Jharkhand News in Hindi: आंदोलनकारियों ने एनटीपीसी के दो कार्यालयों को आग के हवाले किया एक दर्जन वाहनों में आग लगा दी

Jharkhand News in Hindi: झारखंड के चतरा जिला अंतर्गत टंडवा मेें एनटीपीसी प्रोजेक्ट को लेकर जमीन मालिक काफी लंबे समय से आंदोलनरत हैं। आंदोलन का कारण है जमीन का उचित मुआवजा का नहीं मिलना।

Update: 2022-03-07 17:20 GMT

Jharkhand News in Hindi: आंदोलनकारियों ने एनटीपीसी के दो कार्यालयों को आग के हवाले किया एक दर्जन वाहनों में आग लगा दी

विशद कुमार की रिपोर्ट

Jharkhand News in Hindi: झारखंड के चतरा जिला अंतर्गत टंडवा मेें एनटीपीसी प्रोजेक्ट को लेकर जमीन मालिक काफी लंबे समय से आंदोलनरत हैं। आंदोलन का कारण है जमीन का उचित मुआवजा का नहीं मिलना। चूंकि रैयतों की पूंजी उनकी पुश्तैनी जमीन है तो वो ज्यादा से ज्यादा पैसे, बिना देर किए भुगतान चाहते हैं। इनका कहना है कि एनटीपीसी (National Thermal Power Corporation Limited) की ओर से भुगतान में एकरूपता नहीं है। इसी मांग को लेकर रैयत एनटीपीसी के गेट पर धरना दे रहे हैं। 

इसी बीच 7 मााार्च को सुरक्षा बलों और आंदोलनकारियों के बीच हिंसक झड़प हो गई। इस झड़प में आधा दर्जन आंदोलनकारी बुरी तरह से घायल हो गए हैं। इस घटना से उग्र भीड़ ने एक दर्जन वाहनों में आग लगा दी है। इतना ही नहीं एनटीपीसी के दो कार्यालयों को भी आग के हवाले कर दिया है। पूरे इलाके में तनाव की स्थिति है। चारो ओर धुआं उठता नजर आ रहा है।

बताया जा रहा है कि एनटीपीसी परियोजना के मुख्य गेट पर आंदोलनकारी महिलाओं और सुरक्षाबलों के बीच तू-तू मैं-मैं हो गई। इसके बाद पुलिस ने कुछ लोगों को हिरासत में ले लिया। इसी से बात और बिगड़ गई। सुरक्षा बलों ने जब बल प्रयोग किया तो आंदोलनकारी और उग्र हो गए। बड़ी संख्या में आंदोलनकारियों ने सुरक्षा बलों पर पत्थरबाजी शुरू कर दी। हालत को काबू में करने के लिए सुरक्षा बलों की ओर से आंसू गैस के गोले छोड़े गए। सुरक्षा बलों ने बल प्रयोग कर आंदोलनकारियों को धरना स्थल से खदेड़ दिया। इतना ही नहीं धरना स्थल पर लगाए गए टेंट को भी जेसीबी से उखाड़ दिया गया। इस घटना से नाराज आंदोलनकारियों और पुलिस के बीच करीब डेढ़ घंटे तक पत्थरबाजी हुई।

पुलिस की कार्रवाई के बाद तनाव बढ़ता गया। बड़ी संख्या में उग्र आंदोलनकारियों ने एनटीपीसी के कार्यालय में आग लगा दी। कंपनी का पूरा सामना जलकर खाक हो गया है, हालांकि इस दौरान किसी कर्मचारी के आग में जलने की खबर नहीं है। आंदोलनकारी किसी सूरत में पुलिस से हार मानने के लिए तैयार नजर नहीं आ रहे हैं। पूरी मुस्तैदी के साथ सुरक्षा बलों की कार्रवाई का विरोध कर रहे हैं। इस घटना में एनटीपीसी की सहयोगी कंपनी सिम्पलेक्स कंपनी को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। यह कंपनी बाउंड्री से बाहर है, जिसके कारण आंदोलनकारियों ने आसानी से हमला बोल दिया। कंपनी कार्यालय में आग लगा दी। इस कंपनी के वाहन को जला दिया गया है। जानकारी के अनुसार, एक पुलिस कंटेनर में भी आग लगाई गई है।

बता दें कि टंडवा एनटीपीसी की आधारशिला पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी ने 6 मार्च 1999 को रखी थी। जिस पावर प्लांट का निर्माण साढे़ तीन साल में पूरा हो जाना चाहिए, उसमें अब तक प्रोडक्शन शुरू नहीं हुआ है। मार्च 2022 में प्लांट की पहली 660 मेगावाट की यूनिट चालू होने की उम्मीद थी। यहां से 1980 मेगावाट बिजली का प्रोडक्शन कुल तीन यूनिटों में होना है। जमीन अधिग्रहण के पुराने कानून के तहत टंडवा और आसपास छह गावों की जमीन ली गई थी। तब तक सरकार ने जमीन अधिग्रहण को लेकर नया कानून बना दिया। इसके तहत जिस प्रोजेक्ट के लिए जमीन ली गई है, वो अगर पांच साल में शुरू नहीं की गई तो अपने आप जमीन रैयत के पास वापस चली जाएगी। एनटीपीसी के टंडवा प्रोजेक्ट पर सात साल बाद काम शुरू हुआ। पूरे विवाद की शुरुआत यहीं से हुई।

एनटीपीसी और जमीन मालिकों के हिसाब से 2200 एकड़ में 200 एकड़ पर फिलहाल एनटीपीसी का कब्जा विवाद के कारण आधा-अधूरा है। इसमें छह गावों की जमीनें हैं, जिसमें टंडवा, नईपारम, दुंदुआ, राहम, कामता और गाड़ीलॉन्ग शामिल है।

जमीन मालिकों की एनटीपीसी से मुख्यत: तीन मांगें हैं

(1) सभी प्रभावित भू-रैयतों को अधिग्रहित भूमि के बदले मूल मुआवजा राशि NTPC कोयला खनन परियोजना, पकरी-बरवाडीह के समान 20 लाख रुपए प्रति एकड़ का भुगतान किया जाए। जिन रैयतों को मुआवजा भुगतान नहीं किया गया है, उन्हें बढ़े हुए ब्याज की दर से मुआवजा राशि जोड़कर मिले। 

(2) विस्थापित परिवार के पुनर्वास के लिए एनटीपीसी पैकेज में एकरूपता नहीं है। पकरी-बरवाडीह में प्रति विस्थापित परिवार 9 लाख 85 हजार है तो टंडवा में ढाई लाख है। किसी-किसी परिवार को सात लाख भी दिया जा रहा है। इसमें समानता की जरूरत है। 

(3) छुटे हुए रैयती जमीन, गैरमजरुआ खास भूमि और उस जमीन पर अवस्थित मकान, पेड़, तालाब और कुआं का मुआवजा दिया जाए। एनटीपीसी संचालित योजनाओं में विस्थापित रैयतों को 75 प्रतिशत का अनुदान दिया जाए। प्रत्येक विस्थापित परिवार को एनटीपीसी में नौकरी या रोजगार का प्रबंध किया जाए।

झारखंड की अति महात्वाकांक्षी एनटीपीसी टंडवा से बिजली उत्पादन में हाईटेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जा रहा है। देश में पहली बार एयर कूल कंडेन्स सिस्टम पर आधारित तकनीक से पानी की खपत महज पच्चीस फीसदी रह जाएगी। इस प्रोजेक्ट के पूरा होने से झारखंड ही नहीं बल्कि देश के कई राज्य भी जगमग होंगे। झारखंड के अलावा बिहार, ओडिशा, बंगाल और पूर्वोत्तर के राज्यों में भी बिजली की सप्लाई की जाएगी। इस परियोजना से 1980 मेगावाट बिजली का उत्पादन होगा। इसमें से करीब 500 मेगावाट बिजली की खपत झारखंड में होगी। काफी कम दर पर बिजली का उत्पादन यहां से हो सकेगा क्योंकि सीसीएल की मगध कोल परियोजना महज चंद किलोमीटर की दूरी पर है।

टंडवा प्रोजेक्ट विवाद के जड़ में इसे शुरू करने को लेकर लेट-लतीफी है। जिस प्रोजेक्ट की आधारशिला 1999 में रखी गई। उस पर निर्माण का कार्य काफी दिनों बाद शुरू हुआ। तब तक जमीन की कीमतें काफी बढ़ गई। केंद्र सरकार ने जमीन अधिग्रहण के नए नियम बना डाले। रैयतों को लगने लगा कि उन्होंने अपनी जमीन काफी सस्ती दर में सरकार को दे दी है। अब वो नए रेट के हिसाब के मुआवजा मांगने लगे। चूंकि रैयतों के पास जमीन के अलावा कोई दूसरी पूंजी नहीं होती है तो उनके लिए करो या मरो वाली स्थिति हो गई। कई बार जिला प्रशासन ने एनटीपीसी अधिकारियों को लेकर समझौता कराने की कोशिश की। मगर रैयतों का कहना है कि समझौते की शर्तों को एनटीपीसी के अधिकारी पालन नहीं कर रहे हैं। जिसकी वजह से विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है।

लंबे समय से यहां जमीन मालिक और एनटीपीसी में मुआवजे और दूसरी मांगों को लेकर मतभेद है। विस्थापित विकास संघर्ष समिति के कार्यक्रम में मांडर से कांग्रेस विधायक बंधु तिर्की और बागोदर से माले विधायक बिनोद सिंह पहुंचे थे। कुल छह गांव के जमीन मालिकों का एनटीपीसी से विवाद चल रहा है। दोनों विधायकों ने रैयतों को अपना समर्थन दिया। मांडर विधायक बंधु तिर्की ने कहा कि एनटीपीसी को तीन सूत्री मांगों को पूरी करनी ही होगी। मामले को विधानसभा में उठाने का आश्वासन दिया। साथ ही कहा कि विधानसभा में एक समिति भी बनेगी।

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