Morbi Bridge : 100 साल पुराना है सैकड़ों लोगों की जान लेने वाला मोरबी ब्रिज, हादसे ने याद दिलाई 43 साल पुरानी दर्दनाक घटना
Morbi Bridge : गुजरात में मोरबी शहर की मच्छू नदी पर बना सस्पेंशन ब्रिज टूट गया, इस पर करीब 500 लोग सवार थे जो नदी में जा गिरे, हादसे में 190 लोगों की मौत हो गई, यह पुल 100 साल से भी ज्यादा पुराना है...
Morbi Bridge : गुजरात के मोरबी पुल हादसे के बाद से पूरा देश शोक में डूबा हुआ है। रविवार को गुजरात में मोरबी शहर की मच्छू नदी पर बना सस्पेंशन ब्रिज टूट गया। इस पर करीब 500 लोग सवार थे, जो नदी में जा गिरे। हादसे में 190 लोगों की मौत हो गई और 70 से ज्यादा लोगों के घायल होने की खबर है। यह पुल 100 साल से भी ज्यादा पुराना है। हाल ही में मरम्मत और नवीनीकरण के बाद इसे जनता के लिए खोला गया था। इस भयानक हादसे ने मोरबी के लोगों की फिर से एक दर्दनाक घटना की याद दिला दी है। बता दें कि यह हादसा मच्छू नदी के डैम टूटने से हुआ था। आपको बताते हैं कि किस तरह 11 अगस्त 1979 को यह पूरा शहर किस तरह श्मशान में तब्दील हो गया था।
बिना फिटनेस सर्टिफिकेट के खोला गया पुल
इस हादसे के बाद पुल के इतिहास उसकी मरम्मत और लापरवाही को लेकर प्रशासन पर कई सवाल उठ रहे हैं। एक प्राइवेट फर्म ने लगभग 6 महीने तक मरम्मत का काम किया था और 26 अक्टूबर को गुजराती नव वर्ष पर इसे जनता के लिए फिर से खोल दिया गया था। अद्भुत इंजीनियरिंग और काफी पुराना होने के कारण इस पुल को गुजरात पर्यटन की सूची में रखा गया था। बता दें कि इसे बिना फिटनेस सर्टिफिकेट के ही जनता के लिए खोल दिया गया था। आज मौत के पुल के तौर पर बदनाम हुए इस ब्रिज की इतिहास की अलग कहानी है।
100 साल से भी पुराना है मोरबी पुल का इतिहास
1887 के आसपास मोरबी के तत्कालीन राजा वाघजी ठाकुर ने इसे बनवाया था। 1922 तक मोरबी पर उनका शासन रहा। जब लकड़ी के इस पुल का निर्माण किया गया था तो इसमें यूरोप की सबसे आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल हुआ था। मोरबी के राजा इसी पुल से होकर दरबार जाते थे। यह पुल दरबार गढ़ पैलेस के नजरबाग पैलेस (शाही महल) को जोड़ता था। बाद में यह दरबार गढ़ पैलेस और लखधीरजी इंजीनियरिंग कॉलेज के बीच कनेक्टिविटी का मुख्य मार्ग बना।
भयानक भूकंप ने पहुंचाया था इस ब्रिज को नुकसान
1.25 मीटर चौड़ा और 233 मीटर लंबा यह पुल मोरबी की शान रहा है। लोग यहां पहुंचकर यूरोप की तकनीक का अनुभव किया करते थे। कैमरे वाले फोन आने के बाद सेल्फी का क्रेज बढ़ता गया। रविवार को लोग घूमने के लिए पुल पर पहुंचे थे। उत्तराखंड में गंगा नदी पर बने राम और लक्ष्मण झूला की तरह यह गुजरात में काफी मशहूर था। पहली बार इस हैंगिंग ब्रिज का उद्घाटन 20 फरवरी 1879 को तत्कालीन मुंबई गवर्नर रिचर्ड टेंपल ने किया था। सभी सामान इंग्लैंड से आया था और इस ब्रिज को बनाने में तब 3.5 लाख रुपये का खर्च आया था। 2001 में आए भयानक भूकंप में इस ब्रिज को गंभीर नुकसान पहुंचा था।
मोरबी ब्रिज पर रविवार को अत्यधिक उमड़ी थी भीड़
प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि अंग्रेजों के समय का या हैंगिंग ब्रिज टूटा तो उस समय कई महिलाएं और बच्चे वहां मौजूद थे। इससे लोग नीचे पानी में गिर गए स्थानीय लोगों का कहना है कि हादसे से ठीक पहले कुछ लोग इस पुल पर कूद रहे थे और उसके बड़े बड़े तारों को खींच रहे थे। हो सकता है कि भारी-भरकम भीड़ के कारण पुल टूट कर गिर गया हो। फूल गिरने के चलते लोग एक दूसरे पर गिर पड़े। दिवाली और छठ की छुट्टियां होने के कारण रविवार को इस मशहूर पुल पर पर्यटकों की अत्यधिक भीड़ उमड़ी हुई थी।
पेड़ पर लटकी थी इंसान और जानवरों की लाशें
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस हादसे में 1439 लोगों और 12,849 हजार से ज्यादा पशुओं की मौत हुई थी। बाढ़ का पानी उतरने के बाद लोगों ने भयानक मंजर देखा। इंसानों से लेकर जानवरों के शव खंभों तक पर लटके हुए थे। हादसे में पूरा शहर मलबे में तब्दील हो चुका था और चारों ओर सिर्फ लाशें नजर आ रही थीं। इस भीषण हादसे के कुछ दिन बाद इंदिरा गांधी ने मोरबी का दौरा किया था, तो लाशों की दुर्गंध इतनी ज्यादा थी कि उनको नाक में रुमाल रखनी पड़ी थी। इंसानों और पशुओं की लाशें सड़ चुकी थीं। उस समय मोरबी का दौरा करने वाले नेता और राहत एवं बचाव कार्य में लगे लोग भी बीमारी का शिकार हो गए थे।
कैसे हुआ था 1979 का ब्रिज हादसा
उस समय लगातार बारिश और स्थानीय नदियों में बाढ़ के चलते मच्छु डैम ओवरफ्लो हो गया था। इससे कुछ ही देर में पूरे शहर में तबाही मच गई थी। 11 अगस्त 1979 को दोपहर सवा तीन बजे डैम टूट गया और 15 मिनट में ही डैम के पानी ने पूरे शहर को अपनी चपेट में ले लिया था। देखते ही देखते मकान और इमारतें गिर गईं थी, जिससे लोगों को संभलने तक का मौका भी नहीं मिला था।