झारखंड : राज्यसभा चुनाव की चर्चा के केंद्र में आए सरयू, कितनी बदलेगी सूबे की राजनीति?

झारखंड में राज्यसभा चुनाव भले शिबू सोरेन, दीपक प्रकाश व शहाजादा अनवर लड़ रहे हों, लेकिन अपनी अलग किस्म की राजनीति की वजह से राज्य में एक बार फिर चर्चा के केंद्र में सरयू राय आ गए हैं...

Update: 2020-06-15 15:05 GMT
सुब्रमण्यन स्वामी व केएन गोविंदाचार्य के साथ सरयू राय का फाइल फोटो.

रांची, जनज्वार। 19 जून को झारखंड में राज्यसभा चुनाव की दो सीटों के लिए मतदान होने जा रहा है। इस चुनाव में सत्ताधारी गठबंधन से दो उम्मीदवार व विपक्षी भाजपा से एक उम्मीदवार मैदान में हैं। सत्ता पक्ष की ओर से मैदान में झामुमो अध्यक्ष शिबू सोरेन व कांग्रेस के शहजादा अनवर हैं, जबकि मुख्य विपक्ष भाजपा की ओर से प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश। इन उम्मीदवारों के मैदान में होने के बावजूद राज्य की राजनीति में एक बार फिर चर्चा के केंद्र में सरयू राय आ गए हैं।

गांधी, दीनदयाल व जेपी के सिद्धांतों पर राजनीति करने की बात कहने वाले सरयू राय ने भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के आग्रह पर भाजपा प्रत्याशी व प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश को समर्थन देने का एलान कर दिया है। उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि वे पहली प्राथमिकता का मत दीपक प्रकाश को देंगे। सरयू राय के इस एलान के साथ ये अटकलें भी शुरू हुई हैं कि क्या एक बार फिर वे अपनी पुरानी पार्टी में शामिल होंगे। हालांकि उन्होंने इस संभावना से इनकार किया है।

मालूम हो कि पिछले साल के अंत में हुए झारखंड विधानसभा चुनाव में सरयू राय का उनकी सीट जमशेदपुर पश्चिमी से टिकट काट दिया गया था, जिसके बाद उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जमशेदपुर पूर्वी से सीटिंग सीएम रघुवर दास के खिलाफ पर्चा दाखिल किया था और उन्हें करीब 16 हजार मतों से हराया था।




 


चुनाव करीब आते-आते सरयू राय व रघुवर दास के मतभेद सतह पर आ गए थे, हालांकि उससे पहले से कैबिनेट की बैठक में शामिल नहीं हो रहे थे।

81 सदस्यीय विधानसभा में फिलहाल 79 विधायक हैं। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन दो सीटों दुमका व बरहेट से जीते थे, ऐसे में उन्होंने एक सीट दुमका छोड़ दी है। वहीं, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राजेंद्र सिंह के निधन के कारण बेरमो सीट रिक्त हुई है। यानी सत्ताधारी खेमे की ही जीती हुई दो सीटें घट चुकी हैं।

झामुमो के पास वर्तमान में 29 विधायक हैं और मात्र 27 विधायकों की पहली प्राथमिकता के वोट से शिबू सोरेन का जीतना तय है। ऐसे में असली मुकाबला दूसरी सीट के लिए होना है। लेकिन, अब इस सीट पर विपक्षी भाजपा ने सरयू राय व अन्य के समर्थन से बढत बना ली है।

भाजपा के 25 विधायक चुनाव जीत कर आए थे। झाविमो गठित कर अलग राजनीति करने वाले बाबूलाल मरांडी के पार्टी में शामिल होने के बाद उसके विधायकों की संख्या 26 हो गयी। राज्य विधानसभा द्वारा आज जारी वोटर लिस्ट में मरांडी को भाजपा के वोटर के रूप में मान्यता दे दी गयी है, जबकि उनकी ही पार्टी झाविमो से जीते प्रदीप यादव व बंधु तिर्की को निर्दलीय वोटर के रूप में मान्यता दी गयी है।

दरअसल, विधानसभा ने चुनाव आयोग को जो सूची भेजी थी उसमें मरांडी, प्रदीप यादव एवं बंधु तिर्की को झाविमो का वोटर बताया गया था। चुनाव आयोग ने इसमें संशोधन कर दिया और मरांडी को भाजपा का ही वोटर माना।

भाजपा उम्मीदवार के पक्ष में उसके 26 विधायक, एक सरयू राय, आजसू के दो विधायक व एक निर्दलीय विधायक अमित यादव हैं और इस तरह यह संख्या 30 हो जाती है जो जीत को आसान बना सकती है। भाजपा  के विधायक ढुल्लू महतो को आज एक महिला के यौन शोषण मामले में जमानत नहीं मिल पायी, ऐसे में उनके वोट देने की संभावना नहीं है। बावजूद इसके इससे भाजपा का चुनावी राजनीति बहुत प्रभावित नहीं होगी।

 

वहीं, कांग्रेस उम्मीदवार के पक्ष में उसके टिकट पर चुनाव जीते 15 विधायक सहित प्रदीप-बंधु, भाकपा पाले के एक विधायक, राजद के एक विधायक व झामुमो के दो अतिरिक्त विधायक हैं और यह कुल संख्या 21 होती है। एनसीपी के टिकट पर जीते कमलेश सिंह का भी अगर समर्थन मिलता है तो यह संख्या 22 होगी। यानी अब भाजपा व कांग्रेस में वोटों का बड़ा फासला बनता दिख रहा है।




 


अपनी राजनीतिक शैली व ईमानदार छवि के कारण सरयू राय राज्यसभा चुनाव में निर्दलीय विधायक होने के बावजूद केंद्र में आ गए हैं। उन्होंने एक अखबार से बातचीत में कहा है कि मैनहर्ट घोटाले पर उनकी पुस्तक भी निकट भविष्य में आएगी जिसका वे प्रूफ इन दिनों पढ रहे हैं। मैनहर्ट कंपनी को रांची में सीवरेज व ड्रेनेज का 200 करोड़ रुपये का काम 2005 के आसपास दिया गया था, जिसमें गड़बड़ियों का आरोप है। जिस समय मैनहर्ट कंपनी को यह काम मिला था उस समय रघुवर दास राज्य के नगर विकास मंत्री थे।

यानी चुनावी मैदान से बाहर भ्रष्टाचार के मुद्दे पर एक बार फिर सरयू राय के निशाने पर रघुवर दास आ सकते हैं। सरयू का ट्रैक रिकार्ड रहा है कि वे किसी भी मामले को परिणति तक पहुंचाते हैं। बिहार में चारा घोटाला और झारखंड में मधु कोड़ा के शासन में हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने वालों में में अग्रिम पंक्ति में थे। 

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