विनाश का यह मंजर फिर कभी न दुहराया जाए, इसके लिए पिछले 73 वर्षों से विश्वभर में अपील की जाती रही है। फिर भी परमाणु हथियारों की संख्या इतनी बढ़ चुकी है कि वे न केवल एक शहर या देश बल्कि पूरी पृथ्वी को नष्ट कर सकते हैं...
वरिष्ठ विज्ञान लेखक देवेन मेवाड़ी
आज जापान के हिरोशिमा शहर पर गिराए गए परमाणु बम से हुई तबाही याद आ रही है। वह तबाही जिसने पूरी मानवता को शर्मसार कर दिया था। वह 6 अगस्त 1945 का दिन था। उस दिन अमेरिका द्वारा जापान के हिरोशिमा शहर पर गिराए गए परमाणु बम की विनाश लीला को देख कर पूरी दुनिया चकित रह गई थी। लोग अभी उस आघात से संभले भी नहीं थे कि 9 अगस्त 1945 को जापान के ही नागासाकी शहर पर दूसरा परमाणु बम गिरा दिया गया। 6 अगस्त को हिरोशिमा दिवस और 9 अगस्त को नागासाकी दिवस के रूप में मनाते समय हमें कामना और संकल्प करना चाहिए कि महाविनाश की उन घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।
जापान के उन दोनों शहरों पर गिराए गए दोनों परमाणु बमों ने भयंकर तबाही मचाई थी। उसके बाद द्वितीय विश्व युद्ध तो समाप्त हो गया लेकिन हिरोशिमा और नागासाकी के विनाश की यादें 66 वर्ष बाद आज भी ताजा हैं। उस विनाश लीला को भूलना इसलिए भी संभव नहीं है कि विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद संहारक परमाणु हथियारों का जखीरा दुनिया भर में बढ़ता ही चला गया।
महाशक्तियों में तो परमाणु हथियारों की होड़ चलती ही रही, अन्य देशों ने भी अपने परमाणु अनुसंधान कार्यक्रमों की गति बढ़ा दी। कई छोटे-छोटे देश भी अपने-आप को परमाणु हथियारों से लैस करके अपनी हैसियत बढ़ाने के ख्वाब देखने लगे या परमाणु हथियारों का डर दिखा कर स्वयं को अधिक ताकतवर दिखाने की कोशिश करने लगे।
फल यह हुआ कि इन विध्वंशकारी हथियारों पर आतंकी नजरें भी टिक गईं। और, आज इस बात का खतरा पैदा हो गया है कि कहीं ये विनाशकारी हथियार आतंकवादियों के हाथों में न पड़ जाएं। दुनिया में ‘नाभिकीय आतंकवाद’ का नया खतरा बढ़ गया है। मानव इतिहास में कालिख से लिखी विनाश और आतंक की यह कहानी बहुत पहले शुरू हो गई थी।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मन वैज्ञानिकों ने परमाणु विखंडन की तकनीक विकसित कर ली थी। डर था कि कहीं एडाल्फ हिटलर परमाणु बम न बना ले। परमाणु बम की विध्वंसक शक्ति के अंजाम का अनुमान वैज्ञानिकों ने बखूबी लगा लिया था। अल्बर्ट आइंस्टाइन और अन्य वैज्ञानिक भी इस बात से बहुत चिंतित थे।
उधर अमेरिका ने परमाणु बम बनाने की होड़ में मैनहट्टन परियोजना शुरू कर दी। इसके तहत परमाणु की अकूत शक्ति को मुक्त करने का प्रयास प्रारंभ हुआ। यूरेनियम के न्यूक्लियस यानी नाभिक को तोड़ा जा सकता था। लेकिन, सवाल यह था कि परमाणु हथियार बनाने के लिए श्रंखलाबद्ध विखंडन कैसे हो? यह काम इटली से आए भौतिक विज्ञानी एनरिक फर्मी के न्यूक्लियर रिएक्टर से संभव हो गया। एनरिक फर्मी ने यूरेनियम-235 के नाभिक की विखंडन श्रंखला शुरु करने में सफलता हासिल कर ली।
अमेरिका ने देश-दुनिया के कई नामी वैज्ञानिकों के सहयोग से न्यू मैक्सिको के लास अलामास नामक रेगिस्तानी इलाके में परमाणु बम बनाने की मैनहट्टन परियोजना शुरु की थी। परियोजना के निदेशक जे. राबर्ट ओपनहीमर थे। परमाणु बम बनाने का काम बेहद गोपनीयता के साथ शुरु हुआ। चार वर्ष के भीतर वैज्ञानिकों ने दो तरह के परमाणु बमों का निर्माण कर लिया। इनमें से एक था- ‘लिटिल ब्वाय’ जिसे यूरेनियम 235 से दागा जा सकता था। और, दूसरा परमाणु बम था- ‘फैट मैन’, जो प्लूटोनियम अंतर्मुखी स्फोट बम था।
हालांकि जर्मनी ने मई 1945 में मित्र सेनाओं के आगे समर्पण कर दिया था, लेकिन द्वितीय विश्वयुद्ध जारी था। वैज्ञानिक जर्मनी से पहले ‘परमाणु बम’ बना लेने की होड़ में जुटे रहे। और, 16 जुलाई 1945 को न्यू मैक्सिको के अल्मोगोर्डो में ट्रिनिटी परीक्षण स्थल पर रेगिस्तान के बियाबान में वैज्ञानिकों को विश्व के प्रथम परमाणु बम का विस्फोट कराने में सफलता मिल गई।
अमेरिका और जापान की सेनाएं युद्ध में जुटी हुई थीं। जापान समर्पण करने से इंकार कर चुका था। इस बीच विनाशकारी ‘लिटिल ब्वाय’ और ‘फैट मैन’ प्रशांत क्षेत्र में गंतव्य तक पहुंचाए जा चुके थे।
6 अगस्त 1945 को अमेरिकी वायुयान ‘इनोला गे’ से ‘लिटिल ब्वाय’ परमाणु बम जापान के हिरोशिमा शहर पर गिरा दिया गया। परमाणु बम के विस्फोट से मशरूम के आकार का एक विशाल बादल उठा और चारों ओर भयंकर तबाही फैल गई। इस बम ने करीब साढ़े छह किलोमीटर क्षेत्र में हिरोशिमा शहर को पूरी तरह नेस्तनाबूद कर दिया। 13 किलोटन विध्वंसक शक्ति के इस परमाणु बम के विस्फोट केन्द्र से लगभग डेढ़ किलोमीटर क्षेत्र में तापमान 1,000 डिग्री फारेनहाइट हो गया जिससे जन जीवन खाक होकर रह गया। अनुमान है कि इस परमाणु बम ने हिरोशिमा के लगभग एक लाख लोगों को तत्काल मौत के घाट उतार दिया।
अमेरिका ने तीन दिन बाद 9 अगस्त 1945 को नागासाकी शहर पर ‘फैटमैन’ नामक दूसरा परमाणु बम गिरा दिया जिससे लगभग 70,000 लोगों की जान गई। ‘फेटमैन’ से नागासाकी शहर भी तबाह हो गया।
विनाशलीला यहीं समाप्त नहीं हुई। सन् 1945 के अंत तक अकेले हिरोशिमा में ही मृतकों की संख्या 1,45,000 तक पहुंच गई। इन परमाणु बमों से निकले विकिरण ने आने वाले वर्षों में हजारों-लाखों लोगों का जीवन नर्क बना दिया।
मानव के हाथों मानव के विनाश की यह कलंक-कथा इतिहास में दर्ज हो गई। विनाश का यह मंजर फिर कभी न दुहराया जाए, इसके लिए विगत 73 वर्षों से विश्व भर में अपील की जाती रही है। फिर भी परमाणु हथियारों की संख्या इतनी बढ़ चुकी है कि वे न केवल एक शहर या देश बल्कि पूरी पृथ्वी को नष्ट कर सकते हैं।
लास अलामास में अपने अंतिम सार्वजनिक भाषण में राबर्ट ओपनहीमर ने कहा था, “अगर होड़ में जुटी दुनिया के हथियारों के भंडार में अथवा युद्ध के लिए तत्पर राष्ट्रों के अस्त्र भंडार में परमाणु बम भी शामिल कर लिए जाएंगे तो वह समय आएगा जब मानवता अलामास और हिरोशिमा के नाम को अभिशाप मानेगी। दुनिया के सभी लोगों को एकजुट हो जाना चाहिए अन्यथा वे मिट जाएंगे। इस युद्ध ने ये शब्द लिख दिए हैं, जिसने धरती पर इतनी तबाही मचाई है... ”