों की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू हुई थी। तब शीर्ष अदालत ने राज्य में 25 हजार के करीब रिक्त पुलिस पदों पर नाराजगी जतायी थी और नियुक्ति का आदेश दिया था।

Update: 2020-09-19 15:50 GMT

जनज्वार, रांची। देश के कई राज्यों की तरह झारखंड में भी संविदा नियुक्ति का विरोध तेज हो गया है। राजधानी रांची के मोरहाबादी मैदान में पिछले आठ दिनों से तीन साल के लिए संविदा पर नियुक्त किए गए पुलिसकर्मी आंदोलन कर रहे हैं और खुद की स्थायी नियुक्ति की मांग कर रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के नेतृत्व वाली पिछली भाजपा सरकार ने राज्य के 24 में 12 जिलों में 2500 सहायक पुलिस कर्मियों की संविदा पर नियुक्ति की थी।

रघुवर सरकार ने नक्सल प्रभावित जिलों में ही प्रमुख रूप से संविदा पर सहायक पुलिस कर्मियों की नियुक्ति की थी। राज्य के जिन इलाकों में संविदा पर पुलिस कर्मी नियुक्त किए गए उनमें कोल्हान, पलामू, दक्षिणी छोटानागपुर व उत्तरी छोटानागपुर के जिले शामिल हैं।

2500 सहायक पुलिस कर्मियों ने एक तिहाई से अधिक महिलाएं हैं और ये सब युवा हैं। बीते सप्ताह जब ये पुलिसकर्मी लाॅकडाउन के दौरान पैदल व अन्य माध्यमों से आंदोलन के लिए रांची आ रहे थे तो विभिन्न जिलों की सीमा पर व चेक नाका लगा कर इन्हें रोकने का प्रयास किया, फिर भी ये रांची के मोरहाबादी मैदान में जुट गए।

जब इनका आंदोलन शुरू हुआ तो उसके ठीक बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन दुमका के दौरे पर चले गए। ऐसे में पुलिस कर्मियों ने यह आस लगा रही थी कि उनके लौटने के बाद सरकार की ओर से फिर से वार्ता की कोई पहल की जाएगी। हुआ इसका विपरीत। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन गुरुवार, 17 सितंबर को देर शाम रांची लौटे और शुक्रवार, 18 सितंबर को प्रदर्शन कर रहे संविदा पुलिस कर्मियों ने लाठी बरसाए जिसमें कई को गंभीर चोट आयी। पुलिस की ओर से आसु गैस के गोले भी दागे गए।

पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास का क्या कहना है?

संविदा पर सहायक पुलिस कर्मियों की नियुक्ति करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास का कहना है कि उन्होंने तत्कालीन परिस्थितियों में इनकी नियुक्ति की थी। ये युवा नक्सल प्रभावित क्षेत्र से आते हैं, ऐसे में इनके नक्सलियों के प्रभाव व दबाव में जाने का भय था, इसलिए उनकी नियुक्ति उन्होंने की। दास का यह भी कहना है कि उन्होंने जब नियुक्ति की थी तो उसमें यह भाव निहित था कि तीन साल बाद इन्हें स्थायी किया जाएगा, लेकिन मेरी सरकार बदल गई और अब नई सरकार ऐसा नहीं कर रही है।

इन संविदा सहायक पुलिस कर्मियों का कार्यकाल अगस्त में समाप्त हुआ है और उससे पहले रघुवर दास ने हेमंत सोरेन को एक पत्र लिख कर इन्हें स्थायी करने की मांग की। इन पुलिस कर्मियों को मात्र 10 हजार रुपये महीने के पारिश्रमिक पर नियुक्त किया गया था और वेतन में वार्षिक इजाफे का भी प्रबंध नहीं है।

मोरहाबादी मैदान में प्रदर्शन कर रहे इन सहायक पुलिस कर्मियों में दर्जनों ऐसी महिलाएं हैं, जिनके छोटे बच्चे हैं और वे उन्हें लेकर आंदोलन में शामिल हो रही हैं।

रघुवर दास भले विपक्ष में होने पर अभी जो तर्क दे रहे हों, लेकिन 2017 में सुप्रीम कोर्ट की फटकार के कुछ दिनों बाद राज्य में संविदा पुलिस कर्मियों की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू हुई थी। तब शीर्ष अदालत ने राज्य में 25 हजार के करीब रिक्त पुलिस पदों पर नाराजगी जतायी थी और नियुक्ति का आदेश दिया था। तब पश्चिमी सिंहभूम, चतरा, गुमला, लातेहार में 300-300, पलामू, गढवा, दुमका एवं खूंटी में 200-200, सिमडेगा व लोहरदगा में 150-150 एवं पूर्वी सिंहभूम व गिरिडीह में 100-100 सहायक पुलिस कर्मियों की नियुक्ति रघुवर सरकार ने की थी।

राज्य में अब भी 20 हजार से अधिक पुलिस पद रिक्त हैं। सहायक पुलिस कर्मियों का कहना है कि उन्हें इन्हीं पदों के लिए स्थायी किया जाए और वे हर मानदंड को पूरा करते हैं, सिर्फ दो महीने की हथियार वाली ट्रेनिंग नहीं हासिल की है और सरकार वह हमें उपलब्ध करा दे। झारखंड के विभिन्न विभागों में करीब छह लाख रिक्तियां हैं।


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