क्या इन 10 विचारों के साथ हिंदू कट्टरपंथी अपनायेंगे अंबेडकर को, बनायेंगे अपना आदर्श

Update: 2020-04-14 04:19 GMT

डॉ. बीआर अंबेडकर की 129वीं जयंती 14 अप्रैल पर विशेष

पढ़िये अंबेडकर ने क्यों कहा था हिंदू कुछ भी कहें, पर हिंदू धर्म स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे के लिए है खतरा....

जनज्वार टीम, दिल्ली। आज 14 अप्रैल को डॉ. बीआर अंबेडकर की जयंती है। डॉ.बीआर अंबेडकर भारत के एक ऐसे क्रांतिकारी विचारक थे, जिनके विचार कई मसलों पर आज भी राजनीतिक दलों को परेशान कर सकते हैं। खासकर बीजेपी, आरएसएस के लिए जो पिछले कुछ सालों से अंबेडकर को अपना मनाने के मिशन में जुटे हैं, जबकि हिंदुत्व और हिंदू धर्म पर बाबा साहब के विचार बीजेपी-आरएसएस एजेंडे के बिल्कुल खिलाफ जाते हैं।

अंबेडकर के ऐसे ही 10 विचार जो बीजेपी-आरएसएस को चौंका सकते हैं---

1. ‘सबसे पहले हमें यह मत्वपूर्ण तथ्य समझना होगा कि हिंदू समाज एक मिथक मात्र है। हिंदू नाम स्वयं विदेशी नाम है। यह मुसलमानों ने भारतवासियों को दिया, ताकि वे उन्हें अपने से अलग रख सके। मुसलमानों के भारत पर आक्रमण से पहले लिखे गए किसी भी संस्कृत ग्रंथ में इस नाम का उल्लेख नहीं मिलता। उन्हें अपने लिए किसी नाम की जरुरत महसूस नहीं हुई थी क्योंकि उन्हें नहीं लगता कि वह किसी विशेष समुदाय के हैं। वस्तुतः हिंदू समाज कोई वस्तु है ही नहीं। यह अनेक जातियों का समवेत रूप है.’ (-जाति प्रथा उन्मूलन, स्रोत- अंबेडकर से दोस्ती)

2. ‘अगर वास्तव में हिंदू राज बन जाता है तो निस्संदेह इस देश के लिए एक भारी खतरा उतपन्न हो जाएगा। हिंदू कुछ भी कहें, पर हिंदू धर्म स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे के लिए खतरा है। इस आधार पर प्रजातंत्र के लिए यह अनुपयुक्त है। हिंदू राज को हर कीमत पर रोका जाना चाहिए।’ (बाबा साहेब डा. अंबेडकर संपूर्ण वाड्मय खंड-15, इस खंड में अंबेडकर की मशूहर किताब ‘थॉट्स ऑन पाकिस्तान’ शामिल है।)

3- ‘हिंदू सोसायटी उस बहुमंजिले मीनार की तरह है जिसमें प्रवेश के लिए न सीढ़ी है न दरवाजा, जो जिस मंजिल में पैदा हो जाता है, उसे उसी मंजिल में मरना होता है।’ (बाबा साहब संपूर्ण वाड्मय खंड 13)

4- ‘ऐ भारत के गरीबों, दलितों, तुम्हारा उद्धार इस बात में है कि तुम अपने हितों की रक्षा करने वाले काम करो न कि इस बात में तुम तीर्थयात्रा करते रहो या व्रत और पूजा में अपना समय गंवाते रहो। धर्मग्रंथों के समक्ष माथा टेकते रहने से या उनके अखंड पाठ करते रहने से तुम्हारे बंधन, तुम्हारी जरूरतें और तुम्हारी गरीबी कभी दूर नहीं हो सकती. तुम्हारे बुजुर्ग इन कामों को सालों से करते आए हैं, क्या तुम्हारी गरीबी पर इसका कुछ भी असर पड़ा।’

- बी. आर. अंबेडकर (स्रोतः अंबेडकर से दोस्ती)

5-‘यदि आप जातिप्रथा में दरारा डालना चाहते हैं तो इसके लिए आपको हर हालत में वेदों और शास्त्रों में डायनामाइट लगना होगा, क्योंकि वेद और शास्त्र किसी भी तर्क से अलग हटाते हैं और वेद और शास्त्र किसी भी नैतिकता से वंचित करते हैं। आपको श्रुति और स्मृति के धर्म संकट को नष्ट करना ही चाहिए। इसके अलावा और कोई चारा नहीं है. यही मेरा सोचा विचारा हुआ विचार है।’ (जाति प्रथा उन्मूलन- स्रोत – अंबेडकर से दोस्ती)

6-‘जातिगत भावनाओं से आर्थिक विकास रुकता है। इससे वह स्थितियां पैदा होती हैं जो कृषि तथा अन्य क्षेत्रों में समूहिक प्रयत्नों के विरुद्ध हैं। जात-पात के रहते ग्रामीण विकास समाजवादी सिद्धान्तों के विरुद्ध होगा। इसलिए जातिवाद के कारण जो बड़े-बड़े हजारों गढ़ बन गए हैं, उन्हें तोड़ा जाए और जमीन उन लोगों में बांट दी जाए, जो उसे जोतते हैं या सामूहिक खेती कर सकते हैं जिससे शहरों और गांवों का तेजी से विकास हो।'

7-‘अगर हिन्दू अस्पृश्यता का पालन करता है तो यह इसलिए की उसका धर्म उसे ऐसा करने का आदेश देता है...अगर वह मानवता की पुकार को नहीं सुनता तब उसका कारण यह है कि उसका धर्म अस्पृश्यों को मानव समझने के लिए उसे बाध्य नहीं करता।’ (संपूर्ण वाड्.मय खंड 9, पृष्ठ 142)

8-‘अस्पृश्य को सदैव याद रखना होगा कि राजनीतिक शक्ति भले ही कितनी विशाल हो किसी काम की नहीं होगी यदि विधानसमंडल के प्रतिनिधित्व वह हिंदुओं का मुंह ताकेगी। हिंदुओं के राजनीतिक जीवन के आधार तो ऐसे आर्थिक तथा सामाजिक हित हैं जो अस्पृश्यों के हितों से सर्वथा प्रतिकूल है.’ (अस्पृश्यों को चेतावनी- स्रोत अंबेडकर से दोस्ती)

9- ‘यहां राजनीति में मूर्ति पूजा है भले ही दुर्भाग्य की बात हो पर भारत के राजनीतिक जीवन में नायक और नायक पूजा एक जीता लगता तथ्य है। मैं जानता हूं कि नायक पूजा भक्त और देश को भ्रष्ट करती है।’ (रानाडे, गांधी और जिन्ना लेख से)

10-अंबेडकर ने अपनी किताब 'अछूतः कौन थे और वे अछूत क्यों बने?' में एक लेख लिखा था ‘क्या हिंदुओं ने कभी गोमांस नहीं खाया’। अंबेडकर ने इस लेख कई ग्रंथों और एतिहासिक प्रमाणों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला था- ‘इन सब सबूतों के रहते किसी को संदेह नहीं हो सकता कि एक समय था जब हिंदू, चाहे वे ब्राह्मण हों या अन्य न सिर्फ मांसभक्षी थे बल्कि वे बीफ भी खाते थे।'

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